कलेक्टर साहब की जुबान और कदम सुबह से ही लड़खड़ाए, मंत्री की सीधी चाल पड़ गई उलटी, आईएएस बना एमपी का केजरीबवाल

द इनसाइडर्स : ब्यूरोक्रेट्स और पॉलीटिशियन के वो किस्से पढ़िए जिनमें वे जलन और ईष्या के शिकार हो गए।

कुलदीप सिंगोरिया | “जिस दिन औरतें अपने परिश्रम का हिसाब मांगेंगी, मानव इतिहास की सबसे बड़ी और पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी।”… निश्चित ही रोज़ा लक्समबर्ग ने ये कथन सामान्य घरेलू स्त्रियों के लिए कहा होगा लेकिन आज हम इस वाक्य को थोड़ा और आगे ले जाते हुए राज्य शासन की महिला कर्मचारी-अधिकारी के बारे में बात करते हैं। बड़ा ही वाइड स्पेक्ट्रम है, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता/नर्स/शिक्षिका/लेडी पुलिस/लिपिक/डॉक्टर/इंजीनियर/एसएएस/आईएएस/आईपीएस आदि आदि। मगर कार्यक्षेत्र में उन्हें ताकती निगाहों, भद्दे कमेंट्स और मासिक पीड़ा का समान रूप से सामना करना पड़ता है। द इनसाइडर्स’ के कई किस्से भी इसी पीड़ा को बयां करते हैं।
एक और अहम बात ये है कि सभी हाउस हेल्प के बावजूद कम से कम डेढ़ से दो गुनी ड्यूटी करतीं हैं। क्योंकि ईश्वर ने सृजन का अधिकार पुरुष को नहीं दिया है। मातृत्व, वात्सल्य और घर को मानसिक दृढ़ता कभी भी पुरुष नहीं दे पाता। लिहाजा, नौकरी के अतिरिक्त उन्हें ये अहम जिम्मेवारी भी निभानी होती है। एक बार पेप्सिको की चेयरमैन रहीं इंदिरा नुई ने कहा था – “मेरा परिवार मुझसे अपेक्षा करता है कि आप ये ताज घर के बाहर पोर्च में ही छोड़कर आया करो। हमारे लिए तो मां, पत्नी और बहू बनकर ही आया करो।” अतः स्त्री शक्ति जो ईमानदारी से नौकरी भी करतीं हैं और घर भी चलातीं हैं को सादर नमन। (निसन्देह इस आलेख में कामचोर /भ्रष्ट/ स्वेच्छाचारिणी/नशे करने वाली/कुंठित फेमिनिस्ट को शामिल नहीं किया गया है।) और इसी के साथ किस्सागोई के अंदाज में सत्ता की आंतों में फंसे हुए सच को बाहर लाया है ‘द इनसाइडर्स’ का यह अंक…

अल सुबह से नशे में डूबे रहते हैं कलेक्टर साहब
अचानक ही फिल्मों के पहले का सिगरेट का विज्ञापन याद आ रहा है। “ये इस शहर को हुआ क्या है…” हम कहना चाह रहे हैं कि ये नई पीढ़ी के कलेक्टरों को हुआ क्या है…? गांजे वाली कलेक्टरनी के बाद नया वर्जन आया है अल सुबह से नशे वाला कलेक्टर। अजीब हालात हैं, सर जी सुबह-सुबह ही रात के उतारे के लिए दो घूंट लगा लेते हैं। और फिर दो घूंट पर रुकते नहीं। कभी TL हुई तो कभी नहीं हुई…कभी जुबां लड़खड़ाती है तो कभी चाल… कभी आंखे लाल तो कभी मिज़ाज .. जो उनके खूबसूरत चेहरे को बदरंग बना देते हैं। अच्छी बैक ग्राउंड से आये ये साहब शायद किसी पर्सनल प्रॉब्लम में हैं लेकिन हम तो यही कहना चाहते हैं कि कलेक्टर पद की गरिमा भी रखनी ही चाहिए। ट्राइबल बेल्ट के जिले की अपनी पहली कलेक्टरी में VC में साइड में क्या बैठे? राज्य के मुखिया ने टोक कर कहा – आप जिले के मुखिया हैं, बीच में बैठा करें। अब वल्लभ भवन की 5 वीं मंजिल को थोड़ी पता था कि वो अपनी महक को छिपाने के लिए दूर बैठे थे। कोई तो वरिष्ठ आगे आये …कोई तो समझाए कि .. ये प्रजातंत्र है इसमें राजतंत्र के ऐब नहीं चलेंगे।

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अफसरों को घर जाते वक्त मुंह में आ जाता है सड़ी मूंगफली का स्वाद
एक ज़माना था जब फ़िल्म थियेटर में जाते थे तो फ़िल्म के दौरान पॉप कॉर्न के बजाय बिना छिली सिकी हुई मूंगफली का सेवन किया जाता था। कभी कभार सड़ी मूंगफली मुंह में आ जाती थी तो तुरंत अच्छी मूंगफली खा कर मुंह का स्वाद सुधार लिया जाता था। पर तमाशा तो तब बन पड़ता था जब पैकेट की आखिरी मूंगफली ही सड़ी निकल आए। कुछ ऐसा ही बन पड़ा है दर्जन भर IAS अफसरों के साथ। ये या तो सेवानिवृत हो चुके हैं या होने के करीब हैं। इन्होंने मिलकर राजधानी के एक लो डेंसिटी एरिया में भारी उठा पटक करके दस दस हज़ार फीट के प्लाट पर एक से बढ़कर एक महलनुमा बंगले बनाए। जिंदगी भर की कमाई ऐशो आराम की सजावट में खर्च कर दी। सोचा था कि जिंदगी भर सरकारी बंगलों में “अर्जन का कोई प्रदर्शन” नहीं कर पाए। अब सेवा निवृत्ति के उपरांत लोगों को अपने घर के दर्शन कराकर वर्षों की दबी “अर्जन के प्रदर्शन” की कुंठा से मुक्ति मिल जाएगी। पर हाय री किस्मत! सभी के बंगले बने…बहुत खूब बने…पर..पर..पर.. इस कॉलोनी की एंट्री गेट पर दुगुनी(बीस हजार फुट) जगह पर सबसे शानदार बंगला बना है। पर वो किसी IAS का न होकर महज एक UDC का है, जो व्यापम से लेकर मंत्री के स्टाफ में चर्चित रहा। बंगले पर सत्ताधारी दल का झंडा 24 घण्टे लहराता रहता है। अब दिक्कत तो तब होती है जब साहब लोग अपने घर किसी मेहमान को ले कर जातें हैं और मेहमान पहले वाले बंगले की भव्यता को देख कर पूछ ही बैठते हैं कि ये किस साहब का बंगला है? कौनसे बैच के अफसर हैं ये? तब उनके मुंह में आखिरी सड़ी मूंगफली सा स्वाद आ जाता है। हद है भाई! जो लोग IAS Summit में प्रोमोटी कैडर को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते, उस अभिजात्य वर्ग को एक udc को बर्दाश्त करना पड़ रहा है। इसीलिए एक अफसर ने यहां तक कहा कि हमको एसोसिएशन के माध्यम से अलग से ही जमीन ले कर अलग ही कॉलोनी बनाना चाहिए था।

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मुर्दाबाद के नारे लगे तो नप गए एसपी साहब
हाल ही में एक जिले के एसपी साहब सिर्फ इसलिए नप यानी हट गए क्योंकि वहां आयोजित जनजातीय गौरव दिवस पर राज्यपाल की मौजूदगी में ‘मुर्दाबाद’ जैसे नारे लग गए थे। यही नहीं, इसी जिले के जनसंपर्क के डिप्टी डायरेक्टर निलंबित किया गया, क्योंकि नारा मीडिया दीर्घा से लगे थे। बताया जा रहा है कि नारेबाजी जिला अस्पताल में हुए एक घटनाक्रम को लेकर हुई थी। इसमें कुछ दिन पहले एक महिला चिकित्सक ने सिविल सर्जन के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। इस पर कलेक्टर का प्रतिवेदन लिया गया और भोपाल मंत्रालय से उल्टे उस पीड़ित महिला चिकित्सक का ही मैहर तबादला कर दिया गया।

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दहेज प्रताड़ना वाला आईएएस बना मध्यप्रदेश का केजरीबवाल
जब कोई आपको गलत कहे तो आप गलत हो सकते हो, नहीं भी हो सकते। जब एक समूह आपसे नाराज हो तो भी आप गलत हो सकते हो और नहीं भी हो सकते। लेकिन जब सभी आपसे नाराज़ हों तो आत्मविश्लेषण करना जरूरी होता है। ऐसा ही कुछ हो रहा है शिक्षा से जुड़े केन्द्र के आईएएस अफसर के साथ। अचानक ही उन्होंने प्रदेश के पूरे अमले को गलत ठहराते हुए धमकी दे डाली कि आप सब छुट्टी के दिनों में भी आवश्यक रूप से फोन उठाएं, (हालांकि, यह खुद भी फोन नहीं उठाते) वरना कार्रवाई की जाएगी। यही नहीं, उन्होंने ये हुक्मनामा विरोधी दल के एक नेता को ट्वीट(X) करने के लिए दे दिया। अब असल कहानी यह है कि अफसर पुरानी बड़ी मैडम के खासमखास पैंसठिये (चमचे ) थे। उस दौर में खूब माल लूटा। खासकर इंटरैक्टिव पैनल आदि की खरीदी में। अब इस मामले में ईओडब्ल्यू में शिकायत हो गई तो साहब ने ध्यान भटकाने के लिए सरकार को ही पत्र लिखकर अपने अमले का निकम्मा बता दिया। ठीक वैसे ही, जैसे कि एक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री पर जब भी कोई आफत आती है तो वे दूसरे मामले उठाकर रोने लगते हैं। हमने ‘द इनसाइडर्स’ के अंक में बताया था कि इन्होंने सरकारी माल अपना, भाड़ में जाए जनता की तर्ज पर अपने अच्छे खासे चैम्बर को तुड़वाकर फिर बनवाया। यह दहेज प्रताड़ना के आरोपी भी रहे हैं।

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सीधी चाल चली लेकिन उल्टी पड़ गई..
जातिगत समीकरणों के कारण एक मंत्री जी पहली बार की विधायकी में ही मंत्री बन गए। नर्मदा किनारे के भोपाल से सटे इलाके के मंत्री जी मूलतः राज्यमंत्री हैं। करने को कुछ खास नहीं हैं। शायद इसी लिए चर्चाओं में आ जाते हैं। कुछ समय पहले पुत्र मोह में पुलिस वालों के साथ किया गया व्यवहार बहुत अधिक चर्चाओं में रहा। अब अचानक उन्होंने छवि चमकाने के लिए रेत से भरे 2 डम्पर यह सोचकर पकड़ लिए कि यह अवैध होंगे। थाने में सुपुर्दगी भी करवा दी। लगा कि उनकी इस कर्मठता की चर्चा होगी लेकिन जब तहकीकात हुई तो पता चला कि डम्फर पूरे कागजात के साथ लीगल काम कर रहे थे। वैसे भी माइनिंग ‘सरकार’ का विभाग है। अब मंत्री जी बगलें झांक रहें हैं… वैसे, मंत्री जी अपने अधीन अस्पतालों का औचक निरीक्षण करते तो शायद कुछ और बेहतर होता।

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दायरा बढ़ाने की जद्दोजहद…
भोपाल के एक बड़े और मजबूत मंत्री जी बड़े महत्वकांक्षी हैं। हालांकि, जातिगत समीकरण इनकी प्रगति में बाधा बन रहे हैं पर इनके लिंक रोड वाले बंगले पर जबरदस्त भीड़ हमेशा बनी रहती है। इसी वजह से शायद अब मंत्री जी बंगले को बड़ा करवा रहे है। इसके लिए नई बाउंड्रीवाल सड़क से सटकर बनाई जा रही है। इसके बाद पुरानी वाली बाउंड्री वाल को तोड़ा जाएगा। और इस तरह से अधिक अतिक्रमित जमीन बंगले की जद में आ जाएगी। अब मंत्री जी की पहचान के लिए बता दें कि इन्होंने पिछले तीन चुनाव विपक्षी पार्टी के पक्के वोट बैंक में सेंध लगाकर जीते हैं। राजधानी में जमीनों के लैंड बैंक में शायद स्थानीय नेताओं में नंबर 1 स्थान पर हैं। एक बार शहर में ऐसे पोस्टर लगवाये थे जिसमें सिर्फ तीन आदमकद फ़ोटो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और इनकी थी।

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सोची समझी रणनीति है या संयोग
प्रदेश की नई सरकार के गठन में नागपुर की भूमिका महत्वपूर्ण थी, यह बात धीरे धीरे स्पष्ट रूप से बाहर आ गई है। लेकिन क्या अब नागपुर की भूमिका विभागों की पदस्थापनाओं में भी हो रही है? हमें कुछ ऐसे संकेत मिल रहे हैं…विशेष रूप से पुलिस में। पिछले कुछ अरसे में जो ट्रांसफर हुए हैं, उससे तो ऐसा लग रहा है कि एक वर्ग विशेष ज्यादा प्रभावित हो रहा है। इसी वर्ग से आने वाले नर्मदा किनारे की एक रेंज के आईजी को भोपाल की अहम पोस्टिंग मिलने की उम्मीद थी लेकिन उन्हें पीएचक्यू बिठा दिया गया है। इससे पहले इंट से और एक जिले से एसपी को भी इसी वजह से हटाया गया। इसे देखते हुए इसी वर्ग से आने वाले एक अन्य आईपीएस ने दिल्ली की राह पकड़ ली।

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बहुत सारे हलवाईयों ने कर दिया भोजन का सत्यानाश
Too many cooks spoil the broth.. अंग्रेजी की इस कहावत का अर्थ है कि बहुत सारे रसोइए भोजन का सत्यानाश कर देते हैं। दूसरे अर्थों में बहुत सारे महावत हाथी को पागल कर देते हैं या ज्यादा जोगी मठ उजाड़। कुछ यही स्थिति बन पड़ी थी सीएमओ की। (इनसाइडर अपने अंकों में लगातार यहां हो रहे अंतर्द्वंद को इंगित करता रहा है) लोकसभा चुनाव के बाद अचानक बड़े बड़े योद्धा एक के बाद एक यहां आ गए। लगा था सबसे बड़े योद्धा बड़े साहब बनेंगे तो कुछ बैलेंस बनेगा पर ऐसा हुआ नहीं। नियति शायद थोड़ा और समय चाहती है। पर नियति और नीयत ने सीएमओ से कई रवानगी करवा दी। खैर, इस बदलाव के बाद अब यहां स्पष्टता दिख रही है। बहुत सम्भव है कि इस स्पष्टता की प्रतिध्वनि प्रदेश में भी देखने को मिले।

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पुलिस से खुन्नस निकाल रही कलेक्टर साहिबा
absolute power corrupts… absolutely. शायद इसी सोच के कारण वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था बनाई गई है। पुलिस जो की व्यवस्था कायम करने का सबसे महत्वपूर्ण अंग है को कलेक्टर के अधीन न करके एक अलग Ips अधिकारी के अधीन रखा गया है। यह आदिकाल से है कि राजा का मंत्री और सेनापति दो अलग-अलग व्यक्ति होते थे। लेकिन हमारी नर्मदा तट वासिनी कलेक्टर कुछ विवादों के बाद नज़रिया और व्यवहार तो बदल रही है लेकिन एसपी के पद के साथ पॉवर शेयरिंग नहीं कर पाती हैं। पिछली ट्राइबल जिले की पोस्टिंग में भी इनका उस जिले के एसपी से हुआ झगड़ा चर्चित रहा था और आखिर में दोनों का ही बारी बारी से ट्रांसफर किया गया था। अब वही स्थिति नर्मदा तट के जिले में पुनः निर्मित हो गई है। एसपी साहब देवी जी को फूटी आंख नहीं सुहाते। हम तो बस यही कहेंगे कि देवी जी में परिवर्तन थोड़ा हुआ है, बहुत है बाकी…
“गलती होना प्रकृति है,
गलती मानना संस्कृति है,
गलती सुधारना प्रगति है।”
माँ नर्मदा कृपा करें…

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गोरा काला फिल्म के भाईयों की तरह लड़ रहे आईएएस और ईएनसी
पानी से संबंधित विभाग की दो विंग हैं। एक विंग के लंबे समय से मुखिया हैं ‘संविदाधारी कृष्ण’ उर्फ बड़के इंजीनियर बाबू तो दूसरी विंग के धनुर्धर हैं अखिल भारतीय सेवा के “खांटी चौधरी…” खांटी चौधरी लम्बा शानदार कार्यकाल भोपाल नगर निगम में निकाल कर आए हैं। उनकी सरलता, सुगमता और आजकल कम पाए जाने वाले गुण ईमानदारी के चर्चे हैं। वहीं संविदाधारी कृष्ण के कृष्ण(स्याह/काले) कारनामे पूरा प्रदेश (सिवाय वल्लभ भवन के…) जानता है। जहां बाणगंगा स्थित विंग लूटमार, अराजकता, चारित्रिक पतन से घटिया योजनाओं व गुणवत्ता विहीन कार्य के लिए बदनाम है। वहीं अरेरा हिल्स की विंग खांटी चौधरी के नेतृत्व में योजनाबद्ध और स्तरीय योजनाओं के लिए जनप्रतिनिधियों की पहली पसंद है। अब कहानी यह है कि आजकल दोनों विंग में कोई सामंजस्य नहीं है। खुद राज्य के प्रशासनिक मुखिया यह बात एक मीटिंग में कह चुके हैं। दोनों विंग या उनके प्रमुख गोरा काला फ़िल्म के दो भाइयों की तरह लड़ रहे हैं। फण्ड आते ही जहां एक विंग के मुखिया (गोरा) ठेकेदार दौड़ा देती है तो दूसरी विंग के संविदाधारी (काला) मुखिया श्यामला हिल की ओर दौड़ पड़ते हैं। अपना खुद का भवन बनाने के प्रस्ताव “गोरा” (नई संस्था) भेजता है तो “काला”(मूल विभाग) उसमें पच्चड़ फंसा देता है। “गोरा” कर्मचारियों की मांग करता है (ज्यादातर नए पीएससी पास अधिकारी जाना भी चाहते हैं) तो “काला” जाने की एनओसी नहीं देता है। काले को काम करना नहीं आता और वह गोरे को काम करने नहीं देता। यहां तक कि खांटी चौधरी अक्सर कहते हैं कि संविदा के प्रमुख अभियंता सप्ताहांत में इंदौर भाग जाते हैं लेकिन न तो मुझसे कोई चर्चा करते हैं और न ही मेरे पत्रों का कोई उत्तर देते हैं। अब प्रश्न यह उठता है के विभाग के मुखिया वल्लभ भवन स्थित “नर नारायण” साहब क्या कर रहे हैं? तो बता दें कि वो बेहद समझदार हैं। भले ही खांटी चौधरी उनके ही राज्य और कैडर के हों लेकिन  संविदाधारी पर साक्षात मोहन कृपा है। लिहाजा वो चुपचाप हैं। हमारे हिसाब से जब रोम जल रहा था तब जूलियस सीज़र बांसुरी बजा रहे थे…

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( मैं उन सभी इनसाइडर्स का तहे दिल से धन्यवाद देता हूं जो मुश्किल वक्त में भी साथ खड़े रहे। बीते डेढ़ महीने से मैं फील्ड में नहीं जा पाया हूं।  इसके बाद भी अनाम इनसाइडर्स ने बखूबी अपना काम करते हुए बिना किसी लोभ-लालच के सही सूचनाएं मुझ तक पहुंचाईं। आप सभी को साधुवाद।  )

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