शीतकालीन सत्र हंगामे के बीच समाप्त, संविधान पर बहस और दो महत्वपूर्ण बिल पेश हुए
नई दिल्ली
संसद का शीतकालीन सत्र शुक्रवार को हंगामे के बीच खत्म हो गया। इस सत्र में संविधान पर अच्छी बहस हुई। साथ ही दो अहम बिल भी पेश किए गए। एक बिल एक साथ चुनाव कराने के बारे में था। लेकिन बीआर आंबेडकर के कथित अपमान को लेकर सियासी तकरार बढ़ गई। इस वजह से सत्र का अंत कड़वाहट भरा रहा।सत्र के आखिरी दिन सत्ताधारी NDA और विपक्षी दलों के बीच तनाव बना रहा। गुरुवार को हुई तीखी बहस के बाद दोनों पक्षों में कटुता बढ़ गई थी। इसके चलते लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सदन की कार्यवाही तीन मिनट के भीतर स्थगित करनी पड़ी। सत्र के अंत में होने वाली सारांश चर्चा भी नहीं हो पाई।
राज्यसभा में भी स्थिति कुछ ख़ास बेहतर नहीं थी। गृह मंत्री अमित शाह के आंबेडकर के कथित अपमान पर विपक्षी दल लगातार विरोध कर रहे थे। हालांकि, उन्होंने सभापति जगदीप धनखड़ को अपनी विदाई भाषण पढ़ने की अनुमति दे दी। इसके बाद राज्यसभा को भी अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।
लोकसभा में प्रोडक्टिविटी 58 प्रतिशत
लोकसभा सचिवालय के अनुसार,सदन की उत्पादकता(Productivity) लगभग 58 प्रतिशत रही। यह उन दिनों से काफी कम है जब यह 100 प्रतिशत या उससे भी ज्यादा होती थी। अपनी समापन टिप्पणी में,जगदीप धनखड़ ने सभी दलों से राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठने और संसदीय मर्यादा बहाल करने का आह्वान किया। विपक्ष के इस आरोप के बीच कि वे अक्सर पक्षपातपूर्ण रहे हैं,उन्होंने संतुलित रुख अपनाया। धनखड़ ने कहा कि 25 नवंबर से शुरू हुए शीतकालीन सत्र में सदन ने प्रभावी ढंग से केवल 43 घंटे और 27 मिनट काम किया। इस सत्र की उत्पादकता मात्र 40.03 प्रतिशत रही।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष, खासकर कांग्रेस पर दोष मढ़ा। उन्होंने कहा कि पहले से हुए समझौते के बावजूद विपक्ष के लगातार विरोध प्रदर्शन के कारण ही उत्पादकता कम रही। संसद को सुचारू रूप से चलाने पर सहमति बनी थी। रिजिजू ने कहा कि सभी दलों को इस चिंताजनक स्थिति पर विचार करना चाहिए। संसदीय कार्य मंत्री होने के नाते वे विपक्षी नेताओं से बातचीत जारी रखेंगे।
लोकसभा में पांच बिल पेश,राज्यसभा में तीन
इस सत्र के दौरान लोकसभा में पांच विधेयक पेश किए गए,जिनमें से चार पारित हुए। राज्यसभा ने तीन विधेयक पारित किए। 26 नवंबर को संविधान दिवस के उपलक्ष्य में 'संविधान सदन' में एक विशेष सत्र भी आयोजित किया गया। यह सत्र भारतीय संविधान की महत्ता को दर्शाता है। इस सत्र में संविधान की उपलब्धियों और चुनौतियों पर चर्चा हुई।
इस सत्र में एक साथ चुनाव कराने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी चर्चा हुई। इस बिल का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है। इससे समय और संसाधनों की बचत होगी। हालांकि, इस बिल पर सभी दलों की राय एक जैसी नहीं है। कुछ दलों ने इसका समर्थन किया, जबकि कुछ ने इसका विरोध किया।
संसद में बवाल, 84 करोड़ स्वाहा
20 दिन संसद के शीतकालीन सत्र में कामकाज ना होने का अनुमानित नुकसान 84 करोड़ है। यह वो पैसे हैं,जो हमारे आपके टैक्स से जुटाए जाते हैं। संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट करीब 2.50 लाख रुपये खर्च होते हैं। संसद के सत्रों में हंगामा, विरोध प्रदर्शन और कामकाज में बाधाएं आती रहती हैं। संसद के हालिया सत्र में काफी कम कामकाज हुआ है। लोकसभा में सिर्फ 61 घंटे 55 मिनट और राज्यसभा में 43 घंटे 39 मिनट ही काम हुआ। यह बहुत कम समय है और इसका मतलब है कि संसद में जनता के महत्वपूर्ण मुद्दों पर पर्याप्त चर्चा नहीं हो पाई।