राजस्थान में इस बार उपचुनाव के आने वाले परिणाम से कई नई तस्वीरें उभरकर सामने आने की संभावना

जयपुर
राजस्थान में इस बार गत 13 नवंबर को हुए सात विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव के 23 नवंबर को आने वाले परिणाम से कई नई तस्वीरें उभरकर सामने आने की संभावना हैं और इसका असर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव, पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट, सांसद हनुमान बेनीवाल एवं अन्य कुछ सांसदों सहित कई नेताओं की राजनीतिक प्रतिष्ठा पर पड़ेगा।
अगर भाजपा उपचुनाव की अधिकतर सीटे जीत जाती है तो मुख्यमंत्री श्री शर्मा की राजनीतिक प्रतिष्ठा के चार चांद लग जायेंगे और वह प्रदेश में नये जादूगर साबित होंगे वहीं भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्ष श्री राठौड़ का भी कद बढ़ जायेगा। अगर कांग्रेस उपचुनाव हारती है तो जहां इसके प्रदेश में सबसे वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जादूगरी विफल मानी जायेगी वहीं कांग्रेस के उभरते प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की राजनीतिक प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगेगा। कांग्रेस के उपचुनाव हारने से यह भी साबित हो जायेगा कि प्रदेश में राज्य सरकार के खिलाफ कोई असंतोष की लहर नहीं थी और लोगों ने भाजपा की केवल 10-11 महीने की सरकार के पक्ष में मतदान कर पहली बार के विधायक बनने के बाद मुख्यमंत्री बने श्री भजन लाल शार्मा का कद और बढ़ जायेगा।
उपचुनाव में अगर कांग्रेस चुनाव जीत जाती है तो उसके उपचुनाव में किए गये दावे सही साबित होंगे और यह भी माना जायेगा कि कहीं न कहीं लोगों में सरकार के खिलाफ असंतोष की लहर भी थी। लेकिन कांग्रेस के चुनाव हारने पर जहां सरकार के दावे तो सही साबित होंगे वहीं यह भी माना जायेगा कि सियासी जादूगर श्री गहलोत के उपचुनाव में गैर मौजूदगी तथा पार्टी में तालमेल एवं गुटबाजी का असर भी पड़ा हैं। इसके अलावा उपचुनाव में हार-जीत का असर सांसद बृजेन्द्र ओला, हरीश मीणा, मुरारी लाल मीणा की राजनीतिक प्रतिष्ठा पर भी पड़ेगा।
उपचुनाव की सबसे चर्चित सीट खींवसर से अगर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) की प्रत्याशी एवं सांसद हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल चुनाव हार जाती हैं तो रालोपा के अस्तित्व पर बड़ा संकट आ सकता है और उपचुनाव में श्री बेनीवाल कह भी चुके है कि अगर उनकी पत्नी चुनाव हारती है तो वह पार्टी को समाप्त कर देंगे। अगर खींवसर में रालोपा जीत जाती है तो न केवल उनका शुरु से इस क्षेत्र में चला आ रहा दबदबा बरकरार रहेगा साथ ही उनकी राजनीतिक साख में और इजाफा होगा वहीं राज्य के चिकिस्ता मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर को अपना सिर और मूंछ मुंडवानी पड़ जायेगी। उपचुनाव के प्रचार में श्री खींवसर ने चुनाव सभा में ऐलान किया था कि अगर भाजपा प्रत्याशी रेवंतराम डांगा चुनाव हार जाते है तो वह अपना सिर और मूंछ दोनों यहां मूंडवा लेंगे। उपचुनाव मतदान के बाद में उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह जरुरत भी पड़ी तो वह तिरुपति में जाकर करेंगे।
पिछला विधानसभा चुनाव हार चुके पूर्व मंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा के भी उपचुनाव हार जाने से उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा पर गहरा असर पड़ेगा। इसी प्रकार कांग्रेस प्रत्याशी अमित ओला के चुनाव हारने पर बृजेन्द्र सिंह ओला की राजनीतिक प्रतिष्ठा में भी गिरावट आयेगी और ओला परिवार का विधानसभा क्षेत्र स्तर पर उनका राजनीतिक दबदबा समाप्त हो जायेगा। इसी तरह डूंगरपुर जिले की चौरासी सीट से भारत आदिवासी पार्टी (बाप) का प्रत्याशी अनिल कटारा चुनाव हार जाते है तो बाप नेता एवं सांसद राजकुमार रोत की राजनीतिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचेगी और उनकी भी विधानसभा स्तर पर राजनीतिक दबदबा कमजोर हो जायेगा।
इसके अलावा दौसा से अगर भाजपा के प्रत्याशी जगमोहन मीणा चुनाव हार जाते है तो उनके भाई एवं कृषि मंत्री डा किरोड़ी लाल मीणा की राजनीतिक प्रतिष्ठा को गहरा धक्का पहुंचेगा और इसके बाद श्री किरोड़ी मीणा क्या राजनीतिक फैसला लेंगे, वह देखने वाली बात होगी। क्योंकि गत लोकसभा चुनाव में जब उनके राजनीतिक प्रभाव वाली कुछ सीटे भाजपा के हार जाने पर उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा भेज दिया था हालांकि इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ लेकिन वह इस दौरान कुछ महीनों तक मंत्री के रुप में काम भी नहीं किया। अब दौसा उपचुनाव में अगर उनका भाई चुनाव हार जाते हैं तो वह क्या करेंगे, यह देखने वाली बात होगी लेकिन उनके भाई के चुनाव जीत जाने पर डा किरोड़ी का कद और बढ़ जायेगा।
उपचुनाव के परिणाम का देवली-उनियारा विधानसभा क्षेत्र में भी गहरा असर देखने को मिल सकता है और मतदान के दौरान उपखंड अधिकारी के थप्पड़ मारने वाले निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा चुनाव जीत जाते हैं तो सबसे चौकाने वाले परिणाम होंगे और उनकी नई राजनीतिक पारी शुरु होगी। अगर वह चुनाव हार जाते है तो राजनीतिक भविष्य शुरु होने से पहले ही समाप्त भी हो सकता है। कांग्रेस के कस्तूर चंद मीणा जीतते है तो कांग्रेस की साख बच जायेगी जबकि पूर्व मंत्री एवं भाजपा प्रत्याशी जीतते है तो उनकी एवं भाजपा की क्षेत्र में फिर राजनीतिक प्रतिष्ठा कायम होगी।
उपचुनाव परिणाम का रामगढ़ में पूर्व विधायक जुबैर खान एवं सलूंबर में पूर्व विधायक अमृतलाल मीणा परिवार की राजनीतिक प्रतिष्ठा पर भी पड़ने वाला हैं जहां दोनों जगह इन परिवारों पर अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बरकरार रखने की चुनौती थी। उपचुनाव के मतदान के बाद भाजपा, कांग्रेस, रालोपा, बाप पार्टी एवं कुछ निर्दलीय अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं लेकिन चुनावी किस्मत का पिटारा 23 नवंबर को खुलने पर ही हकीकत सामने आयेगी।

 

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