द इनसाइडर्स: सरकारी घास चरने वाले बकरे का अनूठा स्वाद, मूंग की ज़हरबयानी और केबिन में इंजीनियर बना रहा हाइवे वाली फिल्म
द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों पर केंद्रित श्रंखला की दूसरी कड़ी

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल। गतांक से आगे… अब हम “राज्य प्रशासनिक सेवा या हमारी भाषा में राज्य प्रशासनिक-हम्माल सेवा (SAHS)” का आगे का वृत्तांत कहते हैं। MPPSC पास करने के बाद ये सब प्रशिक्षण के लिए भोपाल की शाहपुरा झील के पास स्थित गुरुकुल में अर्धवर्ष के लिए आते हैं, जहाँ इन्हें प्रशासनिक हम्माल बनने के लिए अच्छी तरह पढ़ाया जाता है। और क्यों न पढ़ाया जाए… क्योंकि RR तो सामान्यतः सिर्फ UPSC में ही पढ़ते हैं, बाद में तो वे सिर्फ उसी टेंडर या नीति को पढ़ते हैं… जिसमें माल आना हो। वरना रूटीन के काम के लिए ये प्रशासनिक हम्माल हैं न—दस्तखत भी इनके, फँसाव भी, और वक्त पड़ने पर सस्पेंड भी। इसलिए अक्सर पहली श्रेणी वाले “एकलव्य कुमार” UPSC के बचे हुए अटेम्प्ट के साथ यहाँ पढ़ाई अच्छे से कर लेते हैं और “कनिष्ठ” तथा “मध्यम कुमार”—अपना बचा हुआ लड़कपन मनीषा मार्केट से बिट्टन मार्केट (आजकल DB मॉल) के बाजारों में निकाल लेते हैं। यह ‘अकादमी’ नामक गुरुकुल भी अजीबोगरीब संस्था है… अक्सर “बड़े साहब” न बन पाने वाले सबसे बड़े RR साहब, अपनी चरम फ्रस्ट्रेटेड अवस्था में इसके मुखिया रहते हैं… और शेष कोर्स कोऑर्डिनेटर भी कांजी हाउस में बंद किए हुए आवारा बिगड़ैल पशुओं से कम नहीं होते। कभी-कभी शिक्षक और साहित्यिक अभिरुचि के अधिकारी भी कूल ऑफ पीरियड में आ जाते हैं।
अब पुनः कथानक पर आते हैं… “राज्य प्रशासनिक-हम्माल सेवा (SAHS)” के अधिकारियों के करियर की चार अवस्थाएँ होती हैं—शैशव, युवा, अधेड़ और संन्यास। आज हम शैशव अवस्था (डिप्टी और जॉइंट कलेक्टरी) पर चर्चा करेंगे। इस अवस्था में तीनों प्रजातियाँ (एकलव्य, मध्यम और कनिष्ठ कुमार) के SAHS लगभग एक जैसा व्यवहार करने को मजबूर होते हैं।
जिले में मंत्री आएं या सेक्रेटरी—इंतज़ाम का काम SAHS का।
कोई त्योहार हो या कार्यक्रम—जिम्मेदारी SAHS की।
चुनाव हो या कोई बैठक—जवाबदेही SAHS की।
दंगे हों या कानूनी अव्यवस्था—हेलमेट पहने व्यवस्था में SAHS मिलेंगे।
सस्पेंड करने की ज़रूरत हो तो फिर सबसे पहले SAHS!
जिला हुक़ूम (ज्यादातर RR) तो बस फोटो खिंचवाने और बाइट देने PRO के साथ आएंगे… और मीठा-मीठा गप कर, कड़वा-कड़वा SAHS पर थू कर जाएँगे। इसके साथ—किसको कौन से अनुविभाग की SDM-ship मिलेगी या कलेक्ट्रेट में किसको खनिज, खाद्य या मलाईदार विभाग मिलेगा—यह पूरा का पूरा जिला हुकूम का विवेकाधिकार होता है। अतः तीनों प्रजाति के कुमार जिला हुकूम की फुल चमचागिरी में रहते हैं। 24 घंटे ये भाव बना रहता है और इस दौरान ये SAHS हरिराम नाई की भूमिका में रहते हैं। लाइन डिपार्टमेंट्स (जैसे—PWD, वित्त, जल संसाधन, PHE, खनिज, फूड आदि) के अफसरों की चुगली जिला हुकूम को करते रहना इनकी खास आदत होती है, जो जवानी तक बनी रहती है। कुल मिलाकर इस समय SAHS अधिकारियों की “चुगली आधारित अर्थव्यवस्था” चलती है। हाँ, इस दौरान इनके लोकल नेताओं से संबंध बन जाते हैं, जो इन्हें बाद में RR से कॉम्पटीट कर कलेक्टरी पाने में काम आते हैं। वहीं, कुछ एकलव्य कुमार आनाकानी करते हैं तो उनका बधियाकरण करने की भी कोशिश की जाती है। शेष अगले अंकों में… और शुरू करते हैं आज के द इनसाइडर्स के चुटीले और मजेदार किस्से।
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अफसर चख रहे ‘प्रोटोकॉल वाला मटन’
भोपाल के चार इमली क्षेत्र को अब तक आप पॉश सरकारी कॉलोनी का ठाठदार पता मानते आए होंगे, पर असल में यह तो ‘प्रोटोकॉल फार्महाउस’ निकला! यहां का एक किस्सा सरकारी व्यवस्था के हरे चारे और अफसरों की भूख का ऐसा दस्तावेज़ है, जिसे टैगोर होते तो “घास का घराना” नाम से उपन्यास लिख डालते।
कहानी कुछ यूं है—एक होशियार बकरा व्यापारी दिन में चार इमली क्षेत्र में अपने बकरे चराता है। और जैसा कि आजकल का चलन है, अफसर लोग व्हाट्सएप पर फोटो मंगाकर ‘माल’ पसंद करते हैं, उसी तर्ज़ पर यहां अफसर और उनके परिजन चलते-चलते बकरे की नस्ल पर लट्टू हो जाते हैं। शाम होते-होते सरकारी घास चर चुके बकरे की बोली लगती है और फाइव स्टार डाइनिंग टेबल पर ‘मीट विद मिनिस्ट्री’ कार्यक्रम शुरू हो जाता है। शायद अफसरों को यह भरोसा है कि बकरे का चारागाह अगर सरकारी है तो उसका स्वाद भी पॉलिसी वाला ही होगा—कुल मिलाकर हलाल भी सिस्टम के हिसाब से! वहीं, यह भी बताया जा रहा है कि इस तरकीब से बकरे बेचने वाले व्यक्ति का धंधा दिन दोगुना रात चौगुना की तेजी से बढ़ रहा है।
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मैडम कब रिलीव होंगी—दिल्ली बुला रही है, भोपाल रोक रहा है
पिछले अंकों में जिन मैडम की बोल्ड ज़ुबान और बिंदास अंदाज़ की चर्चा थी, वे अब ‘स्थानांतरण अनिश्चय काल’ की पीड़ा से गुजर रही हैं। उनके पतिदेव तो काफी पहले दिल्ली कूच कर चुके, पर खुद मैडम फाइलों की फेहरिस्त में अब तक भोपाल की बुकिंग में अटकी हैं। विभाग भी वो, जो लक्ष्मी से जुड़ा है—इसलिए रिलीविंग की हर कोशिश “न खाता, न बही, जो साहब कहें वही सही” पर जाकर अटक जाती है। सूत्र कहते हैं, मैडम की ज़ुबान यदि फिर खुल गई तो ‘गोपनीय प्रतिवेदन’ सीधे सोशल हो सकता है।
रिटायरमेंट प्लानिंग—क्रेशर चलाओ, करियर मिलाओ
साहब ने नौकरी में रहते-रहते वो किया जो जीवन बीमा वाले भी नहीं कर पाते—“फुलप्रूफ रिटायरमेंट प्लानिंग”! विभाग के संसाधनों से सबसे महंगी कॉलोनी में स्वर्ण महल बना लिया और फिर क्रेशर उद्योग में उतर गए। अब क्रेशर तो निजी है, लेकिन रॉयल्टी और परमिट की महक साफ़ सरकारी है। समझ लीजिए—“ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर…बस जेसीबी और टेंडर मेरे!”
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सांसद महोदय की सद्भावना
राजनीतिक पटल पर कुछ नेता ऐसे भी हैं, जिनकी ‘सद्भावना का सर्टिफिकेट’ रोज प्रदर्शित होता है। एक सांसद जी का अंदाज़ भी कुछ ऐसा ही है—कांग्रेस से आए छुटभैये हों या बीजेपी के पुराने बिसरा दिए चेहरे, सबको बराबरी का सम्मान। मंच हो या भोजनालय, उनके साथ फोटो में सब बराबर दिखाई दें, यही उनका ‘डेमोक्रेटिक ड्रेप कोड’ है। अफसरों में भी सांसद जी का खौफ इस हद तक है कि एक बार आदेश दे दिया तो फाइल दौड़ती नहीं, सरपट भागती है। और अगर किसी ने चू-चपड़ की, तो फिर उलटी गिनती 5G स्पीड से शुरू होती है। इसलिए सब उनकी दोस्ती के मुरीद हैं।
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ताज़ा बियर की दुकान और साहब की पुरानी प्यास
जहां एक तरफ समाज का एलीट क्लास ‘शराब मुक्त’ या इससे दूर होने का अभिनय करता है, वहीं दूसरी ओर एक साहब ने तो लाज-शरम की चुटकी ही नमक में मिला दी। बकायदा ताजा बियर बनाने वाली दुकान का उद्घाटन किया और फिर दावत उड़ाई, जैसे नीति नहीं, “नीट” का पालन कर रहे हों। और मज़े की बात ये कि इन्हीं साहब के पास शराब नीति के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी है। भला हो “कर्मण्येवाधिकारस्ते” श्लोक का, वरना ये विरोधाभास कैसे सहा जाए?
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मूंग जहरीली है—या अफसर की जुबान?
मूंग खरीदी को लेकर एक साहब का यह कथन कि “मूंग जहरीली है”, न केवल किसानों को झटका था, बल्कि शासन को भी लकवा मार गया। किसान संगठनों ने पूछा कि साहब, ये टेस्ट किस लैब में हुआ? या फिर मुंह देखके हवा में तीर चलाया गया? अब सरकार ने खरीदी के आदेश तो दे दिए, लेकिन सवाल अभी भी मैदान में हैं—”क्लास में गलती हो तो सजा मिलती है, फिर कुर्सी पर गलती हो तो इनाम क्यों?”
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रिटायर इंजीनियर की हाइवे जैसी कैबिन रैलियां
एक निगम में महीनों पहले रिटायर हुए इंजीनियर साहब अब तक कैबिन खाली नहीं कर पाए हैं। वजह पूछो तो कहते हैं, “बड़े साहब के सरनेम से जुड़ा हूं, संविदा पर वापसी तय है।” यहां तक तो ठीक था लेकिन साहब कभी भी कैबिन की सैर करने आ जाते हैं। और जिस सहकर्मी को उन्होंने अपने कार्यकाल में रखा था, उसके साथ देर रात तक प्रगति की समीक्षा करते हैं। सोशल मीडिया पर खूब चल चुकी ‘हाइवे’ को मात देती इस कहानी पर आधारित ‘कैबिन की रैलियां’ वीडियो जल्द देखने को मिले तो अचरज न हो।
कलेक्टर मैडम के तानों से टूटी महिला अधिकारी की हिम्मत
कहते हैं काम करो, नवाचार लाओ—but not at the cost of dignity. लेकिन एक कलेक्टर मैडम इस कहावत को उल्टा पढ़ बैठीं। नतीजा, महिला अधिकारी को छुट्टी के आवेदन में लिखना पड़ा—“मैडम, आपने अपमानित किया है, अब मैं अवसाद में हूं।” यह पत्र अब अफसरशाही के गलियारों में ‘संवेदनशीलता बनाम सत्ता’ की नई बहस छेड़ रहा है। नई संस्कृति कितनी सही है, यह बहस नक्सली ज़ोन की सीमा से लगी ज़िले की गलियों से निकलकर मंत्रालय की फाइलों तक पहुंच रही है।
यह क्या हो रहा है
जब साहब दिल्ली से लौटे तो लगा था कि अब प्रशासन में नई हवा चलेगी, लेकिन अब जो हाल है, उससे तो लग रहा है जैसे सरकार खुद ही ‘प्रोबेशन’ पर है। कलेक्टर की कुर्सी 14 दिनों से खाली है और कार्यवाहक डिप्टी कलेक्टर जिनके भरोसे जिले की गाड़ी खींची जा रही है, वे 6 महीने से वाजिब कुर्सी के इंतजार में है। आईएएस बनने के लिए डीपीसी कब ऊपर से नीचे उतरेगी, कोई नहीं जानता। कई जिलों में ADM तक नहीं हैं, और जो हैं, वे निर्णय लेने की बजाय फाइलों को निहारते रहते हैं—जैसे उन पर कोई गुप्त संदेश उतर आएगा। कुछ कलेक्टरों ने तो इसे ही ‘ऑफिशियल हॉलिडे’ मान लिया है—जनता जाए भाड़ में, साहब मस्त हैं। तबादला सूची का इंतजार करते-करते लूप लाइन वाले अफसरों की आंखें सूख चुकी हैं और उम्मीदें नमक में बदल गई हैं। खैर जब तक सही अफसर को सही जिम्मेदारी नहीं मिलेगी, तब तक प्रशासन ऐसे ही लुंज-पुंज रहेगा—जैसे पानी का पाइप तो है, मगर टोंटी बंद है। इसलिए साहब से आग्रह है कि अब दिल्ली वाला जलवा दिखाने का वक्त आ चुका है।
इन्हीं गुदगुदाते किस्सों के साथ इस बार “द इनसाइडर्स” की विशेष प्रस्तुति का अब समापन करते हैं। अगले शनिवार दोपहर 12 बजे फिर मिलेंगे कुछ नई ‘कथाओं’ के साथ हमारे अड्डे www.khashkhabar.com पर। तब तक इस अड्डे पर आपको मिलती रहेंगी देश-दुनिया और हमारे प्रदेश की ताजातरीन खबरें पाने के लिए खास खबर (द इनसाइडर्स) चैनल को नीचे दिए लिंक के जरिए जरूर सब्सक्राइब करें।
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