World Poha Day यहां मिलता है विश्‍व का सबसे अच्‍छ पोहा

 इंदौर

इंदौर का पोहा अपनी खासियत और लोकप्रियता के कारण विश्वभर में जाना जाता है। शहर में दिन की शुरुआत लगभग सभी लोग पोहे से करते हैं। यहां के लोगों की पोहे के प्रति दीवानगी देखनी हो तो शहर की व्यस्त पोहा दुकानों की भीड़ ही काफी है। जहां स्वादिष्ट पोहा मिलता है, वहां भीड़ इतनी होती है कि कभी-कभी लगता है जैसे पोहा मुफ्त बांटा जा रहा हो। हर साल 7 जून को ‘दुनिया पोहा दिवस’ मनाया जाता है, लेकिन इंदौर में तो हर दिन पोहा डे जैसा माहौल रहता है।

इंदौर में पोहे की खपत और खासियत
इंदौर में प्रतिदिन लगभग तीन हजार से अधिक दुकानों पर पोहा बनता है, और लगभग 5 से 6 टन पोहे की खपत होती है। यहां के लोग पोहे को भाप में पकाने और भिगोकर रखने के अलग-अलग तरीकों से तैयार करते हैं, जिससे इंदौर के पोहे का स्वाद और भी निराला होता है। यह स्वाद अन्य शहरों से अलग और खास माना जाता है।

महाराष्ट्र से इंदौर तक पोहे की यात्रा
इंदौर के पोहे की कहानी पुरुषोत्तम जोशी से शु
रू होती है, जिन्होंने स्वतंत्रता से पहले तिलकपथ क्षेत्र में पहली पोहा दुकान खोली थी। पोहा महाराष्ट्र का प्रसिद्ध नाश्ता है, जिसे इंदौर में मजदूरों के लिए फटाफट बनने वाले नाश्ते के रूप में अपनाया गया। धीरे-धीरे पोहे की लोकप्रियता बढ़ी और शहर में कई पोहा की दुकानें खुल गईं। आज भी इंदौर में पोहा मात्र 10 से 15 रुपये में उपलब्ध है।

बड़े नामों की पसंद बना इंदौर का पोहा
इंदौर के पोहे को देश के कई बड़े नेता, अभिनेता और खेल जगत की हस्तियां पसंद करती हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू, अमिताभ बच्चन, अटल बिहारी वाजपेयी, राहुल गांधी, सुनील गावस्कर और विराट कोहली जैसे नाम यहां के पोहे के शौकीन हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इंदौर आने पर पोहे का स्वाद जरूर लेते हैं। शहर में सैनी पोहा, हेड साब का पोहा, 56 दुकान का पोहा और जेल रोड का तीखा पोहा बहुत प्रसिद्ध हैं। साथ ही, यहां के कुछ स्थानों पर उसल पोहा भी लोकप्रिय है।

दौर की सड़कों पर सुबह टहलने निकलिये।हर गली के मोड़ पर ,चौराहे पर ,हर चौथी दुकान पर ,बस स्टेंड से लेकर रेल्वे स्टेशन यहाँ तक ही हॉस्पिटलो के सामने भी पोहे के साफ सुथरे ठेले सज़े दिखेंगे आपको।ये पोहे के ठेले ,पोहाप्रेमियो की भीड से घिरे होते हैं।लोग या तो पोहा खा रहे होते है या पोहे की प्लेट हाथ लगने के इंतज़ार मे होते हैं।वैसे ये पोहा हमेशा प्लेट मे ही परोसा जाये ये कतई जरूरी नही होता।रद्दी अखबार मे रख कर इसे दिया जाना इंदौरियो की ही इजाद है ,मुझे तो ये लगता है कि इंदौर वाले अखबार ख़रीदते ही इसलिये है ताकि अगली सुबह उस पर रखकर पोहा खाया जा सके।

अब ऐसा भी नही है कि इंदौरी अपने घर मे पोहा नही खा सकता।घर मे भी खूब पोहा ख़ाता है वो और घर मे पोहा खाने के बाद सीधा नज़दीकी पोहे के ठेले पर पहुँचता है।उसे पोहा खाने की संतुष्टि हासिल ही तभी होती है जब वो ठेले पर खड़ा होकर यार दोस्तो के साथ पोहा खा ले।पोहे ने यारबाज बनाया है इंदोरियो को।ये पोहे की वजह से दोस्ती करते हैं और दोस्तों को पोहा खिलाते हैं।

पोहे के ठेले पर खड़े इंदौरी को देखिये।वो पूरे धीरज के साथ अपनी बारी का इंतज़ार करता है।वो यह देखता है कि पोहे वाला उनकी प्लेट लबालब भरने मे कोई कंजूसी तो नही दिखा रहा।वो चाहता है कि प्लेट में पोहे का पहाड़ खड़ा कर दिया जाये।वो एक्स्ट्रा जीरावन और कटी प्याज़ की माँग करता है।नींबू और निचोड़ देने की फरमाईश होती है उसकी और थोड़े और सेव मिल जाने पर बहुत ज्यादा खुश हो जाता है। इंदौरी एक प्लेट पोहा खाने के बाद दूसरी की इच्छा करेगा और तीसरी प्लेट न खा पाने के कारण निराश होगा।

इंदौरी सुबह उठते ही इसलिये है कि पोहा खाया जा सके और पोहे के बहाने ,अड़ोस पड़ौस से लेकर दुनिया जहान की बातें की जा सकें। अब ये बात भी सही है कि इंदौरी बात चाहे ज़माने की कर ले उसे आख़िर मे पोहे की बात पर ही लौट आना है। पोहे की बात भर निकल आये ,इंदौरियो की आँखे चमक जाती है। सच्चा इंदौरी वो जो पोहे की चर्चा सुनने भर से मुँह मे पानी भर ले। इंदौरी पोहा खाने के लिये ही पैदा होता है।जीता पोहे के साथ है और जब मर जाता है तो शोक जाहिर करने आये लोग ,पोहा खाते हुये उसकी और पोहे की तारीफ करते हैं।भैया थे तो व्यवहार कुशल ।कल सुबह ही तो दिखे थे पोहे के ठेले पर।जब भी मिलते थे पोहा खिलाये बिना मानते नही थे ! जल्दी गुज़र गये।हरि इच्छा।

इंदौरियो का जीवन चक्र पोहे के ठेले के आसपास ही घूमता है। ये देश दुनिया के हाल-चाल बाबत बीबीसी पर भरोसा करने के बजाय यहाँ मिली ख़बरों पर ज्यादा यक़ीन करते हैं।ये यहीं लड़ते झगड़ते भी है ,प्यार मोहब्बत और बीमारो की बाते भी करने के लिये भी सबसे बेहतर मौक़ा और जगह होती है ये।और बहुत बार बच्चो के ब्याह संबंध की बाते भी पोहे के ठेले पर बन जाती है।

 

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