महाराष्ट्र में आरएसएस चला रहा सजग रहा अभियान, 65 से भी ज़्यादा सहयोगी संगठनों के साथ

मुंबई
 राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने 65 से भी ज्यादा सहयोगी संगठनों के जरिए महाराष्ट्र में 'सजग रहो' नाम से एक अभियान चला रहा है। इस अभियान का मकसद सिर्फ विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मजबूत करना ही नहीं है, बल्कि इसे 'हिंदुओं को बांटने और उन्हें और भी छोटे-छोटे समूहों में विभाजित करने के बड़े प्रयास' के खिलाफ एक जवाबी कार्रवाई के तौर पर भी देखता है। आरएसएस का मानना है कि इस प्रयास का असर राजनीति से भी आगे तक होगा। यह अभियान ऐसे समय में चलाया जा रहा है जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट तेज हो गई है। इस दौरान बीजेपी और महायुति को हिंदू वोट बैंक को अपने पाले में लाने की कोशिशें भी तेज़ होती दिखाई दे रही हैं।

आरएसएस का 'सजग रहो' अभियान लोकसभा चुनावों और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हाल ही में हुए हमलों के बाद चलाए जा रहे तीन राष्ट्रीय अभियान का सबसे नया हिस्सा है। इस तीन सूत्रीय अभियान के पहले दो सूत्र हैं योगी आदित्यनाथ की टिप्पणी 'बांटेंगे तो काटेंगे' और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी 'एक है तो सेफ हैं'।

पीएम ने धुले में दिया था ये बयान
प्रधानमंत्री मोदी ने 'एक है तो सेफ है' टिप्पणी धुले में की थी, जहां बीजेपी-आरएसएस का कहना है कि मालेगांव में मुस्लिम वोटों के एकजुट होने के कारण लोकसभा चुनावों में बीजेपी उम्मीदवार को मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। इसी कड़ी में योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र के वाशिम में कहा था 'एक है तो नेक हैं'। यहां 'नेक' का मतलब है कि अगर हिंदुओं को बांटा नहीं गया तो वे नेक बने रहेंगे। उन्हें सिर्फ़ आत्मरक्षा के हिंसा का सहारा लेने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।

"किसी के खिलाफ नहीं है ये अभियान'
हालांकि संघ के सूत्रों ने कहा कि 'सजग रहो' और 'एक है तो सेफ हैं' किसी के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि इनका मकसद हिंदुओं के बीच जाति विभाजन को खत्म करना है। बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि आरएसएस के 'स्वयंसेवकों' और 65 से ज़्यादा गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए बैठकें आयोजित की जा रही हैं। संघ के सूत्रों के मुताबिक, हालांकि इस अभियान का तात्कालिक उद्देश्य महाराष्ट्र चुनाव हैं, लेकिन यह एक बड़ी घटना के जवाब में वैचारिक और बौद्धिक प्रतिक्रिया के उभार को दर्शाता है। यह घटना यह है कि जहां एक तरफ हिंदू जाति के आधार पर बंटे हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ़ मुस्लिम अपने मतभेदों को भुलाकर एकजुट होकर वोट बैंक के रूप में उभर रहे हैं और उनका मकसद बीजेपी को सत्ता से बाहर देखना है।

इस अभियान में ये शामिल
इस अभियान में शामिल समूहों में चाणक्य प्रतिष्ठान, मातंग साहित्य परिषद और रणरागिनी सेवाभावी संस्था शामिल हैं। महाराष्ट्र में संघ की सभी चारों 'प्रांत' या क्षेत्रीय इकाइयां- कोंकण (मुंबई और गोवा सहित), देवगिरि (मराठवाड़ा), पश्चिम महाराष्ट्र (जिसमें नासिक और उत्तरी महाराष्ट्र के कुछ हिस्से शामिल हैं) और विदर्भ (जहां RSS का मुख्यालय है) शाखा स्तर पर बैठकें आयोजित करके इस अभियान में शामिल हैं। इस अभियान के मुख्य आकर्षणों में से एक है धुले लोकसभा और मुंबई उत्तर पूर्व लोकसभा सीट के नतीजों का उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल करना। यह उस चीज़ की ओर इशारा करता है जिसे संघ 'मालेगांव मॉडल' कहता है और जिसके बारे में उसका कहना है कि इससे 'बंटे हुए' हिंदू समुदाय को नुकसान पहुंचा है।

आधिकारित तौर पर इस अभियान की जिम्मेदारी नहीं ले रहा आरएसएस
आरएसएस आधिकारिक तौर पर संगठन के तौर पर इस अभियान की ज़िम्मेदारी नहीं ले रहा है, बल्कि इसे केवल 'स्वयंसेवकों की एक पहल' बता रहा है। आरएसएस के एक पदाधिकारी ने कहा कि स्वयंसेवकों ने हिंदू समाज को यह बताने की अगुवाई की है कि उन्हें जाति के आधार पर विभाजित नहीं होना चाहिए, खास तौर पर ऐसे समय में जब राज्य में मराठा-ओबीसी विभाजन गहरा गया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button