सुपर फास्ट ब्रह्मोस मिसाइल: एयर डिफेंस सिस्टम S-400, THAAD, आयरन डोम का निकलेगा दम

नई दिल्ली

 ऑपरेशन सिंदूर ने ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल की प्रचंडता को पूरी दुनिया तक पहुंचा दिया. पाकिस्‍तान के अति सुरक्षित नूर खान एयरबेस को कुछ ही मिनटों में गहरा जख्‍म देना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. इस्‍लामाबाद को पता भी नहीं चला और उसका सबसे महत्‍वपूर्ण सैन्‍य एयरबेस ब्रह्मोस का शिकार बन गया. दिलचस्‍प बात यह है कि पाकिस्‍तान अपने संवेदनशील ठिकानों पर चीन निर्मित एयर डिफेंस सिस्‍टम डिप्‍लॉय किया हुआ है. इसके बावजूद पड़ोसी देश के सैन्‍य अमले को पता नहीं चल सका कि ब्रह्मोस किधर से आया और उसके सीने पर वार कर दिया. इससे इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि भारत चाहता तो नूर खान एयरबेस के साथ ही पाकिस्‍तान के अन्‍य महत्‍वपूर्ण ठिकानों को पलभर में तबाह कर देता, पर इंडियन आर्म्‍ड फोर्सेज ने बस ट्रेलर दिखाया और स्‍पष्‍ट रूप से बता दिया कि पाकिस्‍तान का कोई भी कोना सेफ नहीं है. ब्रह्मोस को अभी तक इंटरसेप्‍ट करना किसी भी रडार सिस्‍टम के लिए संभव नहीं हुआ है. विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि साल 2040 तक इसे इंटरसेप्‍ट कर पाना आसान नहीं होगा. इस बीच, ब्रह्मोस को लेकर एक और बड़ी खबर सामने आई है. इंडियन डिफेंस साइंटिस्‍ट अब इस घातक मिसाइल का हाइपरसोनिक वर्जन डेवलप करने में जुटा है. ऐसे में किसी भी एयर डिफेंस सिस्‍टम के लिए इसे पकड़ पाना और भी मुश्किल हो जाएगा. यह चीन और पाकिस्‍तान जैसे देशों की नींद उड़ा सकती है.

भारत की सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्राह्मोस को लेकर एक बार फिर बड़ी और अहम जानकारी सामने आई है. ब्राह्मोस एयरोस्पेस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भरोसा जताया है कि मौजूदा और भविष्य की चुनौतियों के बावजूद 2035 से 2040 तक भी ब्राह्मोस मिसाइल को इंटरसेप्ट करना दुश्मनों के लिए बेहद मुश्किल रहेगा. अधिकारी के मुताबिक, भले ही विरोधी देश अपने रडार, सेंसर और स्पेस-आधारित ट्रैकिंग सिस्टम को अपग्रेड कर लें, फिर भी एकल ब्राह्मोस लॉन्च को रोकने की संभावना बहुत कम बनी रहेगी. अब तक के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो ब्राह्मोस की इंटरसेप्शन दर सैद्धांतिक रूप से शून्य है. यानी आज तक किसी भी ऑपरेशनल परिस्थिति में ब्राह्मोस मिसाइल को रोका नहीं जा सका है. यह बात हाल ही में मई 2025 में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भी साबित हुई, जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए. इस ऑपरेशन में Su-30MKI लड़ाकू विमानों से दागी गईं ब्राह्मोस मिसाइलों ने अपने अधिकांश लक्ष्यों को सफलतापूर्वक नष्ट किया. इस अभियान ने युद्ध जैसे हालात में भी ब्राह्मोस की विश्वसनीयता और मारक क्षमता को एक बार फिर साबित कर दिया.
ब्रह्मोस मिसाइल का हाइपरसोनिक वर्जन

इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए ब्राह्मोस-2 यानी हाइपरसोनिक संस्करण पर भी काम तेजी से चल रहा है. यह नई मिसाइल मैक 7 (8600 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्‍यादा की गति) से भी ज्यादा की रफ्तार से उड़ान भरेगी, जो मौजूदा ब्राह्मोस से दोगुने से अधिक है. इसके पहले परीक्षण उड़ान 2028 के आसपास होने की संभावना है. ब्राह्मोस-2 की हाइपरसोनिक ग्लाइड क्षमता इसे लगभग अजेय बना देगी. विशेषज्ञों का मानना है कि यह मिसाइल अगले 20 से 30 वर्षों तक क्रूज़ मिसाइल वॉर की परिभाषा बदल सकती है. ब्राह्मोस की ताकत उसकी खास बनावट और तकनीक में छिपी है. यह मिसाइल मैक 2.8 से मैक 3 की रफ्तार से उड़ती है और उड़ान के दौरान अचानक दिशा बदलने में सक्षम है. यह बेहद कम ऊंचाई पर उड़ान भरती है, जिससे रडार को इसे समय रहते पकड़ना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा इसमें इनर्शियल नेविगेशन और सैटेलाइट गाइडेंस का मिश्रण है, जो ट्रैकिंग और इंटरसेप्शन को और जटिल बना देता है. भारत और रूस के संयुक्त प्रयास से बनी यह मिसाइल समय के साथ लगातार विकसित होती रही है. शुरुआत में इसकी रेंज 290 किलोमीटर थी, जिसे अब बढ़ाकर 450 से 900 किलोमीटर तक किया जा चुका है. यही कारण है कि ब्राह्मोस को जमीन, समुद्र, हवा और पनडुब्बी से लॉन्च किया जा सकता है.

ब्रह्मोस को रोक पाना चुनौती

वरिष्ठ अधिकारी ने वास्तविक युद्ध अनुभवों का हवाला देते हुए यूक्रेन युद्ध का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि रूस की P-800 ओनिक्स मिसाइल (जिसे ब्राह्मोस का तकनीकी पूर्वज माना जाता है) पश्चिमी देशों की मदद से लगाए गए आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम के सामने भी केवल लगभग 6 प्रतिशत तक ही इंटरसेप्ट की जा सकी. P-800 ओनिक्स भी सुपरसोनिक गति और समुद्र की सतह के बेहद करीब उड़ान भरने की क्षमता रखती है. इसके बावजूद पैट्रियट जैसे अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम भी इसे पूरी तरह रोकने में नाकाम रहे. इससे यह साफ होता है कि इतनी तेज रफ्तार और कम ऊंचाई पर उड़ने वाली मिसाइलों को रोकना आज भी एक बड़ी चुनौती है.
चीन-पाकिस्‍तान का निकलेगा दम

भविष्य की बात करें तो अधिकारी का मानना है कि 2040 तक ब्राह्मोस की इंटरसेप्शन दर बहुत सीमित ही रहेगी. अगर पाकिस्तान या चीन जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी गैलियम नाइट्राइड (GaN) आधारित AESA रडार, तेज गति वाले इंटरसेप्टर और बेहतर सेंसर सिस्टम भी विकसित कर लेते हैं, तब भी अधिकतम 15 से 20 प्रतिशत मामलों तक ही ब्राह्मोस को रोका जा सकेगा. उन्होंने यह भी कहा कि इन उन्नत तकनीकों को पूरी तरह लागू करना आसान नहीं है. इसके लिए भारी वित्तीय निवेश, तकनीकी विशेषज्ञता और अलग-अलग प्रणालियों का जटिल एकीकरण जरूरी होता है, जो निकट भविष्य में सभी के लिए संभव नहीं है.

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