द इनसाइडर्स : एसपी साहब काम छोड़कर कार की चाबियां बांट रहे, सठिया या गर्रा गए हैं ईएनसी, आईएएस मैडम ने ली प्रमोटी की क्लास
द इनसाइडर्स में इस बार कामचोरी कर जिंदगी के मजे लेते ब्यूरोक्रेट्स और पॉलीटिशियन के किस्से पढ़िए...

कुलदीप सिंगोरिया | इंसां की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं..
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद..
कैफ़ी आज़मी का ये शेर शासकीय सेवकों पर बख़ूबी फिट होता है। जीवनसाथी…गाड़ी…बंगला …इन्वेस्टमेंट्स..इत्यादि के बाद भी हसरतों के पड़ाव कम होते ही नहीं। कुछ की हसरतें इंवेस्टमेंट्स को multiply करती रहतीं हैं तो कुछ नए आयाम की तलाश करने लगतीं हैं। कुछ हनी ट्रैप में फंस जाते हैं तो कुछ एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशन्स में। कुछ इससे भी आगे निकल जाते हैं। नाम, यश(भले ही खरीदा हुआ हो) तो कुछ राजनैतिक महत्वाकांक्षा पालने लगते हैं। इसी फेर में काम-धाम छोड़कर करने लगते हैं शोरूम को उद्घाटन, सरकारी मंचों पर नाच-गानों का भौंडापन और किसी को प्रताड़ित करने के लिए निचले स्तर के धतकर्म। इन सब में खो जाता है तो वो जिसके लिए ये सेवा में आते हैं…शासकीय कर्म यानी लोक सेवा। दमित अभिलाषाएं और प्रभुता-धन की इस युति से एक “काबिल मर्यादित निष्ठावान लोकसेवक” खो जाता है और “हास्यास्पद रोचक कुंठित व्यक्तित्व” का जन्म होता है…। इसी वजह से आज के इनसाइडर में ऐसी ही कथाओं के रसपान का आनंद लीजिए चुटीले अंदाज में…
कानून-व्यवस्था को छोड़ शो रूम में कार की चाबियां बांटने का ले रहे आनंद
महाराज के इलाके में पदस्थ एक जिले के एसपी साहब बहुत ज्यादा फुर्सत में है। लिहाजा, टाइम पास के लिए उन्हें शो रूम्स की सैर ज्यादा भा रही है। दीपावली पर भी वे एक निजी शो रूम पर पहुंचे और 22 कार खरीदारों को चाबियां बांटी। हमारे इनसाइडर बताते हैं कि साहब की वसूली का जलवा पूरे जिले में है। वैसे इन साहब को आजकल का ट्रैंडिंग गाना भी बताते चले – थोड़ी फुर्सत भी मेरी जान कभी बाहों को दीजिए, आज की रात हुस्न का आंखों से मजा लीजिए।
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ये सठियाना है या गर्राना
कभी 60 की उम्र पर सेवानिवृत्ति हो जाती थी। सही था षष्ठिपूर्ति के बाद आदमी या तो परलोक की तैयारी के हिसाब से धर्म कर्म करने लगता है या फिर अपनी हसरतों को पूरा करने लगता है। तब लोग इसे सठियाना कहते हैं। ऐसा ही कुछ पानी से जुड़े विभाग के 62 वर्षीय संविदाधारी प्रभारी प्रमुख अभियंता के साथ हो रहा है। यह साहब प्रदेश भर में सरकारी बैठकें शासकीय भवन में न करके शहर की सबसे महंगी होटल में करतें हैं। अब उसके उलट इन्होंने दीपावली के सप्ताह भर पूर्व ही शासकीय ऑडिटोरियम में शासकीय व्यय पर, सरकारी लोगो और कर्मचारियों के समक्ष अपनी प्राइवेट पार्टी (पारिवारिक अधिकारी सम्मेलन) का आयोजन किया। इसके लिए पूरे कार्यालय भवन और ऑडिटोरियम को दुल्हन सा सजाया भी गया। अधिकारियों के लिए सायंकालीन टॉनिक (सुरापान) का इंतजाम भी एक वरिष्ठ अधिकारी के चेम्बर में था। हद तो तब हुई जब कर्मचारियों को दिन भर के ऑफिस के समय के बाद जबरन रोक कर ऑडिटोरियम में ताली बजाने के लिए देर रात तक रोक कर रखा गया, ताकि साहब लोगों के स्टेज पर कपल डांस पर ताली तो बजे। पिछले दिनों शिवपुरी और आगरा के स्कूलों में डांस करने पर एक स्कूल टीचर निलंबित हुए थे। देखना ये है कि यही नियम संविदाधारी कृष्ण पर लागू होगा या नहीं। फिलहाल इस बेतुके भोंडे प्रदर्शन को सठियाना कहें या गर्राना, ये विचारणीय है।
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खुद के पास काम नहीं, इसलिए प्रमोटी को चमका रही मैडम
प्रदेश के खर्चा पानी का हिसाब रखने वाले विभाग में एक आईएएस मैडम के पास बड़ी जिम्मेदारी है। फिर भी उनके पास काम नहीं रहता है। यह बात खुद उन्होंने अपने एक करीबी से कही थी। इसलिए आजकल वे उन लोगों से खूब झगड़ा कर रही है, जिन्हें पहले कभी कोई काम बोला था। उनके इस चक्कर में एक प्रमोटी आईएएस फंस गए। जब प्रमोटी आईएएस एक जिले के कलेक्टर थे, तब उन्हें मैडम ने एक काम बोला था। काम नहीं हुआ तो उसकी भड़ास अब जाकर निकाली है। प्रमोटी आईएएस भी वल्लभ भवन आ चुके हैं। यहीं पर उनकी मुलाकात मैडम से हो गई। मैडम ने आव देखा न ताव, सीधे अफसर को खुली धमकी दे दी। अफसर तब से बहुत सहमा-सहमा सा है।
यादव जी के लिए वर्मा कर रहे बैटिंग
रोटी, कपड़ा और मकान… इसमें सबसे पहले है रोटी। इसी रोटी की पूर्ति के लिए अनाज भंडारण से संबंधित एक संस्था में यादव जी की बैटिंग के चर्चे चहुंओर है। इनके भी खासमखास हैं वर्मा जी। साहब कभी ताड़ना तो कभी प्रताड़ना के जरिए वसूली कर ही लेते हैं। जिसने रास्ते में टांग अड़ाई, समझो उसकी खैर नहीं। सही है, यादव जी के रहते हुए वर्मा जी का क्या ही कोई कुछ कर लेगा। वैसे बता दें कि वर्मा जी भोपाल विकास से संबंधित एक संस्था में भी रह चुके हैं।
छोटी सूचियां यानी सिग्नल हो चुका है…
आखिरी ओवरों की बैटिंग तो सबने देखी ही है। जैसे ही कोई अफसर रिटायर होने वाले होता है, वह तेजी से रन बटोरने के लिए कर्मचारियों का तबादला व प्रमोशन करके मलाई बटोरने लगता है। कुछ ऐसा ही हमारे कप्तान साहब कर रहे हैं। सुरक्षा से जुड़े मुख्यालय से जारी हो रही छोटी-छोटी सूचियां कुछ यही इशारा कर रही हैं। जब जिसकी सेटिंग जमी, फौरन नई सूची निकाल दी। लगे रहिए कप्तान साहब। आखिर रिटायरमेंट के बाद कौन पूछता है?
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राज्य निर्वाचन आयोग के लिए सामने आया नया नाम
राज्य निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष पद के लिए पूर्व बड़ी मैडम ने खूब जोर मारा। बात नहीं बनी तो नए दावेदार सामने आने लगे। उन्हीं में से एक पंडित जी हैं जो कि मुख्य सचिव बनते-बनते रह गए। जनवरी में वे आईएएस की नौकरी को अलविदा कह देंगे। चर्चा है कि उनका पुनर्वास राज्य निर्वाचन आयोग में हो सकता है। इस बात में कितना दम है, वह तो उनके रिटायरमेंट के बाद ही पता चलेगा।
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हम तो डूब चुके सनम अब तुम्हे भी ले डूबेंगे
कभी “आइंस्टीन” ने कहा था कि “नकारात्मक लोगों को हर समाधान में समस्या दिखती है।” कुछ ऐसी ही हैं हमारी गांजे वाली कलेक्टर साहिबा। कभी वकील की निगाह खराब…कभी ड्राइवर की(सुना है कि ड्राइवर ने तो आत्महत्या भी कर ली)…कभी व्यक्तिगत जीवन में उथलपुथल.. तो कभी दूसरों के जीवन में दखल…तो कभी अदालती व्यवस्था पर सवाल। और तो और देश को कटघरे में खड़ा करने वाला ट्वीट भी..। पर जब ऐसी नकारात्मक ऊर्जा सलाहकार बन जाये तो वो किसी मंथरा से कम नहीं होती। वो अपनी एक सखी को निरंतर प्रशासनिक सलाह देतीं हैं और न सिर्फ सलाह देतीं हैं जब सखी कलेक्टर उस पर अमल कर लेती हैं तो चौथी दुनिया में उसका क्रेडिट भी लेतीं हैं। अब ये समझ के परे है कि इससे नर्मदा तट वासिनी कलेक्टर को फायदा होता है या नुकसान..? पर प्रशासनिक हलकों में ये दो देवियों की चर्चा वल्लभ भवन में सबसे मनोरंजक टाइम पास है। नर्मदा तट वासिनी कलेक्टर की कुंडली भी रोचक है विंध्य का जिला हो या नर्मदांचल का। हाई कोर्ट का इन पर विशेष स्नेह रहता है। इनकी उपस्थिति मांगी जाती है और ये कोई बहाना कर देतीं हैं। जल्दी ही हाई कोर्ट का एक और बुलावा आये, ऐसा इंतज़ाम उन्होंने फिर कर लिया है। पहले तो आदिवासी की जमीन नामांतरण के कागजों पर हस्ताक्षर किए। पर जब मामला तूल पकड़ा तो अपने ही हस्ताक्षर को झुठला दिया।
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अरेरा हिल्स की काशी नगरी…
कहतें हैं शिव जी के त्रिशूल पर बसी है नगरी काशी। इसके दश्वमेघ (मणिकर्णिका)घाट पर मोक्ष भी मिलता है। तो विश्वनाथ दर्शन पर राज पाठ का सौभाग्य मिलता है। मां गंगा में नहाइये और समस्त पाप बहा आइए। ऐसा ही कुछ है जांच एजेंसी से संबंधित अरेरा हिल्स स्थित एक दफ्तर। आप पहुंचे नहीं कि काशी के घाट की तरह ब्राम्हणों के सारे उपनाम की नेमप्लेट्स मिल जाएंगी। पिछले दिनों एक मिश्रा जी कम हुए तो दूसरे मिश्रा जी आ गए। काशी घाट की इस पंडा परम्परा का उद्भव पिछली सरकार वाले सशक्त पंडितजी (जो इस बार विधायक भी नही बन पाए..) कर गए थे। परम्परा बदस्तूर जारी है। नई सरकार में अब इस ऑफिस में शायद कोई जैन साहब जल्द ही पधारें।