द इनसाइडर्स एक्सपोज: मोदी सरकार की जांच रिपोर्ट; मोहन सरकार ने जल जीवन मिशन में ग्रामीणों को पिलाया गंदा पानी, फर्जी दस्तावेज भी लगाए

पीएचई ईएनसी ने दोषियों पर कार्रवाई के बजाय उलटे केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप जड़े, कहा- टीम ने टेस्टिंग ठीक से नहीं की

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर घर जल पहुंचाने के ड्रीम प्रोजेक्ट जल जीवन मिशन के तहत मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुई हैं। आलम यह है कि अफसरों ने जिन गांवों में एक भी नल नहीं लगाया, वहां भी 100 प्रतिशत काम पूरा बताने के लिए फर्जी दस्तावेज लगा दिए। 50 प्रतिशत से ज्यादा गांवों में गंदा पानी सप्लाई किया। यह भी तब जबकि पानी साफ करने के लिए 225 करोड़ रुपए से सिल्वर आयोनाइजेशन उपकरण लगाए गए थे।

जल जीवन मिशन में हुई गड़बड़ियों के ऐसे ही कई सनसनीखेज खुलासे केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट में हुए हैं। केंद्र सरकार ने इसी साल जुलाई एक एजेंसी IPSOS Research Ltd से प्रदेश में सैंपल के रूप में रैंडमली 1271 गांवों में जांच की थी। इसकी अंतिम रिपोर्ट 19 नवंबर को प्रदेश सरकार को भेजी गई। जल जीवन मिशन का काम देखने वाले लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचई) ने पहले तो रिपोर्ट को दबा रखा। फिर आनन-फानन में मंगलवार को सभी जिलों के कार्यपालन यंत्रियों को रिपोर्ट ईमेल पर भेजी गई। हालांकि, केंद्र सरकार की रिपोर्ट के आधार पर गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया। बल्कि ‘द इनसाइडर्स‘ से बातचीत में पीएचई के प्रमुख अभियंता ने केंद्र सरकार की टीम पर सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि टीम ने पानी की गुणवत्ता की टेस्टिंग ठीक से नहीं की है।

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सबसे पहले पढ़ें, जांच में सामने आई गड़बड़ियां
1. गड़बड़ी की शुरूआत : जल जीवन मिशन के तहत प्रदेश के 55 हजार गांवों में करीब 90 हजार करोड़ रुपए से हर घर नल कनेक्शन कर पेयजल सप्लाई का काम साल 2019 से शुरू हुआ है। 2024 में यह काम पूरा होना था। इसके मद्देनजर केंद्र ने ग्राउंड स्तर पर काम की जांच करवाई। इसके लिए सैंपल के तौर पर सिर्फ 1271 गांवों में जांच टीम गई। यह वह गांव थे जो कि सर्टिफाइड थे। यानी कि इन गांवों में हर घर की जियो टेगिंग, मकान मालिक के आधार से नल कनेक्शन को लिंक करना, इंजीनियर के साथ ही सरपंच, सचिव और ग्राम सभा का का कार्यपूर्णता का सर्टिफिकेट लगाया गया था। इसके बाद इन गांवों को पंचायतों को हैंडओवर भी कर दिया। लेकिन इसके बाद हुई जांच में 9 जिलों के 13 गांव में नल कनेक्शन न मिलने से सभी तरह के सर्टिफिकेट फर्जी होने की आशंका है।
2. पानी दूषित मिला : टीम ने 778 गांवों के पानी की जांच की। इसमें से 390 सैंपल मानक स्तर के नहीं थे। प्रतिशत में देखें तो 50 से ज्यादा। यानी कि इनमें बैक्टिरियल कंटामिनेशन पाया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि बैक्टिरियल कंटामिनेशन तब होता है जबकि पाइप लाइन में लीकेज हो या फिर पानी को फिल्टर नहीं किया गया। कार्टेज नहीं बदले गए हैं तो पानी फिल्टर नहीं हो सकता है। हालांकि, ग्राउंड वाटर को फिल्टर न भी किया जाए तो यह शुद्ध होता है। इसके बाद भी पानी अशुद्ध है तो मतलब है कि पाइपलाइन बेहद घटिया क्वालिटी की है जिसकी वजह से इतनी जल्दी लीकेज हो गए हैं।
3. सफलता सिर्फ 16 प्रतिशत : 1271 गांवों में से सिर्फ 209 गांव में सभी मानकों में पूर्ण मिले हैं। यानी कि महज 16 प्रतिशत। जबकि 217 गांव या 18 प्रतिशत में नल कनेक्शन तो किए गए हैं लेकिन इनमें पानी सप्लाई नहीं किया जा रहा है। वहीं, 861 (60%) ग्रामों में “हर घर जल” नहीं मिल रहा है।

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सर्टिफाइड गांवों में काम की स्थिति
पानी सप्लाई (%में)           गांव की संख्या
0%                                  217
1 से 10%                         26
11 से 20%                       21
21 से 30%                       15
31 से 40%                       40
41 से 50%                       20
51 से 60%                        8
61 से 70%                       11
71 से 80%                       17
81 से 90%                       29
91 से 99%                       36

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इन जिलों में सबसे ज्यादा स्थिति खराब

जिस इंदौर जिले को पीएचई मॉडल बना रहा है, उसी के 15 गांवों के पानी सप्लाई नहीं मिली। अलीराजपुर, भिंड, रीवा, सतना, सिंगरौली में स्थिति गंभीर है। अलीराजपुर और सिंगरौली की प्रभारी मंत्री संपत्तिया उईके पीएचई मंत्री भी हैं। फिर भी यह जिले इस योजना की नाकामी में सबसे ऊपर हैं।

तो और ज्यादा गड़बड़ी मिलती

केंद्र सरकार की टीम ऐसे वक्त में जांच करने आई जब बारिश का सीजन था। यानी कि ग्राउंड वाटर का लेवल अच्छा था। यदि यह टीम गर्मियों में आती तो और भी ज्यादा स्थिति बदतर मिलती। यही नहीं, विभाग के अधिकारियों की देखरेख में ही जांच हुई। लिहाजा, काफी गड़बड़ियों को पहले ही दुरस्त कर लिया गया था।

सवाल जिनके जवाब नहीं मिल रहे

  • केंद्र सरकार ने यह जांच की। राज्य सरकार ने ऐसी ही जांच क्यों नहीं की?
  • केंद्र की जांच रिपोर्ट आने के बाद भी राज्य सरकार ने दोषी इंजीनियरों, ठेकेदारों और अधिकारियों को चिह्नित क्यों नहीं किया
  • इंजीनियरों और अफसरों को नोटिस आदि की कार्रवाई क्यों नहीं की?
  • बैक्टिरियल कंटामनेशन हो रहा है तो घटिया पाइपों की सप्लाई करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
  • सिल्वर आयानाइजेशन फिल्टर उपकरण के कार्टेज क्यों नहीं बदले गए?
  • पानी सप्लाई के लिए पीएचई ने करोड़ों रूपए खर्च कर हर गांव में इम्पलीमेंट सपोर्ट एजेंसी (आईएसए) नियुक्त की हैं। यदि सप्लाई नहीं हो रही है तो इन एजेंसियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की?
  • आईएसए को किन अधिकारियों ने नियुक्त किया, उनकी ट्रेनिंग करवाने वाले इंजीनियरों पर कार्रवाई क्यों नही की?
  • आईएसए को प्रोजेक्ट की 10 प्रतिशत राशि को गांव वालों से लेना था? इस राशि को क्यों वसूला नहीं गया?

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अब पढ़िए पीएचई के इंजीनियरिंग इन चीफ केके सोनगरिया की सफाई
बैक्टिरियल कंटामिनेशन के कई कारण हो सकते हैं। केंद्र सरकार की टीम ने टेस्टिंग ही ठीक से नहीं की। वो नॉन टेक्नीकल टीम थी। वैसे, पूरे इंडिया में कौनसे पक्के लोग हैं? कौनेसे क्वालिफाइड लोग आए थे? वे लैब के लोग नहीं थे। हम अपनी लैब से टेस्टिंग करेंगे। बल्कि पूरी रिपोर्ट को वेरिफाई करेंगे।

आप भी हमारी मुहिम में दीजिए साथ
प्रदेश में 90 हजार करोड़ रुपए जल जीवन मिशन पर खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन गड़बड़ियों के चलते यह अपने मिशन से भटक गया है। लिहाजा, द इनसाइडर्स लगातार खबरें कर बड़े स्तर गड़बड़ियां उजागर कर रहा है। ताकि जिन ग्रामीणों को पेयजल नहीं मिल पा रहा है और हमारे टैक्स के पैसे का दुरुपयोग हुआ, उसके साथ न्याय हो सके और दोषियों को दंड मिल सके। इसलिए, आप भी हमारे इनसाइडर बनकर और खबरों को ज्यादा से ज्यादा शेयर कर इस मुहिम में साथ दीजिए। अगले अंकों में इस मिशन से जुड़ी वित्तीय, प्रशासनिक और तकनीकी गड़बड़िया उजागर करेंगे।

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