द इनसाइडर्स: ट्रैप होने वाली सुंदर महिलाओं के साथ आईएएस का अनूठा संयोग, रिलीव होने से पहले तीन ट्रांसफर में कमाए 25 लाख
'द इनसाइडर्स' में इस बार पढ़िए मध्यप्रदेश की तबादला सूची की इनसाइड डिकोडिंग स्टोरी
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कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल | योग: कर्मसु कौशलम श्रृंखला गतांक से आगे… पिछले अंक में हमने हाथ की पांच अंगुलियों की तरह 5 श्रेणी के अधिकारियों के बारे में से ज्ञान मुद्रा बनाने वाली दो अंगुलियों अंगुष्ठ और तर्जनी (ईमानदार अधिकारियों) पर गत अंक में चर्चा की … अब हम ज्ञान मुद्रा से बाहर की तीन अंगुलियों पर बात करेंगे। इन तीन प्रजातियों के लिए कभी महान चाणक्य ने कहा था ..राजतंत्र में राजसेवक (आज का योग: कर्मसु कौशलम) पानी में रहने वाली वो मछली है …जो कब कितना पानी पी जाएगी कोई हिसाब नहीं रख सकता।
सही है बिना कलम फंसाए अर्जन की कला का प्रदर्शन ये तीन प्रजातियां उत्कृष्ट तरीके से करतीं हैं। (Because their corruption is discretionary unlike engineer’s measurable ..) हम चौथे स्तंभ के लोग सिर्फ कयास लगाते हैं, हिसाब तो कभी कभी ED /IT ही कर पाते हैं। लोकल जांच एजेंसियों के तो सपने के बाहर की बात है।
तो तीसरी प्रजाति है हाथ की मध्यमा अंगुली की तरह मध्यमार्गी..” व्यवहारिक” अधिकारियों की श्रेणी..। जिस तरह हाथ में मध्यमा अंगुली सबसे बड़ी होती है उसी प्रकार सबसे ज्यादा इसी वर्ग के अधिकारी पाए जाते हैं । ये Charles Darwin की थ्योरी SURVIVAL OF FITTEST पर विश्वास करते हैं। और तुलसीदास जी के स्थान(दिल्ली/mp), काल(कलियुग), वर्ण (शासक), आश्रम (गरम नरम बेशरम) को आदर्श मान कर आचरण करते हुए जीवन यापन करते हैं। समयानुकूल व्यवहार करते हैं। यानी कभी सख्त तो कभी कोमल, कभी ईमानदार तो कभी व्यवहारिक(बेईमानी कहना उचित नहीं..)। जो जैसा चल रहा है उससे परहेज नहीं। अपनी तरफ से कोई टैक्स नहीं लगाते। हां यदि ज्यादा की गुंजाइश दिखे तो उससे भी इनकार नहीं। सामने वाला कमजोर हो तो ज्यादा डिमांड से परहेज नहीं। पार्टी फण्ड में चंदा देने में भी नहीं कतराते..कोई क्रांति नहीं करते या कभी-कभी नौकरी और स्टेटस की खातिर थोड़े बहुत बदलाव कर भी लेते हैं। कुल मिलाकर आराम से जीवन यापन करते हैं। अक्सर ये लोग ही सेवाकाल में लोकप्रिय होने का भ्रम पाल बैठते हैं जो सेवानिवृत्त होने तक गायब हो जाता है।
चौथी श्रेणी है हाथ की अनामिका अर्थात व्यापारी अधिकारी..अनामिका अंगुली सिर्फ महंगी-महंगी अंगूठियों के लिए बनी होती है। इस श्रेणी के लोगों का आदर्श बचपन में विज्ञान की किताब की पहली मशीन “भार उत्तोलक” होता है। इसमें एक सिंपल लिवर होता है जिसमें पिवोट के एक तरफ वजन(W) होता है और दूसरी तरफ से प्रयास बल(P) लगाया जाए तो वो वजन उठ जाता है। इनका स्पष्ट मानना है कि P(पैसा) लगाओ तो W (हर काम) होगा। तो ये जिला हो या विभाग उसमें P लगा कर W का व्यापार करते हैं। जिले के चयन के समय खदान, आबकारी और विकासखंडों की संख्या का ध्यान रखते हैं। विभागों या अन्य के चयन में इफेक्टिव बजट का ध्यान रखना पड़ता है। इनमें छपास रोग(मीडिया में बने रहना) बहुत होता है। क्योंकि जो वो (ईमानदार) होते नहीं वो इमेज में दिखना चाहते हैं ताकि उसकी आड़ में व्यापार सुगम और सुरक्षित चलता रहे। और मध्यमा अंगुली वाला अधिकारी कॉडर इनसे(अनामिका अंगुली) हमेशा परेशान रहता है क्योंकि ये लोग बोली बढ़ा कर रेट बिगाड़ देते हैं। हां, ये लोग कभी-कभी लालच में कलम भी फंसवा लेते हैं। और फंसने पर EGO LESS होकर किसी को भी मैनेज करने से नहीं चूकते। इस प्रजाति के आसपास पैंसठिये बहुतायत में पाए जाते हैं। और इनसाइडर बताते हैं कि साहब की सेवानिवृत्ति के बाद कम से कम 50 खोखे की चोट तो पैंसठिये इन्हें दे ही देते हैं। तब समझ में आता है कि “full life they earned for others (पैंसठिये के लिये)” भले ही आपको पढ़ने के बाद लगे कि मेरा “पैंसठिया” अलग है और अब इस “योग: कर्मसु कौशलम” श्रृंखला का समापन हम अगले हफ्ते सबसे छोटी अंगुली कनिष्ठा (कानी अंगुली) की चर्चा के साथ करेंगे, तब तक प्रस्तुत है आज के ‘द इनसाइडर्स’ के चटपटी और रोचक किस्से मजेदार अंदाज में…
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1. शीर्ष का चक्रव्यूह.. राम के भरत की विदाई
कहतें हैं जब तक पेट भरा न हो तो रोटी सूझती है और पेट भरते ही राजनीति… ऐसा ही कुछ शुरू हो गया है प्रदेश की सत्ता के शीर्षस्थ स्तर पर। यहां लग रहा है कि पेट भर गए हैं और दरबारी राजनीति शुरू ही गई है …पिछले दिनों ट्रांसफर आदेश चर्चा में रहा और सबसे ज्यादा चर्चा में रहा डॉक्टर साहब(राम) के भरत की पांचवीं मंज़िल से विदाई…हालांकि इसका इशारा हम ‘द इनसाइडर्स’ में लगभग 20 दिन पहले ही कर चुके थे। अब वृतांत ये है कि किस तरह अभिमन्यु की तरह घेर कर भरत का शिकार किया गया है। साजिशों और षणयंत्रों की लंबी फेहरिस्त है। मासूमियत के साथ कुटिलता का मिलाप है। शातिर मंसूबे हैं। गेम प्लान है। वो सब कुछ है जो कि एक थ्रिलर उपन्यास या फिल्म में होता है। और हमारे शब्दों में…
साजिशों की बुनाई में छिपा है एक खेल, छोटी-छोटी चालों से बना है बड़ा मेल,
ख़ुदा की कसम, ये दिल भी साज़िशों का है मंजर, हर पल एक नया नाटक, हर आंख में है सफर।
छल के इस संसार में, विश्वास का ताना बाना, हर मोड़ पर एक नई ख़ाक में, उमड़ता है ज़हर का फ़साना।
महारथियों को पता था कि बिना “शाह नामा” नामक अस्त्र के भरत का शिकार सम्भव नहीं। तो पहली शिकायत संगठन के ‘हितों के आनंद’ ने केंद्र को की। दूसरी इंदौर के मठाधीश से दिल्ली पहुंचवाई गई, कुछ छोटे और किरदार भी रहे। पर सबसे मजेदार किरदार निभाया चक्रव्यूह रचने वाले उस खिलाड़ी ने जो बड़े साहब की बड़ी थाली पाने के खेल में अभी- अभी चूका था तो पांचवी मंजिल की छोटी प्लेट पर अपना एकाधिकार चाहता था। खैर यादवी योद्धा को समझना होगा कि द्वापर की कृष्ण नीति के बनिस्पत कलियुग में राज करने के लिए शकुनि शतरंज तो सीखनी ही पड़ेगी। और हम तो यही कहेंगे..जब बहुत सारे महारथी मिलकर शिकार करें तो हर्ष मनाइए आप काबिल हैं। खैर, अब सड़क को मजबूत बनाइए, इससे भी बड़ी मंजिल जरूर मिलेगी।
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2. स्निग्ध सुंदरियों के साथ पीएस का अद्भुद संयोग
पिछले दिनों एक सुंदर महिला अधिकारी को 26 जनवरी को राज्य स्तर से प्रशस्ति पत्र दिया गया। करीब 10 लाख रुपए में प्रशास्ति पत्र का यह सौदा हुआ था। खैर, महज चार दिन बाद उनके घर पर जांच एजेंसी ने छापा डाल दिया। कुछ इसी तरह का संयोग पानी वाले विभाग में भी हुआ था। एक खूबसूरत महिला इंजीनियर का राष्ट्रीय स्तर पर ट्विटर पर सम्मान करवाया गया और कुछ ही दिन बाद वो लोकायुक्त द्वारा ट्रैप कर लीं गईं। इस पर भी बढ़कर संयोग ये है कि दोनों ही समय पर एक ही व्यक्ति प्रमुख सचिव थे। यही नहीं, इन प्रमुख सचिव के उद्योग के कार्यकाल में एक महिला कर्मचारी ने कार्यालय में आत्महत्या कर ली थी। वो तो भगवान भला करे कि ये ज्यादा समय महिलाओं से जुड़े विभाग में नहीं रहे वरना शायद बंद ही हो जाता …क्योंकि लोग कहते हैं “कटाक्ष की भाषा में बात करने वाला अधिकारी…महिलाओं की कुंडली पर भारी..”
3. पूर्व अफसरों के पास मुफ्त में गाड़ियां लगाई, बदले में ठेकेदारों से हो रही वसूली
प्रदेश के दूसरे नंबर के नगरीय निकाय में धन से संबंधित शाखा संभालने में गुणी के कारनामों की फेहरिस्त लंबी है। इसकी दूसरी कड़ी में हम बताएंगे इसके संबंधों के बारे में। हमारा गुणी है तो अफसर लेकिन काम पैंसठिया यानी चमचागिरी का करता है। और इसके एवज में उसे मिलता है बड़े अफसरों के साथ ही पूर्व अफसरों की पैरवी। कोई नया अफसर आया तो ये पूर्व अफसर गुणी के पैंसठिया होने के फायदे बता देते हैं। इसके एवज में गुणी ने परिवहन में पदस्थ रहे एक पूर्व आईपीएस और पूर्व एसीएस रहे एक आईएएस को गाड़ियों की सुविधा मुहैया करा रखी है। यह सुविधा भी ऐसे ही नहीं दे रखी है बल्कि इसके एवज में ठेकेदारों से 2 की जगह 5 प्रतिशत कमीशन वसूला जाता है। बता दें कि गुणी पहले परिवहन विभाग में रह चुका है। और परिवहन विभाग की कहानियां तो आप सब जान ही चुके हैं।
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4. यादव जी ने की अति सर्वत्र वर्जयेत
खाने-पीने से संबंधित सामग्री की सप्लाई करने वाले निगम के मुखिया यानी यादव जी के कारनामों को ‘द इनसाइडर्स’ ने लगातार उजागर किया। परिणीति यह हुई कि सरकार ने उनका तबादला लूप लाइन माने जाने वाले मछली पालन से संबंधित विभाग में कर दिया है। लेकिन यादव जी कहां मानने वाले थे। उन्होंने जापान से सरकार के लौटने तक रिलीव होने से इंकार कर दिया है। और तो और यादव जी ने पैसे लेकर तीन ट्रांसफर कर दिए। इसकी भनक मंत्री जी और निगम के अध्यक्ष को लगी तो उन्होंने यादव जी को एकतरफा रिलीव करवाकर तबादलों को रद्द कर दिया। वहीं, उनके पैंसठिए ने भी यादव जी को रिलीव होने के लिए कहा तो उन्होंने साफ कह दिया है कि वे रिलीव तभी होंगे जबकि संशोधित आदेश निकालकर उन्हें फिर से कोई मलाईदार पोस्ट दी जाए। लेकिन अति सर्वत्र वर्जयेत की तरह उन्हें भी एक तरफा रिलीविंग करके सरकार की ताकत का अहसास करा दिया गया।
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5. परिवहन घोटाले के मुख्य सरगना को दोनों ही पार्टियों का समर्थन
सौरभ शर्मा को लोकायुक्त पुलिस ने रिमांड पर ले लिया है। फिर भी, इस कांड से जुड़े मुख्य सरगना के माथे पर चिंता की एक भी लकीरें नहीं दिखाई देती। वजह है परिवारवाद। मुख्य सरगना की मां कांग्रेस नेता थीं। जबकि मुख्य सरगना कांग्रेस से भाजपा में आए मंत्री जी का सबसे चहेता किरदार है। उसका दूसरा भाई कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुका है। जबकि तीसरा भाई इंजीनियर था और हाल ही में वीआरएस ले लिया है। इस भाई की भी भाजपा के एक पूर्व मंत्री के साथ प्रापर्टी में भागीदारी है। रातीबढ़ व नीलबड़ के इलाकों में काफी प्रॉपर्टी दोनों ने मिलकर खरीदी है। पूर्व मंत्री भी पूर्व सीएम के बेटे हैं। यानी जब पक्ष-विपक्ष सभी साथ हैं तो फिर काहे की चिंता।
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6. पूर्व होने के बाद भी जलवा कायम रखने की जद्दोजहद
एक पूर्व मंत्री जी जो कि अब एक आयोग के अध्यक्ष हैं, वह मान ही नहीं रहे कि उनके अब राजनीति के दिन पूरे हो गए हैं। अब चूंकि मान नहीं रहे हैं तो फिर राजनीति कायम रखने के लिए जलवा जलाल भी होना चाहिए। लिहाजा, सरकार से एक पीएसओ की दरखास्त लिए मंत्रालय से लेकर पीएचक्यू तक भटक रहे हैं। लोग भी चटखारे लेकर कह रहे हैं कि इस उम्र में भी पावर का नशा अध्यक्ष महोदय पर चढ़ा हुआ है। इसलिए जगह-जगह भटककर हंसी का पात्र बन रहे हैं। वैसे उनकी पहचान के लिए बता दें कि वे कृषि मंत्री रह चुके हैं और अभी पिछड़ों के लिए बनी संस्था में अध्यक्ष हैं।
7. नैराश्य को छोड़ नई सूची की लॉबिंग में लग जाइए
इस तबादला सूची में आपका नाम नहीं आया है तो निराश न होईए। हमारा सुझाव है कि फिर से लग जाइए नई सूची में नाम डलवाने के लिए। हो सकता है अगली सूची में आपका नाम आ जाए। हमारे इनसाइडर तो यही बता रहे हैं कि अभी पिक्चर बाकी है कि तर्ज पर एक और सूची की तैयारी है। यह सूची पहले वाली से छोटी होगी लेकिन यदि आपने मेहनत की तो इसमें जगह पाने में सफल हो जाएंगे। यह सूची डॉक्टर साहब के जापान से लौटने के बाद जारी हो सकती है।
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8. नर्मदा तट वासिनी का यह रिश्ता क्या कहलाता है?
काम से बदनाम पर अपने कारनामों से चर्चित नर्मदा तट वासिनी यानी जिला हुकुम ताजा तबादला सूची में अपना नाम कटवाने में सफल रहीं। इसके लिए उन्होंने संगठन में खुद के ‘हित’ साधने वाले ‘आनंद’ की मदद ली। पोस्टिंग भी इन्होंने ही कराई थी तो फिर तबादला कैसे होने देते? इसलिए लोग कह रहे हैं कि यह रिश्ता क्या कहलाता है? वैसे, पता चला है कि क्षेत्र के नेताओं को भी ताकीद दी गई है कि जिला हुकुम के बारे में कोई भी शिकायत बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इसलिए सांसद से लेकर विधायक आदि भी चुप हैं। हालांकि चर्चे यह भी हैं कि नर्मदा तट वासिनी भले ही अभी बच भी गई हो लेकिन बड़े साहब की नजरें जल्द ही इनायत होंगी।
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9. प्रदेश चालाएंगे मामा भांजा…
पिछले 18 साल प्रदेश में मामा की धूम रही। सरलता के अलावा तमाम योजनाओं के लिए उन्हें याद भी किया जाता है। लेकिन पिछले दिनों जो तबादले हुए उससे वल्लभ भवन और धार्मिक नगरी में पूर्व से पदस्थ रहे ब्राम्हण देवता ने अपने अधिकारी भांजे को भी डॉक्टर साहब के दरबार में बुलवा लिया। बुजुर्ग ब्राम्हण संस्कृति के दिनों से डॉक्टर साहब के करीबी हैं। भांजे को सफलतापूर्वक 3 साल से ज्यादा कलेक्टरी करवा कर अब साथ में ही पदस्थ करवा लिया। दरअसल डॉक्टर साहब के एक कान पर तो वो खुद बैठे हैं और दूसरा कान खाली न रहे इसलिए भांजे को बुलवा लिया। इस तरह, अचानक उपजे वैक्यूम को भी भर दिया। यानी, अब डॉक्टर साहब के दोनों कानों पर सवार होकर प्रदेश चलाएगी मामा भांजे की जोड़ी।
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अब आपसे लेते हैं विदा और वादा करते हैं कि फिर मिलेंगे अगले शनिवार दोपहर 12 बजे हमारे अड्डे www.khashkhabar.com पर ‘द इनसाइडर्स’ के नए चुटीले किस्सों के साथ। इस हफ्ते के हमारे इनसाइडर्स को आभार के साथ अलविदा सुधि पाठक गण!