द इनसाइडर्स: डील के बाद दक्षिण की यात्रा करते हैं कमिश्नर साहब, सीडी की साजिश में बड़का इंजीनियर शामिल, अतिउत्साही कलेक्टर
द इनसाइडर्स के इस अंक में मजेदार अंदाज में पढ़िए आईएएस अफसरों की नई खेप के अनसुने और रोचक किस्से

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल | गतांक से आगे..पिछले दशक में तमाम विरोध के बावजूद Upsc C-SAT ले आया। इसके आने से कस्बे /ग्रामों और हिंदी मीडियम की नैसर्गिक प्रतिभा के बनिस्पत अंग्रेजी मीडियम वाले अभिजात्य वर्गीय, कोचिंग सेन्टर की फैक्टरियों के प्रोडक्ट के अवसर बढ़ गए। 2010 के बाद के दशक में भारतीय समाज में भी भोगवाद का बोलबाला हो चला था। इसका प्रभाव योग:कर्मसु ..वाले यानी आईएएस के प्रोडक्ट पर भी पड़ा। अब जो पौध आ रही थी वो हाई एप्टीट्यूड के साथ हाई एटीट्यूड वाले आने लगे। एलीट क्लास सोच…इनको देखकर इम्पीरियल सिविल सर्विसेस ICS के अंग्रेजो की याद आने लगी। जो राज करने, धन कमाने, मौज मस्ती करने, पार्टी(नशा) करने को ही प्रशासन समझते थे। एक तरह से ये नए लाट साहब हैं। जो अपनी IIM/IIT के अन्य साथियों के समकक्ष ही मौज मस्ती करना चाहतें हैं। और इन्हीं मौज मस्ती की वजह से ‘द इनसाइडर्स’ आपके लिए लाता रंगीन और चुटीले किस्से। अफसरों की इस नई खेप की खासियतों के बारे में अगले अंक में चर्चा करेंगे। फिलहाल बोझिलता से लिए चलते हैं आनंद की ओर… और शुरू करते हैं इस बार का ‘द इनसाइडर्स’ अपने उसी चटखारे वाले अंदाज में…
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दया…..कुछ तो गड़बड़ है..
जिस तरह घोड़े जैसे मजबूत प्राणी की दोनों आंखों पर पट्टी लगा दी जाती है कि उसे सड़क से परे मैदान की हरी घास न दिखे वो बहके नहीं और सीधा सड़क पर चले …उसी प्रकार डॉक्टर साहब की आंखों पर दिल्ली हाई कमान ने दोनों प्रशासकीय बड़े पदों पर कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति बिठा कर पट्टी लगा दी जिससे उन्हें हरी घास के बनिस्पत प्रशासकीय दृढ़ता की सड़क ज्यादा दिखाई दे। शायद इसीलिए बहुप्रतीक्षित IAS-IPS की ट्रांसफर सूची फाइनल होने के बाद भी जारी नहीं हो पाई है। धुंआ खूब उठा पर आग लगी नहीं। कहा जा रहा है वल्लभ भवन की पांचवी मंजिल पर दोनों बड़े हुकुम साथ नहीं बैठ पाए हैं। पर हमें तो CID सीरियल का डायलॉग याद आ रहा है “दया…कुछ तो गड़बड़ है”
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‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’
मध्यप्रदेश के लोक निर्माण विभाग में ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ और शह मात का खेल चल रहा है। इसलिए किसी की सीडी बाहर आ रही है तो किसी की जांच खुल रही है। यही नहीं, एक इंजीनियर ने जांच की तो दूसरे ने उसे नकार दिया। लिहाजा बार-बार सवाल उठ रहा है कि विभाग की छवि को खराब करने के पीछे कौन है? हमारे एक इनसाइडर के मुताबिक यह लड़ाई विभाग के प्रमुख बने रहने या प्रमुख बनने की है। इसलिए सब एक दूसरे में गुत्थम गुत्था है। हम तो यही कहना चाहते हैं कि इसी चक्कर में परिवहन का पिटारा बाहर आ गया था। ऐसा न हो कि जांच एजेंसियों को अगला निशाना पीडब्ल्यूडी बन जाए।
मैं मोहन प्यारे कहलावां..
भारी बहुमत के बाद डॉक्टर साहब शाहनामा और संघनिष्ठा से राज पद प्राप्त तो कर गए पर एक बहुत बड़ा वर्ग है जो डॉक्टर साहब को राजा मन से नहीं मान रहा है, कुछ सांसद रहे कुछ केंद्रीय मंत्री …कुछ प्रदेश अध्यक्ष रहे तो कुछ राष्ट्रीय महासचिव…। सभी राजा बनने के दावेदार थे, जड़ों से बरसों से जुड़े थे…इतने की उनकी जड़ता हाईकमान को शायद पसंद न थी..शायद कॉपी राइट की हद तक जड़ता हो गई थी। तो साहब डॉक्टर साहब ने नया पैंतरा चला। विपक्षी आयातित जड़ विहीन नेताओं और पुराने पार्टी के मठाधीशों में सागर, इंदौर, नरसिंहपुर से लेकर चंबल तक जंग छिड़वा दी। अब पार्टी जिलाध्यक्ष के चुनाव में अपने ही जिलों में मठाधीश प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे हैं और राजा साहब भोपाल में चैन से बंसी बजा रहे हैं। ट्रांसफर सीजन न खुलने से भी मठाधीशों की आर्थिक व्यवस्था पहले ही चरमराई हुई है। और वैसे भी ज्यादातर मलाई वाले विभाग डॉक्टर साहब के ही पास हैं। तो एक कहावत थी चिड़िया नाल बाज लड़ावां …अब नई कहावत है..झंडे(पुराने भाजपाई) नाल पतंग (नए भाजपाई) लड़ावां ते मैं मोहन प्यारे कहलावां..
अतिउत्साही कलेक्टर साहब
बुंदेलखंड के एक जिलाहुकुम बेहद उत्साही हैं। उनका उत्साह का चरम इस बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री के जिस दौरे की फाइनल सूचना गृह विभाग को भी नहीं थी, उसे कलेक्टर साहब ने पहले ही प्रेस कांफ्रेंस कर सार्वजनिक कर दिया। उनकी इस हरकत पर गृह विभाग से कलेक्टर साहब को फटकार भी लगी। लेकिन तीर तो निकल चुका था…
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धुआंधार बैटिंग का मिला ईनाम
धुआंधार बैटिंग पर एक खिलाड़ी को बड़ा सम्मान मिला है। उन्हें खाने से संबंधित निगम में अपने मौजूदा काम एचआर और गुणवत्ता के साथ बड़े मिलर्स की सेवा का मौका भी दिया गया है। निगम के मुखिया यादव जी ने ऐसा करके एक तीरे से दो निशाने लगाए हैं। पहला मिलर्स से सेवा के एवज में वसूली जाने वाली रकम की पूर्ति न करने वाली मैडम को निपटा दिया और दूसरा अपग्रेडेशन के एवज में 8 करोड़ रूपए की रिश्वत को पूरा हिस्सा लेने के लिए अपने खास खिलाड़ी को बैटिंग पर भेज दिया। बता दें कि खिलाड़ी और यादव जी के कारनामों को पिछले अंकों में द इनसाइडर्स ने खुलासा किया था।
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झूठ बोलने में माहिर दो कलेक्टर
प्रदेश के दो कलेक्टर झूठ बोलने में इतने माहिर हैं कि सामने डॉक्टर साहब भी हो तो उन्हें डर नहीं लगता है। पहले वाले कलेक्टर महाराज के संसदीय क्षेत्र से हैं और हाल ही में प्रमोट हुए हैं। इन्होंने पहले तो एसडीएम को माइक थमा दिया और जब डॉक्टर साहब तमतमा गए तो सर्पदंश के मामले में झूठी जानकारी दे दी। दूसरे कलेक्टर चंबल क्षेत्र के हैं। उन्होंने झूठ ऐसा बोला कि प्रमुख सचिव पर डॉक्टर साहब की नजरें तिरछी हो गईं। प्रमुख सचिव भी मंझे खिलाड़ी थी तो उन्होंने कलेक्टर का भांडाफोड़ कर अपने आपको पाक साबित कर दिया।
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कमिश्नर का भाई कर रहा वसूली
नक्शे पास करने वाली एजेंसी में कमिश्नर साहब का भाई बिल्डरों संग जुगलबंदी में व्यस्त है। आर्थिक राजधानी में हाल ही में छह फाइलों पर भाई ने शानदार डील की है। यह फाइलें विभाग के एक्ट की धारा 16 की बताई जा रही हैं। यह भी बता दें कि हर डील के बाद कमिश्नर साहब दक्षिण का दौरा जरूर करते हैं। वैसे, कमिश्नर साहब बहुत सज्जन हैं लेकिन भाई के प्रति प्रेम कहीं भारी न पड़ जाए। आर्थिक राजधानी में हमारे डॉक्टर साहब और वजनदार मंत्री के बाद भी खेल करना खतरों के खिलाड़ी जैसा ही है। वैसे यह पुरानी बड़ी मैडम के करीबी थे। इसलिए नए निजाम के साथ पटरी बैठाने की कोशिश कर रहे हैं।
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दो ईमानदार अफसरों के सामने बेईमान भारी
बड़े कप्तान साहब की ईमानदारी पर खुद भी सवाल नहीं उठा सकते हैं। ऐसे ही एक और अफसर हैं दूरसंचार में। लेकिन इन दोनों की नाक के नीचे तीसरे आईपीएस साहब का लालच इतना ज्यादा है कि उन्होंने करीब 20 करोड़ रूपए के टेंडर में गड़बड़ियों का पुलिंदा खड़ा कर लिया है। छोटी कंपनी के फेवर के लिए उन्होंने दो बड़ी कंपनियों की तमाम आपत्तियों को दरकिनार करते हुए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है। उनके इस काम में सहयोग दूरसंचार शाखा के दो कर्मचारी दे रहे हैं।
मंत्री जी का शीशमहल
दिल्ली वाला शीशमहल विधानसभा चुनाव के केंद्र में है। लेकिन शीशमहल का मोह ऐसा है कि कोई भी उससे बच नहीं पाता है। ऐसे ही एक मंत्री जी जो कि मजदूरों से संबंधित विभाग में है, उनके शीशमहल की अजग-गजब की कहानी है। मंत्री जी जब केंद्र से राज्य में आए तो मुख्यमंत्री बनने की कामना के साथ। यह कामना पूरी नहीं हुई तो बंगले को ही सीएम निवास की तर्ज पर बनवा लिया। यह भी तब जबकि एक स्कीम में बंगला टूटना तय है। यह बात मंत्रीजी भी जानते थे। फिर भी जनता के टैक्स के करोड़ों रूपए बंगले की साज-सज्जा पर खर्च कर दिए।
नोट :- सूची आने वाली है। और इस सूची में होने वाले हैं बड़े धमाके। धमाकों का कंपन बता रहा है कि मंत्रालय की पांचवीं मंजिल भी प्रभावित है। बड़ा उलटफेर भी संभव है। धमाकों को डिकोड करेंगे द इनसाइडर्स के अगले अंक में। तब तक के लिए आपसे लेते हैं विदा और इस वादे के साथ कि अगले शनिवार दोपहर 12 बजे फिर मिलेंगे अपने इसी अड्डे www.khashkhabar.com पर। यहां मिलेगी आपको देश दुनिया की ताजा-तरीन खबरें और उनका लाइव अपडेट। साथ ही हमारे व्हाट्सएप चैनल से जुड़कर पाएं नई-नई और रोचक खबरें।