द इनसाइडर्स : दलित महिला आईएएस ने पूछा- हमें कलेक्टर क्यों नहीं बनाया? चैटजीपीटी से नकल करने पर पड़ी डांट, मंत्री जी फिर चकमा खा गए
द इनसाइडर्स में इस बार प्रदेश में दूसरे प्रदेश से आकर बसे अफसरों के किस्सों पर नई प्रवासी पक्षी सीरिज का पहला भाग पढ़ें।

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल | प्रवासी पक्षी व खानाबदोशी सीरिज का पहला भाग… H1B वीजा के कड़े नियमों की घबराहट के बीच प्रवासियों के घर लौटने की सरसराहट है। वहीं, सर्दियों भी शुरू होने वाली हैं। यानी जल्दी ही हमारे भोपाल के बड़े तालाब में प्रवासी पक्षी उत्तर एशिया से लेकर यूरोप तक से आएंगे। कारण, भोजन की तलाश और सर्दी या गर्मी से बचाव। कभी-कभी अपनी नस्ल के विस्तार की चाहत भी। हजारों सालों से मानव ही नहीं समस्त जीवों का यह मूल स्वभाव है। जैसे, मारवाड़ में पानी की कमी हुई। मारवाड़ी बनिये जोधपुर, जैसलमेर व बीकानेर से निकले और पूरे भारत वर्ष में फैलकर व्यापार में नाम कमाया। गंगा प्रदेशों में बढ़ती आबादी से अवसर की कमी हुई तो श्रमिक गंगा का किनारा छोड़ निकले। परिश्रम से पंजाब से लेकर तमिलनाडु के खेतों में श्रम कर नाम कमाया। हमारे इंजीनियर व डॉक्टरों ने अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों में काम करके नाम कमाया। इसी प्रकार हमारे प्रदेश में भी अन्य प्रदेशों से UPSC, MPPSC और अन्य माध्यमों से आसपास के प्रदेशों से अफसरों का कारवां आता गया और मध्यप्रदेश बसता गया …(?) इन प्रवासी पक्षियों ने प्रदेश के सरकारी तंत्र की संस्कृति को कैसे बदला, अगले अंक में पढ़िए। और अब शुरू करते हैं आज का द इनसाइडर्स। पढ़िए रसूखदारों, नौकरशाहों और सियासत के चुटीले किस्से मजेदार अंदाज में…
सीएम से मुलाकात के बाद गदगद हुए प्रमोटी अफसर
आरआर वाले यानी सीधी भर्ती के आईएएस तो सरकार से आए-दिन मिल लेते थे, पर राज्य प्रशासनिक सेवा (हम्माल सेवा) या प्रमोट होकर आए अफसरों को यह मौका वैसा ही नसीब होता था जैसे आम आदमी को लॉटरी का पहला इनाम। इसी दर्द को महसूस करते हुए सीएम सचिवालय में पदस्थ एक प्रमोटी अफसर ने सरकार से बात कर एक नई परंपरा की नींव रखी — अब नई पदस्थापना के आदेश जारी होने पर प्रमोटी और राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की मुख्यमंत्री से मुलाकात करवाई जाएगी। हाल ही में कुछ अफसरों को यह “सीएम दर्शन” प्राप्त हुआ। वे लौटे तो चेहरे पर वही चमक थी जो ताजमहल देखकर शाहजहाँ के चेहरे पर रही होगी। सबने अपने जैसे ही सीएम सचिवालय में “आलोक फैला रहे” अफसर की भूरी-भूरी प्रशंसा की। हालांकि, इस मुलाकात में सीधी भर्ती वाले अफसर भी शामिल हो गए थे। जैसे हर शादी में “बिन बुलाए बाराती” मिल ही जाते हैं।
मंत्री के कार्यक्रम पर सरकार ने फेरा पानी
सरकार इन दिनों “बड़े उद्योगपतियों को रिझाने” के मिशन पर ऐसी मगन है मानो ‘देसी गर्ल’ सुनकर प्रियंका चोपड़ा खुद झूम उठी हो। गुवाहाटी की सैर, निवेश वार्ता और उद्योगी सम्मेलनों की चकाचौंध में छोटे और मझौले उद्योगपति वैसे ही भूल गए हैं जैसे भूल भुलैया में दिशा। इसी फेर में मंत्री जी के विभाग का एक अहम कार्यक्रम ठंडे बस्ते में चला गया। मंत्री जी ने अपने विभाग के मातहत आने वाले उद्योगों के लिए बड़ा आयोजन रखा था, लेकिन सरकार की गुवाहाटी व्यस्तता के चलते अब तक “सहमति पत्र” जारी नहीं हुआ। बताते हैं, मंत्री जी को यह “चोट” पहले भी लग चुकी है। शायद मन में यही चल रहा होगा — “हम भी हैं रंगमंच के किरदार, पर स्पॉटलाइट हमेशा औरों पर ही क्यों?”
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सेवा में है मेवा
स्टोर परचेज नियम में अफसरों को सालाना पाँच लाख तक की सामग्री या सेवा बिना टेंडर खरीदी की छूट देता है। इस नियम का इस्तेमाल ज्यादातर “सामग्री खरीदी” में तो खूब होता रहा, पर सेवाओं यानी आउटसोर्स कार्यों में अफसरों ने हमेशा कंधा झाड़ लिया। लेकिन एक अफसर ने “जामवंत” बनकर मातहतों को नियम पढ़ाया और “हनुमान” की तरह उनकी शक्तियों का बोध कराया।
नतीजा — अब विभाग में तीन कोटेशन बुलाकर आउटसोर्स सेवाएं लेने की नई परंपरा शुरू हो गई है। बेरोजगारों को भी सहारा मिला और अफसरों को भी “सेवा के मेवे” का स्वाद।
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मिस्टर चैट जीपीटी
एआई का जमाना है — और चैट जीपीटी का इस्तेमाल अब मंत्रालय में उतना ही आम है जितना दफ्तरों में “रात की चाय”। एक उत्साही सीनियर आईएएस अफसर ने तो पूरी कैबिनेट प्रेसी चैट जीपीटी से अंग्रेजी में लिखवा ली — जबकि प्रदेश हिंदीभाषी है! और तो और, साहब ने बिना पढ़े ही वही ड्राफ्ट आगे भेज दिया। ऊपर बैठे बड़े साहब ने पढ़ा तो बोले — “हम तो समझ गए जी, यह लिखावट तुम्हारी नहीं, ‘मशीन’ की है!” बस फिर क्या था, मिस्टर चैट जीपीटी वाले अफसर को रिमांड पर भेजने जैसा माहौल बन गया।
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सैर-सपाटा से अफसर की तौबा
दूसरे राज्यों में चुनाव पर्यवेक्षक बनकर जाना अफसरों के लिए सरकारी सैर-सपाटा माना जाता रहा है। लेकिन इस बार तीन अफसर, जो हमेशा ऐसे मौकों पर “पहले पंक्ति” में रहते थे, बिहार चुनाव में ड्यूटी से बचने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा बैठे। एक अफसर तो वाकई “कामयाब” भी हो गए। उनके साथ दो अन्य अफसरों को भी चुनाव ड्यूटी से छूट मिल गई। वैसे, इस मामले में प्रदेश सरकार की रुख पर केंद्रीय चुनाव आयोग की टिप्पणी चर्चा में है। आयोग ने प्रशासनिक कारणों से ड्यूटी रद्द करवाने की सिफारिश पर सरकार को आड़े हाथों लिया है। आयोग ने कहा कि कम से कम सरकार तो ऐसा न करें। हालांकि यह राहत भी दी कि “बीमारी या गंभीर कारण ड्यूटी रद्द करने के लिए मान्य होंगे। वहीं, सैर-सपाटा कल्चर पर भी आयोग ने अफसरों की झकर उतारी। आयोग की फटकार सुन अफसरों के चेहरे ऐसे उतरे जैसे टिकट मिलने के बाद भी फिल्म का शो रद्द हो जाए।
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रिटायर अफसर को दिया प्रोटोकॉल
राजधानी में एक जूनियर अफसर की प्रोटोकॉल ड्यूटी के दौरान मौत हो गई। मामला तब दिलचस्प हुआ जब खुलासा हुआ कि यह प्रोटोकॉल किसी रिटायर आईएएस अफसर के लिए था। यह अफसर बेहद ईमानदार हैं और संवैधानिक पद पर रह चुके हैं, लेकिन उन्हें प्रोटोकॉल पात्रता नहीं थी। अब सवाल यह है — “किसने नियमों की लकीर लांघी और किसके इशारे पर यह ड्यूटी लगी?”
राजधानी में यह चर्चा अब उस सन्नाटे की तरह गूँज रही है, जिसमें बहुत कुछ कहा जाता है पर कोई सुनता नहीं।
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मत चूके चौहान
पिछले हफ्ते ही हमने कहा था — चौथी और पाँचवीं मंजिल के बीच की रूसा-रूसी अब हवा हो चुकी है। नतीजा, सूचियाँ धड़ाधड़ जारी हो गईं। जिनका नाम नहीं आया, उनके लिए बस एक ही मंत्र — “मत चूके चौहान!” अभी भी मौका है, निशाना साधिए — शायद अगली सूची में आपका नाम दर्ज हो जाए। फिलहाल, अपर मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव स्तर पर फेरबदल की तैयारी है।
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अपने ही बैचमेट की लिखेंगे सीआर
प्रदेश की खनिज राजधानी में दो अफसरों की पोस्टिंग में सरकार से एक मजेदार गफलत हो गई। कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ दोनों एक ही बैच के हैं! मतलब — अब कलेक्टर साहब अपने ही बैचमेट की सीआर लिखेंगे। अगर दोनों “विशुद्ध खून” यानी सीधे भर्ती वाले आईएएस होते, तो अब तक बवाल मच गया होता। लेकिन यहाँ सीईओ साहब प्रमोटी आईएएस भी हैं, तो बात दब गई। राज्य प्रशासनिक सेवा (हमारी भाषा में राज्य हम्माल सेवा) से प्रमोट हुए हैं तो उन्होंने यह मान लिया है कि नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनेगा। इसलिए चुप रहने में भलाई है। वैसे, विशुद्ध खून वाले कलेक्टर साहब हैं तो आर्थिक राजधानी के पास वाले जिले से। लेकिन धार्मिक नगरी में हुई पढ़ाई-लिखाई पोस्टिंग में काम आ गई।
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सिलसिला चलता रहेगा
नवरात्र के मौके पर आई तबादला सूची में सरकार ने शक्ति की आराधना भी कर ली। पहली बार प्रदेश में 17 महिला आईएएस अफसर कलेक्टर के पद पर पदस्थ हो गई हैं। यूपीएससी के सिलेक्शन में जिस तरह से महिलाओं के चयन की संख्या बढ़ रही है, उससे आगे भी पोस्टिंग में महिलाओं को ज्यादा भागीदारी का यह सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है। और शायद एक दिन बराबरी की भागीदारी तक भी पहुँचेगा। अब सबकी नज़र नई जिला हुकुमों पर है कि वे ग्रामीण महिलाओं के उत्थान के लिए क्या नया कर दिखाती हैं। क्योंकि तभी आधी आबादी को वास्तविक न्याय मिलेगा।
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हमें क्यों नहीं बनाया कलेक्टर
नवरात्र में महिला अफसरों की लॉटरी खुल गई। लेकिन अजाक्स की महिला अफसर नाराज हैं।
उनका कहना है — उन्हें नज़रअंदाज क्यों किया गया? वे अब इस मुद्दे पर बड़े साहब से मुलाकात का समय मांग चुकी हैं। कहते हैं, “औरत जब ठान ले, तो क्रांति की नींव रख देती है।” देखना दिलचस्प होगा कि बड़े साहब का फैसला कैसा होता है — “शक्ति का सम्मान” या “फाइल की दीवार”?
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अब पछताए होत क्या
द इनसाइडर्स के पूर्व में प्रकाशित अंक में पहले ही यह बताया जा चुका था कि बड़े साहब के आवासीय भूखंड पर व्यावसायिक निर्माण को वैध न करने का अंजाम एक इंजीनियर को भारी पड़ेगा। वो मंत्री की कृपा से चीफ सिटी प्लानर बन बैठे थे और हवा में उड़ने के आदी हो गए थे। लेकिन जैसे ही “बड़े साहब” से टकराए, उनकी नींदें उड़ गईं। माफी मांगी, मेडिकल लीव भी ली, पर हाल यह था कि नींद में भी चिल्ला उठते थे — बचाओ, बचाओ! तंग आकर आखिर उन्होंने वीआरएस लेकर तनाव को ही अलविदा कह दिया। कहावत याद आ गई — “अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।”