द इनसाइडर्स : ऑफिस चैंबर से रिश्वत के 9 लाख गायब, 15 लाख रुपए में हो रहा ट्रांसफर का सौदा, शाहनामा के जरिए बने बड़े कप्तान साहब

द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए ब्यूरोक्रेसी और पावर कॉरिडोर के अनसुने और रोचक किस्से

कुलदीप सिंगोरिया @9926510865
योग: कर्मसु कौशलम…excellence in action. यह है इम्पीरियल सिविल सर्विसेज (ICS) से बने भारतीय प्रशासनिक सेवा का MOTTO या ध्येय वाक्य। निश्चित ही आईएएस अधिकारियों को तो पता होगा पर पब्लिक में शायद ही किसी को पता होगा। क्यों? विचार करें…इस कैडर की सबसे प्रभावी पद होता है “कलेक्टर”। आजादी के बाद बहुत बदलाव हुआ पर कलेक्टर और एसपी दो पदों की गरिमा और ताकत आज भी कायम है। यही कारण है कि वल्लभ भवन में बैठे वरिष्ठ अधिकारियों का पसंदीदा जुमला होता है “when I was collector …blah blah blah…” यानी वो अपनी कलेक्टरी को अपने पहले प्यार की तरह भूल नहीं पाते हैं। लेकिन समय के साथ इस पद का भी अवमूल्यन हुआ है।
आजादी की समय कलेक्टर, एसपी और डीएफओ के fully furnished बंगले होते थे। अर्दली की सुविधा तब से ही कायम है। जब ट्रांसफर होता था तो महज़ अटैची /ट्रंक (पेटी) में व्यक्तिगत कपड़े ले कर अधिकारी एक जगह से दूसरी जगह जाते थे। बाकी सारी चीजें सरकारी तौर पर पूर्ववती छोड़ जाते थे। बड़े बड़े बंगले होते थे, खेती भी होती थी तो फसल को बेचकर राजस्व अधिकारी सरकारी ख़ज़ाने में जमा करते थे। आजादी के बाद धीरे धीरे अवमूल्यन शुरू हुआ। होनहार प्रतिभावान मेधावी छात्र में से कुछ यूपीएससी के बाद पद के दम पर टाटा बिड़ला(आज के अडानी/अम्बानी) बनने का ख्वाब देखने लगे। लिहाजा, सरकारी बंगलों का सामान (पर्दे, कटलरी, सोफे आदि) निजी घर में पहुंचने लगा। सरकारी बंगलों में पूरा कुनबा रहने लगा। भतीजों- भांजों की नौकरी लगने लगी और लोग कहने लगे – “अंग्रेज चले गए पर इन्हें छोड़ गए।” हालांकि आज तक दान के पैसे से कोई ब्राम्हण और रिश्वत के पैसे से कोई अधिकारी कभी भी बड़ा उद्योगपति नहीं बन सका। फिर भी कोशिशें जारी हैं.. शेष कथानक अगले अंक में जारी रहेगा तब तक प्रशासनिक हलकों की चुटीली खबरें मजेदार अंदाज में प्रस्तुत है आज के ‘द इनसाइडर्स’ में…पढ़कर खुद भी आनंद लें और दूसरों को भी आनंदित कराएं।

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फिक्स्ड रेट ..नो बारगेन.. हर माल 15
शायद जवानी के दिनों में कभी किसी ने फोर्ट मुम्बई या जनपथ दिल्ली की स्ट्रीट की कपड़ों की दुकानों से खरीददारी की हो। (नौकरी के पहले ही की होगी…नौकरी के बाद तो फीनिक्स पैलेडियम मॉल से होती है।) तो आप जानते होंगे कि दुकान पर कुछ लड़के आवाज़ लगाते हैं…”हर माल दो सौ …ले लो दो सौ ..हर माल दो सौ…” और सेठ गल्ले पर बैठकर नोट गिनता है। ठीक इसी तरह आपूर्ति से जुड़े एक निगम के प्रमोटी अधिकारी के लिए उनके छर्रे-तमंचे प्रदेश भर में आवाज़ लगा रहे हैं – “हर माल 15…ले लो 15…मौका मत चूको 15…हर माल सिर्फ 15 लाख…”। तो तमंचा ट्रांसफर की दुकान सजा कर साहब को माल कमवाते हैं और स्थिति ये है कि एक ने आधे दाम दिए तो उल्टी जगह पोस्टिंग कर दी। फिर वहां से भी हटा दिया। इस सम भाव में छोटे पद वाले को भी प्रभार दे दिया, बड़े पद वाले को हटा दिया। बस रेट मिलना चाहि। यहां तक कि विभागीय मंत्री के जिले में भी वारदात करने से नहीं चूके। इस तरह की साम्यवादी सोच से यादव जी अपने प्रोमोटी मुलाज़िम से अत्यंत प्रसन्न बताए जा रहे हैं।

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राजा की पसंद पर तुरुप का एक्का पड़ा भारी…
पिछले दिनों प्रदेश को दो वर्ष के लिए नए बड़े कप्तान के नाम पर मुहर लगी। जिन पर मुहर लगी वे अपनी अक्खड़ और ईमानदार छवि के कारण दौड़ में पीछे चल रहे थे। मुखिया की पहली पसंद तो OBC समुदाय से आने वाले सिंह साहब दि ग्रेट थे। दूसरी पसंद भी थी लेकिन जैसा कि मुख्य सचिव पद के लिए हुआ था, वैसा ही दिल्ली से फोन आया और राज्य की पसंद को दरकिनार करते हुए नए बड़े कप्तान साहब के नाम का ऐलान कर दिया गया। यह कैसे हुआ, इसकी कहानी सबसे पहले आपको ‘द इनसाइडर्स’ बता रहा है। दरअसल बड़े कप्तान के पुराने अभिन्न बैचमेट मित्र दिल्ली में जासूसी वाली प्रमुख जगह पर हैं। वो तुरुप का (डे) एक्का साबित हुए। उन्होंने ‘शाहनामा’ जारी करवा दिया। खैर अब देखना होगा राजा की दोनों भुजाएं (विनम्र बड़े साहब और अक्खड़ बड़े कप्तान साहब) ईमानदार हैं और राजा के दिमाग में जमीन का विस्तार करने का भाव है तो कैसे निभेगी। हालांकि राजा ने लंदन में भी जमीन (लैंड बैंक) का ही प्रचार किया है। मास्टर प्लान आने को है तो यह तय है कि राजा जमीनों के मामले में बोल्ड निर्णय लेंगे। क्योंकि जमीन पर पकड़ रखना उनकी पुरानी आदत जो है।

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हाट बंद होने के वक्त में सस्ते आलू खरीदने की होड़
बिट्टन मार्केट के सब्जी हाट जाने वाले जानते ही हैं। रात को 11 बजे के बाद जब सब्जी वाले जाने को होते हैं तो सब्जी सस्ती बेचने लगते हैं। कुछ इसी तरह का माहौल पिछले एक महीने से कानून से जुड़े एक मुख्यालय में देखने को मिल रहा है। यहां के कप्तान साहब ने पहले तो प्रदेश के राजा को इम्प्रेस करने के लिए आधी अधूरी परमिशन और डॉक्टर्स के इंतजाम के बिना अस्पताल को आनन-फानन चालू करवा दिया गया। फिर एक महीने से हर माल (काम) घटी दरों पर उपलब्ध हो रहा है। ट्रांसफर हो, कोई अनुमति हो, मकान आबंटन हो, कोई जांच हो या प्रकरण हो, बस ले आइये और सस्ते में आदेश ले जाइए। कारण…कारण स्पष्ट है। 30 नवम्बर को हाट बाजार जो उठ जाना है (सेवानिवृत्त हो जाना है)। हालांकि, कुछ late comers पूछ रहे हैं कि क्या ये योजना बैक डेट में भी खुली रहेगी?

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आफिस चैंबर से 9 लाख रूपए की रिश्वत चोरी, हटाए तीन चपरासी
पानी से संबंधित विभाग में संविदा धारी इंजीनयर उर्फ बड़के साहब के जीवन में घटनाएं थमने का नाम ही नहीं ले रहीं। उनके यहां बहुत तेजी से माल आ रहा है और बंट भी रहा है। रोज कोई न कोई जिला अधिकारी भारी राशि लेकर आ जाता है। कभी साहब को तो कभी “खरे जी” को दे जाता है। लेकिन पिछले मंगल को अमंगल हो गया। विंध्य क्षेत्र के एक जिला अधिकारी सात अंकों की राशि संविदाधारी के दे गए। इस बीच वल्लभ भवन से बुलावा आया गया तो साहब पैकेट को अपने चैम्बर में रख कर चले गए। लौट कर आये तो “माल”गायब था। पूरे आफिस में कैमरे लगे हैं सिवाय साहब के कमरे के तो शक की सूईयां चपरासियों पर घूमी। चपरासियों को डराया धमकाया गया। तलाशी ली गई। पुलिस की धमकी भी दी गई। लेकिन रिश्वत का माल होने की वजह से पुलिस को बता भी नहीं सकते थे। इसलिए माना जा रहा है कि चोर भी संविदाधारी का ही चेला था, कुछ न मिला। इसके चलते तीनों चपरासी बदल दिए गए। इधर विधानसभा सत्र भी पास में है और बड़े साहब से संविदाधारी को ताजी-ताजी डांट भी पड़ी थी। लिहाजा घबराए हुए संविदाधारी सबसे बड़े मंदिर में मंथली रिचार्ज कराने पहुंचे तो सरकार से मिलकर ‘डोंट वरी” का आश्वासन भी प्राप्त कर आये। साथ में सरकार के साथ एक फोटो भी खिंचवा आये। और जिस मोहन कृपा का जिक्र हमने पिछले शनिवार को ‘द इनसाइडर्स’ में किया था। उसी का फोटो अपने व्हाट्सएप स्टेटस में ही लगा दिया। इसे प्रदेश के अधिकारियों में संविदाधारी का भय कायम करने की कोशिश कहें या ‘द इनसाइडर्स’ से उपजी आत्मविश्वास की कमी।

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सादगी भी कयामत की अदा होती है..
पिछले अंक में हमने नई पीढ़ी के दो राजसी ऐब के कलेक्टरों के बारे में बात की थी। इस बार हम बता रहे हैं नई पीढ़ी के पुरानी पारम्परिक सोच के आईएएस अफसर का किस्सा। ये पानी से संबंधित विभाग के मातहत एक निगम के मुखिया हैं। विलुप्त होते गुण ईमानदारी से परिपूरित। सरल और सहज। निगम में पौन लाख करोड़ के टेंडर प्रचलन में हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां ठेकेदार हैं। पर ठेकेदार साहब से बहुत भय खाते हैं। साहब चिल्लाते नहीं हैं पर ईमानदार हैं तो डर लगेगा ही। साहब की सादगी का आलम ये है कि दिल्ली बैठकों में जाते हैं तो किसी भी ठेकेदार को गाड़ी के लिए नहीं कहते। खुद टैक्सी करते हैं और पेमेंट भी स्वयं देते हैं। सामान भी खुद उठाते हैं और बिसलेरी की बोतल की बजाय पानी की मेटल की बोतल घर से लेकर चलते हैं। और जहां भी वाटर फ़िल्टर मिलता है रिफिल कर लेते हैं। जबकी पानी वाले विभाग का एक कलाकार एई पिछले दिनों बैंगलोर गया तो उसने ठेकेदारों को फोन करके गाड़ी इंतजाम करने को कहा। कहने का तात्पर्य या मतलब यह है कि इन आईएएस अधिकारी के लिए सुंदरकांड की चौपाई लिखी जा सकती है कि
“खल मंडली बसहु दिन राती।
सखा धरम निबहहिं केही भांति॥
मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती।
अति नय निपुन न भाव अनीती॥”

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बड़े साहब की आमद और बड़े बड़ों में घबराहट
विधानसभा चुनाव के बाद नेतृत्व परिवर्तन। फिर लोकसभा चुनाव। यानी नेतृत्व को कोई समय नहीं मिला ठहराव का। और इस संधि काल में आदतन फ़ितरतियों ने खूब मौज की। कोई देखनेवाला जो नहीं था। फिर आई एक घड़ी स्वच्छ शालीन किंतु तीक्ष्ण छवि के बड़े साहब के आमद की। बड़े साहब ने आते ही शालीन किंतु अपरम्परागत तरीके से नवाचार करते हुए बैठकें लेना शुरू किया। हर मीटिंग से तीखा और सपाट सन्देश उनके व्यक्तव्यों प्रशासनिक हलकों में जाने लगे। कामचोरों पर चाबुक, माल लूटने वालों पर लगाम और काम करने वालों को बढ़ावा। कसावट आने लगी। पर लगता है कि वल्लभ भवन की चौथी और पांचवी मंजिल के बीच सबकुछ सरल नहीं है। पिछले दिनों चौथीं मंजिल ने कुछ डिप्टी कलेक्टरों की सूची पांचवी मंजिल भेजी। पांचवी ने जब चौथी को सूची लौटाई तो सिर्फ दो नाम ही वापस आए। बाकी के नाम कट गए। यह दो नाम भी केंद्र के एक बड़े नेता के क्षेत्र के थे। इसलिए उनकी सिफारिश लगी थी। खैर गम्भीर बड़े साहब ने बिना शिकन अपनी कार्यवाही जारी रखी। लेकिन राज्य के लिए जरूरी है कि ट्विन टावर्स (चौथीं और पांचवीं मंजिल) एक होकर बुर्ज खलीफा हो जाएं।

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मंत्री मीटिंग के लिए इंतजार करते रहे, अफसर खेलते रहे वीसी -वीसी
राजधानी के कद्दावर और मजबूत मंत्री जी कुछ परेशान से हैं। हुआ यूं कि उन्होंने हाल ही में विभागीय अधिकारियों क़ी बैठक मंत्रालय में बुलाई थी। बैठक के नियत समय पर मंत्री जी कक्ष में पहुंच गए। थोड़ा इंतजार भी किया पर कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। अब मंत्री जी का धैर्य टूटा। स्टॉफ से फोन लगवाया गया तो अधिकारियों ने कहलवा भेजा कि हमारी VC है। हम नहीं आ सकते। झुंझला के मंत्री जी बोले VC थी तो बताना चाहिए था। मैं बैठक बाद में रख लेता…खैर मंत्री जी धीर गम्भीर और गांठ बांधने वाले हैं। चुप हो गए पर चर्चा तो ये शुरू हो गई कि विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का विभागीय मंत्री जी से इस तरह का संवाद परिदृश्य मूर्खता का द्योतक है या धृष्टता का। हम तो जल्दी ही कुछ होने वाले धमाकों की आवाज़ अभी से सुन रहे हैं।

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Kindly text me
शिक्षा के एक केंद्र में पदस्थ दहेज प्रताड़ना के आरोपी रहे आईएएस अफसर से आप भली-भांति परिचित होंगे। पिछले दिनों अपने ऊपर ईओडब्ल्यू में हुई शिकायत को भटकाने के लिए साहब ने राज्य के एक मुखिया को पत्र लिख दिया था। इसमें जिक्र किया था कि मातहत फोन नहीं उठाते हैं। हालांकि साहब जब बुंदेलखंड के एक जिले में कलेक्टर थे, तब खुद जनप्रतनिधियों के फोन नहीं उठाते थे। वे विधायकों को एसएमएस करते थे Kindly text me. बेचारे विधायक कहते थे कि जनता के बीच जवाब दूं कि कलेक्टर साहब को मैसेज-मैसेज करूं। वैसे साहब जब एसएमएस किया करते थे, तब वे किसी ठेकेदार से माल की बात में व्यस्त होते थे।

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हम नहीं सुधरेंगे…
रस्सी जल जाती है लेकिन बल नहीं जाता है। या कुत्ते की पूछ हमेशा तिरछी ही रहती है। इन कहावतों को कुछ कलेक्टर्स हमेशा सही साबित करते रहते हैं। इन्हीं में से एक नर्मदा तट वासिनी कलेक्टर मैडम। उन्हें जनता के मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है। इसलिए, अब वे बाल संरक्षण आयोग के निर्देशों की खुले आम अवहेलना करने लगी है। इससे मजबूर होकर आयोग के मुखिया ने मैडम को एक्स पर बेनकाब कर सीधे नया पंगा ले लिया। मुखियाजी को हमारी नेक सलाह है- मैडम से दूर रहने में ही भलाई है। आप सही सलामत रहेंगे तो जनता के मुद्दे बाद में भी उठा लीजिए।

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मेरा वचन ही मेरा शासन है…
चार बोतल वोदका, काम मेरा रोजका… यह गाना अपनी नकारात्मकता के लिए कुख्यात कलेक्टर मैडम पर सटीक बैठता है। इन्होंने अपनी नई पोस्टिंग के जिले में भी अफसरों को तंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सीएम हेल्पलाइन को लेकर कई अफसरों पर हजारों रुपए का जुर्माना लगा दिया। हालांकि यह प्रावधान नही है तो मातहतों के समझाने पर लोक सेवा गारण्टी के तहत कर दिया गया। लेकिन पहली बार इसमें एसडीएम और एडीएम श्रेणी के अफसर भी हैं। उनमें से कई बेहद अच्छी छवि के भी अफसर हैं। कोई कलेक्टर शायद ही अपने हाथ पांव काटता है इसलिए अफसरों ने अपनी बात कहनी चाही। तो पावर के नशे में चूर मैडम ने डपट दिया। और बाहुबली का प्रसिद्ध डायलॉग को उद्धृत गया – “ये मेरा वचन है और मेरा वचन ही है शासन।” (what ever i said consider it as rule) वैसे कुछ अफसर ये कह कर अपनी ऊपर की कमाई को जस्टिफाई कर रहे हैं कि इस नौकरी में इंसेंटिव तो है नहीं। जुर्माना जरूर लग जाता है। यदि ऊपर की कमाई न हो तो बच्चे पालना मुश्किल हो जाए।

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