राजस्थान-अजमेर की दरगाह के शिव मंदिर होने के दावे को दीवान ने बताया सस्ती लोकप्रियता

अजमेर.

राजस्थान के अजमेर मे स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका को निचली अदालत ने बुधवार को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है। कोर्ट ने सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया है और सुनवाई के लिए 20 दिसंबर की तारीख तय की है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने सिविल न्यायाधीश के समक्ष वाद पेश किया है, जिसमें उन्होंने अजमेर दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा किया है।

इस मामले पर अब दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती का बयान सामने आया है। सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि “हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दरगाह से संबंधित वाद को अजमेर न्यायालय में प्रस्तुत किया था। कोर्ट ने वाद दर्ज कर नोटिस जारी किया है। यह एक न्यायिक प्रक्रिया है, इस मामले में ज्यादा कहना उचित नहीं है। न्याय प्रक्रिया पर हम लोग नजर लगाए हुए हैं। हम अपने वकीलों से राय ले रहे हैं। हम वकीलों से आगे की प्रक्रिया की राय ले रहे हैं। जैसे ही हमें एक्सपर्ट ओपिनियन मिलेगा, उसके अनुसार हम आगे की कानूनी कार्रवाई करेंगे। हमें मालूम हुआ कि है वादी ने दरगाह कमेटी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अल्पसंख्यक मंत्रालय को पक्षकार बनाया है। गरीब नवाज के किसी वंशज को पक्षकार नहीं बनाया गया है। इसलिए, हम वकीलों से राय लेकर आगे की जो प्रक्रिया पर विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि देश नई परंपरा डाली जा रही है। आए दिन जो देखने में आ रहा है कि हर दरगाह या मस्जिद पर हर कोई लोकप्रियता पाने के लिए दावा कर रहा है कि यहां मंदिर था, उसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई या दरगाह बनाई गई। उन्होंने कहा, “यह परंपरा देश के हित में सही नहीं है। हमारे समाज के हित में सही नहीं है। यह सिर्फ सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए है। ये लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूं।” उन्होंने कहा कि यह हिंदुस्तान की वह दरगाह है, जिससे पूरी दुनिया के हर मजहब का आदमी जुड़ा हुआ है। हर मजहब के आदमी की आस्था दरगाह से जुड़ी हुई है। इस दरगाह की तारीख कोई सौ दो सौ साल पुरानी नहीं, लगभग 850 साल पुरानी है। साल 1195 में गरीब नवाज हिंदुस्तान में तशरीफ लाए थे। साल 1236 में आपका विसाल हुआ था। उसी समय से यह दरगाह कायम है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में इस तारीख के दौरान जो हिंदू राजा गुजरे हैं, यह दरगाह सबकी अकीदत का मरकज रही है। सबने अपने अपने तरीके से गरीब नवाज की बारगाह में नजराना पेश किया है। दरगाह में चांदी का कटहरे है जो जयपुर महाराज का चढ़ाया हुआ है। उस दौर में जितने राजा रजवाड़े हुए हैं, चाहे वह किसी भी मजहब के हों, इस बारगाह से किसी न किसी तरीके से जुड़ रहे हैं। तारीख में कोई ऐसा इतिहासकार नहीं है, जिसने इस बारगाह के बारे में लिखा होगा कि यहां पर मंदिर था या कुछ तोड़ करके बनाया गया। कहीं तारीख नहीं है। सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि वादी ने हरविलास शारदा की किताब को आधार बनाया है जो कोई इतिहासकार नहीं थे। वह अजमेर के सम्मानित शख्सियत थे। उनकी किताब अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव 1910 में आई और 1920 में पुनः प्रकाशित हुई। उस किताब को आधार बनाकर के इस तरह के मनगढ़ंत दावे पेश करना या बात करना बिल्कुल गलत है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button