द इनसाइडर्स: वीआईपी गणेश महोत्सव में दिखा नया शीशमहल, प्राइवेट जेट से सफर करते हैं पूर्व आईएएस, मामा बनेंगे राष्ट्रीय अध्यक्ष!

द इनसाइडर्स में इस बार पर्युषण पर्व की क्षमा याचना के साथ पढ़ें सफेदपोशों के किस्से।

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865

 “क्षमा बलमशक्तानाम् शक्तानाम् भूषणम् क्षमा। क्षमा वशीकृते लोके क्षमयाः किम् न सिद्ध्यति॥” यानी क्षमा कमजोरों का बल है, शक्तिशाली का आभूषण है, और क्षमा से संसार वश में किया जाता है; क्या ऐसा कोई कार्य है जो क्षमा से सिद्ध नहीं हो सकता?  आज पर्युषण पर्व का अंतिम दिन है। उत्तम क्षमा…से उत्तम ब्रम्हचर्य.. तक। तो हम भी आप सभी पाठकों से क्षमा माँगते हैं। जाने अनजाने में आप शक्तिशाली लोगों को हमने अपनी लेखनी से यदि कोई पीड़ा या कष्ट दिया हो तो हमें क्षमा करें। हम दिल से क्षमा मांगते हैं…मिच्छामी दुक्कड़म। 

हमारे साथ अगले जन्म तक सिर्फ हमारे कर्म जाते हैं और क्षमा वो कैंची है जो कम से कम आपकी तरफ से उस बंधन को काट देती है। खुद क्षमा मांग कर या दूसरों को क्षमा करके न सिर्फ हम अगला जन्म सुधारते हैं बल्कि इस जीवन में भी अपनी शुगर और बीपी नॉर्मल कर लेते हैं। पर क्या करें कलियुग है और हमारी आजीविका आप शक्तिशालियों की कमियों के अन्वेषण पर ही आधारित है। लिहाजा, गलतियाँ हो ही जाती हैं। अत: अब तक की चुभन के लिए  हमें क्षमा करें। अगली क्षमा अगले पर्युषण पर। तब तक पेश हैं आप साहबान की गुस्ताखियों पर हमारी गुस्ताखी, द इनसाइडर्स के किस्सों की शक्ल में (क्योंकि क्षमा बड़न को चाहिए,हम छोटन को उत्पात..)

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जंगल में मोर नाचा और सबने देखा भी

हमने तो यही सुना था – जंगल में मोर नाचा किसने देखा। लेकिन यह जंगल वाले विभाग में क्या हो रहा है? यहां तो मोर नाच भी रहा है और सब देख भी रहे हैं। जंगल महकमे की एक महिला अफसर ने महिला विधायक की अड़ीबाजी पर एक पत्र क्या लिख दिया, राजधानी में ऐसा बवंडर उठा जैसे किसी ने “भूतनाथ” फिल्म का पोस्टर फाड़ दिया हो। विपक्षी विधायक, पूर्व मंत्री और उनकी बिटिया को इस साजिश का निर्देशक बता रही हैं। उधर, मैडम के पति – जिन पर कथित शराब में डूबे रहने का ताज चिपका है – खुद भी आईएफएस अफसर हैं। असल ड्रामा बाघ की “अंत्येष्टि” से शुरू हुआ। सवाल उठाए गए, पर विधायक पति से मिलने की बजाय पत्नी से क्यों भिड़ीं – यही असली पहेली है। खबरी तो फुसफुसा रहे हैं – “पति तो हमेशा नशे में धुत रहते हैं, इसलिए पैचअप का ठेका पत्नी को ही मिला।” मुलाकात का सीन फिर फिल्मी हो गया – पुष्पा फिल्म का डायलॉग गूंज गया – “भंवर सिंह शेखावत – पुष्पा झुकेगा नहीं…”। दोनों तरफ अदावत ऐसी कि वहां मौजूद एक दर्शक कह उठा – “कसम से, अगर दोनों पति सीन संभाल लेते तो आधा घंटा पहले ही क्लाइमेक्स हो जाता।”

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रूसा-रूसी में सूची भी रूठी

बचपन का गीत याद है? – अच्छी नानी, प्यारी नानी, रूसा-रूसी छोड़ दो…। मंत्रालय की चौथी और पाँचवीं मंजिल पर भी आजकल कुछ ऐसा ही माहौल है। रूसा-रूसी इतनी बढ़ गई है कि सूची (ट्रांसफर-पोस्टिंग वाली) भी रूठ गई है। बड़े साहब को जबसे एक साल का “जीवनदान” मिला है, डॉक्टर साहब से टाम एंड जैरी की तरह रूसा-रूसी और बढ़ गई है। अब हालत यह है कि हर दूसरे दिन अफसरों में कानाफूसी – “सूची आई… अब आई…” – चल रही है। लेकिन हमारी मानिए, सूची से बहुत उम्मीद न पालिए। आ भी गई तो इतनी छोटी होगी कि हजम नहीं कर पाएंगे। बाकी आप समझदार तो हैं ही…

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तु डाल-डाल, मैं पांत-पांत

कहावत है – “तु डाल-डाल, मैं पांत-पांत”। यही हाल इन दिनों प्रदेश की आर्थिक राजधानी की कलेक्टरी को लेकर चल रहा है। नौकरशाही की जुबान में कहा जाता है – “मध्यप्रदेश में दो ही पोस्ट पर सबसे ज्यादा खींचतान होती है – पहली, आर्थिक राजधानी की कलेक्टरी और दूसरी, बड़े साहब की कुर्सी।” तो किस्सा आर्थिक राजधानी का। यहां प्राफाइलिंग वाले साहब ने अपने इटली-डोसा वाले भाई का नाम बड़े साहब को भेजा। बड़े साहब ने नाम मंजूर कर दिया। पर डॉक्टर साहब ने अलग सुर पकड़ लिया। दरअसल, डॉक्टर साहब इन दिनों मालवा के मामले में इंदौरी भिया वाले रंग में ढल चुकने वाले साहब से सलाह लेते हैं। उन्होंने सलाह ली और नया नाम सुझा दिया। लेकिन तभी एक “सुलेमानी ताकत” सक्रिय हुई और पास वाले जिले के हुकुम साहब का नाम सामने आ गया। नतीजा – “एक अनार सौ बीमार” वाली स्थिति। अब देखना है कि बाजी किसके हाथ लगती है।

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बिना मेहनत के मिला शीशमहल

मंत्रालय यानी गप्प गोष्ठी केंद्र में इस वक्त दो धार्मिक आयोजनों के किस्से चर्चा में हैं। एक वीआईपी भागवत कथा का किस्सा तो हमने आपको पिछले हफ्ते ही सुनाया था। उसका समापन भी उम्मीद के मुताबिक भव्य रहा। अब दूसरा किस्सा सुनिए। राजधानी में एक अफसर के यहां गणपति बप्पा की स्थापना हुई। समारोह साधारण था, लेकिन जहां वीआईपी इकट्ठा हों, वहां मौसम भी गर्म हो ही जाता है। असल में हुआ यह कि दिल्ली से लौटे इस अफसर को नया बंगला मिला है। गणेश स्थापना बहाना बनी और बंगले की शान-ओ-शौकत दिखाने का मौका भी। पर असली सच यह है कि बंगले को शीशमहल में बदलने का श्रेय मौजूदा साहब को नहीं, बल्कि उनके पूर्ववर्ती को जाता है। वह भवन निगम में रहते हुए अपने शौक में इतना डूबे कि बंगले को शीशमहल बना डाला। अब यह देख, निगम के मौजूदा साहब भी अपने बंगले को शीशमहल में बदलने में जुट गए हैं।

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मध्यप्रदेश से होगा अध्यक्ष

दो खबरें हैं, जो भविष्य की गर्त में छिपी हैं। होंगी या नहीं – यह वक्त ही बताएगा। पर हमारे इनसाइडर्स दोनों की पुष्टि कर रहे हैं। पहली खबर – मामा (पूर्व मुख्यमंत्री) की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की कोशिशों से जुड़ी है। वे तो कोशिश कर ही रहे हैं, आप भी दुआ कीजिए ताकि प्रदेश की एक और हस्ती राष्ट्रीय नेतृत्व में जगह बना सके। दूसरी खबर – यह भूचाल जैसी है। अभी राज़ खोलना ठीक नहीं। बस सरकार को सतर्क कर रहे हैं – बिहार चुनाव के बाद तबीयत नासाज हो सकती है। हां, डॉक्टर साहब इलाज करना जानते ही हैं…

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प्राइवेट जेट से सफर करते हैं साहब

शहर में आयकर छापे पड़ रहे हों और इनसाइडर्स बेरोजगार रहें – यह कैसे हो सकता है? तो लीजिए, एक इनसाइडर ने छापों से जुड़े एक पूर्व अफसर के जलवों का पर्दाफाश किया है। सुलेमानी ताकत वाले साहब इतने बड़े ठाठ में रहते थे कि कंपनियां उन्हें कहीं भी आने-जाने के लिए प्राइवेट जेट भेज देती थीं। कोरोना काल में तो केवल गोल्फ खेलने के लिए भोपाल से नोएडा तक जेट से उड़ जाते थे। उनकी प्रॉपर्टी के चर्चे बड़े उद्योगपतियों से कम नहीं। तरीका इतना शातिर कि एजेंसियां भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं पातीं। उन्हीं में से एक तरीका पढ़िए – स्वास्थ्य मिशन में अमेरिकी कंपनी को ठेका दिया, और उसमें 10% हिस्सेदारी अपनी जेब में रख ली। पर चालाकी देखिए – हिस्सा भारत में न लेकर विदेश में बसे बेटे की सिंगापुर वाली शैल कंपनी को दे दिया। यानी भारत में रिश्वत का कोई अंश नहीं। बाकी की कहानी तो हम पहले ही खोल चुके हैं – वही उद्योगपति जो 18 साल सत्ता सुख भोग चुके और अब सितारे गर्दिश में हैं, वे ही दूसरों पर छापे पड़वाने के लिए शिकायतें करते फिर रहे हैं।

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साहब ने हरिनाम सार्थक किया

बड़े साहब पानी से जुड़ी गड़बड़ियों पर बेहद नाराज़ थे। पर विभाग के प्रमुख नर हरिमुद्रा की तरह निश्चिंत थे। कई बार फटकार पड़ी, प्रस्ताव खारिज हुए। पर हुआ वही जो “हरि इच्छा”। विवादों के बावजूद साहब ने रिवाइज्ड डीपीआर कैबिनेट से पास करवा ली। इतना ही नहीं, मेंटेनेंस के लिए सालाना 1200 करोड़ का बजट भी निकलवा लिया। रूको… साहब की महिमा यही खत्म नहीं हुई है। उन्होंने बड़े साहब की इच्छा के विपरीत विभाग की बड़ी मछलियों को मगरमच्छ बनाकर अभयदान दिलवा दिया और छोटी मछलियों को सिर्फ नोटिस थमाकर बरी कर दिया। इतना सब करने के बाद साहब फिर हरि-निद्रा में चले गए। और पूरे जगत में चारों तरफ “जय-जयकार” है।

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बड़े साहब के खौफ से बीमार पड़ गए सीपी साहब

बड़े साहब के मकान वाला किस्सा तो आपने सुना ही होगा। एक अदना-सा इंजीनियर, जिसे सिटी प्लानर का चार्ज था, उसने किसी नशे में डूबकर साहब के मकान की कंपाउंडिंग को अवैध बता दिया। बस, यहीं से आफत आ गई। जैसे ही होश आया, सीपी साहब बीमार पड़ गए। एक महीने की मेडिकल छुट्टी ले ली। लेकिन बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी? ज्वाइन तो करना पड़ा। पर सदमा ऐसा कि नींद में चिल्ला पड़ते हैं – “मुझे बचाओ… मुझे बचाओ…”। अभयदान पाने के लिए कई दरवाजे खटखटाए, पर राहत नहीं मिली। अब तो वीआरएस पर भी विचार कर रहे हैं।

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आना-जाना तो लगा ही रहता है…

राज्य से केंद्र में अफसरों का आना-जाना चलता रहता है। पर कुछ अफसरों की किस्मत के लिए यह बड़ी बात बन जाती है। ताज़ा खबर – मध्यप्रदेश के चार अफसरों को केंद्र सरकार ने “ना” कह दिया। हालांकि एक महिला अफसर की लॉटरी जरूर लग गई है। वे जनगणना के काम के लिए केंद्र सरकार जा रही हैं। लेकिन पदस्थापना राजधानी में ही रहेगी। यानी – चित भी मेरी, पट्ट भी मेरी

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90 डिग्री वाले ब्रिज के बाद अब ऑफिस से भी बेखबर प्रमुख

90 डिग्री वाले ब्रिज से देशभर में नाम कमा चुके विभाग के इंजीनियर अब भी निद्रा में डूबे हैं। उन्हें पता ही नहीं कि सेतु नाम की कंपनी के कर्मचारी विभाग मुख्यालय में बैठकर उलट-पुलट कर रहे हैं। विभाग की रजिस्ट्रेशन फाइलों से कंपनी का पता तक गायब है। मगर विभाग के मुखिया अनजान हैं और एक एसई साहब मेहरबान। इसलिए विभाग में 90 डिग्री वाले नए-नए कारनामे आम हो चले हैं।

इसी के साथ आज की सबको राम-राम। अगले शनिवार दोपहर 12 बजे द इनसाइडर्स के नए अंक में नए किस्सों के साथ फिर मिलेंगे हमारे अड्‌डे www.khashkhabar.com पर। तब तक के लिए आप सुधि पाठकों से लेते हैं अलविदा और हमारे इनसाइडर्स को देते हैं धन्यवाद, जिनके बताए किस्सों के बिना आप और हम चटखारे नहीं ले पाते।

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