सावन संकष्टी चतुर्थी: व्रत की पूजा विधि और इसके लाभ

आज सावन मास का संकष्टी चतुर्थी व्रत है। सावन मास में आने वाली संकष्टी चतुर्थी को गजानन चतुर्थी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को करता है उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत में भगवान गणेश और चंद्रमा के पूजन का विशेष महत्व है। साथ ही सावन में संकष्टी चतुर्थी होने से इसका महत्व कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। आइए जानते हैं सावन के संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि और महत्व।

सावन संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

1) इस दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करके सूर्य देव को जल में चावल डालकर जल अर्पित करें और व्रत का संकल्प लें।

2) इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा का पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद भगवान गणेश को फूल, चावल, दूर्वा,फल जनेऊ आदि अर्पित करें।

3) इसके बाद घी का दीपक और धूप जलाएं। सबसे पहले गणेशजी के मंत्र ओम गं गणपतये नम: मंत्र का जप करें। कम से कम 108 इस मंत्र का जप करें।

4) इसके बाद भगवान गणेश की चालीसा करें और स्तोत्र का पाठ करें अंत में आरती करें। इसके बाद भगवान गणेश की परिक्रमा करें। पूजा के बाद जरुरमंद लोगों को दान आदि करें।

5) इस दिन अन्न ग्रहण न करें आप चाहें तो फलाहार ले सकते हैं।

गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व

गणेश चतुर्थी का व्रत करने से व्यक्ति को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं परिवार की सुख समृद्धि के लिए करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही व्रत के प्रभाव से रुके हुए मांगलिक कार्य भी पूरे होते हैं। इसके अलावा बुध ग्रह कमजोर होने पर भी यह व्रत करना लाभकारी होता है। इस दिन गणेशजी की आराधना करने के साथ ही रात के समय चंद्र देव को जल अर्पित करके ही व्रत पूर्ण माना जाता है।

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