द इनसाइडर्स: हनुमान जयंती पर सच और साहस की संकल्पना – कलम नहीं झुकेगी!
द इनसाइडर में इस बार पढ़िए व्यवस्था की साजिश से जूझने के जुनून व जब्जे की कहानी

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
मनोजवम् मारुततुल्यवेगम् जितेन्द्रियम् बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजम् वानरयूथमुख्यम् श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये॥
भोपाल| हनुमान जयंती के पावन अवसर पर द इनसाइडर्स के सभी सुधी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
बल, बुद्धि, भक्ति और सेवा के प्रतीक पवनपुत्र हनुमान से प्रार्थना है कि वे आप सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करें।
✒️ जब कलम तोड़ने की कोशिश हुई…
पिछले दो सप्ताह से द इनसाइडर्स का प्रकाशन बाधित रहने के लिए हम अपने पाठकों से क्षमा याचना करते हैं।
यह क्यों बाधित रहा—आपमें से कई पाठक भलीभांति जानते हैं, परंतु नए पाठकों के लिए हम इस पूरे घटनाक्रम का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
द इनसाइडर्स में चुटीले अंदाज़ में की गई आलोचना शायद सत्ता की चाशनी में लिपटी चींटियों को कड़वी लग गई।
उनके कान सत्य की जगह वाहवाही के आदी हो चुके हैं।
इसलिए लोकतंत्र में सच की आवाज़ को दबाने का जो पुराना, आजमाया हुआ तरीका है, वही हमारे साथ भी अपनाया गया—फर्जी मुकदमा, और जेल भेजने का प्रयास।
🛡️ “सत्यमेव जयते” की कीमत
हमारी श्रृंखला “योग: कर्मशु कौशलम” व “सत्यमेव जयते” में हम लगातार यह दिखाते रहे हैं
कि कैसे कुछ अफसर और नेता सत्ता के नशे में डूब जाते हैं।
ऐसे ही कथित “व्यवस्था संरक्षित गुर्गों” द्वारा हमारे खिलाफ साजिश रची गई।
पर वे शायद भूल गए कि
पत्रकारिता कोई सरकारी नियुक्ति नहीं, एक जीवित आत्मा है।
एक पत्रकार हर दिन जोखिम उठाता है —
दुष्प्रचार, धमकी, पुलिस प्रताड़ना, और कभी मौत भी।
25 मार्च को एक फर्जी मुकदमे (जो माननीय न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए हम इस पर अभी तथ्य नहीं रख रहे) के माध्यम से हमारी कलम तोड़ने की कोशिश की गई।
इसी दिन प्रख्यात पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान दिवस भी था—
एक ऐसा संयोग, जो हमारी प्रतिबद्धता को और अधिक स्पष्ट कर गया।
उन जैसे असंख्य पत्रकारों के कारण ही पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाती है।
इसलिए हमें डराने, धमकाने और झूठे मुकदमे थोपने से कुछ हासिल नहीं होगा।
बल्कि यदि सत्ता जनता के प्रति जवाबदेह बने, तो उसकी उजास से हर कोना रोशन हो सकता है।
🤝 पत्रकारिता बनाम सत्ता — टकराव नहीं, सहयोग चाहिए
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” – भगवद्गीता
हमारा कर्म है — पत्रकारिता
आपका कर्म है — शासन-प्रशासन
हम सच उजागर करेंगे,
आप सुधार कीजिए।
हम जनता की आवाज़ बनेंगे,
आप जनता के दिलों के राजा बनिए।
अगर आप इसे टकराव समझेंगे,
तो अर्श से फर्श तक की दूरी बहुत छोटी है।
और यदि पत्रकारिता की मर्यादा टूटी, तो हम भी नहीं बचेंगे।
इसलिए टकराव नहीं, सहयोग का रास्ता चुनिए।
बाकी, भ्रष्टाचारियों, आततायियों और स्वेच्छाचारियों पर
शब्दों के बाण चलाकर
हम अपना संघर्ष जारी रखेंगे —
चाहे उसकी कीमत प्रताड़ना, जेल या हत्या ही क्यों न हो।
🙏 इस संघर्ष में जो साथ खड़े रहे…
हाँ, यह भी उतना ही सच है कि व्यवस्था में अच्छे, ईमानदार और कर्मठ नेता व अधिकारी आज भी मौजूद हैं।
इन्हीं पर व्यवस्था का भरोसा टिका है।
हमने हमेशा ऐसे नायकों की अनसुनी-अनदेखी कहानियाँ भी लिखी हैं।
संकट की इस घड़ी में ऐसे ही अनेक मित्रों ने बिना किसी स्वार्थ के सहयोग दिया —
चाहे वह सत्ता पक्ष से हो या विपक्ष से
विशेषकर पत्रकारिता जगत ।
चाहे पत्रकारिता के पुरोधा हों या नई कोंपलें,
सभी ने सोशल मीडिया से लेकर हर मंच पर हमारी आवाज़ बुलंद की।
चिलचिलाती गर्मी में बिना छांव सड़कों पर बैठे,
फोन किए, संपर्क साधे, और हर स्तर पर हमारी बात पहुँचाई।
तब तक नहीं उठे, जब तक अन्याय के खिलाफ कार्रवाई का ठोस भरोसा न मिला।
आप न होते, तो यह लड़ाई बेहद कठिन होती।
आपके निर्विशेष सहयोग के लिए
शब्दों की कमी दिल के भारीपन की वजह से हो रही है।
इसलिए हमारी मनःस्थिति को समझते हुए
दो शब्दों में दिल से धन्यवाद स्वीकार करें।
आपने जो भरोसा जताया है,
उस पर हम पूरी निष्ठा से खरे उतरेंगे।
हमारी कलम हमेशा न्याय और सच के साथ खड़ी रहेगी।
हम आपके भरोसे और सहयोग के ऋणी हैं।
हम वादा करते हैं —
हमारी कलम न्याय के लिए प्रतिबद्ध रहेगी।
🌱 अंत के बाद भी… अंकुरण जारी रहेगा
तमाम सावधानियों के बावजूद
कभी-कभी दिल, कलम पर हावी हो जाता है
और शब्दों की अतिरंजना हो सकती है।
पर हमारा उद्देश्य कभी नहीं भटका।
इसलिए गलती में माफी मांगने से परहेज नहीं —
इसलिए जैन धर्म का सिद्धांत “मिच्छामी दुक्कडम्” आत्मसात किया है।
हमें पूरा विश्वास है कि
हर अंत के बाद भी
सेवा और सत्य के लिए
पत्रकारिता की नई कोंपलें फिर अंकुरित होंगी।
पत्रकारिता मरती नहीं — वह पुनर्जन्म लेती है।
हम फिर उठेंगे, फिर लिखेंगे,
और फिर सच कहेंगे — चाहे इसकी कोई भी कीमत क्यों न हो।
📜 Where the mind is without fear
(By Rabindranath Tagore)
Where the mind is without fear and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been broken up into fragments
By narrow domestic walls;
Where words come out from the depth of truth;
Where tireless striving stretches its arms towards perfection;
Where the clear stream of reason has not lost its way
Into the dreary desert sand of dead habit;
Where the mind is led forward by thee
Into ever-widening thought and action—
Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.
🔔 अगले अंक से — “अरण्यः ते पृथ्वी स्योनमस्तु”
हमारी नई विशेष श्रृंखला के साथ “अरण्यः ते पृथ्वी स्योनमस्तु”
और सत्ता के गलियारों की चटपटी और सच बोलती कहानियाँ लेकर
द इनसाइडर्स फिर हाज़िर होगा।
तब तक, जुड़े रहिए हमारे डिजिटल अड्डे से —
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निवेदन – लिखते रहिए, पढ़ते रहिए, और सच के साथ खड़े रहिए।