सीएम योगी के मार्गदर्शन में डिजिटल साक्ष्य का न्यायिक मामलों में महत्व विषय पर आयोजित सेमिनार में डिजिटल साक्ष्यों पर हुई चर्चा

न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता को सुनिश्चित कर रहे डिजिटल साक्ष्य

सीएम योगी के मार्गदर्शन में डिजिटल साक्ष्य का न्यायिक मामलों में महत्व विषय पर आयोजित सेमिनार में डिजिटल साक्ष्यों पर हुई चर्चा 

बोले एक्सपर्ट, न्यायिक मामलों में डिजिटल साक्ष्य की भूमिका अहम, यह तब और बढ़ जाती है जब कोई विटनेस नहीं होता 

सीएम योगी के निर्देश पर डिजिटल साक्ष्य को मान्यता देने के लिए प्रदेश में तैयार किया जा रहा आवश्यक ढांचा  

लखनऊ
 न्यायिक मामलों में डिजिटल साक्ष्य की भूमिका बहुत अहम होती है। यह भूमिका तब और बढ़ जाती है जब डिजिटल साक्ष्य के आलावा कोई विटनेस नहीं होता है। 26/11 मुंबई हमले के आरोपी कसाब के मामले में इंटरनेट ट्रांस्क्रिप्ट्स का उपयोग दोषसिद्धि में काफी महत्वपूर्ण था। वर्तमान डिजिटल साक्ष्य न केवल न्यायिक मामलों में महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं, बल्कि न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और दक्षता को भी सुनिश्चित कर रहे हैं। ये बातें सेवानिवृत्त जस्टिस तलवंत सिंह ने यूपीएसआईएफएस के डिजिटल साक्ष्य का न्यायिक मामलों में महत्व विषय पर आयोजित सेमिनार में कही।  

डिजिटल साक्ष्य को मान्यता देने के लिए प्रदेश में आवश्यक ढांचा तैयार किया गया
सेमिनार में जस्टिस सिंह ने कहा कि प्रदेश में न्यायिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रदेश में न्यायपालिका को तकनीकी दृष्टिकोण से मजबूत किया जा रहा है और डिजिटल साक्ष्य को मान्यता देने के लिए प्रदेश में आवश्यक ढांचा तैयार किया किया जा रहा है। इसी कड़ी में प्रदेश के न्यायालयों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और गति लाने के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधाओं का विस्तार किया गया है। इसके अलावा सीएम योगी ने प्रदेश के न्यायिक ढांचे को और भी सशक्त बनाने के लिए कई सुधारों की घोषणा की है, ताकि न्यायिक कार्यवाही तेजी से और पारदर्शी तरीके से हो सके।

यह सेमिनार इसका प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश न्यायिक सुधारों में अपने कदम तेजी से बढ़ा रहा है और भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। उन्होंने डिजिटल साक्ष्य को परिभाषित करते हुए कहा कि यह वह सभी डेटा होते हैं, जो डिजिटल रूप में जन्म और एक जगह एकत्रित होते हैं। उन्होंने इसे बढ़ते साइबर अपराधों की चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक बताया और कहा कि अब यह लगभग हर जांच का अभिन्न हिस्सा बन गया है। चाहे मामला चोरी, लूट या साइबर अपराध का हो। मेरा मानना है कि वैज्ञानिक और डिजिटल साक्ष्य अभियोजन की ताकत को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इस प्रकार से दोषसिद्धि में मदद करते हैं।

गवाहों के बयान में वीडियो कांफ्रेंसिंग वैध तरीका बना
जस्टिस सिंह ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)के नये नियमों का उल्लेख करते हुए बताया कि यह अधिनियम डिजिटल साक्ष्य की स्वीकृति को आसान बनाता है, जिसमें वीडियो कॉलिंग के माध्यम से दर्ज मौखिक बयान और वीडियो रिकॉर्डिंग शामिल हैं। उन्होंने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC)की धारा 273 का उदाहरण देते हुए बताया कि वीडियो कांफ्रेंसिंग अब एक वैध तरीका बन गया है, जिसके द्वारा गवाहों के बयान दर्ज किए जा सकते हैं। उन्होंने डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि डिजिटल रिकॉर्ड (जैसे स्कैन किए गए पीडीएफ, सीसीटीवी फुटेज) और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (जैसे ईमेल, एसएमएस, सर्वर लॉग्स) दो अलग-अलग प्रकार के होते हैं। उन्होंने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 63 का हवाला देते हुए बताया कि डिजिटल रिकॉर्ड को प्रमाणिक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि डिवाइस नियमित रूप से इस्तेमाल में हो, डेटा सामान्य रूप से दर्ज किया गया हो और डिवाइस की कार्यशीलता सही हो। 

 

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button