द इनसाइडर्स: कलेक्टर साहब ने टॉनिक लेते ही मंत्री से बनाई दूरी, लक्ष्मी रूठी तो 8 करोड़ की लगी चपत, रिश्वत वाली कार से 22 लाख रूपए चोरी

द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए सत्ता यानी पावर में गोते खा रहे ब्यूरोक्रेट्स और पॉलिटिशियन के किस्से

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल | गतांक से आगे…योग:कर्मसु कौशलम..(excellence in action) ये आदर्श वाक्य समय के साथ साथ कुछ लोगों के लिए योग:आयेसु कौशलम.. (excellence in earning..) में कैसे परिवर्तित हो गया? तो शुरूआत से समझते हैं..आजाद भारत के समय लोग मोटा कॉटन पहनते थे। फिर पॉलियेस्टर आया। इसके साथ ही टेरीकॉट और टेरिलीन का अभ्युदय हुआ। पहले 70% कॉटन 30% पॉलियेस्टर। फिर 50 कॉटन व 50 पॉलियेस्टर। फिर 70 पॉलियेस्टर 30 कॉटन फिर 100% पोलियेस्टर लोग पहनने लगे। ठीक इसी तरह अवमूल्यन हुआ प्रशासकीय सेवाओं का। यानी कॉटन(ethics) की जगह चमकदार पॉलियेस्टर (practicalism) आ गया।

पहले एक जमाना था, जब ऐसे अधिकारियों को अलग-थलग कर दिया जाता था कि “वो खाता है..” अब कुछ लोगों के लिए अलग से कहा जाता है कि “भाई वो बिल्कुल भी नहीं खाता।” और 70 के दशक तक जो ‘खाते’ थे। उनकी अच्छी पोस्टिंग नहीं होती थी। मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सीनियर ब्यूरोक्रेट्स से अत्यधिक विनम्रता से पेश आते थे। प्रशासकीय अधिकारियों की इच्छा के विरुद्ध मंत्री गण कोई प्रस्ताव भी नहीं रखते थे। अधिकारी सीधे मना करने की हिम्मत नहीं, बल्कि आदत रखते थे। अधिकारी polity में नहीं घुसते थे और नेता policy में नहीं घुसते थे। फिर आया अर्जुनसिंह का दौर (तमाम नियमों को शिथिल करके आदेश जारी करने का दौर) और विधायकी की वरीयता बढ़ी। अधिकारियों को विधायकों को सम्मान देने के सर्कुलर जारी हुए। विश्राम भवन में विधायकों की वरीयता ऊपर कर दी गई। विधायकों के चेले-चपाटो ने रेस्ट हाउसों के कमरों पर परमानेंट कब्जा शुरू कर दिया। कलेक्टर विधायकों के सामने झुकने लगे और तब शुरू हुई “गरम-नरम-बेशरम ” की थ्योरी और 5 प्रकार के अधिकारियों की थ्योरी ..। इस थ्योरी की चर्चा अगले अंक में। फिलहाल, हास्य रस से सराबोर होते हुए मजेदारों किस्सों का आनंद लीजिए ‘द इनसाइडर’ के इस अंक में…

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कमिश्नर साहब के टेबल पर रख दी 100 ग्राम मूंगफली और नमक की पुड़िया
कई फिल्मों में आपने देखा होगा कि मुहावरे का नासमझकर उसके शाब्दिक अर्थ पर जाकर नासमझ चरित्र से कॉमेडी करवाई जाती है। लेकिन एक बुद्धिमान व्यक्ति ने मुहावरे के शाब्दिक अर्थ से प्रशासनिक अधिकारी का माखौल बना दिया। हुआ यूं कि प्रदेश के उत्तर क्षेत्र की कमिश्नरी के ठिकानेदार साहब बहुत दिनों बाद इलेक्शन के कार्यालय से मुक्त हो कर फील्ड पोस्टिंग पर पहुंचे। उन्होंने कुछ अधिकारियों के बीच इशारों में कहा – “कैसी जगह है यह, कोई मूंगफली की भी नहीं पूछता” बुद्धिमान जनसम्पर्क अधिकारी तत्काल बाहर गया और 100 ग्राम मूंगफली खरीदी और नमक की पुड़िया के साथ साहब की टेबल पर रखवा दी। फिर क्या था कमिश्नरी से लेकर भोपाल तक जनसंपर्क अधिकारी के बुद्धिमत्ता के चर्चे गूंज गए।

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पैंसठिया के कुनबे को साहब के मोक्ष का इंतजार
‘द इनसाइडर्स’ के एक अंक में हमने चर्चा की थी कि अधिकारी अपनी काली कमाई अक्सर अपने खास पैंसठिये (चमचे) के पास रखवाते हैं और बेनामी सम्पति भी अवैध सन्तान की तरह बड़ी हो जाती है तो अपनाना मुश्किल होता है। ऐसा ही कुछ ग्वालियर और जबलपुर में नगर निगम आयुक्त रहे सेवानिवृत्त अफसर के साथ हो गया। ग्वालियर के कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपने प्रिय पैंसठिये (चमचे) जो बिल्डर भी हैं के नाम से बड़ी जमीन खरीद ली। फिर साहब के जीवन में सेवानिवृत्ति का दशहरा आया। अब साहब ने जमीन अपने नाम करवाने की कोशिश की तो जमीन की कलेक्टर गाइड लाइन कीमत ही 3 खोखे की हो चुकी थी। पैंसठिये ने कहा आप चेक दे कर अपने नाम करवा लो। तो साहब क्या करते? वृद्धावस्था में वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए। और बच्चों के नाम वसीयत करवाने की उम्मीद कर रहे हैं कि शायद पैंसठिये के बच्चे भविष्य में ऑब्जेक्शन न लगाएं। इधर, पैंसठिया का कुनबा साहब के मोक्ष का इंतजार कर रहा है क्योंकि वे मधुमेह और बीपी से पीड़ित भी हैं। निष्कर्ष के रूप में यह तय है कि साहब को उस सम्पत्ति का सुख जीवन काल में नसीब नहीं होने वाला और उसके बाद एक लंबी कानूनी लड़ाई की सम्भावना बनी हुई है।

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Mr India की धूम..
सरकार के विदेश से लौटने के बाद पहली कैबिनेट की बैठक हुई। विदेश यात्रा के प्रतिवेदन के साथ साथ कुछ सड़कों के प्रस्ताव भी पारित हुए। लेकिन मालवा के कद्दावर नेता ने धार्मिक नगरी में ही सारा पैसा लगा देने पर आपत्ति ली। उन्हें बड़े साहब ने समझा भी दिया लेकिन बात कुछ और ही थी। दर्द कहीं और का था, बताया कहीं और का गया। दरअसल नेता जी पिछले एक दशक से राजा बनने का ख्वाब लिए घूमते रहे और कम से कम खुद को इस पद के समकक्ष भी मानते रहे। लेकिन जातिगत समीकरण और पुत्र के कारनामे ने उनकी इच्छाओं पर तुषारापात कर दिया। लिहाजा, दस साल बाद फिर वहीं पहुंच गए जहां से छोड़ कर दिल्ली गए थे। ऊपर से दिक्कत यह की उन्हीं के इलाके की रोड चार से छह लेन होने जा रही है। लेकिन कोई अदृश्य MR INDIA हैं जो सड़क के दोनों तरफ की ज्यादातर जमीन खरीद कर बैठा है। साथ ही, कंस्ट्रक्शन कंपनी को भी पूरे रोड की क्लीयरेंस का भरोसा भी। बेचारे नेताजी और उनसे जुड़े लोग अपने ही इलाके में सिर्फ दर्शक बन कर रह गए हैं।

विदेश यात्रा और ठिकानेदारों का सुरूर
पिछले दिनों सरकार ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी की यात्रा पर थे। उनके साथ वल्लभ भवन के कई साजिंदे और ठिकानेदार भी सात समंदर पार का लुत्फ लेने गए थे। वहां से लौटने के बाद वल्लभ भवन के गलियारों में दो तरह की चर्चाएं जोरों पर हैं एक ठिकानेदारों (अधिकारियों) में तो दूजी राजनेताओं में। राजनेताओं की बात बाद में करेंगे। फिलहाल अधिकारियों में चर्चा है कि स्कॉटलैंड का चोखा माल सिंगल माल्ट कितना भोग आए और कितना लेकर आए। कुछ चर्चाएं तो दूसरे “W” की भी हो रहीं हैं। और कुछ बातें ऐसी भी जिन्हें लिखने में कलम को भी शर्म आ रही है। बाकी आप समझदार हैं।

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WWW में हुई दोस्ती-दुश्मनी की अदला-बदली
प्रदेश में परिवहन, गृह, नगरीय की तरह माइनिंग भी सबसे दुधारू विभाग माना जाता है। पिछली सरकार के माइनिंग मंत्री और उनके ओएसडी की खूब छनी। दोनों “सिंहों” ने जमकर शिकार किया। माल खाया भी और खिलाया भी। लेकिन उठते की हाट का हिसाब गड़बड़ा गया। इस बार मंत्री नहीं बन पाए विधायक जी से पार्टी ने चंदे का हिसाब मांगा। मंत्री जी ने ओएसडी पर गबन का आरोप मढ़कर दोषमुक्त होने की असफल कोशिश की। ओएसडी पूर्व मंत्री के इस आरोप से साफ मुकर गए और कहा कि माल एक व्यापारी से नहीं मिला। अब पूर्व मंत्री जी परेशान हैं कि क्या करें? अब दोनों सिंह गर्राना छोड़ भौं भौं कर रहे हैं। बताते चले कि ओएसडी इतना शातिर है कि उसने पूर्व मंत्री व वर्तमान विधायक जी का साथ छोड़ दूसरे विभाग के मंत्री जी के साथ हो लिया। यही नहीं, निरन्तर श्यामला हिल मे खनिज विशेषज्ञ के सम्पर्क में हैं। किसी ने सही कहा है WWW में हुई दोस्ती कब दुश्मनी में बदल जाए पता नहीं चलता..

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विपश्यना वाले साहब की टंगड़ी से लगी 8 करोड़ की चपत
विपश्यना वाले साहब को कौन नहीं जानता? यदि नहीं जानते हैं तो बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं। क्योंकि साहब के पास लक्ष्मी वाला विभाग है। कुछ ऐसी ही भूल ‘यादव जी’ ने कर ली। इस भूल की सजा के तौर पर उन्हें 8 करोड़ रूपए की चपत लग गई। हुआ कुछ यूं कि उन्होंने अपने शागिर्द या ‘मन के ओज’ के साथ मिलकर मिलर्स व्यापारियों से आठ करोड़ रूपए में एक डील की। इसमें से एक करोड़ रुपए बयाना भी ले लिया और डील के तहत मिलर्स को प्रोत्साहन राशि देने का प्रस्ताव तैयार कर लिया गया। जब फाइल लक्ष्मी वाले विभाग में गई तो विपश्यना वाले साहब ने आंखे तिरछी कर ली। प्रस्ताव पर लिखा गया कि पूर्व में कोरोना की वजह से प्रोत्साहन दिया गया था। अब ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है कि प्रोत्साहन राशि दी जाए। खैर हाथ आई रकम को कोई कैसे जाने दे भला! लिहाजा, मिलर्स की बैठक बुलाई गई और उनकी सरकार से मुलाकात कराई गई। देखना दिलचस्प होगा कि सरकार क्या कदम उठाती है?

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मंत्री जी के प्रवास पर साहब की तबीयत हो गई खराब
ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा…किशोर कुमार के गाए इस गाने को गुनगुना कर थोड़ा खुशफहम हो जाइए। और पढ़िए अलसभोर से धुत रहने वाले कलेक्टर साहब के कारनामे को। तो ऐसा है कि नशे का भूत चाहे पैसों का हो ..चाहे शबाब का ..चाहे शराब का ..मुश्किल से उतरता है। ठीक 2 हफ्ते पहले द इनसाइडर्स में इसका खुलासा किया था। अब नशा उनकी कार्य शैली में असर कर रहा है। घाटों वाले जिले के “कमल नाल” नशे में इस कदर ग़ाफ़िल थे कि प्रोटोकाल को ही नजरअंदाज कर दिया। एक बहुत महत्वाकांक्षी कार्यक्रम से जुड़े विभाग के मंत्री का जिले में 2 दिन का प्रवास था और दुर्भाग्य से अवकाश के दिनों शनिवार, रविवार को था। इसमें जिल्लेइलाही ने खुद न जा कर मातहत एसडीएम को भेजकर कहलवा दिया कि “सरकार नहीं आ सकते..तबियत खराब है।” सही बात है जब सामान्य कार्य दिवस में राजसी ऐब की मनाही नहीं है तो अवकाश दिवस में जिला हुकुम शौक कैसे पूरा न करते। हम सभी जानते हैं जब भी किसी साहब या मंत्रीजी की तबियत खराब होने की खबर कोई मातहत देता है तो उसका मतलब साफ होता है…कि साहब WWW(वाइन वुमन या वेल्थ) के साथ बिजी हैं। हमारी तो बस इतनी सी सलाह है कि भरी जवानी में बीमार न पड़िए और आइंस्टाइन ने कहा था The measure of intelligence is ability to change. मानिए क्योंकि आप इंटेलिजेंट तो हैं ही।

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Note: Approved
एक बहुत लोकप्रिय चुटकुला है। एक बार बाबू ने अफसर को बताया सर ठेकेदार से बात हो गई है। साहब ने फाइल पर लिख दिया “Approved”, फिर पता चला कि ठेकेदार हुज्जत कर रहा है तो साहब ने नोटशीट को कर दिया ” Not Approved..”। फिर ठेकेदार ने सारी मांग मान ली तो साहब ने कर दिया “Note Approved”..। कुछ ऐसा ही खेल चल रहा है पुलिस में दूरसंचार करने वाली शाखा में। करीब 20 करोड़ का टेंडर के लिए सेंटिंग का दौर जारी है। एक कम्पनी से सेटिंग हो गई तो उसके पक्ष में काम किया जाने लगा। फिर, दूसरी कम्पनी ने साहब को बड़ा ऑफर दे दिया। इसी बीच तीसरी कंपनी ने कहा – पारदर्शिता रखिए नहीं तो शिकायत होगी। लेकिन साहब और उसके शागिर्द मोटी चमड़ी के हैं। इसलिए सबसे ज्यादा बोलीकर्ता के हिसाब से ही कंडीशन्स तोड़ी और मरोड़ी जा रहीं हैं। लेकिन शायद इन्हें नए बड़े कप्तान की रीति-नीति और चाल-ढाल नहीं पता। इसलिए वे पुराने कप्तान साहब को अपना आदर्श मान बैठे हैं। हम तो यकीन के साथ कह रहे हैं कि कप्तान साहब को खबर पता चली तो साहब का लाइन अटैच पक्का।

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तीन दिन के लिए खास लोग अपने परकोटे में करेंगे इन्जॉय
फलो का राजा आम और आमों का राजा अल्फांसो या हाफुस आम। किसी के हाथ में एक अल्फांसो हो तो वो खास (राजा) होता है, पर जब बहुत सारे अल्फांसो एक बॉक्स/टोकरी में होते हैं तो वो महज आम होते हैं। जी हां! दिसम्बर आ गया है और 3 दिन के लिए सरकारी खर्च पर IAS SUMMIT प्रशासन अकादमी और अरेरा क्लब में होने जा रहा है। इन तीन दिन सारे ठिकानेदार अपनी अपनी मानवीय सूरत में रहेंगे लेकिन अपनी “पर्सनल प्रॉपर्टी अरेरा क्लब” के दायरे में ही, जहां किसी आम की एंट्री सम्भव ही नहीं। हमेशा की तरह सीएम समिट की शुरुआत करेंगे, जिससे सरकारी कार्यक्रम के रूप से भोपाल में एकत्र होने का बहाना मिल जाएगा। RR जलवे बिखरेंगे (कॉलेज गोवर्स की तरह) और प्रौढ़ प्रमोटी हमेशा की तरह सिर्फ ताली बजाएंगे। अन्य सेवा से आये अधिकारी सिर्फ दस्तखत करके भाग जाएंगे। खेल सांस्कृतिक कार्यक्रम से कॉकटेल डिनर तक एक बड़ा एक्स्ट्रा वेगेंजा होगा। पर क्या ये हमेशा की तरह एसोसिएशन के चंदे की जगह भोपाल नगर निगम के व्यय पर होगा। (भ्रष्ट ठेकेदारों की राशि से ईमानदार अधिकारी एन्जॉय करेंगे) या फिर नए असली ईमानदार बड़े साहब की आमद से कुछ नया होगा। ये देखना अभी शेष है….हालांकि हमारा आकलन है कि कुछ भी हो सकता है …क्योंकि “समरथ के नहीं दोष गुसाईं”

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रिश्वत के 22 लाख लुटे तो वसूल लिए दोगुने
पानी से संबंधित विभाग में 30 हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं लेकिन प्रदेश के नलों में 200 करोड़ का भी पानी न बह पाया है। फिर भी, जल भवन में नोटों का सैलाब जरूर बह रहा है। पिछले हफ्ते जहां संविदाधारी बड़के इंजीनियर के चैंबर से 9 लाख गायब हुए की खबर आम हुई। तो हमारे एक इनसाइडर ने बताया की कुछ वक्त पहले भी रिश्वत वाली कार से 22 लाख की चोरी भी हो गई थी। ‘द इनसाइडर्स’ में डेढ़ महीने पहले ही बताया था कि “खजांची खरे जी” कार में संविदाधारी के लिए ठेकेदारों से कलेक्शन का कारोबार करते है। शायद कोई था जो उन पर निगाहें बनाए हुए था, इसलिए 22 लाख का “खेला” हो गया। पर संविदाधारी तो है साक्षात 16 कलाओं का ‘कृष्ण’ हैं तो उन्होंने इस नुकसान की भरपाई के लिए नई कलाकारी दिखाना शुरू कर दिया। उन्होंने भूलने की एक्टिंग शुरू कर दी और खास-खास बड़े जिलों के अधिकारियों को फोन कर कहा कि आपने हिसाब बराबर नहीं किया है। (जबकि हिसाब हो चुका था) फिर पॉवरफुल संविदाधारी की दबिश, धमक और “‘मोहन कृपा के फ़ोटो'” के प्रभाव से उन्होंने 22 के 44 वसूल लिए। हालांकि, कुछ लोगों को ये भी लगता हैं कि निकलने के पहले संविदाधारी का ये “आखिरी समेटा” तो नहीं… और इस किस्से के साथ हम भी आज के अंक का समेटा करते हैं। और किस्सों के किरदारों को हमारा सलाम भी। जय सीताराम जी की।

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