द इनसाइडर्स: आंदोलन प्रमोटी आईएएस ने किया पर मलाई खाई आरआर ने, नई नवेली दुल्हन ईएनसी की नथ उतरी, अफसर की भागवत कथा का प्रताप

द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए बड़े पदों पर बैठे अफसरों की 'टूटती सांसे और हसरतों का तिलस्म' सीरिज।

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865

भोपाल| “टूटती सांसे और हसरतों का तिलस्म’’ भाग 2.. गुरुवार को यक्ष प्रश्न का औपचारिक उत्तर मिल ही गया। PMO की घण्टी क्या बजी “मोह(न)” और “अनुराग” एक और वर्ष के लिए पर्यायवाची बन गए। अनौपचारिक रूप से खबर सोमवार को गलियारों में आ गई थी जब चौथी मंजिल पर कुछ वरिष्ठ अधिकारी CR लिखवाने पहुंचे और हिंदुस्तानी भाऊ वाला सोशल मीडिया पर मीम वाला जवाब मिला ..”रूको जरा ..सबर करो”। लोगों का मकसद CR से ज्यादा खबर में था। और इस खबर के साथ ही बहुत सारी सूटकेस वाली फाइलें और नियुक्तियां कम से कम एक साल के लिए आर्कटिक महाद्वीप की बर्फ की तरह जम गई। ज्यादातर RR, ईमानदारी के परचम वाले, खिलखिलाने लगे और सिस्टम के व्यवहारिक लोगों की मालाओं के फूल मुरझा गए। पिछले तीन बड़े साहबों को एक्सटेंशन मिला। अरेरा क्लब के चंडूखाने में उनका वर्गीकरण कुछ इस तरह किया जाता है। पहला “अव्यवहारिक ईमानदारी”, दूसरा “व्यवहारिक कर्मठ” और तीसरा “कुछ तो भी”। कुछ उसी तरह कि तीन गिलास पीने के बाद उनकी उपमा “कांच का गिलास, स्टील का गिलास और प्लास्टिक के गिलास” से की जाती है। कांच का गिलास बहुत खूबसूरत होता है पर  उसके टूटने का डर होता है। इसलिए उपयोग में कम और शो केस में ज्यादा रहता है मतलब अव्यवहारिक होता है। स्टील का गिलास यानी व्यवहारिक कर्मठ  सदा प्रयोग में रहता है और पीढ़ियों तक चलता है। और प्लास्टिक का गिलास प्याऊ में लटका मिलता है कोई चोर भी उसे नहीं छूता। बहरहाल हम आने वाले एक साल की शुभकामनाएं देते हुए बस ये कहना चाहेंगे कि सरकार आप अपनी 24 कैरट की इमेज बनाये रखें। पर गहने (FIELD EXECUTION) तो मिलावट वाले 22 कैरट से 18 कैरट वाली इमेज पर ही चलता है। तो आप अपनी 24 कैरट की तोप का मुख गहनों की बजाय नकली सोने, पीतल की तरफ मोड़ देंगे तो कर्मठता में और धार आ जायेगी। शेष अगले अंक में तब तक पेश है सत्ता के गलियारों से द इनसाइडर्स के चुटीले और मजेदार किस्से।

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 जात न पूछो साधु की…

भिण्ड में क्या हुआ, इसका वीडियो आप सब तक पहुंच ही गया होगा। वीडियो न भी पहुंचा हो तो खबर तो मिल ही गई होगी। हम आपको इस खबर के कुछ अलग एंगल से परिचित कराते हैं।

आरआर वाले अफसर यानी रत्न, प्रमोटियों को मानते हैं रेत। अब भाई साहब, “रत्न और रेत” में जो अंतर है, वही इनकी बिरादरी की सोच में झलकता है। आरआर वाले प्रमोटियों को अपने पास फटकने भी नहीं देते। हमने अपनी योग: कर्मसु कौशलम् श्रृंखला में इस बारे में विस्तार से बताया है। याद आया, शोले का डायलॉग—“अरे ओ सांभा, कितना इनाम रखे है सरकार ने?”… वही अंदाज आरआर वालों का प्रमोटियों को देखकर होता है, मानो कह रहे हों—“इनकी औकात ही क्या है?”

खैर, कलेक्टर साहब प्रमोटी निकले, तो प्रमोटियों के व्हाट्सएप ग्रुप में “आंदोलन की गूंज” मची। उधर आरआर ग्रुप में मौन व्रत साध लिया गया। प्रमोटियों ने एकजुट होकर आईएएस एसोसिएशन को ज्ञापन ठोक दिया। लेकिन मजे की बात—उस ज्ञापन पर कोई आरआर हस्ताक्षर करने नहीं आया। फिर भी जब मुद्दा तूल पकड़ गया, तो एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री से मिलकर ज्ञापन सौंपा। मुलाकात में केवल आरआर ही गए। वाह री बिरादरी की Unity in Diversity! अब देखिए दूसरा पहलू—कलेक्टर साहब और एसोसिएशन के अध्यक्ष एक ही जातीय संवर्ग से हैं। एक समय था जब इस संवर्ग की लॉबी भी काफी मजबूत थी। उसी लॉबी से जुड़े एक अफसर ने तो जातीय ग्रुप में पोस्ट डाल दी—“यह तो हमारे स्वाभिमान का सवाल है।” और देखते ही देखते मामला मणिपुर की आग की तरह फैल गया। तीसरा पहलू—शख्सियत। प्रमोटियों की नजर में कलेक्टर साहब सीधे और ईमानदार हैं, मगर आरआर वालों को वे झक्की गब्बर लगते हैं। चौथा पहलू—भिण्ड जैसे जिले में निरीह प्रमोटियों को भेजकर क्यों उनकी भद्द पिटवाई जाती है? पांचवां पहलू—सलाहकारों को वहां के जातीय समीकरण क्यों नहीं दिखाई देते? जहां जातीय तनाव है और एक जाति विशेष सबकी आंखों में किरकिरी बनी हुई है। तब वहां शक्ति और जाति के बीच संतुलन क्यों नहीं बनाया गया? वहां “बिना सेंसेक्स समझे निवेश कर दिया” जैसी नौसिखिया गलती क्यों की गई?

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ईएनसी साहब की कमिश्नर ने उतारी झकर

नई नवेली दुल्हन को उम्मीद होती है कि वह साथ में जो दहेज लेकर आई है, उसके चलते ससुराल में उसके नाज-नखरे सहन किए जाएंगे। लेकिन सर मुंडाते ही ओले पड़ गए। ठीक वैसा ही हाल नए-नए बने ईएनसी साहब का हुआ। सोचा था कि विभाग के प्रमुख सचिव (आईएएस) संग ससुराल यानी सरकार में लाल कालीन बिछी होगी। आवभगत के उलट संस्कारधानी वाले एक संभागायुक्त साहब ने झटके में औकात दिखा दी। जिला पंचायत सीईओ से कह दिया—“इनकी स्कीम की भली-भांति जांच करो, कोई जल्दी नहीं।” यह सुनकर ईएनसी साहब के सपनों की शहनाई ढोल की पोल बन गई। एसई-ईई, जो खुद क्लास वन अफसर हैं, उन्हें भी आदेश दिया गया कि वे जूनियर आईएएस यानी जिला पंचायत अफसरों को रिपोर्ट करें। भाई, ये तो वही बात हो गई—राम राम जपना, पराया माल अपना!

हम पहले ही बता चुके हैं कि आईएएस की बिरादरी अलग ही होती है और खून की शुद्धता इतनी जरूरी समझी जाती है कि प्रमोटी से दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। फिर ईएनसी साहब और तो निचले स्तर यानी इंजीनियर हैं। लिहाजा, शाही भोज की बारी आई तो ईएनसी साहब को किसी ने घास तक नहीं डाली। विभाग प्रमुख, संभागायुक्त और सीईओ यानी अपनी बिरादरी के साथ मजे से “पकौड़े खाते हुए चाय पियो” मोड में ठहाके लगाते रहे। अब विभाग में चर्चा है कि पद के लिए ईएनसी साहब ने पूरी इंजीनियर जमात का जमीर गिरवी रख दिया। जबकि पहले इंजीनियर कम से कम इतना तो नीचे नहीं गिरे थे। वे सरकार की पावर से इंजीनियरों की पगड़ी उछलने से बचा लेते थे।

जैसे गालिब कह गए—

“इश्क ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।”

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दारू वाले भैया की लाजवाब भक्ति

एक मंत्री ने जिन आईएएस अफसर का नामकरण दारू वाले भैया किया है, उनकी महिमा अपरंपार है। इन दिनों वे राजधानी के एक मैरिज गार्डन में भागवत कथा करवा रहे हैं। इस कथा में भोपाल के वीआईपी और उनके दूर-दराज के रिश्तेदार शामिल हो रहे हैं।

कथा के इंतजाम ऐसे किए गए हैं कि भव्य शादी में भी न हों। मेहमानों को भोपाल और आसपास भ्रमण के लिए 40 इनोवा क्रिस्टा गाड़ियां लगाई गई हैं। रुकने और ठहरने के लिए महंगी होटलों में बुकिंग और उम्दा खानपान की व्यवस्था की गई है। कथा का समापन अभी शेष है और उम्मीद है कि यह समारोह भी विशेष ही होगा। हालांकि कुछ बिरादरी वाले लोग बार-बार पूछ रहे हैं कि उन्हें कब न्योता मिलेगा?

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मैडम के अंदाज बदले-बदले से हैं

एक आईएएस मैडम अपनी मर्दाना आवाज में सख्त और बेबाक बोल की वजह से जगचर्चित हैं। उनकी सामाजिक उपस्थिति बहुत कम पाई जाती है, लेकिन बीते दिनों एक गेट-टुगेदर पार्टी में पहुंचकर उन्होंने सबको चौंका दिया। हुआ यूं कि महिला आईएएस अफसरों का एक अलग वाट्सएप ग्रुप है। इस ग्रुप की रवायत है कि हर महीने आपसी सहयोग से एक लंच विथ गेट-टुगेदर रखा जाए। इस बार कलियासोत की वादियों में स्थित एक संस्थान में रखा गया। खास बात यह रही कि आईएएस मैडम ने न केवल शिरकत की बल्कि खुद की तरफ से यह कार्यक्रम ऑर्गनाइज किया। किसी से भी कोई सहयोग राशि नहीं ली गई। एक और खास बात यह थी कि इस कार्यक्रम में प्रमोटी और आरआर का अंतर नहीं रखा गया। यानी इसमें आरआर और प्रमोटी दोनों ही शामिल हुईं।

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छपास रोगी एसपी साहब

एक एसपी साहब को ताकतवर मंत्री ने हटवा दिया। साहब को अपना हटना नागवार लगा। जैसे सरकार अफीम की खेती का पट्टा जारी करती है, वैसे ही साहब ने अपनी पदस्थापना को स्थाई पट्टा मान लिया था। बस फिर क्या था—उन्होंने अपने तमाम संबंध खंगाले और सफाई दी कि वे नशे के अवैध कारोबार को खत्म कर रहे थे और इसलिए मंत्री के गुर्गों पर कार्रवाई कर दी। इस बात की उन्हें सजा मिली है। बात न बनी तो उन्होंने अखबारों में इम्पैक्ट फीचर (पेड एडवरटाइजमेंट) छपवा लिया। भाई, यदि इम्पैक्ट फीचर ही छपवाना है तो नौकरी छोड़ राजनीति में कूद जाइए। वैसे इसी इम्पैक्ट फीचर का भूत कानून विभाग संभाल चुके एक पूर्व मंत्री का 15 सालों से पीछा नहीं छोड़ रहा है। बाकी आप समझदार हैं।

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कलेक्टर और एसपी की ठसक

अब बात एक और जिल्लेइलाही की। साहब को उनकी औकात विपक्ष के नेताओं ने बीते हफ्ते बताई थी। लेकिन साहब इतने मशरूफ हैं कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वे तो कलेक्टरी के मज़े में डूबे हुए हैं। हाल ही में उन्होंने एसपी मैडम को फॉलो गार्ड देने के लिए कहा। फॉलो गार्ड का कोई नियम नहीं होता है, लेकिन प्रभाव में आईं एसपी मैडम को इससे क्या फर्क पड़ता है? उन्होंने फौरन लाइन को आदेश दे दिया। लाइन में पदस्थ आरआई को कानून की समझ थी, तो उसने इससे इनकार कर दिया। फिर क्या था—प्रभारी एसपी मैडम का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने फौरन आरआई को निलंबित कर दिया।

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मैं दलित हूं, इसलिए टारगेट पर हूं

आईएएस की मिड टर्म ट्रेनिंग में मध्यप्रदेश के अफसरों की नाक कटवा चुके एक आईएएस अफसर रोने-धोने में माहिर हैं। वे एक अकादमी के बंगले में रह रहे थे। हाल ही में उन्हें बंगला खाली करने का नोटिस थमाया गया। कारण यह था कि वे तय समय से ज्यादा यहां रह रहे थे और उन्हें नियमानुसार बंगला खाली कर देना चाहिए था। लेकिन अफसर ने इस बार सहानुभूति कार्ड खेला और बाहर प्रचारित करना शुरू कर दिया कि एक दलित अफसर को परेशान किया जा रहा है। अब देखने वाली बात यह है कि उनका सहानुभूति कार्ड चलता है या नहीं। कहीं उनका बोरिया-बिस्तर बांधकर बाहर तो नहीं फेंक दिया जाएगा।

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सरकार के दिल्ली दौरे का राज

सरकार ने इस महीने जमकर दिल्ली के चक्कर काटे। कयास लगे कि नए प्रशासनिक मुखिया के चयन के लिए ऐसा किया जा रहा है। लेकिन कुछ वक्त बाद पिक्चर क्लियर हो गई। दरअसल, सरकार को धार्मिक नगरी में किसानों के विरोध के बाद टाउन प्लानिंग स्कीम (टीपीएस) पर नंबर दो को सफाई देनी पड़ी। स्कीम रहेगी या ठंडे बस्ते में जाएगी—यह बात कुछ दिनों में साफ हो जाएगी। फिलहाल तो उस भेदिए की चर्चा चहुंओर है, जिसने यह रायता फैलाया है। वैसे, इसमें इंदौर वाले भिया और धार्मिक नगरी वाले जिले के एक विधायक की भूमिका सामने आ रही है।

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ग्रामीण क्षेत्र में काम करने का असर

एक आईएएस अफसर जब से जिल्लेइलाही बने हैं, तभी से उनके जिले में भ्रष्टाचार की इतनी रोचक खबरें आती हैं कि दिल उनकी मासूमियत पर फिदा हो जाता है। अब ताजा खबर देखिए—सिर्फ दो पन्नों की फोटोकॉपी के लिए 4000 रुपए का बिल लगा दिया गया। यानी एक पेज की फोटोकॉपी का चार्ज 2000 रुपए! और साहब इसे टंकण त्रुटि बता रहे हैं।

हम आपकी बात को सही मान भी लेते, लेकिन यह बताइए कि सिर्फ एक घंटे में आप और आपके अफसरों ने 14 किलो ड्राई फ्रूट्स कैसे खा लिए? ठीक है, खाने-पीने के मामले को छोड़ देते हैं। लेकिन यह तो बताइए सिर्फ 24 लीटर पेंट पोतने के लिए 443 लेबर और 215 मिस्त्री कैसे लगे? हुजूर! जिल्लेइलाही! कम से कम जनता को टंकण त्रुटि के नाम पर इतना भी बेवकूफ मत बनाइए। वैसे हमें मालूम है कि जब आप ग्रामीण क्षेत्र वाले विभाग में थे, तब दूध में कितना पानी मिलाते थे। यही अनुभव पूरे जिले में छाया है। तभी तो हाईकोर्ट को पंचायत सचिवों के ट्रांसफर पर भी टिप्पणी करनी पड़ी।

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मकान बनाने के लिए बिना वेतन कर रहे काम

प्रदेश के दूसरे नंबर के नगरीय निकाय में एक अफसर बिना वेतन काम कर रहे हैं। उनका तबादला जबलपुर हुआ है, लेकिन साहब हैं कि टस से मस नहीं हो रहे। अब बात यह आ गई कि उन्हें वेतन भी नहीं मिल रहा है। इनसाइडर्स ने इसकी खोजबीन की तो पता चला कि साहब का राजधानी में एक मकान बन रहा है। और साहब चाहते हैं कि निगम में रहते हुए उनका माल-ए-मुफ्त में मकान बन जाए। लेकिन मकान की परमिशन में काफी झोल हैं। मकान की परमिशन पत्नी के नाम पर हुई है, लेकिन वर्किंग डिजाइन साहब के नाम पर बनी है। यही नहीं, निगम में जिस इंजीनियर ने परमिशन जारी की है, उसे इसका अधिकार ही नहीं था। डिजाइन में भी काफी अंतर है। हालांकि, बिना वेतन काम करने वाले वे अकेले अफसर नहीं हैं, बल्कि एक महिला अफसर भी हैं।

इसी के साथ आज की सबको राम-राम। अगले शनिवार दोपहर 12 बजे द इनसाइडर्स के नए अंक में नए किस्सों के साथ फिर मिलेंगे हमारे अड्‌डे www.khashkhabar.com पर। तब तक के लिए आप सुधि पाठकों से लेते हैं अलविदा और हमारे इनसाइडर्स को देते हैं धन्यवाद, जिनके बताए किस्सों के बिना आप और हम चटखारे नहीं ले पाते।

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