The Insiders: जैन साहब करवा देंगे आपका हर काम, अफसर को याद आई अपनी औकात, पीएस-कलेक्टर उलटे पांव क्यों लौटे

द इनसाइडर्स: मध्यप्रदेश की नौकरशाही में अलग-अलग राज्यों से आने वाले अफसरों का विशेष योगदान है। इस बार हमारी विशेष सीरिज प्रवासी पक्षी और ख़ानाबदोशी में जानिए राजस्थान से आए अफसरों की कार्यशैली

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865

भोपाल | आप सभी सुधि पाठकगणों को मध्यप्रदेश स्थापना दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। मध्यप्रदेश को गढ़ने में हमारे प्रवासियों की भी अहम भूमिका रही है। उनकी इसी भूमिका के लिए ‘द इनसाइडर्स’ में “प्रवासी पक्षी और ख़ानाबदोशी” श्रृंखला शुरू की है। पिछले अंक के गतांक में हमने गुजरात से आने वाले प्रवासी पक्षियों (UPSC/MPPSC के अफसरों की खेप) के बारे में जाना। आज श्रृंखला के तीसरे अंक में हम उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर चलते हैं।

“रंगीला राजस्थान”… अद्भुत प्रदेश। राजपुत्रों/क्षत्रियों की वीरता व भक्ति के लिए प्रसिद्ध है। मेवाड़, मारवाड़, हाड़ौती, शेखावटी, ढूढ़ार और आधा ब्रज व आधा मेवात से बना यह प्रदेश बहुत अनोखा है। किले, महलों, मंदिरों, आर्किटेक्चर और मकराना मार्बल आदि से भरपूर इस प्रदेश ने देश को मारवाड़ी बनियों की उद्यमी कौम दी है। यहां एक कोस पर पाणी और पांच कोस पर वाणी बदल जाती है, और मजेदार बात यह है कि जिन अक्षरों का उपयोग सामान्य हिंदी में थोड़ा कम होता है, उन अक्षरों का उपयोग यहाँ की बोली और जगहों के नामों में बहुत होता है जैसे ढ, ड़, ण, झ और ख। अब मुद्दे पर आते हैं। यहाँ से व्यापारी और राजपूत जाति के रूप में प्रवासी पक्षी सालों से आते रहे हैं। किंतु MPPSC से न के बराबर, पर UPSC से अच्छी तादाद में प्रवासी आते हैं, और वे भी एक समाज विशेष से। दरअसल इस समाज की उत्पत्ति मत्स्य अवतार से है। इस समाज के अनेक राजा भी हुए हैं, फिर भी यह समाज आरक्षित वर्ग में है। एक-एक गाँव से दसियों उम्मीदवार UPSC निकाल लेते हैं, पर “1:2” के होम कैडर के अनुपात के कारण इन्हें मजबूरन मध्यप्रदेश की ओर खानाबदोशी के लिए कूच करना पड़ता है। मध्यप्रदेश में इस समाज की अच्छी-खासी संख्या है, पर वे यहाँ OBC में आते हैं। लिहाजा MPPSC में इन्हें आरक्षण का विशेष लाभ नहीं मिलता। हाँ, मध्यप्रदेश में पोस्टिंग मिलने पर इन्हें अपने समाज के राजनेताओं का आशीर्वाद जरूर मिलता रहता है। सामान्यत: अपने काम से काम रखते हैं। भ्रष्टाचार का स्तर भी सामान्य ही है। राजस्थान जिस मेहमानवाजी के लिए जाना जाता है, वह इनमें नहीं पाई जाती है। राजस्थान से आए यह प्रवासी पक्षी अपना घोंसला मकराना मार्बल से जयपुर में ही बनाते हैं और इस प्रदेश में दाना चुग कर सेवानिवृत्त होकर वहीं बस जाते हैं। बाकी राज्यों के प्रवासी पक्षियों की चर्चा अगले अंक में। और अब पावर कॉरिडोर में छाई रही इस हफ्ते की चुटीली खबरों को किस्सागाई वाले अंदाज़ में शुरू करते हैं — आज का “द इनसाइडर्स”…

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जूनियर आईएएस अफसरों में हुई भिड़ंत

यह किस्सा प्रदेश की व्यापारिक राजधानी का है। यहाँ अपर कलेक्टर स्तर पर चार अधिकारी पदस्थ हैं—दो IAS (एक RR यानी सीधी भर्ती; दूसरे हाल में राज्य प्रशासनिक सेवा या हम्माल सेवा से प्रमोशन लेकर बने प्रमोटी IAS), और दो अब भी हम्माल सेवा में ही। सूत्र बताते हैं—सीधी भर्ती वाले IAS और एक हम्माल सेवा वाले अफसर के बीच स्टाफ की पदस्थापना को लेकर तकरार हुई, कहा-सुनी तक बात पहुँची। एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि हम्माल सेवा वाले अफसर पर काम ज्यादा है। यह बात सीधी भर्ती वाले को बुरी लग गई। इधर प्रमोटी IAS का हम्माल सेवा वाले दूसरे अफसर से भी विवाद हुआ—यहाँ वजह ड्राइवर और स्टाफ की पोस्टिंग बताई जा रही है। कुल मिलाकर पोस्टिंग-ट्रांसफर की रस्साकशी ने माहौल गरमा दिया। हालांकि, कर्मचारियों का कहना है कि जिल्लेइलाही ने तत्परता दिखाते हुए दोनों मामलों पर बर्फ डाल दी और फिलहाल स्थिति नियंत्रण में बताई जा रही है। मगर अनुभवी कहते हैं—ये बर्फ़ ग्रीष्म काल में पिघल भी सकती है।

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आईएएस ने पैंसठिए को ही रख लिए नौकरी पर

आम तौर पर IAS अफसर अपना पैंसठिया (चापलूस/दलाल) दफ़्तर के बाहर से चुनते हैं। मगर सूत्रों का दावा है—एक IAS साहब ने अपने पैंसठिए को विभागीय कामों में ही लगा दिया। यही नहीं आउटसोर्सिंग के जरिए उसकी नियुक्ति कर अपने पास पोस्टिंग भी करवा ली। कर्मचारियों के मुताबिक, यह पैंसठिया छोटे उद्योगों से काम करवाने के नाम पर, उनसे जुड़े निगम में ठेकेदारों के साथ मिलकर वसूली का जाल चला रहा है—कहते हैं, “चाँदी” यहीं से निकल रही है। वहीं, विभाग के बड़े साहब को जैसा कि अफसरशाही बताती है, बड़े उद्योगों के काम से फ़ुर्सत नहीं—सो पैंसठिया निश्चिंत होकर अपने साहब के लिए ‘व्यवस्था’ चला रहा है।

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साहब को याद आई अपनी औकात

ऊर्जा की राजधानी कहे जाने वाले जिले में, सेम बैच के एक RR IAS कलेक्टर हैं और उसी बैच के प्रमोटी IAS को जिला पंचायत CEO की जिम्मेदारी मिली। कर्मचारियों के मुताबिक, प्रमोटी साहब को अपने ही बैच के RR के मातहत काम करना अपमान लगा—सो ज्वाइनिंग में आना-कानी हुई। बातचीत चली, समझाइश दी गई। अंततः उन्हें बताया गया कि उम्र में बड़े होने पर भी हम्माल सेवा की पृष्ठभूमि के कारण RR की बराबरी सेवा-कोड में संभव नहीं; इसी ढाँचे में काम करना होगा। इसलिए गीता में कहा गया है – स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः”  यानी अपने नियत धर्म में टिके रहना ही श्रेष्ठ है। लिहाजा, प्रमोटी साहब को आख़िरकार बात समझ आई। प्रमोटी साहब ने ‘जी सर’ कहकर—उसी जिले में हाज़िरी लगा दी। गलियारे कहते हैं—व्यवस्था का रैंक-कोड देव-दानव की जाति-व्यवस्था जितना कठोर है। निजी अभिमान वहीं टिकता है जहाँ रिपोर्टिंग-लाइन इजाज़त दे।

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कलेक्टर साहब और पीएस साहब हुए बोल्ड

राजधानी से सटे जिले में कलेक्टर साहब और जमीन के लेखा-जोखा वाले प्रमुख सचिव (PS) एक जमीन से जुड़े मामले में हाईकोर्ट पहुँचे। जानकारों का दावा है कि सरकार का पक्ष मज़बूत था, जीत तय थी। लेकिन, सूत्रों के अनुसार, किसी हस्तक्षेप के बाद, दोनों की व्यक्तिगत पेशी भी हुई और केस वापस ले लिया गया। इसके चलते अब सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी दायर नहीं हो सकेगी। नतीजा यह रहा कि सरकार को लगभग 300 एकड़ जमीन से हाथ धोना पड़ा। दफ़्तरों में फुसफुसाहट है—“जब तीर निशाने पर था, तो धनुष किसने झुका दिया?” कई लोग इसे बिना लड़े समर्पण की मिसाल बता रहे हैं; कुछ कहते हैं कि क़ानून की किताब मज़बूत थी, पर फ़ाइल किसी और मेज़ पर मज़बूत निकली।

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जैन साहब हैं ना

इंदौर में एक जैन साहब का जलवा है। यह बात कोई रहस्य नहीं है बल्कि हर बिल्डर और निचले स्तर के अफसरों की जुबान पर है। बड़े अफसरों से घनिष्ठ संबंध, कई के राज़दार, कई जगह पैंसठिए की हैसियत है जैन साहब की। आजकल एक सीनियर आईएएस से उनकी नज़दीकियाँ चर्चा की वजह है। कर्मचारियों के मुताबिक—इसी proximity का लाभ लेकर, रियल एस्टेट सेक्टर की कई परमिशनों में उनकी दख़ल बढ़ी है। सूत्र दावा करते हैं कि आईएएस अफसर बड़े साहब के भी खास हैं। राजधानी के पाश इलाक़े में जहाँ बड़े साहब ने बंगला खरीदा, बगल वाला बंगला आइएएस महोदय ने ले लिया। गलियारों के मुताबिक—यह आवासीय निकटता संकेत है कि फ़ैसलों की राह कहाँ से निकलती है और कहाँ मिलती है। समझने वालों के लिए इशारा काफ़ी। बाक़ी सब औपचारिकताएँ हैं। गीता के दूसरे अध्याय में कहा गया है – संगात् संजायते कामः यानी संग से इच्छाएँ जन्म लेती हैं। इसलिए साहब संग से सतर्क रहिए।

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