द इनसाइडर्स: मंत्री जी का बटर फ्लाई प्रेम, किचन कैबिनेट में नए आईएएस की एंट्री, सीआर के लिए सीनियर आईएएस की दरियादिली

द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए प्रशासन में चुगली आधारित अर्थव्यवस्था की तीसरी श्रृंखला।

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865

भोपाल | चुगली आधारित अर्थव्यवस्था भाग 3…आज के अंक में हम चुगलीकारों के प्रकारों पर चर्चा करेंगे। इस नवीन शब्द पर आश्चर्य न करें। चुगली फन के कलाकारों को हम चुगलखोर कह के उनके फन का अपमान नहीं कर सकते। तो साहब हमारे शासकीय तंत्र में प्रमुख रूप से तीन प्रकार “चुगलीकार” होते हैं। पहली प्रजाति को हम नाम देंगे “नारद मुनि प्रजाति” …. इस प्रकार के चुगलीकार की पहली पहचान ये है कि ये ऑफिस में सब जगह पाये जाएंगे …सिवाय अपनी कुर्सी के। ये बॉस हो या समकक्ष या तो कभी-कभी मातहत की भी टेबल के सामने की कुर्सी पर ही बैठे मिलेंगे। एक कक्ष में पहले कुछ खबरें परोसेंगे, फिर कुछ समेटेंगे और फिर अगले पड़ाव यानी अगले कक्ष की ओर निकल पड़ते हैं। इनको यदि ये कह कर खबर दी जाय कि किसी को मत बताना तो ये इसी जुमले के साथ पूरे ऑफिस को बता देंगे ये तय है। और यदि आपने कह दिया कि तुमको क्या बताएं तो वो खबर पता करके ही मानेंगे। लिहाजा, ये बेचैन हो जाएंगे और जानने के लिए आपके पीछे पड़ जाएंगे। और इस बीच अपनी सारी खबरें तस्दीक करने आपको उल्टी कर बता देंगे। दूसरी प्रजाति है …“मंथरा प्रजाति” कैकई से मंथरा ने कहा था “कोई नृप होय हमें का हानि.. चेरी छांड़ि हुई हैं न रानी..”। तो साहब ये प्रजाति साहबों के दरबारियों की होती है। जो साहबों को सलाह की शक्ल में, तो कभी-कभी साहब के कॉम्पटीटर की तारीफ की शक्ल में चुगली परोसते हैं। इनका उद्देश्य साहब को उनकी सोई हुई शक्ति का अहसास करवाना होता है। अक्सर ये प्रजाति साहबों के पतन का कारण भी बनती है। तीसरी और अंतिम मुख्य प्रजाति है “हरि राम नाई”…शोले फ़िल्म से प्रेरित इस प्रजाति के चुगलकार अक्सर उन लोगों की तरह होते हैं जो बिना पूरा पढ़े ही व्हाट्सएप फारवर्ड करते रहते हैं। जी हाँ ये लोग बिना अपना दिमाग लगाए साहब को ऑफिस की हर छोटी बड़ी खबर देते रहते हैं। अब साहब को अपनी बुद्धि लगा कर अपने काम की खबर निकालनी होती है। साहब तक अपनी बात पहुंचाने के लिए ऑफिस के समझदार लोग अक्सर इनका उपयोग कर लेते हैं। आइरिश कवि व साहित्यकार ऑस्कर वाइल्ड (Oscar Wilde) ने भी कहा है – “There is only one thing in the world worse than being talked about, and that is not being talked about.” लेकिन सत्ताधीश मनुस्मृति के इस श्लोक पर जरूर गौर फरमाए – “परनिंदां न संनादति, न च संस्तौति कस्यचित्।” यानी न तो किसी की निंदा सुनो, न ही किसी की प्रशंसा में डूबो। शेष अगले अंक में। तब तक द इनसाइडर्स के रसूखदारी वाले किस्से अपने खास चटपटे वाले अंदाज में…

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बड़े साहब की किचन कैबिनेट में मसाले की महक 

बड़े साहब का रिटायरमेंट इस महीने दरवाजे पर दस्तक दे रहा है, पर सत्ता का लड्डू ऐसा चटपटा कि एक्सटेंशन का जायका पहले ही जीभ पर चढ़ गया। “जब तक सत्ता पास, तब तक सब ठीक-ठाक है!” वाली कहावत को जीते हुए, साहब ने अगले तीन महीनों का मेन्यू तो फाइनल किया ही, बल्कि अपनी किचन कैबिनेट में मिर्च-मसाले भी डाल दिए। विपश्यना वाले साहब तो पहले ही उनकी रसोई में हल्दी-मिर्च बनकर घुल गए थे, अब जंगल से आए एक साहब ने भी लहसुन की कली सा रंग जमाया। “संगत से गुण आए, संगत से सत्ता पाए,” तुलसीदास जी की पंक्ति को चरितार्थ करते हुए, साहब की रसोई अब ऐसी सज रही है कि डॉक्टर साहब की अस्थिर किचन कैबिनेट भी इसके सामने फीकी पड़ गई।

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जंगल के मुखिया का सुबुद्धि का सूप

जंगल का कानून बड़ा तीखा है, जहां नियम भी इसके मुखिया की सुबुद्धि के तवे पर सिक जाते हैं। एक रिटायर्ड अफसर, जिनकी पेंशन तक सस्पेंड थी, उन्हें जंगल के विकास से जुड़े निगम में सलाहकार की कुर्सी पर ऐसे बिठाया गया, मानो “सूप बोले तो बोले, छलनी भी बोले!” यह करामात हुई नए मुखिया की “सुबुद्धि” के मसाले से। पहले इसी निगम में रहते हुए मुखिया ने अपनी बिसात बिछाई थी, और अब मुखिया बनकर उसी बिसात पर दागी अफसर को सलाहकार बनाकर “एहसान का बदला चटपटा” उतारा। “बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय?” पर जंगल में तो बबूल भी अमरूद सा फल देता है, अगर साहब का मसाला साथ हो। लोग फुसफुसा रहे हैं, “सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के लिए पहले कुछ मिर्च-मसाले तो छिड़कने ही पड़ते हैं!”

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तितलियों की तपस्या में रमे मंत्रीजी

तितलियों से प्यार तो हर दिल में बसता है, पर जब बात रंगीन-मिजाज एक मंत्री जी की हो, तो तितलियां उनके दिल की धड़कन बन जाती हैं। इंदिरा सागर डेम के बैक वाटर में बने बटर फ्लाई जोन में उनकी “तितली उड़े, दिल जुड़े” वाली अदा देखकर तो रविंद्रनाथ टैगोर भी “प्रेम की गंगा बहाते चलो” गाने लगें। लेकिन खबरची चीलों की खुसर-पुसर थमने का नाम नहीं लेती। खबर है कि वे कई बार वहां ‘रात्रि विश्राम’ कर चुके हैं। उन्हें पास के गांव सेल्दा मल में रातें बड़ी सुहानी लगती हैं। वैसे, जब देश की बेटी पर टिप्पणी करने से कुछ नहीं हुआ, तो तितलियों से प्रेम भला कौन-सा गुनाह हो गया? हालांकि खुसर-फुसर करने वालो को बाबा तुलसीदास जी की इस पंक्ति पर जरूर गौर फरमाना चाहिए –

 “पर निंदा सुनि कान, जासु जीव नहिं मरइ।

तुलसी ताहि जान देहु, जे मरिहहिं सुनि पर निंदा सुनि।”

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ख्याति की चटनी में जांच का तड़का

पूर्व एसपी साहब की ख्याति ऐसी फैली कि “आग लगे बस्ती में, साहब मस्ती में।” उनकी ख्याति की चटनी इतनी तीखी हुई कि डॉक्टर साहब को उन्हें रवाना करना पड़ा। पुलिस मुख्यालय में उनकी आमद होते ही “सिर मुंडाते ही ओले पड़े,” और मुख्यालय ने उनकी ख्याति की सच्चाई जानने के लिए विभागीय जांच की सिफारिश शासन से कर दी है। “निंदक नियरे राखिए” की तर्ज पर द इनसाइडर्स ने पहले आगाह कर दिया था, पर साहब सत्ता की मस्ती में “अपनी ढपली, अपना राग” गाते रहे। अब जांच की कढ़ी में पता चलेगा कि “सच का मुंह काला” होता है या नहीं। रहीम का दोहा “रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून” अब साहब को याद आ रहा है, जब उनकी ख्याति का पानी उतर रहा है।

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सीआर का खेल: तड़के से स्वाद तक

द इनसाइडर्स ने पहले एक तड़केदार किस्सा साझा किया था—एक अफसर ने ठेकेदार से गठजोड़ किया, फाइल पर APPROVED लिखा। ठेकेदार मुकरा तो NOT APPROVED। फिर सूटकेस की मिठास पहुंची तो NOTE: APPROVED ! ऐसा ही तमाशा सुरक्षा से जुड़े विभाग में देखने को मिला। एक अधिकारी की सीआर में ‘ग’ (सामान्यत: अच्छा) लिखा गया। चार साल तक मुख्यालय में विभिन्न स्तरों पर “रोने-धोने” की गुहार लगाई, पर सीआर ‘ग’ ही रही। आखिरकार, अधिकारी भेंट का मसाला लेकर मंत्रालय के एक साहब के पास पहुंचे। इसके बाद विभाग ने तर्क का लड्डू परोसा—“‘सामान्यत:’ शब्द सीआर में नहीं होना चाहिए, इसलिए सभी प्रतिकूल टिप्पणियां निरस्त, सीआर को ‘अच्छा’ करें!” वाह रे सरकारी वाक्य-विन्यास! एक शब्द से चार साल के मूल्यांकन को पलट दिया। खैर सही भी है जब- “सैंया भये कोतवाल, तो डर काहे का?”

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प्रदेश के अडानी और कालचक्र की करामात

प्रदेश के “अडानी” कहे जाने वाले उद्योगपति की कहानी में बहुत बड़ा झोल आ गया है। कभी सत्ता उनके सिर पर नाचती थी, पर वक्त का ऐसा तीखा फेर आया कि अब पार्टनर से “नैन न मिलें।” पार्टनर की राजगढ़ वाली जमीन पर उनकी मशीनरी बिकने को तैयार, स्टॉफ फायर, और मिल्कियत भी बाजार में। सुनने में आया कि प्राइवेट इक्विटी फंड से सौदा पक्का कर संकट के तीखेपन को मीठा करने की जुगत में हैं। पर सत्ता का वह तीखा जायका, जो कभी उनकी थाली में था, अब “हाथी के दांत, खाने के और, दिखाने के और” सा लगता है। यह कहानी हमें याद दिलाती है — “सत्ता का सूर्य अस्त भी होता है, और उसकी गर्मी तब सबसे ज्यादा जलाती है।”

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आईएएस को लगा सदमा

एक आईएएस साहब को मंत्री के खासमखास से पंगा लेना ऐसा भारी पड़ा कि “लूप लाइन” में फेंके गए साहब अब तक सदमे में हैं। “मैं तो बड़ा वर्कर हूँ,” कहते हुए वे अपने पीएमओ और केंद्रीय मंत्री के निजी सचिव वाले दिन याद करते हैं। केंद्र से लौटे तो ऐसी धमक थी कि चुनाव आयोग में ड्यूटी पर दूसरे राज्य गए मातहत आईएएस अफसरों पर काम का दबाव बनाते और छुट्टी मांगने वालों को “आंख दिखाने” वाली झिड़की दे देते। पर “ऊंची दुकान, फीका पकवान,” और साहब बीच पारी में “हिट विकेट” हो गए। “अंधेर नगरी, चौपट राजा,” की तर्ज पर साहब अब अपनी किस्मत को कोस रहे हैं।

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तुम ठाकुर… तुम पालनकर्ता

पानी वाला विभाग आजकल सुर्खियों में है। बारिश के मौसम में नागपंचमी के अखाड़े सजे हुए हैं। दो पहलवान प्रमुख अभियंता के मंच पर। दो पहलवान सीवरेज के मंच पर तो दो IT कंसल्टेंसी के मंच पर लड़ रहे हैं। नतीजा..शिकायतों,RTI आवेदनों की बाढ़…।इस बीच एक प्रतिपक्ष के नेता ने तो इस बाबत प्रेस कॉन्फ्रेंस तक कर दी। खुलकर हमारे “राहु भैया” का नाम भी ले लिया गया। तो साहब “राहु भैया” कुपित हो क्षीरसागर में आराम कर रहे “हरि” की शरण में पहुंचे और गुहार लगा दी कि “साहब यही चलता रहा तो विभाग में सब नँगे हो जाएंगे”…। फिर क्या था राहु पर हरि कृपा हो गई। हरि तो हैं ही पालनकर्ता। सर्व शक्तिमान नर नारायण अपनी चारों भुजाओं से यूं रक्षा में लग गए जैसे एक सीनियर RR एक जूनियर RR को बचाने में लग जाता है। राहु पर भई हरि कृपा से अखिल प्रदेश लोक के समस्त जल जीवों में हर्ष व्याप्त है। इस संरक्षण भाव से अब सभी  अपने मिशन कार्य में निर्भीकता से लग गए हैं।

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