द इनसाइडर्स: हाथी की मौतों से मूछों पर तेल लगाना भूले अफसर, बख्शीश से मंत्री स्टाफ नाखुश, चमची अफसर का रंगीन कारनामा
द इनसाइडर्स में इस बार चापलूस और चापलूसी से घिरे ब्यूरोक्रेट्स और पॉलीटिशियन के किस्से पढ़िए...
कुलदीप सिंगोरिया | प्राचीन काल में युवराज को राजा बनने के पूर्व 64 कलाओं का ज्ञान कराया जाता था। जिसमें धर्म शास्त्र के साथ साथ छल, द्यूत आदि भी सम्मिलित थे। पर उसमें नहीं थी तो एक कला जिसे हम चाटूकारिता/चमचागिरी/खुशामद/ठकुरसुहाती आदि अनेकों नाम से जानते हैं। राजा अपने पुरुषार्थ(बाहु / बुद्धि बल) से बनते थे/हैं पर इस 65 वीं कला में ना बुद्धि चाहिए न बाहुबल, बस रीढ़ विहीन जिव्हा चाहिए। आज के प्रशासन तंत्र में ये पैंसठिये (चमचे) बहुतायत से अधिकारियों और राजनेताओं के समीप पाए जाते हैं। ये अमर बेल की तरह परजीवी होते हैं। इनका खुद का कोई पावर नहीं होता पर साहब/नेताजी के फुल पॉवर उपयोग करते हैं। इस प्रजाति के तीन भाग हैं एक आवक वाले पैंसठिये (ये साहब को कमाने में मदद व सुरा, स्त्री आदि का इंतजाम करते हैं – रीडर से लेकर ठेकेदार तक), दूसरे जावक वाले पैंसठिये (ये साहब का पैसा अपने नाम से लगवाते हैं और करीबी दोस्त के नाम से जाने जाते हैं) और तीसरे विदूषक पैंसठिये (नई नई कमाने की स्कीम भी लाते हैं, पैसा इन्वेस्ट भी कराते हैं)। तीसरी प्रजाति सामान्यतया प्रथम पोस्टिंग के दौरान सीनियर द्वारा जूनियर को गुरु दक्षिणा में उपलब्ध कराई जाती है और ये प्रजाति सेवाकाल के हर पोस्टिंग पर साहब के साथ साथ चलती है। साहब के बच्चों की शादी व पोस्टिंग आदि का व्यय भी ये वहन कर लेते हैं (हालांकि ये खर्च साहब की संचित राशि के ब्याज से ही हो जाता है जो पैंसठिये के पास रहती है)। यह प्रजाति बीच-बीच में साहब को अहसास कराती है कि आप बहुत भोले हैं और दूसरों के सापेक्ष बहुत ईमानदार भी। अब असली कहानी शुरू होती है साहब की सेवानिवृति पर। तब साहब को समझ आता है कि चम्मच का काम ही धीरे धीरे पतीले को खाली कर खिसकना होता है… तो आज इन्हीं किस्सों के साथ पढ़िए चुटीले और मजेदार अंदाज में द इनसाइडर्स…
चम्मच को बचाने के लिए फुटबाल खेल रहे अफसर
चम्मच की गाथा चल ही रही है तो इससे जुड़ा एक किस्सा और पढ़िए। सुरा से कमाने वाले विभाग में एक चम्मच रूपी अफसर के जलवे हैं। सरकार या अधिकारी कोई भी हो, सब इस चम्मच के आगे नतमस्तक हैं। इसी चम्मच के लिए अब विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने उसकी जांच की फाइल पर फुटबाल खेलकर उसे अहम पदस्थापना दे रखी है। अब थोड़ा सा मामला भी बता दें। चम्मच एक दिन अपनी औकात भूल गया था तो लोकायुक्त की नजरें तिरछी हो गई। चम्मच की बेनामी संपत्ति इसकी भेंट चढ़ गई और एफआईआर हुई सो अलग। इस गलती ने चम्मच को अपनी औकात याद दिला दी। लिहाजा, पुरानी सरकार के सबसे बड़े अधिकारी या बड़े साहब को सेट कर लिया। तत्कालीन बड़े साहब की वजह से चम्मच को दंड की बजाय बढ़िया पोस्टिंग मिल गई। नई सरकार में कुछ संतोषियों ने आपत्ति उठाई। इसे देखते हुए कार्रवाई के नाम पर विभाग के प्रमुख सचिव और कमिश्नर फाइल के साथ लिखा-पढ़ी ही कर रहे हैं। और चम्मच विंध्य प्रदेश की राजधानी से उगाही में मग्न है।
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चमची होने के फायदे…
सामान्यतया स्त्री को अबला माना जाता है या भोग्या। परन्तु आजकल स्त्रियां बारम्बार सिद्ध कर रहीं हैं कि न तो वे अबला हैं और न ही महज भोग्या…वे रण चंडी भी हैं तो स्वेच्छाचारिणी भी और कुछ मामलों में चमची भी। इसी तरह मकानों के लेआउट से संबंधित परमिशन देने वाली एक महिला अफसर अपने स्त्री और चमची होने का सहज और भरपूर उपयोग करतीं हैं। संचालनालय में राजधानी की जमीनों से संबंधित काम निपटाती हैं। और आजकल रिटायरमेंट से पहले वाली बैटिंग में व्यस्त हैं। पैसे नहीं दिए तो फिर इतनी आपत्ति लगाएंगी कि इन्हें पूरे करने में और ज्यादा पैसा खर्च हो जाए। परेशानी अलग से। बहुत पतली और सुरीली वाणी की स्वामिनी ये देवी मंत्री जनों के घर के किचन में भाभीजी की चमची रूपी सहेली के रूप में बहुत जल्दी स्थापित हो जाती है। पिछली सरकार में श्यामला हिल की कोठी में यह चमची रूपी सहेली बनी थीं तो इस सरकार में मंत्री पत्नी की सहेली के रूप में पुनर्नियोजित हो गईं हैं। साथ ही वरिष्ठ अफसर तो हमेशा की तरह हम साथ- साथ हैं, गा रहे हैं। लिहाजा, सुरीली पतली आवाज़ में बदस्तूर बिल्डरों को हलाकान कर जारी है मोटी कमाई…
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आवक का वाल्व दोगुना खोला, जावक का बंद
जिस तरह साइबेरियन पक्षी जलवायु परिवर्तन और भोजन की तलाश में भोपाल की बड़ी झील पर आते हैं। वैसे ही पानी से संबंधित विभाग के इंजीनियर जलवायु परिवर्तन और मोटी खुराक की तलाश में नगर निगमों में आते रहते हैं। यहां वे पैसेठिएं यानी चम्मच बनकर मोटा माल कमाते हैं। पिछले दिनों पानी वाले विभाग के एक वरिष्ठ इंजीनियर राजधानी की शहर सरकार में आए। मृदु भाषी, सेवाभावी, कुबेर के दरबारी और पैंसठवीं कला (चापलूसी) में पारंगत हैं…। पहले तो इन्होंने तीसरे पहलवान गुप्ता जी को धार्मिक नगरी विदा किया। फिर अपने और एक अन्य साथी के बीच संसाधनों का बंटवारा किया। पर सीनियर इंजीनयर यानी कि बड़े मियां का “सुबोधत्व” सेवानिवृति के पास आने से खो गया है। आवक का वाल्व तो दोगुना खोल दिया है पर जावक का वॉल्व मद्दा कर रखा है। अब वो भूल गए हैं कि बिना तेल के मालिश नहीं होती…
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सदमें में मूछों पर तेल लगाना भूले असीम बल वाले अफसर
खबर जंगल महकमे से हैं। यहां जंगल और जीवों के सबसे बड़े सरंक्षक और असीम बल के मालिक अपनी खास तरह की मूछों के लिए जाने जाते हैं। उन्हें इन मूछों से इतना ज्यादा प्रेम है कि मीटिंग में स्त्री हो या पुरूष सबके सामने ही तेल लगाकर ताव देते रहते हैं। लेकिन हाथियों की मौत के मामले में हो रही किरकिरी से उनका असीम बल क्षीण हो गया और वे सदमे में चले गए। इसके चलते अब मूछों पर ताव भी नहीं दे पा रहे। और तो और मूछों को सजाने व संवारने के लिए तेल का इस्तेमाल भी कम हो गया। बता दें कि मंत्रालय में जब नए बड़े साहब का आगमन हुआ था तब उनकी खुशामदीद के लिए उक्त साहब बुके लेकर ढाई घंटे तक इंतजार करते रहे।
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आम तो आम गुठलियों के भी दाम…
केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी स्कीम स्मार्ट सिटी। इसे अब औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया है। न भी समाप्त करते तो इन प्रोजेक्ट्स की हालत सब कुछ बयां कर देती है। लिहाजा, दस्तूर के रूप में पूरे मध्यप्रदेश के लिए 9000 रुपये का आवंटन रखा है। पर कहते हैं ना कि मरा हुआ हाथी भी दस लाख का होता है। इसी बात पर हमारे 3 नगर निगम कमिश्नर और एक प्राधिकरण के सीईओ बार्सिलोना स्मार्ट सिटी एक्सपो में गए हैं। निसन्देह जब स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट ही समाप्त हो गए तो वहां ज्ञानार्जन का कोई औचित्य नहीं। हां शासकीय व्यय पर वैश्विक पर्यटन तो कर ही आएंगे और लौटते वक्त नाम का प्रस्ताव भेजने वाले वरिष्ठ अधिकारियों के लिए ड्यूटी फ्री शॉपिंग भी।
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समय की परिवर्तनशीलता और चतुर सुजान..
कहते हैं समय परिवर्तनशील होता है और मूर्ख खुद को बदल नहीं पाते। वहीं चतुर सुजान खुद को समय के साथ बदल लेते हैं। ऐसा ही कुछ देखने मिला एक साहब के साथ जो सबसे बड़े साहब बनते बनते रह गए। तो उन्होंने मौजूदा बड़े साहब के करीबी मित्र के रूप में पहचान से संतोष कर लिया। इतना ही नहीं हाई कोर्ट में चल रहे अवमानना के प्रकरण में गुपचुप गलत हलफनामें पर माफी मांग ली और केस खत्म करवा लिया। दरअसल ये साहब सेवा काल में मोटा माल कमा चुके हैं और अब सेवा निवृत्ति के करीब हैं। शायद हम इन्हें भविष्य में किसी बड़े व्यवसायिक कम्पनी में पार्टनर या डायरेक्टर के रूप में भी देखें। इसीलिए इनकी अधिकारी बुद्धि पर व्यापारिक बुद्धि हावी हो गई है और ये मामले निपटाने में लगे हैं।
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चमचों की कोई जाति नहीं होती, वो हर पतीले में फिट होते हैं…
विधानसभा चुनाव 2018 के पहले “माई के लाल” वाले बयान के विरोध में एक आंदोलन ने जन्म लिया था। और इसकी परिणीति में एक संस्था का का भी जन्म हुआ था। अब यह संस्था और इससे जुड़ी राजनीतिक पार्टी रसातल में है। बहुत कम लोग को याद होगा कि इस आंदोलन का केंद्र पानी वाला विभाग था। तब चुनाव के बाद हमारे बड़के इंजीनियर उर्फ संविदाधारी कृष्ण को पहली बार प्रमुख अभियंता पद से हटाया गया था, जिसमें आंदोलन के धुरंधरों (अब राहु- केतु की तरह संविदाधारी के साथ हैं। तब केतु मंत्री का OSD था) की महत्वपूर्ण भूमिका थी। लिहाजा, आजकल हमारे संविदा कृष्ण ततसमय की नाराज़गी के कारण चुन चुन कर “बदलापुर खेल” रहे हैं। जब जब वीसी या कोई भी मीटिंग हो तो..”चुन चुन के सिर्फ संस्था व पार्टी में सक्रिय रहे अधिकारियों पर ही गरजते हैं। मानो कोई बदला या कोई कुंठा निकाल रहे हों। मज़ेदार बात ये है कि उनकी दुनाली में डेटा का कारतूस घन घोर आंदोलन समर्थक रहे राहु-केतु ही भरते हैं। और कभी कभी तो पतीले (संविदा कृष्ण) से ज्यादा चम्मच(राहु) गर्म रहता है। इससे ये बात तो पक्की हो जाती है कि चमचों की कोई जाति धर्म नहीं होता वो हर पतीले में फिट हो जाते हैं।
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नादां का खेलना…खेल का सत्यानाश
फ्रायड ने कहा था..”समझदार नजरअंदाज(इग्नोर) करते हैं। सक्षम क्षमा करते हैं और कमजोर बदला लेते हैं।” पिछले कई दिनों से गांजेवाली कलेक्टर की नर्मदा तट वासिनी सखी कलेक्टर बदले की अग्नि में वास कर रहीं हैं। बदले का आलम ये है कि पुख्ता सबूत और सूचनाओं के अभाव में धुएं में अक्स बना रहीं हैं। पिछले दिनों फोन पर वरिष्ठ अधिकारी और सांसद से हुई अनौपचारिक चर्चा को सबूत बनाने हेतु चौथी दुनियां के लोगों के विरुद्ध सांसद और वरिष्ठ अधिकारी का नाम कोर्ट में दर्ज करवा दिया। बदले की आग में भूल गईं की व्यवहारिक रूप से कितना अजीब होगा जब क्षेत्र के सांसद और वरिष्ठ अधिकारी के नाम से कोर्ट में …हाज़िर हो…की पुकार लगेगी।
आखिर कहा भी गया है…
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति’
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जिले के बड़े अफसर से सेटिंग के नशे में सारी हदें पार
राजधानी में तमाम ब्यूरोक्रेट व पॉलिटिशियन हैं। इनकी नाक के नीचे कृषि विभाग के सहायक संचालक ने महिला कर्मचारी से आफिस की सीढ़ियों पर अकेला पाकर गंदी हरकत की। भोपाल कलेक्ट्रेट में हुई वारदात के बाद पीड़िता अपने पति के साथ कोहेफिजा थाने पहुंची। और सहायक संचालक कृषि कल्याण मनोज चौधरी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। हमारे एक इनसाइडर ने बताया कि उक्त अफसर के कलेक्ट्रेट के सबसे बड़े अफसरों से अच्छे संबंध थे। एफआईआर रुकवाने के लिए उन अफसरों ने भी फोन किए लेकिन मामला संगीन होने से वे मदद नहीं कर पाए। बताया जाता है कि बीते तीन सालों से अधिकारी महिला को अकेले चैंबर में बुलाकर बैड टच करता था। पहले भी अधिकारी के खिलाफ शिकायत हुई लेकिन सीनियर अधिकारियों के हस्तक्षेप की वजह से मामला दब गया।
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दीपावली की बख्शीश से मंत्री का स्टाफ नाखुश
दीपावली पर अपने से छोटों को आशीर्वाद देने और बड़ों से आशीर्वाद लेने की परंपरा है। यह आशीर्वाद बख्शीश या गिफ्ट के रूप में लिया दिया जाता है। लेकिन एक मंत्री जी जो कि मेहनत वाले विभाग से हैं, उनकी बख्शीश से स्टाफ नाखुश हो गया। दरअसल, मंत्रीजी ने स्टाफ को प्रति व्यक्ति 500 रुपए के हिसाब से दे दिए। स्टॉफ का कहना था कि इससे ज्यादा रकम तो हम प्यून को दे देते हैं। यह सेवा का ईनाम है या फिर बेइज्जती, यह स्टाफ नहीं समझ पा रहा है। कहीं ऐसा न हो कि स्टाफ इसे बेइज्जती समझकर किसी मामले में मंत्रीजी की किरकिरी करवा दे।
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