सऊदी अरब ने ‘वर्कआउट ड्रेस’ पहनने पर लड़की को दी 11 साल की जेल

रियाद/नई दिल्ली.

इस्लामिक देश सऊदी अरब ने एक फिटनेस ट्रेनर और महिला अधिकार कर्यकर्ता मनाहेल अल-ओताबी को 11 साल की सजा सुनाई है। रिपोर्ट्स की मानें तो ओताबी का गुनाह यह था कि उसने कथित तौर पर अनुचित कपड़े पहनकर वीडियो बनाए थे। एमनेस्टी इंटरनेशनल और सऊदी अरब में मानवाधिकारों पर काम करने वाली संस्था अल-कस्त के मुताबिक, मनाहेल अल-ओताबी को महिला अधिकारों के पक्ष में दिए बयान के लिए करीब डेढ़ साल पहले गिरफ्तार किया गया था। अब ओताबी की रिहाई की मांग काफी तेज हो गई है।

गौरतलब है कि पिछले दो वर्षों में सऊदी अरब ने दर्जनों लोगों को सोशल मीडिया पर कंटेंट पोस्ट करने से संबंधित मामलों में जेल की सजा सुनाई है। जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल और लंदन स्थित अल-कस्त संगठन का कहना है कि मनाहेल 2017 में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान द्वारा घोषित सामाजिक और आर्थिक सुधारों के शुरुआती समर्थकों में से थी। मोहम्मद बिन सलमान द्वारा सुधारों की घोषणा के दो साल बाद मनाहेल ने जर्मन आउटलेट डीडब्ल्यू को एक इंटरव्यू दिया था जिसमें उसने कहा कि उसे लगता है कि वह जो चाहे पहन सकती हैं और अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकती है।

क्या हैं मानाहेल पर आरोप
मनाहेल ने उसी इंटरव्यू में यह भी कहा कि उनका रवैया क्राउन प्रिंस के इस कथन पर आधारित था कि 'लोगों को अपनी इच्छानुसार कपड़े पहनने का अधिकार है, लेकिन यह (पोशाक) सम्मानजनक होना चाहिए।' अल कस्त के अनुसार, मुनाहेल पर शुरू में देश के साइबर कानूनों का उल्लंघन करने और महिलाओं से संबंधित कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था। अल-कस्त के अनुसार, मनाहेल पर सऊदी अरब के कानूनों खिलाफ सोशल मीडिया पर एक अभियान में भाग लेने, अश्लील कपड़ों में अपनी तस्वीरें और वीडियो पोस्ट करने, स्नैपचैट पर अबाया पहने बिना दुकानों में जाने की तस्वीरें साझा करने का भी आरोप लगाया गया था।

क्या है सऊदी अरब का कानून
गौरतलब है कि सऊदी अरब के पुरुषवादी कानूनों के तहत, एक महिला के पिता, भाई, पति या बेटे को उसकी शादी, तलाक और बच्चों के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लेने की शक्ति है। अल कास्त के अनुसार, मनाहेल की बहन फौजिया भी इसी तरह के आरोपों का सामना कर रही है लेकिन जब उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया तो वह देश छोड़कर चली गई। मनाहेल की गिरफ्तारी के तीन महीने बाद, उसका मामला एक आपराधिक अदालत में भेजा गया। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि आपराधिक अदालत का इस्तेमाल सरकार का विरोध करने वाले शांतिपूर्ण आलोचकों के खिलाफ किया जाता है। इस अदालत में न्याय की बुनियादी आवश्यकताओं को न केवल पूरा किया जाता है बल्कि उनका उल्लंघन करने पर कड़ी सजा भी दी जाती है।

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