द इनसाइडर्स: सीनियर ने जूनियर आईएएस को कहा- यह लतखोर है; बड़े साहब के साथ इंजीनियर की गुस्ताखी और मामा का नया खेल

द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों पर केंद्रित श्रंखला की चौथी कड़ी

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865

भोपाल | राज्य प्रशासनिक सेवा(SAS).. या क्रिटिक की नज़र में “राज्य प्रशासनिक-हम्माल सेवा.. का आगे का वृतांत पढ़िए इस कड़ी में…गुरुकुल से शैशव और फिर युवा अवस्था के बाद तीनों प्रजातियों के कुमार के जीवन में एक अद्भुत मोड़ आता है। जब कुमार त्रय को सेवा काल के लगभग 25 वर्ष बाद वो मिलता है जो वो सेवा काल के पूर्व चूक आये थे। सारी DE किसी तरह निपटा कर ये किसी तरह बन जाते हैं “IAS”…THE SUPER POWERFUL. व्यंगकार की नज़र से देखें तो ये तीनों कुमार अपनी भार्या SAS से तलाक लेकर अधेड़ावस्था में एक स्निग्ध सुंदरी “योग: कर्मसु कौशलम” से पुनर्विवाह कर लेते हैं। और हकदार बन जाते हैं उनके ख्वाबों की जिला हुकुम(कलेक्टर) की गद्दी पर बैठने के। इस प्रक्रिया में नव विवाह को भूतलक्षी प्रभाव से बिना किसी सहचर्य के सात वर्ष पुराना (आईएएस कैडर में सीनियरिटी मिलती है।) घोषित कर दिया जाता है किंतु आयु दो वर्ष घटा दी जाती है (सेवानिवृत्ति 62 से 60 हो जाती है)। फिर शुरू होता है कलेक्टर बनने का सिलसिला।

बड़े साहब के दरबार में पहले शेर (RR) को भोजन कराने का और फिर लकड़बग्घे (प्रमोटी) को टुकड़े डालने का जंगल का कानून बरसों से चला आ रहा है। तो साहब RR को इंदौर, भोपाल, उज्जैन, सिंगरौली, धार व छतरपुर आदि मलाईदार बोटी दी जाती है और फिर “छिछड़” डिंडोरी, अशोकनगर, श्योपुर, आगर आदि को प्रमोटियों में बांट दिया जाता है। बेचारे इन्ही जिलों में अपने बरसों के सपने पूरे करने में लग जाते हैं। हां कुछ एक्लव्य कुमार  कभी कभी इंदौर, उज्जैन आदि जिले ले उड़ते हैं जैसे राहु अमृत का घड़ा ले भागा था। पर नारायण जैसे बड़े साहब ट्रांसफर नाम चक्र से जल्दी ही उनका शीश काट लेते हैं। बेचारे कनिष्ठ कुमार एक आध ही कलेक्टरी पकड़ पाते हैं। बाकी वक्त उनका वल्लभ भवन में बाबूगिरी करते हुए गुजर जाता है। हां एकलव्य कुमार जरूर RR की बराबरी कर ही लेते हैं।…पर एक बात अजीब होती है …ये 50 की उमर में कलेक्टर होते हैं और अक्सर बगल के जिले में बेटे की उम्र के RR से प्रतियोगता में रहना होता है। सब जानते हैं कि अधेड़ उम्र में नवयुवती से हुआ विवाह मात्र धन से ही सफल होता है …तो ये तीनों प्रजाति के कुमार टकसाल के मजदूर की तरह पैसे छापने में लग जाते हैं और जिस तरह अधेड़ बाल काले कराकर अच्छे कपड़े पहन कर युवा दिखने की कोशिश करता है उसी तरह अक्सर अपने को प्रमोटी कहलाने से बचने वाले ये कन्वर्टेड IAS…अपने शैशव काल के सम्बन्धों को भूलकर ऐसा स्वांग रचते हैं जैसे कि वो पैदाइसी IAS हों या उनसे ज्यादा बड़े वाले आईएएस हों। इस श्रृंखला का समापन अगले अंक। तब तकसुधि पाठक गण, अपनी “पॉपकॉर्न की बाल्टी” थाम लीजिए, क्योंकि अब शुरू करते हैं आज का द इनसाइडर्स का अंक, वही चुटीले और मजेदार अंदाज में…

इस सीरिज का पिछला अंक पढ़ें : द इनसाइडर्स: IPS की बेरुख़ी, इंजीनियर की जमीन हुई बायपास, मंदिर की दान पेटी में रिश्वत का अनूठा किस्सा

बड़े बड़े देशों में ऐसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं

प्रदेश की चमचमाती राजधानी में एक अदना-सा इंजीनियर बड़े साहब को “एक चुटकी में निपटा” गया। ये इंजीनियर इतना “छोटा” है कि उसकी नियुक्ति पर शिकायतों का “रेला ” लगा है—माने एक झटके में हलाल हो जाए, ऐसा माल है! फिर भी, खबरीलाल की गुपचुप खबरों की मानें तो इसने मंत्री से लेकर सरकार तक “सेटिंग का सूरज उगा लिया” है। “सब सेट है, बॉस!” फिर क्यों डरना। नतीजा? बड़े साहब की बिल्डिंग के अवैध हिस्से को वैध करने वाली फाइल को इस इंजीनियर ने “खटाक से खारिज” कर दिया। गुस्से में बड़े साहब ने काम ठप कर दिया—“अरे, ये क्या बवाल है, भाई?” फाइल में झमेले भी “गंगा मैया की तरह गहरे” थे। खबरीलाल फुसफुसाते हैं कि आवासीय इलाके में कमर्शियल बिल्डिंग बन रही थी—“साहब की माया, साहब जाने!” सच का पता लगाना हो तो सुधि पाठक गण, पालिका भवन के सामने वाली कॉलोनी में “टहल के देखो”“सच का सामना” खुद-ब-खुद हो जाएगा।

यह भी पढ़ें – द इनसाइडर्स: सरकारी घास चरने वाले बकरे का अनूठा स्वाद, मूंग की ज़हरबयानी और केबिन में इंजीनियर बना रहा हाइवे वाली फिल्म

टाइगर अभी जिंदा है

“टाइगर अभी जिंदा है!” ये डायलॉग भले ही सलमान भाई ने एक फिल्म में बोला हो, लेकिन मध्यप्रदेश की सियासत में ये मामा और महाराज की “सियासी तलवार” है। इस हफ्ते मामा ने सीहोर में “टाइगर की दहाड़” दिखाई। वन विभाग के अफसरों पर भड़क गए और बोले, “सब गड़बड़, सड़बड़ करते हैं, ये क्या तमाशा है?” “जो बोला, सो बोला!” उनकी आवाज़ अभी गूँजी थी कि खबर सरकार तक “रॉकेट की रफ्तार” से पहुँच गई। डैमेज कंट्रोल के लिए तुरंत स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा—“अरे, भाई, थोड़ा रुक जाओ!” मामा का जलवा अभी भी “चाँद-सूरज की तरह चमकता” है। “जब तक है जान, मामा का जलवा कायम!” सियासत में मामा का सिक्का ऐसा चलता है कि “सूरज डूबे न डूबे, मामा का नाम नहीं डूबे!”

सीरिज का पहला अंक भी पढ़ें – द इनसाइडर्स: मंत्री के बंगले पर ताला लगाने का अनोखा राज, आईपीएस ने हुस्न की सजा भुगती और मैडम सिखा रही पुलिस को योग

लात खाकर काम करने वाले को लतखोर कहते हैं

मंत्रालय में एक सीनियर आईएएस अपने जूनियर पर इस कदर भड़के कि सियासी गलियारों में “आग लग गई”! बात ये थी कि कुछ इंजीनियरों को कोर्ट के सख्त आदेश के बावजूद प्रमोशन नहीं मिल रहा था। “न्याय के देवता भी क्या करें, जब बाबू अड़ जाएँ!” कोर्ट ने डंडा फटकारा, तो विभाग “हाथ-पैर मारने” लगा। विभागाध्यक्ष ने इंजीनियरों के साथ मीटिंग बुलाई, फाइलें खंगालीं, तो पता चला कि एक जूनियर आईएएस “अड़ंगे का बादशाह” है। सीनियर आईएएस ने सबके सामने जूनियर को लताड़ा और बोले, “हमारे बिहार में लात खाकर काम करने वाले को लतखोर कहते हैं। ये भी लतखोर है। लात खाएगा, तभी काम करेगा!” साहब के इतना कहते ही जूनियर आईएएस ने उसी रात “चाँदनी में पसीना बहाकर” इंजीनियरों की फाइलें क्लीयर कीं। खास बात यह है कि दोनों अफसरों का सरनेम एक ही है।

यह भी पढ़ें – द इनसाइडर्स: मंत्री जी, महिला मित्र और रेस्ट हाउस की रजनीगंधा कहानी, कलेक्टर ने मंडी में जाकर किया आम इंसाफ़, मंत्रालय में ‘भैया’ का जलवा!

बीती रात कमल दल फूले: “उठो लाल, अब आँखें खोलो!”

कवि सोहन लाल द्विवेदी की पंक्ति है—“बीती रात कमल दल फूले!” कुछ ऐसा ही शनिवार रात भोपाल में हुआ, जब मुख्यमंत्री ने “कमल का बटन दबाकर” 8 इंजीनियरों को सस्पेंड कर दिया। “गड़बड़झाला करने वालों, अबकी बार हिसाब बराबर!” गड़बड़ी पर कार्रवाई कर कमल दल खिला दिया। लेकिन सरकारी नौकरी में कहावत है, “सस्पेंशन इज़ नॉट पनिशमेंट!” देर-सबेर सब बहाल हो जाएँगे—“वही ढाक के तीन पात!” फिर भी, इंजीनियरों को इतना तो समझ आ गया होगा कि “सियासी विश्वास में डिज़ाइन से समझौता मत करो!”

यह भी पढ़ें : द इनसाइडर्स: आईएएस की वेन्यू में लक्ष्मी कृपा, बोल्ड मैडम के बोल से पीएस हुए लाल, त्रिकालदर्शी सचिव ने रोका सियासी अपशकुन

“पैसा फेंक, तमाशा देख!”

पानी से जुड़े एक निगम में बुंदेलखंड के एक जिले में “पिंकी सर का जलवा” “चमक रहा है जैसे सूरज चमके!” एक रिटायर इंजीनियर की संविदा नियुक्ति को 65 साल तक बढ़ा दिया गया। इस खेल में पिंकी सर की “जादूगरी” कमाल कर गई। मंत्री ने नोटशीट लिखी, और पिंकी सर ने आदेश में इसका नंबर डालकर “कोडवर्ड का तड़का” लगा दिया। “समझने वाला समझ गया, न समझे वो अनाड़ी!” यानी कि मंत्री के यहां से सिफारिश पर पोस्टिंग हो सकती है। बस “जेब पिंकी सर की गरम करनी पड़ेगी”!

यह भी पढ़ें : द इनसाइडर्स: अफसर का शीशमहल खटाई मेंन्यू अरेरा कॉलोनी में ईमानदार आईएएस का इन्वेस्टमेंटमंत्री का चहेता नपा

आईएएस ने सरकार के आदेश को ही नकारा: “साहब की माया, साहब जाने!”

लूपलाइन में फँसे एक आईएएस ने “आँखों पर सियासी चश्मा” चढ़ा लिया। सीएम सचिवालय से भ्रष्ट अफसर को हटाने का आदेश आया, लेकिन ये साहब “गजभिए के दीवाने” बन गए। गजभिए को बचाने के लिए एक जूनियर अफसर को “जूनियर” बताकर “हाशिए पर धकेल” दिया, और गजभिए को कुर्सी सौंप दी। “अरे, गजभिए तो खुद भी जूनियर है, साहब!” फिर भी, गजभिए नामक “मछली” विभाग में “खेल-खेल में खेल” कर रही है।

यह भी पढ़ें – द इनसाइडर्स : मंत्री और कमिश्नर से ज्यादा ताकतवर पंडित जी, सुशासन में खिलेंगे गुल, कलेक्टर्स के यहां सुलेमानी दावत

दलाल फूलों से बना रहा सोने की सिल्ली

प्रदेश के फूलों वाले विभाग में एक एडिशनल डायरेक्टर और यादव दलाल की जोड़ी “चाँदी काट रही है!” दलाल साहब मंत्री के “दायाँ हाथ” हैं, और साहब ने इस रिश्ते को “सोने का अंडा” बना लिया। ट्रांसफर सीज़न में “नस दबाने और फुलाने” का खेल चला। “किसकी नस दबानी है, किसे फुलाना है”—साहब ने दलाल को बताया, और दलाल ने मंत्री की धौंस दिखाकर हर जिले से “वसूली का धंधा” चला दिया। खरगोन और खंडवा में अफसरों को तीन साल से ज़्यादा हो गया, लेकिन उनका नाम ट्रांसफर लिस्ट में भी नहीं था। वहीं, विभाग में अफसरों की कमी है, लेकिन साहब ने “प्रभार के नाम पर” जूनियर्स से वसूली कर उन्हें ज़िले थमा दिए। “पैसा फेंक, कुर्सी देख!” “सियासत का ये खेल है, जहाँ पैसा बोले, वही मेल है!”

यह अंक भी पढ़ें : द इनसाइडर्स: बड़े साहब को नजर नहीं आया कुशासन, एसपी साहब की‘ख्याति’, पार्टी के शौकीन सीईओ साहब

 कुछ तो पक रहा है, बाबू!

“दिल से दिल तक, सियासत से सियासत तक!” मामा और भाई की मुलाकात, महाराज और सरकार का मेल, और अब विपक्ष में राजा और आदिवासियों के राजा का “मिलन महोत्सव”—भोपाल की सियासत में “कुछ गुल खिल रहा है!” अंदरखाने की खबर है कि “गिले-शिकवे मिटाकर, बड़ी लड़ाई की तैयारी” हो रही है। “ये लड़ाई किसके लिए, किसके खिलाफ?”—ये सवाल सुधि पाठकों और सियासी पंडितों के लिए छोड़ते हैं। “कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना!” बस इतना समझ लीजिए, भोपाल की गलियों में “सियासी चूल्हे पर कुछ पक रहा है!” “बस, थोड़ा इंतज़ार करो, अगला सीन धमाकेदार होगा!”

यह भी पढ़ें : द इनसाइडर्स: सीनियर आईएएस के बैग का राज, शादी में मामा वर्सेस डॉक्टर साहब, आईएफएस का शीशमहल

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button