द इनसाइडर्स : कलेक्टर की मां कर रही अस्पतालों की जांच, आईपीएस ने बंगले के लिए बिल्डर का पुराना मामला खोला, पीएस साहिबा का कारनामा
द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए सत्यमेव जयते की विशेष श्रृंखला में तमोगुणी पुलिस अफसरों के किस्से।

भोपाल| कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
फागुन की मादक बयार संग उमंगों का संचार हो,
गुलाल के रंग से सजे रिश्तों का आँगन साकार हो।
प्रेम, सौहार्द और आनंद के सुरभित रंग बरसें,
आपका जीवन स्नेह और खुशियों से सरोबार हो।
इन पंक्तियों के साथ आप सुधि पाठकों को होली के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ! और जिन रसूखदारों को हमारे किस्सों से समस्या है, उन्हें बुरा न मानो होली है…
अब “सत्यमेव जयते” की विशेष श्रृंखला पर वापसी करते हैं। अब तक हमने आईपीएस अफसरों की सतोगुणी श्रेणी को जाना, और आज की कड़ी में हम दूसरी श्रेणी, अर्थात रजोगुणी, के बारे में जानेंगे। रजोगुणी का अर्थ है राजाओं जैसी वृत्ति—अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा। इस श्रेणी में अधिकांश वे अधिकारी आते हैं, जिन्होंने स्वेच्छा से (By Choice) पुलिस सेवा को चुना था, या फिर वे अधिकारी, जिन्होंने शीघ्र ही पुलिस सेवा के अनुकूल मानसिक सामंजस्य स्थापित कर लिया।
धन की तरह सत्ता की भी तीन अवस्थाएँ होती हैं—दान (सत), भोग (रज) और नाश (तम)। रजोगुणी लोग भोग करते हैं। राजपुताना राइफल्स का ध्येय वाक्य है—“वीर भोग्या वसुंधरा”, अर्थात जो वीर है, वही पृथ्वी का भोग करता है। इस श्रेणी में ईमानदार और व्यावहारिक दोनों प्रकार के अधिकारी होते हैं। ये फिटनेस फ्रीक होते हैं, अच्छा भोजन करते हैं, पर्यटन के शौकीन होते हैं, शाम को उम्दा मादक पदार्थ का सेवन करते हैं, और कुछ अधिकारी “अच्छी संगत” में शयन भी करते हैं। शासकीय सेवक 24 घंटे ड्यूटी पर रहता है, और सेवा के दौरान मदिरा सेवन वर्जित होता है। किंतु मजेदार बात यह है कि PHQ (पुलिस मुख्यालय) की ऑफिसर्स मेस में, यानी सरकारी परिसर में, बार मौजूद है। यह एक विचित्र विरोधाभास है।
भोग की बात चली है, तो यह भी गौर करने योग्य है कि जबसे पुलिस महकमे में महिला अधिकारियों की संख्या बढ़ी है, इस श्रेणी के भोगी अफसरों का रुझान भी और अधिक बढ़ गया है। इस मामले में कुछ महिला आईपीएस अधिकारी भी पीछे नहीं हैं। कुछ खास खानसामे और कांस्टेबल तो हमेशा इनके साथ-साथ ही ट्रांसफर होते हैं। कुछ अधिकारी इतने अधिक फिटनेस फ्रीक होते हैं कि शरीर सौष्ठव को लेकर जुनूनी हो जाते हैं। ये लोग समय-समय पर आईपीएस मीट और अन्य आयोजनों में अपने अर्जित सौष्ठव का प्रदर्शन करते हैं, और कभी-कभी किसी फाइव-स्टार होटल के शयन कक्ष में उसका विसर्जन भी।
खैर, तुलसीदास जी ने कहा भी है—
“समरथ के नहीं दोष गुसाईं…”
अगली एवं समापन कड़ी में हम तमोगुणी अधिकारियों की बात करेंगे… तब तक आनंद लें “द इनसाइडर्स” के चुटीले किस्सों का!
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सिस्टम के लिए ऐसे अधिकारी जरूरी हैं
सिस्टम में अफसरों के कारनामों की चर्चा तो अक्सर होती ही रहती है। हमने अफसरों को उनकी प्रवृत्तियों के आधार पर पाँच श्रेणियों में बाँटा है, ठीक वैसे ही जैसे हाथ की पाँच उंगलियाँ होती हैं। इनमें से एक श्रेणी “अंगूठे” जैसी भी है। इस श्रेणी को विस्तार से पढ़ने के लिए क्लिक करें। आज हम जिस अफसर की चर्चा कर रहे हैं, वे राज्य प्रशासनिक सेवा से हैं। लेकिन उनके गुण पूरी तरह से पाँचवीं श्रेणी के अनुरूप हैं। उनकी संवेदनशीलता इतनी अधिक है कि जहाँ भी तैनात रहते हैं, वहाँ के स्टाफ के छोटे से छोटे कर्मचारी का जन्मदिन अपने कक्ष में केक कटवाकर मनाते हैं और साथ ही एक शर्ट उपहार में देते हैं। उनका यह व्यवहार कई बुजुर्ग आँखों को नम कर देता है। यदि किसी कर्मचारी के पास जूते-चप्पल नहीं हैं या कपड़े फटे हुए हैं, तो वे बिना किसी झिझक के उसकी सहायता करते हैं। अगर ऑफिस में किसी कर्मचारी को कोई परेशानी हो तो वे तुरंत अपनी गाड़ी भिजवा देते हैं और खुद ऑटो से सफर कर लेते हैं। उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि जहाँ-जहाँ वे पदस्थ रहे, वहाँ के गरीब से गरीब व्यक्ति आज भी फटेहाल हालात में उनसे मिलने आते हैं। साहब भी उन्हें पूरा सम्मान देते हुए उन्हें छोड़ने लिफ्ट तक जाते हैं। हमें उम्मीद है कि साहब को सभी की खूब दुआएँ मिलें और वे सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचें। फिलहाल साहब उद्योग विभाग से जुड़े निगम में पदस्थ हैं और अपने काम में पूरी तल्लीनता से लगे हुए हैं।
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एसपी साहब की ‘ख्याति’ अब खुलकर सामने आ गई
द इनसाइडर्स ने सबसे पहले विंध्य क्षेत्र के एक एसपी की ‘विशेष ख्याति’ का खुलासा किया था। इसके बाद उन्होंने ऊपरी तौर पर दूरी बनाए रखने का नाटक किया, लेकिन जल्द ही निर्लज्जता की सारी हदें पार कर दीं। इस पूरी स्थिति से एसपी साहब की तथाकथित “ख्याति” के कारण उनकी बाहरीवाली के पति को गहरा आघात लगा। उन्होंने इस सदमे में सरकारी सेवा से छुट्टी ले ली और एसपी साहब के इन संबंधों को लेकर बड़े साहब व बड़े कप्तान साहब को पत्र लिखकर पूरी जानकारी दे दी। अब उनका यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। खैर, होली के इस रंगारंग माहौल में एसपी साहब के लिए यह मामला “भंग” डालने वाला साबित हुआ है। साहब, बुरा न मानो, होली है!
साहब से जुड़े सबसे पहले हमने बताए थे ये किस्सें
1. एसपी साहब ‘ख्याति’ से दिखा रहे दिखावटी दूरी
2. एसपी साहब की सीएसपी मैडम से बढ़ती नजदीकियां
पीएस साहिबा और उनके ऊटपटांग विचार
दिल्ली में खेजरीवाल की खांसी तो मिट गई, लेकिन प्रदेश की एक प्रमुख सचिव मैडम आज भी उनकी विचारधारा से इतनी प्रभावित हैं कि उनके दिमाग में भी ऊटपटांग विचार कौंधने लगे हैं। हाल ही में एक बैठक में उन्होंने बिना किसी ठोस योजना के सुझाव दे डाला कि हर कस्बे में वूमन हॉस्टल बनाए जाएँ, और ये हॉस्टल भी सीएम राइज़ स्कूल जितने ही भव्य होने चाहिए। हालाँकि, उनके इस सुझाव की हवा निकालते हुए एक वरिष्ठ मंत्री ने पूछा कि आखिर छोटे शहरों में कितनी महिलाएँ इन हॉस्टलों में रहेंगी? क्या यह व्यवहारिक योजना है? इतना ही नहीं, मंत्री ने यह भी नसीहत दे डाली कि सरकारी धन को कमीशन पाने के लिए गैर-जरूरी कार्यों में खर्च करने से बचना चाहिए। मंत्री के तीखे तेवर देखते ही मैडम ने तुरंत अपनी बात बदलनी शुरू कर दी।
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अब आईपीएस अधिकारी भी विपश्यना की शरण में
द इनसाइडर्स में आपने पहले भी एक वरिष्ठ आईएएस के चिड़चिड़े स्वभाव और विपश्यना सेंटर जाने की उनकी आदत के बारे में पढ़ा होगा। अब हम आपको एक आईपीएस मैडम के बारे में बता रहे हैं, जिनका हाल कुछ ऐसा ही है। मैडम पिछले साल अगस्त से ही भोपाल में कमिश्नर ऑफ पुलिस (CP) बनने के लिए जी-जान से प्रयास कर रही थीं। वे कई बार मंत्रालय की पाँचवीं मंजिल की सीढ़ियाँ भी चढ़ीं, लेकिन बात नहीं बनी। अब, इस असफलता से निराश होकर अपनी मनःस्थिति को बदलने के लिए वे हैदराबाद के विपश्यना सेंटर में ध्यान साधना कर रही हैं।
हम तो बस यही कहेंगे कि अगर वे वास्तव में विपश्यना को आत्मसात कर लें, तो उन्हें पोस्टिंग के लिए किसी दरवाजे पर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। फिर भी, हम कामना करते हैं कि उनकी मनोकामना जल्द पूर्ण हो।
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बाइक से नर्मदा परिक्रमा के बाद अब आलीशान होटल की तैयारी!
एक आईएएस अधिकारी ने रिटायरमेंट के बाद बाइक से नर्मदा परिक्रमा की थी। इसके बाद राजनीति में किस्मत आज़माने के लिए चुनावी टिकट पाने की जी-तोड़ कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। जब यह राह बंद हो गई, तो उन्होंने सत्ताधारी दल की औपचारिक सदस्यता ले ली।
यह तो सब जानते हैं, लेकिन कहानी का दूसरा पहलू और भी दिलचस्प है! पद पर रहते हुए की गई लूट-खसोट से बटोरी गई अकूत संपत्ति का इस्तेमाल वे अब राजधानी में एक आलीशान होटल बनाने में कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने शहर के एक प्रतिष्ठित गार्डन संचालक के साथ पार्टनरशिप की है। हालाँकि, जानकारों का कहना है कि इस होटल का असली मकसद सिर्फ व्यवसाय नहीं, बल्कि उनकी “दमित इच्छाओं” को पूरा करना भी है। चर्चाएँ तो यहाँ तक हैं कि होटल के मालिकाना हक के साथ वे अपनी “विशेष जीवनशैली” को भी खुलकर जी सकेंगे।
कलेक्टर की माताजी खुद करने लगीं अस्पतालों का निरीक्षण!
प्रदेश की एक महिला कलेक्टर की माताजी पेशे से डॉक्टर हैं। जबसे उनकी बिटिया पर “गांजा पीने वाली कलेक्टर” की छवि चस्पा हुई है, तब से वे कलेक्टर बंगले में ही डेरा जमाए हुए हैं। मातृ स्नेह की यह भावना काबिले तारीफ है, लेकिन हद तो तब हो गई जब उन्होंने प्रशासनिक कार्यों में दखल देना शुरू कर दिया। अपनी बेटी को नशे की आदत से दूर रखने के लिए वे खुद सरकारी दौरों पर साथ जाने लगीं। मामला तब बिगड़ा जब वे अस्पतालों का निरीक्षण करने लगीं और डॉक्टरों को व्यवस्थाएँ सुधारने के आदेश देने लगीं! शुरुआत में तो डॉक्टरों ने उन्हें पूरा सम्मान दिया, लेकिन अब जब यह हस्तक्षेप बर्दाश्त से बाहर हो गया, तो विरोध के स्वर उठने लगे हैं।
हाल ही में एक डॉक्टर ने तो दो टूक कह दिया—
“मैडम, अपनी बेटी को संभालिए, यहाँ कलेक्टरी न चलाइए!” डॉक्टरों को अब बस इस बात का इंतज़ार है कि कलेक्टर साहिबा की नशे की लत छूटे, ताकि माताजी भी चैन की सांस लेकर दिल्ली रवाना हो सकें!
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मंत्री बनते ही परिवार में लौटी ‘पॉवर’ वाली मोहब्बत!
रिश्तों की बुनियाद प्रेम होती है, लेकिन एक मंत्री जी के परिवार के लिए “शक्ति” यानी पावर ही असली प्रेम है। जैसे ही वे पहली बार विधायक से मंत्री बने, उनके भाई और पिता ने वर्षों की दूरियाँ पलक झपकते ही मिटा दीं! अब पूरा परिवार एकजुट होकर वसूली अभियान में जुटा हुआ है। मंत्री जी के भाई की वजह से माइनिंग ठेकेदारों ने काम करने से इनकार कर दिया है। आबकारी और वेयरहाउस विभाग के अधिकारी भी इनसे खौफ खाते हैं, लेकिन संगठन के मजबूत संरक्षण के कारण कोई उफ़ तक नहीं कर पा रहा। सबसे दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश के मुखिया भी इस पूरे खेल को जानते हुए चुप्पी साधे हुए हैं। आखिर सत्ता में चुप रहना भी एक “नीति” होती है!
मंत्री जी ने ‘यादव जी’ का गेम ओवर कर दिया!
द इनसाइडर्स में आपने यादव जी के कारनामों के बारे में पहले भी पढ़ा था। सरकार के सबसे करीबी माने जाने वाले यादव जी अब लूप लाइन में डाल दिए गए हैं। मजेदार बात यह है कि जब तक यादव जी को अपनी फजीहत का एहसास हुआ, तब तक विभागीय मंत्री ने उनका पूरा खेल ही बिगाड़ दिया। यादव जी ने जाते-जाते 30 लाख रुपए लेकर एक जिला प्रबंधक को हटाने का आदेश कर दिया था। लेकिन मंत्री जी ने यह आदेश रद्द करवा दिया और रीवा के पुराने जिला प्रबंधक को बहाल कर दिया।
अब असली ड्रामा तो इसके बाद शुरू हुआ—
जिन लोगों ने यादव जी के जरिए अफसर को हटवाने के लिए पैसे खर्च किए थे, उन्होंने मंत्री जी को भी नजराना दे दिया! फिर क्या था, मंत्री जी ने तुरंत अपना पाला बदलकर ईमानदार अफसर को हटाने का नया आदेश निकलवा दिया। अब रीवा में जो नया जिला प्रबंधक आया है, वह पहले भी यहाँ से सस्पेंड हो चुका है!
आखिर सत्ता की बिसात पर ईमानदारी से ज्यादा बड़ी चीज़ “नकद नारायण” होती है!
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