द इनसाइडर्स: अफसरों का WWW यानी वेल्थ, वाइन और वुमन फार्मूला, सीएम और मंत्री के बीच पंडितजी की अग्निपरीक्षा

द इनसाइडर्स में जिव्हा और वाणी से सत्ता का सुख भोगते ब्यूरोक्रेट्स और पॉलीटिशियन के किस्से पढ़िए...

कुलदीप सिंगोरिया |
खुदा को नापसंद है सख्ती बयान में…
पैदा नहीं की इसीलिए हड्डी जुबां में…
ईश्वर ने जितनी भी चीजों में हड्डी नहीं दी उनका संयमित इस्तेमाल बहुत जरूरी होता है। चाहे वो ब्रेन(दिमाग) हो.. हार्ट(दिल) हो.. लिवर(जिगर) हो.. या जिव्हा(वाणी)। आपकी बुद्धि, भाग्य और मेहनत ये आप को एक मकाम तक ले जाती है। पर उस मकाम पर पहुंचने के बाद उस पर काबिलियत के अनुरूप आउटपुट/सम्मान प्राप्त कर पाने में जिव्हा संयम बहुत जरूरी है। आपकी वाणी और व्यवहार से आप स्नेह के पात्र बनते हैं तो घृणा के पात्र भी। कुछ वक्त पहले, ग्वालियर से सेवानिवृत्त एक बहुत वरिष्ठ अखिल भारतीय सेवा के एक अधिकारी को सेवानिवृत्ति पर एक माला भी नहीं पहनाई गई। क्योंकि उनकी कठोरता निष्ठुरता और घटिया बर्ताव हमेशा चर्चित रहे। वहीं बहुत से ऐसे उदाहरण हैं कि स्थानांतरण पर ही लोग ढोल और फूलों से विदा कर स्नेह जताते हैं। दरअसल, कुछ लोग कुर्सी पर वजन होते हैं…कुछ कुर्सी के लायक होते है …और कुछ से कुर्सी की शोभा बढ़ जाती है(नए बड़े साहब की तरह)। पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो 24 घण्टे कुर्सी पर ही रहते हैं।  और रिटायरमेंट के बाद एक सम्मान की माला भी नहीं मिलती। इसलिए इस श्लोक पर गौर फरमाएं – “नारिकेल समाकारा, दृश्यन्ते खलु सज्जना:, अन्ये बदरिकाकारा, बहिरेव मनोहरा:”
इसी के साथ प्रस्तुत है ‘द इनसाइडर्स’ की किस्सागाई और गुदगुदाने वाले अंदाज में चटपटी लेकिन खरी-खरी खबरें…

पंडितजी की अग्निपरीक्षा…

हमने इनसाइडर के एक अंक में बताया था कि मालवांचल से आने वाले एक मंत्री जी जिनका कद बहुत बड़ा है, ने विभाग नियंत्रण की स्थिति पर इस्तीफे की धमकी दी थी। दरअसल मंत्री जी इस विभाग की रग-रग से वाकिफ हैं और प्रादेशिक आलाकमान ये बात जानता है। पर इस महत्वपूर्ण विभाग पर अपना नियंत्रण भी चाहता है। अतः प्रादेशिक मुखिया ने एक चतुर निर्णय ले लिया। पहली मांग मानते हुए प्रमुख सचिव बदल दिए( हालांकि प्रमुख सचिव को दो वर्ष हो गए थे तो हटना तो था ही) और मंत्री जी की पसंद के पंडितजी को प्रमुख सचिव बना दिया। अब ट्विस्ट ये है कि ये प्रमुख सचिव प्रदेश के मुखिया के कार्यालय में भी रहे हैं। और अब उन्हें दो नावों की सवारी करनी पड़ेगी। यानी पंडित जी की अग्निपरीक्षा शुरू हो गई है। उन्हें दो पॉवर सेंटर के मध्य सामंजस्य बनाना है। ये कुछ रस्सी पर चलने जैसा करतब होगा। देखें दूसरों पर कटाक्ष करने के लिए मशहूर प्रमुख सचिव महोदय कितने सफल होते हैं।

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बड़ी मैडम चली गई लेकिन उनका भूत अभी भी अफसर में बसा हुआ

बड़ी मैडम का एक्सटेंशन नहीं हो पाया लेकिन कुछ अफसर ऐसे भी हैं जिनमें अभी भी उनका भूत समाया हुआ है। हालांकि यह भूत सिर्फ कमीशन बाजी तक सीमित है। ऐसा ही एक भूत पूर्व बड़ी मैडम के खासमखास अफसर में समाया हुआ है। यह वो अफसर हैं जो दहेज प्रताड़ना का आरोपी रहा है। बड़ी मैडम के समय प्रदेश के नौनिहालों को पढ़ाने के लिए करीबी 300 करोड़ रुपए की इंटरैक्टिव पैनल खरीदी के घोटाले की पटकथा रची गई। कंपनियों से खूब सौदेबाजी हुई। पहले जिस कंपनी और उसके दलाल से सौदा हुआ, उसे एक अफसर ने बदलकर दुनिया की नामी कंपनी के लिए तय करवा दिया। इससे दलाल भड़क गया और उसने ऊपर बताए गए बड़ी मैडम के खास सिपहसलार को अपने वश में कर लिया। इस सिपहसलार ने कमीशनखोरी के चक्कर में घटिया कंपनियों से सप्लाई का रास्ता खोल दिया। वो भी पहले के दाम से ज्यादा पर। हालांकि कुछ विघ्नकर्ताओं ने खेल में खलल डाल दिया है। अब शिकायत ईओडब्ल्यू तक पहुंच चुकी है। हमें तो लगता है साहब और दलाल अपना कमीशन लेकर रफूचक्कर हो जाएंगे लेकिन बाद में कंपनियां जरूर जांच की आंच में पिसेंगी।

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किसी-किसी को घी हज़म नहीं होता…
हमने अभी कहा है कि कुछ लोग कुर्सी के लायक होते हैं। कुछ वजन होते हैं तो कुछ कुर्सी को शोभायमान करते है, पर कुछ ऐसे होते हैं जो काबिल होने की एक्टिंग करते है। ऐसे ही एक अधिकारी सीएमओ में थे जिन्हें पिछले दिनों सिंगल आर्डर से हटाया गया। ये साहब चौबीस घण्टा बिजी रहते थे या बिजी रहने का अभिनय करते थे। खड़े-खड़े काम करते थे। जाहिर है सामने वाले को भी बैठने का नहीं पूछते थे, खड़े खड़े ही निपटा देते थे। फोन पर भी आधी बात के बाद बात काट देते थे कि अभी व्यस्त हूं। वाणी औऱ व्यवहार से खराब पर स्वांग ये रहता था कि पूरा सीएमओ इनके कंधों पर ही चलता है। उनके इस व्यवहार के कारण उनको आराम दिया गया है। लगे हाथ सीएमओ से एक वरिष्ठ अधिकारी की टिप्पणी भी आई है, वो भी बताते चलें – “ऐसा नहीं हो सकता है कि सीएमओ में बैठकर पावर का मजा भी लें और काम न करें। परफार्मेंस तो देना ही होगा।” इसलिए बाकियों को भी ताकीद कर दें कि अब यह फामूर्ला विभागों में भी आने वाला है।

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WWW यानी वेल्थ,वाइन और वुमन
सरकारी सिस्टम से जुड़े लोग कुर्सी के लिए लड़ते ही इसलिए हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा जमीन खरीद सकें। मतलब कि ऊपर की आमदनी से WWW (वेल्थ, वाइन और वुमन) अब भी कायम है, बस वेल्थ अब जमीन के रूप में ही जानी जाती है। इससे जुड़ा शानदार किस्सा इस बार आपके लिए फिर लेकर आया हूं। भोपाल के नए बायपास की जमीन का एलाइनमेंट पुराने साहब ने कराया था। इसमें कई रसूखदारों ने जमकर जमीन खरीदी। एलाइनमेंट का प्रकाशन होने से पहले ही पेनड्राइव में जमीनों की डिटेल आउट की गई। लेकिन अब इसमें फेरबदल की खबर है। नई सरकार में नई हुकूमत ने नया एलाईनमेन्ट पकड़ा है। ज़ाहिर है नई इबारत से नए फ़नकारों को फायदा होगा। हालांकि, अब उनका क्या होगा जो पुराने इकबाल के सहारे लंबे समय से पुराने अलाइनमेंट पर जमीन में पैसा फंसाए बैठे हैं। सच में वक्त बदलते टाइम नहीं लगता।

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ये हर्षद मेहता (मिस्टर इंडिया) कौन है…?
प्रदेश की आर्थिक राजधानी (इंदौर) और प्रदेश की धार्मिक राजधानी (उज्जयिनी) के मध्य सिंहस्थ को देखते हुए फोर लेन रोड सिक्स लें रोड में कन्वर्ट की जा रही है। लगभग सारी औपचारिकतायें पूरी होने को हैं। जल्दी ही हम काम शुरू होता देखेंगे पर इसके साथ एक और बड़ी घटना या एक और बात हुई है। वो यह कि सड़क किनारे की जमीनों के भाव दूने से ज्यादा हो चले हैं और रुकने का नाम ही नही ले रहे। जिस तरह बिग बुल हर्षद मेहता शेयर खरीदता था वैसे ही कोई मिस्टर इंडिया जमीन खरीदते जा रहा है। हम उसे mr india इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वो व्यक्ति एक है पर अलग अलग नामों से जमीनें खरीद रहा है। बिल्डरों की संस्था में सबसे बड़ी चर्चा का विषय यही है कि कहीं ये मिस्टर इंडिया वही तो नहीं? बाकी आपको उसका नाम मिले तो जरूर बताना!

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कौन बनेगा प्रदेश का नया कप्तान
मुख्यमंत्री की बनना या बदलना एक बड़ी घटना होती है तो प्रदेश का मुख्य सचिव या डीजीपी बदलना भी कोई कम छोटी घटना नहीं होती। 30 नवंबर को मौजूदा कप्तान साहब सेवानिवृत्त होंगे तो 1 दिसम्बर को प्रदेश को नए डीजीपी साहब मिलेगें। तीन नामों अजय शर्मा, अरविंद कुमार और कैलाश मकवाना की चर्चा जोरों पर है। 15 दिन बाद इन तीन में से एक सर पर ताज हो सकता है। इनसाइडर सूत्र के अनुसार अजय ही अजेय रह सकते हैं। खैर, ये मुख्यमंत्री के स्वविवेक से होगा। चूंकि मुख्यमंत्री के पास गृह विभाग भी है, तो प्रदेश की कानून व्यवस्था में उत्तर प्रदेश की तरह मजबूती आये और सौहाद्र बना रहे ये उनकी दोहरी जिम्मेवारी होगी ही। उनके निर्णय से उनकी भावी नीति का आकलन हो जाएगा।हो सकता है कि मुख्य सचिव के साथ साथ कप्तान साहब की भूमिका भी मध्यप्रदेश के मूल निवासी को ही मिले।

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नोटन हाथी पाइए..हरक़तन हाथी पांव
“बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पांव” ये एक पुरानी राजा महाराजाओं के जमाने की कहावत है। अर्थ है कि आपकी अच्छी बातों से राजा प्रसन्न होकर आपको हाथी ईनाम में दे सकता है तो कटु बातों से अप्रसन्न हो कर हाथी के पैरों तले कुचलवा भी सकता है। पर पानी से संबंधित विभाग के हमारे बड़के इंजीनियर बाबू उर्फ संविदाधारी कृष्ण के लिए कहावत कुछ इस तरह है… “नोटन हाथी पाइए..हरक़तन हाथी पांव” इसका अर्थ भी वृतांत से समझाते हैं। दरअसल, संविदाधारी अपने कार्यकाल में तीन बार प्रमुख अभियंता बने और दो बार हटाये गए। दोनों बार अपनी हरकतों के कारण। एक बार अपने पूर्ववर्ती अधिकारी जो चुनाव लड़े को दो खोखे की चुनावी मदद के कारण बने। फिर कांग्रेस सरकार ने हटाया तो दूसरी बार मामा की भाजपा सरकार ने केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय को मुख्यमंत्री की कलम से गलत पत्र लिखवा देने के कारण। और हर बार संविदा कृष्ण एक बगुले की तरह इंतजार करते रहे और मौका मिलते ही “नोट शक्ति” से प्रमुख अभियंताई फिर हथिया लेते रहे हैं। अब आसार फिर हटने के नज़र आ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि पिछले दिनों संविदाधारी ने दो बड़ी हरकतें कर दीं। पहली केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय को ठेकेदारों की आत्महत्या से सम्बंधित पत्र लिखना। दूसरा, मुख्यमंत्री जी द्वारा केंद्र को लिखे गए अर्धशासकीय पत्र को मीडिया को लीक करना। इससे मुख्यमंत्री सचिवालय के वरिष्ठतम अधिकारी ने नीचे के अफसरों की लू उतार दी और स्टेनो को संविदाधारी कृष्ण के नाम को नोट करने को कहा कि इनके द्वारा भेजे किसी भी पत्र को मुख्यमंत्री के समक्ष उन्हें दिखाए बिना प्रस्तुत न किया जाए। अब देखना ये है कि बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती है।

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जब आंख खुले तब ही सवेरा
सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते। कुछ ऐसा ही हो रहा है नर्मदा तट वासिनी कलेक्टर महोदया के साथ। चौथी दुनियां के स्तम्भों का काम ही है समालोचना करना। समालोचना को निंदा समझकर ‘द इनसाइडर्स’ से कुपित थीं देवी या तो कम उम्र में प्राप्त प्रभुता मद का दोष था या फिर गांजेवाली कलेक्टर सखी की मंथरा सी सलाह का। यह वही जानें। लेकिन शायद समालोचना का असर ही है कि अब उनके व्यवहार में परिवर्तन की बयार बहने लगी है। साथ ही, माँ नर्मदा जो कि नम्रता दात्री मानी जातीं हैं, के जल का असर दिखने लगा है। नर्मदा तट वासिनी देवी में अब विनम्रता भी दिख रही है तो कुछ पत्रकारों के प्रति सकारात्मक सोच भी। वैसे, कुछ लोग किताबों और ट्रेनिंग से सीखतें हैं और कुछ लोग फील्ड के अनुभवों से। हम जानतें हैं कि किताबें में लिखी बातें लोग भूल सकते हैं पर अनुभव जीवन भर साथ चलता है। चौथी दुनियां किसी भी पॉजिटिव पहल की सानी रहती है तो हम भी हैं। उम्मीद करते हैं कि सलाहों या आलोचनाओं को स्वयं के विवेक के तराजू पर तौल कर ही मानतीं रहेंगी।

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