यूपी में नई सोशल मीडिया पॉलिसी, हर छोटी बात पर जेल में डालना है तो नया कानून क्‍यों चाहिए?

लखनऊ

सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए कानून होना चाहिए या नहीं इस पर बहस हो सकती है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है. लेकिन यह भी सच है कि सरकारें चाहे किसी भी पार्टी की हों, उन्‍हें यदि किसी को इस आरोप के चलते जेल में डालना तो वे बिंदास ऐसा करती आई हैं.

सोशल मीडिया पॉलिसी लाने के पक्ष में कहा जाता है कि अगर सोशल मीडिया को नियंत्रित नहीं किया गया तो यह बहुत जल्दी ही जी का जंजाल बन सकता है. आर्टिफि‍शियल इंटेलिजेंस के आने से ये चुनौती और बड़ी हो गई है. हाल ही में हमने एक वीडियो देखा जिसमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस जो इस बार अमेरिकी प्रेसिडेंट पद की उम्मीदवार भी हैं दोनों एक साथ छुट्टियां मना रहे हैं. इस बीच कमला हैरिस प्रेगनेंट होती हैं. और उनकी गोद में जूनियर डोनाल्ड ट्रंप दिख रहे हैं. इसी तरह एक और वीडियो में ट्रंप के साथ ओबामा हथियार लिए दिख रहे हैं. यह अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने के लिए ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का यूज कर बनाए गए वीडियो हैं.

भारत में भी कुछ दिनों पहले गृहमंत्री अमित शाह का एक डीप फेक वीडियो बनाकर उन्हें अपमानित करने की कोशिश हुई थी. फिलहाल यह ट्रेंड दिन प्रतिदिन बहुत तेजी से बढ़ रहा है. आप सोशल मीडिया पर जो देख रहे हैं वो कितना सही है आप नहीं समझ सकते हैं. सरकारों को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल बढ़ गया है. यहां तक राष्ट्रीय पार्टियों के सोशल मीडिया हैंडल भी इससे अछूते नहीं हैं. अभी हाल ही में कांग्रेस पार्टी के हैंडल से एक ऐसा ही फोटो डाला गया था जिसे भारत सरकार ने फर्जी बताया था. उत्तर प्रदेश सरकार को भी कई बार बदनाम करने की कोशिश की गई है. कई बार ऐसा हुआ कि दूसरे प्रदेश यहां तक कि दूसरे देश के वीडियो जिसमें किसी अल्पसंख्यक का उत्पीड़न हो रहा है उसे उत्तर प्रदेश का बताने की कोशिश की गई.इसलिए अगर इस तरह का कोई कानून सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए आए तो उसका स्वागत होना चाहिए. पर इस कानून का दूसरा पक्ष भी है . उस पर भी ध्यान देना जरूरी है. 

क्यों स्वागत किया जाना चाहिए?

चुनाव हो या बिजनेस ,युद्ध हो या कोर्ट का फैसला, किसान आंदोलन हो या कोलकाता रेप और मर्डर केस में न्याय की लड़ाई सभी के लिए आज सोशल मीडिया अनिवार्य हथियार है.अब सोशल मीडिया का रूप व्यक्तिगत नहीं रह गया है. यह केवल देखने में एक अकेले की लड़ाई लगती है. पर यह इतना ज्यादा संगठित रूप ले चुका है जिसकी कल्पना हम और आप नहीं कर सकते हैं. अगर आप के साथ कोई घटना घटती है या आप कुछ पोस्ट करते हैं तो उस पोस्ट पर कमेंट करने वाले लोग व्यक्तिगत नहीं है. इसके पीछे पूरी ट्रोल ऑर्मी काम कर रही है. जैसे कोलकाता में एक डॉक्टर के साथ रेप के बाद हत्या हो जाती है. अब सोशल मीडिया पर तमाम लोग इस मामले पर अपने दिल की भड़ास निकालते हैं. सामान्य तौर पर हम ये समझते हैं कि देखों लोगों में कितना आक्रोश है. वास्तव में आक्रोश हो सकता है पर सोशल मीडिया पर जो हम देख रहे हैं उसके पीछे एक पूरी सोशल मीडिया सेना काम कर रही है. जिसे आज कल आईटी सेल का नाम दिया गया है.

कोलकाता रेप केस में आप देखेंगे कि 2 तरह के ट्वीट हो रहे हैं. एक तरह के लोग साबित करने की कोशिश करते हैं कि पूरे देश में रेप हो रहे हैं. कुछ लोग लिखते हैं पुलिस वालों को किस तरह कोलकाता में पीटा गया. कुछ लोग लिख रहे हैं कि यह सब बीजेपी और संघी लोगों का किया धरा है. दूसरी तरफ कुछ लोग लिख रहे हैं कि ममता सरकार की कमजोरियों के चलते इस तरह के अपराध हो रहे हैं. ममता सरकार बहुत कुछ छिपा रही है इस मामले में. कहने का मतलब है कि दोनों तरफ से ट्रोल ऑर्मी काम कर रही है. इस बीच दोनों तरफ से फेक न्यूज की भरमार है. जिसे आम तो क्या खास लोग भी जल्दी नहीं समझ सकते हैं. किसान आंदोलन के समय भी इस तरह की ट्रोल ऑर्मी काम कर रही थी. भारत और पाकिस्तान के मामले में भी यह ऑर्मी काम करती है. आपको याद होगा कि क्रिकेटर अर्शदीप सिंह को किस तरह सोशल मीडिया पर आतंकी कहा गया था. बाद में पता चला कि जिन हैंडल से उन्हें आतंकी कहा गया वो पाकिस्तान में हिंदू नाम से साजिश के तहत बनाए गए थे. यही कारण है कि सोशल मीडिया को अगर रेग्युलराइज किया जा रहा है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए.

पर ऐसे कानूनों की दिक्कत यह होती है कि आम लोग पिस जाते हैं

उत्तर प्रदेश में नई सोशल मीडिया पॉलिसी आई है.इस पॉलिसी में सोशल मीडिया एन्फ्लूएंसर के लिए जितना खुश होने की बात है उतना ही उनके लिए चिंतित होने की भी बात है. फिलहाल सोशल मीडिया एन्फ्लूएंसर तो दांव पेंच भली भांति समझते हैं क्योंकि उनमें से अधिकतर किसी न किसी एजेंडे पर काम कर रहे होते हैं. चिंता करने वाली बात सामान्य लोगों के लिए है जो अपने दिल की भड़ास सोशल मीडिया पर निकालते हैं. बहुत से ऐसे लोग जो किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़े नहीं होते और न ही उनका मकसद किसी भी पार्टी को आहत करना होता है , वे अकसर व्यवस्था से तंग होकर कुछ लिख देते हैं. ऐसे लोगों को लिए अब संकट की स्थित पैदा हो सकती है. जिस तरह सरकार के हर कानून का शिकार आम आदमी होता है वैसा ही कुछ इस सोशल मीडिया पॉलिसी के साथ भी है.

सबसे बड़ी बात यह है कि इस कानून का बेजा इस्तेमाल अफसर अपनी नाकामी छुपाने के लिए करेंगे. आपको याद होगा कि मिर्जापुर जिले के एक यूट्यूबर को प्रशासन ने किस तरह प्रताड़ित किया था. उस यूट्यूबर का दोष यह था कि उसने खराब मिड डे मील का मामला उठाया था. अधिकारियों ने कई आरोप लगाकर उसे जेल भेज दिया. पर यह वैसे ही है जैसे गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है. तमाम ऐसे यूट्यूबर जिन्होंने अपने पेशे को वसूली का धंधा बना लिया है उनसे लड़ने में ऐसी घटनाएं भी होंगी जिसमें निर्दोष भी परेशान होंगे. पर न्याय का यही सिद्धांत है कि अन्याय करने वाला भले छूट जाए पर एक भी निर्दोष के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए. जाहिर है कि इस नई सोशल मीडिया पॉलिसी का सबसे बड़ा डर यही है.

सरकारें किसी को भी 'अप्रिय' पोस्ट पर गिरफ्तार करा ही रही हैं तो फिर कानून की जरूरत ही क्यों?

अब सबसे बड़ी बात यह है कि अगर सरकारें छोटी-छोटी बातों पर आम लोगों को गिरफ्तार कर ही रही हैं तो फिर कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ गई? आज से तीन साल पहले दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2020-2021 में सरकार के तय मानकों के विपरीत लिखने पर उत्तर प्रदेश में करीब 1107 मुकदमें दर्ज हुए थे. जाहिर है कि इसमें अधिकतर जेल भेजे गए होंगे. फिलहाल के वर्षों में यह और बढ़ा है. यह बढ़ोतरी केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं है. गैर बीजेपी शासित राज्यों में भी यह प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है. पश्चिम बंगाल में ममता सरकार के खिलाफ कार्टून बनाने वाले को गिरफ्तार कर लिया गया था. कांग्रेस राज में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को 2012 में मुंबई पुलिस ने आईपीसी की धारा 124A के तहत गिरफ्तार किया था, जिसके बाद उन्होंने यह पेशा छोड़ दिया.असीम पर नवंबर 2011 में देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था, जब उनके सात कार्टून मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में प्रदर्शित किए गए थे, जहां अन्ना हजारे के इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन का समर्थन करने के लिए लाखों लोग इकट्ठा हुए थे.

तमिलनाडु सरकार ने इसी तरह बिहार के यूट्यूबर मनीष कश्यम को गिरफ्तार कर महीनों जेल में रखा. तमिलनाडु में एक यूट्यूबर ऐसा है जिसे वहां की पुलिस हर महीने गिरफ्तार करके जेल भेजती है. हाल ही एक यूट्यूबर अजित भारती के नोएडा निवास पर कर्नाटक पुलिस नोटिस सर्व करने पहुंची थी. अगर यूपी पुलिस का सहयोग भारती को नहीं मिलता तो संभव था कि उनकी गिरफ्तारी भी होती.मतलब साफ है कि अब पुलिस अपने राज्य में ही नहीं दूसरे राज्यों से भी अपने खिलाफ सोशल मीडिया पर लिखने वालों को उठाने का साहस कर रही है. 

 इस तरह का ट्रेंड हर दिन जोर पकड़ रहा है. मतलब साफ है कि आवाज बंद करने की कोशिश हो रही है. सवाल यह उठता है कि जब पुलिस और सरकार जिसको चाहे उसे उठा ही ले रहे हैं तो फिर कानून लाकर अधिकारियों को और अधिक पावर देने की क्या जरूरत है.क्योंकि अभी तक उनकी ही गिरफ्तारी हो रही है जो किसी एजेंडे तहत काम कर रहे होते हैं. अधिकतर इस तरह के मामले राजनीतिक होते हैं. जिसमें यूट्यूबर किसी और पार्टी से जुडे़ होते हैं या उनकी विचारधारा का प्रचार प्रसार कर रहे होते हैं. मनीष कश्यप हों या अजीत भारती ये एक विचारधारा से प्रेरित लोग हैं. पर इस तरह का कानून आने के बाद से जाहिर है कि जिले लेवल पर अधिकारियों का और मन बढ़ जाएगा. छोटी छोटी सरकारी योजनाओं में चल रही घुसखोरी आदि का पर्दाफाश करने वाले यू ट्यबरों और सोशल मीडिया एल्फ्लूएंसरों पर दबाव बनाने लगेंगे. जिस तरह मिर्जापुर मिड मील केस में हुआ था वैसी घटनाएं आम हो जाए्ंगी. आम लोग भी अब किसी स्कूल-कॉलेज , अस्पताल या सड़क निर्माण की घटिया क्वॉलिटी के खिलाफ कुछ भी सोशल मीडिया पर लिखने से बचेंगे. इस तरह एक ऐसे समाज का निर्माण होगा जो भीतर-भीतर घुल रहा होगा.

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