The Insiders: कार पलटी के बाद कमिश्नर की चुप्पी, आईपीएस की जांच में फिर क्वेरी का कांटा, एसीएस मैडम ने आईएएस की खोली पोल, बेनामी निवेश में मंत्री की सांस अटकी, धुंधकारी का पद रिसेप्शन से पहले गायब
द इनसाइडर्स में इस बार पढ़ें प्रवासी पक्षी और खानाबदाशी सीरिज में दक्षिण भारत के नौकरशाहों का हाल
कुलदीप सिंगोरिया| भोपाल
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“प्रवासी पक्षी और ख़ानाबदोशी… भाग 6” अब तक हमने उत्तर भारत, गुजरात–महाराष्ट्र से आने वाले प्रवासी पक्षियों की ख़ानाबदोशी पर चर्चा की। आज हम बात करेंगे विशुद्ध द्रविण भारत — अर्थात केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र और तेलंगाना से UPSC के माध्यम से आने वाले प्रवासी पक्षियों के गुण–दोषों पर। बारीकी से देखेंगे, तो पाएंगे कि ये सारे प्रदेश लगभग एक जैसे हैं — विशुद्ध द्रविण रक्त, जलेबीनुमा द्रविड़ियन लिपि, केले के पत्ते पर चावल–इडली–डोसा। सिंपल लोग, यानी बिना चप्पल के, लुंगी–साड़ी वाले सांवले लोग। कोई दिखावा नहीं; माथे पर बिंदी या शैव तिलक। स्त्रियाँ केवल वेणी में प्रसन्न, और त्यौहारों पर स्वर्ण की लकदक से लदी हुईं।
तीन तरफ समुद्र से घिरे ये प्रदेश प्राकृतिक संसाधनों से भरे हुए हैं — मसाले, नारियल, चाय बगान और खानें। क्या नहीं है यहाँ? भगवान से लेकर फिल्म स्टार तक के बड़े–बड़े मंदिर, महल, किले… अपने आप में “सम्पूर्णम्।” सच कहें तो सही “अतुल्य भारत” यहीं पाया जाता है। शायद यही कारण है कि इतिहास में किसी भी क्रांति और किसी भी अवसर पर ये प्रदेश उत्तर भारत से अलग–थलग अपनी ही धुन में रहे। वस्तुतः भारत की तीनों ब्रीड — आर्य, द्रविड़ और मंगोल — तीन-फेज करंट की तरह सदैव साथ रहते हुए भी 120° अपार्ट ही रही हैं।
अब बात करते हैं आने वाले पक्षियों, यानी खानाबदोशों की नौकरशाही स्टाइल की। MPPSC से लगभग शून्य, पर UPSC से नियमित ‘ARRIVAL’ रहता है। इनको सबसे बड़ी समस्या भाषा की आती है। जैसे–तैसे हिंदी सीख भी लेते हैं, तो कभी स्त्रीलिंग–पुल्लिंग में उलझ जाते हैं, कभी आप और तुम में। इसका एक अच्छा समाधान निकाल लेते हैं — हर वाक्य के बाद सम्मान–सूचक “जी” लगा देते हैं, और त्रुटि से बच जाते हैं।
द्रविड़ियन प्रायः भावुक और गंभीर होते हैं — या तो पूरी तरह ईमानदार या पूरी तरह व्यवहारिक। बीच का कोई कॉलम नहीं होता। हाँ, किसी को डरा कर DE की धमकी दिए बिना भी जमकर धंधा कर लेते हैं। यानी यह गरम, नरम और फिर बेशर्म थ्योरी में यकीन नहीं रखते हैं। ये शुरू से ही नरम, और धंधे में बेशर्म होते हैं। कुछ इतने बेशर्म हो जाते हैं कि उत्तर भारतीय महिलाओं को पसंद करने लगते हैं। मतलब सुरा के साथ ‘संग’ का आनंद भी लेने लगते हैं। दक्षिण से आने वाली कंपनियों के नुमाइंदे हवाला का काम करते हैं, और दक्षिण में जमा इनका काला धन तलाश पाना खजाने की खोज से कम नहीं होता। इनमें से लगभग 100% अपने गृह राज्य में ही ‘रिसॉर्टनुमा’ घर बनाकर, सेवानिवृत्ति के बाद वापस चले जाते हैं। अब आपको और ज्यादा न ऊबाते हुए शुरू करते हैं आज का द इनसाइडर्स… लेकिन इससे पहले तुच्छ सा अनुरोध – व्हाट्सएप पर बल्क मैसेज की बाध्यकारी शर्तों की वजह से हम इस प्रसारित नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए कृपया हमारा चैनल https://whatsapp.com/channel/0029VajMXNDJ3jv4hD38uN2Q सब्सक्राइब कर लें ताकि आपको हर हफ्ते निर्बाध आपूर्ती जारी रह सके।
कार पलटी, कमिश्नर साहब सुरक्षित… पर गोपनीयता बरकरार
सरकारी अफ़सरों की फ़ाइलों में अक्सर “गोपनीय” लिखा रहता है। पर एक सीनियर आईएएस ने इसे सिर्फ़ फ़ाइल का शब्द न मानकर, जीवन का ध्येय वाक्य बना लिया। नतीजा यह कि जब उनकी कार सड़क पर घटाटोप पलटी, तो साहब ने उसे भी गोपनीयता एक्ट के तहत सीलबंद कर दिया। हादसे के वक्त कार वे खुद चला रहे थे और उनके बच्चे भी साथ मौजूद थे। शुक्र है, मधुशाला के साक़ियों की दुआएं काम आ गईं, वरना मामूली खरोंचों की जगह अस्पताल का बिस्तर होता। पर सत्ता के गलियारों में जिस बात को जितना दबाया जाता है, वही उतनी जोर से गूंजती है। सो, अब इस गोपनीय हादसे पर भी तरह-तरह की किस्सागोई चल पड़ी है। साहब! लेन-देन की गोपनीयता तो ठीक है, पर हादसे छुपाने की मंशा… यह तो सवालों को आमंत्रण पत्र भेज देती है। वैसे जिस पद पर आप विराजमान हैं, वहां हरिवंश राय बच्चन का पाठ ज़रूरी है। पेश-ए-ख़िदमत:
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोला-भाला;
अलग-अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ —
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।’
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आईपीएस ने शिकायत बंद कराने के लिए चक्कर काटे, पर बड़े साहब ने ही रोड़े अटका दिए
किस्मत हो तो गधा भी घोड़ी चढ़ जाए — पर यहां किस्मत इतनी बेरहम निकली कि एक आईपीएस की हालत गधे से भी बदतर हो गई। तो किस्सा सुने। साहब ड्रग तस्करी के लिए मशहूर एक जिले में एसपी थे। वहीं एक नेता और महिला से जुड़े मामले में उचित कार्रवाई न करने की शिकायत हो गई। शिकायत लगी और साहब मुख्यालय आ गए। फिर शुरू हुआ जांच समाप्त कराने का ‘भजन-कीर्तन’। गृह विभाग में वे जब-तब देखे जाने लगे, जैसे दस्तावेज़ भी रोज़ उनकी ‘डेली उपस्थिति’ लगाया करते हों। अख़िर फाइल घूमते-घूमते, झूलते-झूलते सही-सलामत हो गई। पर जैसे ही वह बड़े साहब की मेज पर पहुंची, वहां क्वेरी नामक कांटे उग आए। यानी साहब आसमान से गिरे, खजूर में भी नहीं अटके, खजूर के कांटों में लटक गए। हालांकि इतना सब झेलने के बाद भी उनका गरूर अडिग है। और ज्ञान व आईपीएस का अहम भी। यानी अकड़ कायम है, फाइलें भले लचक जाएं।
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सियासी अंगने में सीनियर आईएएस की मौजूदगी — ‘मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम?’
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के बारे में कहा जाता था कि कोई भी आयोजन हो, वे वहां आकर्षण का केंद्र बनना चाहते थे। बारात में जाएं तो दूल्हा बनने की इच्छा और शव यात्रा में जाएं तो ‘मुख्य अतिथि’ यानी लाश। हमारे यहां कई आईएएस, आईपीएस और अन्य नौकरशाह भी इस आत्ममुग्धता के छोटे भाई-बहन हैं। ऐसे ही एक सीनियर आईएएस को दरबार लगाने का भारी शौक है। उद्योगपति उनके दरबार में ऐसे आते हैं, जैसे बिरयानी की खुशबू पर सड़क के कुत्ते चोरी-छिपे जमा हो जाते हैं। अब हुआ यूं कि विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में एक बड़े मंत्री और विपक्ष के बड़े नेता की मुलाकात चल रही थी। सियासी मसाला भी पक रहा था और ठहाके भी। तभी साहब भी वहां पहुंचकर अपनी मौजूदगी का नुपुर झनकाने लगे। अंदर खुसुर-पुसुर शुरू हुई और सबके दिमाग में एक ही गाना बजने लगा — “मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम?” यानी बड़े सियासतदारों की गुफ्तगू में एक ब्यूरोक्रेट का घुसना, जैसे बिना बुलाए बराती डांस फ्लोर पर दूल्हे की जगह खुद फेरा लगाने आ जाए!
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दबंग एसीएस मैडम ने एक्ट और आईएएस दोनों को किया धुआं-धुआं
एसीएस मैडम पुरुषोचित अंदाज़ के लिए मशहूर हैं। उनकी दलीलों में इतना दम होता है कि सरकार हिल जाए, बड़े-बड़े साहबों की मूंछें नीचे गिर जाएं। ताजा किस्सा कुछ यूं है कि प्रदेश में 25 सालों से फायर एक्ट लाने की बात हो रही है। 15 वर्षों में ना जाने कितने ड्राफ्ट बने, पर सब हवा-हवाई साबित हुए। बीते पाँच सालों से केंद्र सरकार की गाइडलाइन और वित्त आयोग की सिफारिश के कारण एक नया ड्राफ्ट फिर से तैयार किया गया। तमाम ‘अक्लवीरों’ और ‘ग्यानियों’ (आईएएस की अंगूठा चाट जमात) ने दिमाग भिड़ाकर वाहवाही लूट ली। हाल ही में यह ड्राफ्ट सीनियर सचिवालय समिति में रखा गया। मैडम ने इसकी ऐसी बखिया उधेड़ी कि सब मुंह छुपाने लगे। मैडम दो टूक बोलीं — “क्या आप लोग एक्ट बनाना नहीं जानते? पहले यह बताइए इसमें ऐसा क्या है, जो म्यूनिसिपल एक्ट के तहत आप नहीं कर सकते? तो अलग एक्ट क्यों ला रहे हो?”
एक आईएएस, जो इस एक्ट को बनाकर फूले नहीं समा रहे थे, हकलाते बोले—
“हमने कैपिसिटी बिल्डिंग, अलग कैडर निर्माण आदि के प्रावधान रखे हैं…”
बस फिर क्या था, मैडम उखड़ गईं—
“कौन-सा एक्ट ऐसे प्रावधान रखता है? एक्ट, नियम और गाइडलाइन का अंतर ही नहीं पता… और एक्ट बनाओगे?”
और हमेशा की तरह, फायर एक्ट ‘फायरी’ होकर धुआं-धुआं उड़ गया। वहां बैठे लोग ग़ालिब का यह शेर बुदबुदाए बिना न रह सके— निकला ख़ुल्द से आदम का सुनते आए थे लेकिन,
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।
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कलेक्टर साहब को जांच से ऐतराज, वजह???
एक जिले के जिल्लेइलाही को जांच से ऐसी एलर्जी है जैसे किसी नेता को सच बोलने से। जांच उनकी निर्बाध बैटिंग में रोड़े अटका देती है, इसलिए उन्होंने एक जांच रिपोर्ट को फाइलों की कब्र में दफना दिया। ऊपर से दबाव आया तो कार्रवाई की बजाय नई समिति बना दी। नियम अनुसार जिन सदस्यों को समिति में होना चाहिए था, उन्हें बाहर फेंक दिया। अब कारण आप समझ ही गए होंगे — जिन साहब से जिल्लेइलाही की जेब भर रही हो, उस पर आंच कैसे आने दी जाएगी? ऊपर की भनक लग चुकी है। फटकार की गाज जल्द ही साहब के ‘बल्ले’ पर गिरने वाली है। साहब फिलहाल पूर्वी दिशा के तीन जिलों वाले संभाग में एक मात्र सीधी भर्ती यानी आरआर वाले कलेक्टर हैं।
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पापकर्मों का फल — बेटे की शादी से ठीक पहले धुंधकारी पीडी पद से बाहर
एक जल-विभागीय ईएनसी, जिनके पापकर्मों पर हम पहले भी रोशनी डाल चुके हैं, गुरुण पुराण के धुंधकारी अवतार कहे जाते हैं। जनाब अपने बेटे की शादी करवाने जा रहे हैं। निमंत्रण कार्ड पर ईएनसी के साथ-साथ इसी विभाग के निगम में मिला पीडी का पद भी बड़े गर्व से छपवाया। लेकिन पापकर्मों का खाता शादी से ठीक पहले खुल गया। नाराज़ एमडी साहब ने उन्हें पीडी पद से विमुक्त कर दिया। यानी निमंत्रण पत्र पर पद छपा है, पर हकीकत में वह पद अब है ही नहीं। और दूसरी समस्या या यूं कहें कि उन्हें घाटा भी हो गया। दरअसल अब रिसेप्शन में पीडी पद की बदौलत निगम ठेकेदारों से मिलने वाले ‘गिफ्टों’ का मख्खन भी हाथ से फिसल गया।
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बेनामी संपत्ति और बदनामी से परेशान मंत्री
राजधानी से सटे जिले में एक नामी इंस्टीट्यूट में छात्रों का प्रदर्शन जेन-ज़ी के गुस्से के रूप में देखा जा रहा है। लिहाजा, सरकार दे दना दन कार्रवाई कर रही है। लेकिन इस क्रम में एक मंत्राणी बेहद दुखी और चिंतित हैं। पर मंत्राणी न सिर्फ़ दुखी हैं, बल्कि चिंतन-योग में हैं। वजह? इस संस्थान में उनका कथित बेनामी निवेश है। अब संकट के वक्त मदद करें तो बदनामी और न करें तो निवेश में घाटा। इसलिए सांसें जब-तब ऊपर-नीचे हो रही हैं कि कहीं उनका नाम न घसीटा जाए। मंत्री बेहद सौम्य, विनम्र और विवादों से दूर रहने वाली हैं। अगर उनका सरनेम यादव होता, तो हो सकता है कि वे भी मुख्यमंत्री बन चुकी होतीं।
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कलेक्टर मैडम का संतुलन बिगड़ा — बाजीगरी में चूक कहां?
एक कलेक्टर मैडम संतुलन में माहिर हैं — जैसे बाजीगर हवा में पांच-पांच गेंदों को संभाल लेता है। पर इन दिनों उनका संतुलन डगमगाया हुआ है। वजह — विपक्ष के एक विधायक ने उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। ये विधायक कोई साधारण नहीं, सरकार के भीतर से विरोधी बड़े मंत्री को नियंत्रित करने वाली ‘रामबाण गोली’ हैं। यदि आरोप सुना गया, तो मैडम का पत्ता कटना तय है। हालांकि लंबी पारी खेल चुकी हैं, तबादला तो होना ही है — अब भ्रष्टाचार की मुहर के साथ। चर्चा यह कि वे बाजीगिरी में चूकी कहां? अब आपको मैडम तो नहीं विधायक से जरूर परिचित करा देते हैं ताकि आप कुछ-कुछ अंदाजा हो जाए। विधायक महोदय विंध्य से ताल्लुक रखते हैं। और चुनाव से पहले दोनों ही पार्टियों से टिकट के लिए लॉबिंग करते रहे। अंतिम समय विपक्ष से टिकट मिला और हांफते हुए जीत भी गए।
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भोपाल की हाईप्रोफाइल शादी — 10 दिन गुप्त, रिसेप्शन में खुलासा
एक हाईप्रोफाइल शादी ने भोपाल की फिज़ाओं में चर्चा का गुलाबजल छिड़क दिया है। यह हमारे सरकार के सुपुत्र की शादी नहीं, बल्कि देश के सबसे ताकतवर शख्स के ख्यात उद्योगपति मित्र के दोस्त की बेटी की शादी है। मीडिया को खबर तब लगी, जब रिसेप्शन में उद्योगपति मित्र की एंट्री का इंतज़ार होने लगा। जबकि सात फेरे 10 दिन पहले ही हो चुके थे। यह दोस्त पूर्व नौकरशाह रहे हैं और पड़ोसी राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के दाहिने हाथ भी। अब उद्योगपति की कंपनी में ऊंचा पद संभाल रहे हैं। और उन्होंने भोपाल में भी प्रदेश के एक अन्य उद्योगपति के घर के बाजू में बंगला भी खरीदा है। यह उद्योगपति भी एक समय पूर्व सीएम से दोस्ती के चलते मशहूर रहे हैं। विवाह के और किस्से अगले अंक में…
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हम्माल सेवा वाले ही अपने हम्माल को निपटा गए
जिल्लेइलाहियों के पास जैसे कलेक्ट्रेट ऑफिस में विभिन्न शाखाएं होती हैं, वैसे ही तीन विभाग — माइनिंग, फूड और ट्राइबल भी जुड़े रहते हैं। मतलब इन तीनों की फाइलें अंतिम रूप से कलेक्टर ही देखते हैं। लेकिन बुंदेलखंड के एक जिले में पदस्थ एक कलेक्टर शायद यह बात नहीं जानते थे। तभी उन्होंने राज्य प्रशासनिक सेवा यानी ‘राज्य हम्माल सेवा’ के अफसर पर कार्रवाई की अनुशंसा कर दी। उनकी रिपोर्ट पर संभागायुक्त ने सस्पेंशन की कार्रवाई कर दी। ध्यान देने वाली बात — जब इतनी बड़ी मात्रा में ट्राइबल में खरीदी हुई, तो कलेक्टर ने कमेटी क्यों नहीं बनाई? क्या उनकी जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए थी? खैर हमें इससे क्या? हमारे लिए तो अर्थ यही है कि — संभागायुक्त और कलेक्टर दोनों पूर्व में हम्माल सेवा से थे। और अब अपने ही हम्माल सेवा से आने वाले डिप्टी कलेक्टर साहब पर रहम नहीं किया गया। जबकि डायरेक्ट यानी आरआर वाला आईएएस होता तो सब उसे बचाने में लग जाते। यही अंतर है रॉयल ब्लड (शाही खून) और हम्माली खून में।
नोट – यह व्यंग्य कॉलम है। इसे व्यंग्य की भावना के अनुरूप पढ़े। फिर भी किसी को ठेस पहुंचती है या भावनाएं आहत होती है तो टीम द इनसाइडर्स हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थी है।



