द इनसाइडर्स विचार-प्रवाह : भोपाल, अब त्रासदी का नहीं, तरक्की का शहर है
भोपाल गैस त्रासदी कांड की बरसी पर विशेष आलेख : भोपाल की पहचान गैस त्रासदी से नहीं, राजा भोज की मॉडर्न टाउन प्लानिंग से हो

मनोज मीक@9826329394
क्या भोपाल सिर्फ त्रासदी की पहचान तक सीमित रहेगा? नहीं। यह शहर पाषाण कालीन बसाहट, राजा भोज की नगर योजना, बेगमों के नेतृत्व, विशाल झीलों और हरियाली के लिए जाना जाता था। आज, यह फिर से अपनी पहचान बना रहा है।
• 1984 में भोपाल का हरित क्षेत्र केवल 12% था।
• 2023 में, यह 20% से अधिक हो गया।
• शहरी हरित क्षेत्र का राष्ट्रीय औसत 15% है।
भोपाल झील संरक्षण परियोजना ने झीलों की गुणवत्ता में 40% सुधार किया। यह शहर विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बना रहा है तथा क्रेडाई संगठन राजधानी को इसकी खूबियों के साथ विश्वस्तरीय शहर बनाने का अभियान चला रहा है।
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विकास की कहानियाँ
टीटी नगर, जो कभी पुरानी कॉलोनियों का इलाका था, आज भोपाल स्मार्ट सिटी का हृदय बन गया है।
• नए बुनियादी ढाँचे ने इस इलाके को एक आधुनिक चेहरा दिया है।
• अयोध्या बायपास, कटारा हिल्स और विशेषकर साउथ भोपाल जैसे क्षेत्र अब आवासीय और वाणिज्यिक केंद्र बन गए हैं।
• हर दिशा में इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
• भेल के मौजूदा इंफ्रास्ट्रकचर के बेहतर उपयोग पर ज़ोर दिया जा रहा है।
स्मार्ट सिटी और शहरी अवसंरचना
• भोपाल को स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 1,000 करोड़ रूपए आवंटित हुए।
• राष्ट्रीय औसत: स्मार्ट सिटी में प्रति शहर 985 करोड़।
• भोपाल ने स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट और डिजिटल सेवाओं में राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन किया।
परिवारों की अधूरी दास्तान
पर इस कहानी में वो दर्द भी है, जो आज भी इस शहर की गलियों में महसूस होता है।
• 2,25,000 से अधिक पीड़ितों को आज भी स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत है।
• राष्ट्रीय औसत रोजगार सृजन के मुकाबले, भोपाल अब भी 10% पीछे है।
• 40 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा हटाया नहीं जा सका है, यह न केवल पर्यावरण बल्कि भोपाल की छवि के लिए गंभीर चुनौती है। भोपाल सांसद ने भी यह प्रश्न उठाया है, इसका स्थायी समाधान शीघ्र निकाला जाना चाहिए। यह अधूरी कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि यह शहर अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ है।
एक नई सुबह का वादा
भोपाल अब सिर्फ एक त्रासदी की छाया में नहीं रहेगा। यह शहर आज भारत का लॉजिस्टिक कैपिटल बनने की तैयारी कर रहा है।
भोपाल की कहानी सिर्फ त्रासदी से उबरने की नहीं है, यह एक ऐसे सपने की कहानी है, जो अपने घावों से लड़कर क्रेडाई जैसे जागरुक संगठनों के साथ एक नई पहचान बनाने की सच्ची कोशिश कर रहा है।
और जब हम अगले 25 वर्षों में इस शहर को देखेंगे, तो यह एक नई सुबह का प्रतीक होगा। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन हज़ारों लोगों के लिए, जिन्होंने इस शहर के लिए सब कुछ खो दिया।
“भोपाल, अब त्रासदी का नहीं, तरक्की का शहर है।”
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