धर्मांतरण विरोधी कानूनों की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट, संभावित रोक पर जताई चिंता

नई दिल्ली

उच्चतम न्यायालय ने  कई राज्यों को उनके धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर जवाब देने को कहा। राज्यों को नोटिस जारी करते हुए, प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने स्पष्ट किया कि जवाब आने के बाद वह ऐसे कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के अनुरोध पर विचार करेगी।

इसके बाद, पीठ ने राज्यों को जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया और याचिकाकर्ताओं को उसके दो सप्ताह बाद प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति दी। मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद निर्धारित की गई।

इस बीच, पीठ ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सी यू सिंह को मौजूदा कानून में उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा किये गए 'अधिक कठोर' बदलावों को ध्यान में रखते हुए याचिका में संशोधन करने की अनुमति दे दी।

पीठ उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक सहित कई राज्यों द्वारा लागू किए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

न्यायालय ने विवाह या अन्य माध्यमों से होने वाले धर्मांतरण के विवादास्पद मुद्दे पर वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अन्य की दलीलें सुनी। सिंह ने इस मामले की तात्कालिकता पर जोर देते हुए चेतावनी दी कि 'जो कोई भी अंतरधार्मिक विवाह करेगा, उसे जमानत मिलना असंभव हो जाएगा।' उन्होंने रेखांकित किया कि कई राज्य पहले ही ऐसे कानून बना चुके हैं, और राजस्थान ने भी हाल में इस संबंध में कानून पारित किया है।

सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में लाए गए संशोधनों के तहत तीसरे पक्ष को शिकायत दर्ज कराने की अनुमति दी गई, जिससे अंतरधार्मिक विवाहों में बड़े पैमाने पर उत्पीड़न हुआ। उन्होंने विशेष अनुमति याचिकाओं में दायर संशोधन अर्जियों को अनुमति देने की मांग की।

वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने मध्यप्रदेश द्वारा पारित कानून पर अंतरिम रोक जारी रखने का अनुरोध किया। अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने पीठ को बताया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश और हरियाणा में इसी तरह के कानूनों पर रोक लगाने के लिए हस्तक्षेप अर्जियां दायर की हैं।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने कुछ राज्य सरकारों की ओर से दायर अंतरिम राहत याचिका का विरोध किया और कहा, 'तीन-चार साल बाद, अचानक वे स्थगन याचिका दायर करते हैं। हम अपना जवाब दाखिल करेंगे।'

पीठ ने वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक अलग याचिका को भी ‘डी-टैग’ करने का आदेश दिया, जिसमें छल-कपट से धर्मांतरण कराये जाने पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया गया है। प्रधान न्यायाधीश ने पूछा, 'कौन पता लगाएगा कि यह छल-कपट से धर्मांतरण है या नहीं?'

अदालत ने मामले में संचार को सुव्यवस्थित करने के लिए याचिकाकर्ताओं के लिए अधिवक्ता सृष्टि को नोडल वकील और प्रतिवादी राज्यों के लिए अधिवक्ता रुचिरा को नोडल वकील नियुक्त किया।

केंद्र ने पूर्व में, अंतरधार्मिक विवाहों के कारण धर्मांतरण को नियंत्रित करने वाले विवादास्पद राज्य कानूनों को चुनौती देने में कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के गैर सरकारी संगठन ‘सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए थे।

शीर्ष अदालत ने 6 जनवरी 2021 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के कुछ नए और विवादास्पद कानूनों की जांच करने पर सहमति व्यक्त की, जो अंतरधार्मिक विवाहों के कारण होने वाले धर्मांतरण को नियंत्रित करते हैं।

उत्तर प्रदेश का कानून न केवल अंतरधार्मिक विवाहों से संबंधित है, बल्कि सभी प्रकार के धर्मांतरण से संबंधित है और किसी भी व्यक्ति के लिए, जो दूसरे धर्म को अपनाना चाहता है, विस्तृत प्रक्रियाएं निर्धारित करता है।

उत्तराखंड के कानून के अनुसार, 'बलपूर्वक या प्रलोभन' के जरिए धर्मांतरण कराने के दोषी पाये जाने पर दो साल की जेल की सजा हो सकती है। यह प्रलोभन नकद, रोजगार या भौतिक लाभ के रूप में हो सकता है।

गैर सरकारी संगठन द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि ये कानून संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 का हनन करते हैं क्योंकि ये राज्य सरकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अपनी पसंद के धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता का दमन करने का अधिकार देते हैं।

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