द इनसाइडर्स: कलेक्टर बेटी के ब्याह के लिए सर्किट हाउस में पूजा कर रही मां, दुशासन का कुशासन राज, सुलेमानी ताकत से छिटकने लगे पैंसेठिए

द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए सत्यमेव जयते सीरिज की विशेष श्रृंखला।

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल| गतांक से आगे… सत्यमेव जयते, अर्थात् IPS, जो पूरी तरह से मध्यप्रदेश पुलिस पर आश्रित है, अर्थात् “राष्ट्रभक्ति और जनसेवा” पर… क्योंकि इस महकमे की रीढ़ की हड्डी आदिकाल से ही थानेदार होती है। जिस IPS की गैंग में जितने टीआई (TI) होते हैं, उसका उतना ही बड़ा सम्राज्य। प्रोटेक्शन मनी का सिस्टम है। नेता, पत्रकार और स्वयं साहब से रक्षा के एवज में TI भेंट-पुष्प चढ़ाते रहते हैं। कुछ TI एक ही देव की पूजा करते हैं, तो कई हर दिये में तेल देते रहते हैं। बहरहाल, सिस्टम ही है पुलिस का कि बांट के खाओगे तो बरकत होगी, वरना हरकत होगी। यहां पर एक अहम फर्क नजर आता है बड़े भाई IAS और छोटे भाई IPS की आमदनी में। बड़े भाई की आमदनी जहां विकास के कार्यों अर्थात ठेकेदारों और उद्योगपतियों की खुशी में सम्मिलित होती है, वहीं छोटे भाई की आमदनी बहुधा किसी न किसी की मजबूरी और आंसुओं से आती है।
जैसे कुछ डॉक्टर अपनी क्लिनिक में लिखते हैं, “हे ईश्वर, मुझे माफ करना, मेरी आजीविका दूसरों की बीमारी पर आश्रित है,” उसी तरह कुछ हर थाने में यह लिखा होना चाहिए: “बजरंगबली, क्षमा करना, हमारी आजीविका दूसरों की मजबूरियों पर आधारित है।” खैर, फील्ड की पोस्टिंग में पॉवर और पैसे की क्षुधा की पूर्ति के बाद, जब जिले से ऊपर आते हैं, तो IPS भी अपनी प्रकृति अनुसार सत, रज और तम तीन श्रेणियों में विभक्त होकर जीवन यापन करते हैं।
सर्वप्रथम सतोगुणी। इसमें ईमानदार और व्यवहारिक दोनों श्रेणी के अधिकारी होते हैं। ये लोग धीरे-धीरे साहित्य, कला और समाज सेवा में रुचि लेकर अपनी बौद्धिक खुजली की भूख शांत करते हैं। पर इनका कम प्रचार प्रसार हो पाता है क्योंकि क्राइम बीट के पत्रकारों के अलावा ये PR ज्यादा लोगों से नहीं रखते।
रजोगुणी और तमोगुणी अधिकारियों पर चर्चा अगले अंक में। तब तक प्रस्तुत है चटपटे अंदाज में सत्ता के गलियारों की कानाफूसी… “द इनसाइडर” में..पाला बदली या अहसान फरामोशी

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गफलत में पड़ गए नेता और सीनियर ब्यूरोक्रेट
हमने जनवरी में ही बताया था कि फरवरी का महीना प्रदेश के सबसे बड़े रसूखदारों की शादियों के सीजन का रहेगा। महीने के आखिरी दिन भी प्रदेश के दो नामचीन अरबपतियों के यहां शादियां थीं। इनमें से एक प्रदेश के सबसे अमीर नेता हैं तो दूसरे उद्योगपति। दोनों में फिलहाल दो समानताएं नजर आ रही हैं। नेताजी भी बड़े उद्योगपति हैं और उद्योगपति भी एक बड़े राजनेता के करीबी हैं। यानी दोनों ही राजनीति और कारोबार में बराबर का दखल रखते हैं। दूसरी समानता यह है कि अब दोनों के सितारे गर्दिश में हैं। नेताजी के कारोबारी पार्टनर की वजह से उनके सारे राज बेपर्दा हुए हैं, तो उद्योगपति के अघोषित पार्टनर रहे केंद्रीय मंत्री ने भी उनसे दूरी बना ली है। लेकिन दोनों के एक ही तारीख में शादी होने से अफसर और बड़े नेता गफलत में पड़ गए। दोनों के यहां शादियों के स्थान में करीब 500 किमी की दूरी थी। ऐसे में एक ही जगह जाया जा सकता था। लिहाजा, सबकी नजर इस बात पर थी कि कौन किसके यहां गया? किसकी किसके साथ नजदीकी रही? किसने पाला बदला? किसने अहसान फरामोशी की? तो इस बात से चिंतित था कि मुझे क्यों नहीं बुलाया गया। हर कोई अलग-अलग समीकरण खोजता रहा। लिहाजा, विवाह कार्यक्रम राजनीति की बिसात और शक्ति प्रदर्शन करने और करवाने का मंच बनकर रह गया।

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रिटायरमेंट से पहले ही छिटकने लगे पैंसठिए
हमने बार-बार द इनसाइडर्स में इस बात का जिक्र किया है कि जिंदगी भर तिजोरियां भरने में मशगूल रहे अफसरों का रिटायरमेंट के बाद क्या हश्र होता है? उनका पैंसठिया यानी 64 कलाओं के अलावा 65वीं चापलूसी वाली कला में माहिर व्यक्ति ही सबसे पहले अपने साहब को चूना लगाता है। लेकिन फिलहाल का किस्सा यह है कि सुलेमानी ताकत वाले एक अफसर की रिटायरमेंट बेला नजदीक आ गई है। तो उनके भोपाली पैंसठियों ने रिटायरमेंट का भी इंतजार नहीं किया और दूरी बनानी शुरू कर दी है। हम एक और बात अभी से लिख देते हैं। साहब जब रिटायर होंगे तो इंदौरी पैंसठिएं भी धीरे से खिसक लेंगे। फिर साहब गोल्फ खेलते हुए अपनी बची-खुची सुलेमानी ताकत और पूंजी को बचाने की जुगत में जिंदगी गुजारते नजर आएंगे।

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मंत्री के मना करने के बाद भी वसूली के नए-नए आइडिया दे रहा अफसर
अमूमन मंत्री धन अर्जित करने के लिए अफसर पर दबाव बनाते हैं। लेकिन आवाजाही से संबंधित विभाग में उलटी गंगा बह रही है। मंत्री जी शाहनामा का हवाला देकर वसूली करने से मना कर रहे हैं, लेकिन कमिश्नर साहब उनकी हिदायत मानने की बजाय कमाने के नए-नए तरीके ईजाद कर रहे हैं। वे रोजाना मंत्री जी को नए-नए प्रपोजल चिपका आते हैं। समझदार मंत्री ने भी उन्हें टरकाने के लिए जोरदार तरकीब निकाली है। वे बड़े साहब के जरिए प्रपोजलों को रद्दी की टोकरी में फिंकवा रहे हैं। गौरतलब है कि साहब मोटी रकम देकर वहां पहुंचे हैं और जब मूल की वापसी नहीं हो पा रही है तो पिंजरे में बंद पक्षी की तरह फड़फड़ा रहे हैं।

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अच्छी पोस्टिंग की चाहत में दिल्ली से लौटे, अब इंतजार
राजा बाबू माने जाने वाले एक सीनियर आईपीएस डेप्युटेशन की अवधि खत्म होने से पहले ही लौट आए हैं। जल्दी लौटने पर कई शुभचिंतक वजह खोजने में लगे हैं। उन सभी को हम बता दें कि साहब को पीएचक्यू में प्रशासन या एसएएफ जैसी अहम पोस्टिंग पाने की चाहत है। उन्हें इसका आश्वासन भी मिल चुका है। लेकिन आईपीएस की सूची में देरी होने से वे चिंतित भी हैं कि कहीं उनका पत्ता कट न जाए। ऐसा हुआ तो धोबी का कुत्ता वाली कहावत आप स्मरण जरूर कर लें।

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दुशासन का कुशासन
महाभारत के दुशासन को सुधि पाठक गण भली भांति जानते ही हैं। ऐसे ही चरित्र वाला एक अफसर आज के युग में कुशासन संस्थान पर काबिज हो गया है। इसी संस्थान में बड़े साहब भी रहते हैं, जिसकी जानकारी हमने पहले भी द इनसाइडर्स में दी है। इस अफसर का कुशासन का ताजा किस्सा यह है कि भोपाल में होने वाली जीआईएस समिट में पहले तो विशेषज्ञों को भेजा नहीं जा रहा था। और जब द इनसाइडर्स ने इस बात का खुलासा किया तो 23 तारीख को विशेषज्ञों के लिए चतुर्थ श्रेणी के पास बनवा दिए। इसमें भी तारीख 23 और 24 लिख दी गई, जबकि कार्यक्रम 25 तक था। वहीं, 24 फरवरी को भी विशेषज्ञ समिट में आयोजित हुए विभिन्न सत्र, मीट आदि में शामिल न हो सके, क्योंकि उन्हें चतुर्थ श्रेणी का समझ कर सत्र हाल से बेइज्जत कर बाहर निकाल दिया गया। यानी दुशासन ने सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे वाला काम कर दिया। द इनसाइडर्स की अगली कड़ी में इनसे शोषित हुई महिलाओं के किस्सों का खुलासा करेंगे।

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ईमानदारी से परेशान कंपनियां
प्रदेश में लंबे वक्त से डायल 100 का टेंडर अटका हुआ है। सरकार पर दबाव बना तो इसकी फाइल में लगे तमाम बिच्छू निकाल लिए गए। इसी बीच टेंडर कमेटी में दो ऐसे अफसर शामिल कर लिए गए, जिनकी छवि सेटिंगबाज की नहीं है। वहीं, टेंडर से जुड़ी एजेंसी के मुखिया भी बेहद ईमानदार हैं। इस वजह से ठेका लेने की चाहत रखने वाली कंपनियां समझ नहीं पा रही हैं कि सेटिंग कैसे की जाए?

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संवेदनशील साहब…
कहते हैं आदमी गरीब हो या अमीर… सामान्यत: जीवन में दो ही attitude में जीता है… एक complaining, दूसरा gratitude… इन दोनों से इतर व्यक्ति साक्षी भाव वाला संत होता है। जो व्यक्ति कंप्लेन में रहता है, वह जीवन भर हासिल को छोड़ गैर हासिल में लगा रहता है। और जो gratitude/शुक्रिया/धन्यवाद में रहता है, वह बरकत पाता है। अभी हाल ही में प्रमुख सचिव बने एक अधिकारी जब दौरे पर एक ऐसे जिले में पहुंचे, जहां वे 18 साल पहले कलेक्टर थे, तो आलीशान होटल छोड़ सर्किट हाउस में रुके। क्योंकि कलेक्टर के रूप में जॉइन करने पर एक लंबा समय उसी सर्किट हाउस में रुके थे। साहब बहुत भावुक और संवेदनशील हैं। क्यों न हों, गीत और किताबें लिखते हैं। तो साहब न सिर्फ रुके, बल्कि कर्मचारियों के साथ फोटो भी खिंचवाई और FB पर पोस्ट भी की। पर साहब, चूंकि दक्षिण के हैं, तो हिंदी में की गई पोस्ट में ख और क तथा त और थ में अंतर नहीं कर पाए। खैर, हम तो उनके भाव का सम्मान करते हैं कि साहब के दिल में भावुकता और gratitude बहुत है।

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प्रोफाइलिंग वाले साहब
अफसर हो या कर्मचारी, सबकी चाहत मलाईदार पोस्टिंग में रहती है। लेकिन एक आईएएस ऐसे भी हैं जो अफसरों की प्रोफाइलिंग कर बड़े साहब के कान भरने में लगे रहते हैं। इस वजह से कुछ अच्छे अफसरों को भी बड़े साहब की नाराजगी झेलनी पड़ जाती है। हालांकि, उनकी प्रोफाइलिंग कितनी सही है या गलत, वह बड़े साहब जानें। लेकिन इतना जरूर है कि प्रोफाइलिंग में दक्षिण का इटली-डोसा प्रेम जरूर नजर आ जाता है।

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कुछ नहीं बिगड़ने वाला
पुराने कप्तान साहब के पीएचक्यू में बेहद ताकतवर रहे एक एसपीएस अब सीन से पूरी तरह गायब हैं। इस अफसर को पहले से ही अहसास था कि आका के जाते ही सीनियर आईपीएस दौड़ा-दौड़ा कर बदला लेंगे। लिहाजा, अफसर लंबी छुट्टी पर चला गया। और अब अपने साथियों से कह रहा है कि उसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला है। सही भी है, 100 चूहे खाकर बिल्ली हज जाकर अपने पापों को खत्म करवा लेती है।

 

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