छापामार युद्ध में पारंगत राजा भभूत सिंह नर्मदांचल के शिवाजी कहलाते थे : मुख्यमंत्री डॉ.यादव

जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास को सामने लाने के लिए की जा रही विशेष पहल : मुख्यमंत्री डॉ.यादव

राजा भभूत सिंह की स्मृति में 3 जून को पचमढ़ी में होगी मंत्रिपरिषद की बैठक
छापामार युद्ध में पारंगत राजा भभूत सिंह नर्मदांचल के शिवाजी कहलाते थे
राजा भभूत सिंह ने सतपुड़ा में किया था 1857 की क्रांति का सूत्रपात
वीरता के किस्से आज भी लोक मानस की चेतना में जीवंत हैं
स्वतंत्रता आंदोलन के साथ वन्य क्षेत्र के संरक्षण में जनजातीय समाज की सराहनीय भूमिका
क्षेत्रीय विकास पर लगी पाबंदियां हटने से नया स्वरूप लेगी पचमढ़ी
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने मीडिया को जारी संदेश में दी जानकारी

भोपाल

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'विरासत भी और विकास भी' के संकल्प की पूर्ति के लिए मध्य प्रदेश सरकार संकल्पित है। पहले लोकमाता देवी अहिल्याबाई के 300वें जयंती वर्ष में इंदौर और अब क्रांतिवीर राजा भभूत सिंह की स्मृति में मंगलवार 3 जून को पचमढ़ी में मंत्रिपरिषद की बैठक आयोजित की जा रही है। इन ऐतिहासिक स्थानों पर कैबिनेट करने के पीछे विरासत के संरक्षण के साथ विकास की भावना है। युवा देशभक्त राजा भभूत सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्या टोपे के मुख्य सहयोगी के रूप में सतपुड़ा की गोद में 1857 की सशस्त्र क्रांति का सूत्रपात किया था। वे 1860 तक अंग्रेजों के छक्के छुड़ाते रहे। राज्य सरकार पचमढ़ी में कैबिनेट कर महान स्वाधीनता सेनानी राजा भभूत सिंह के राष्ट्रहित में बलिदान का पुण्य स्मरण और उन्हें श्रद्धांजलि देने जा रही है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सोमवार को मीडिया को जारी संदेश में यह विचार व्यक्त किए।

राजा भभूत सिंह ने समाज के हर वर्ग को आजादी के आंदोलन से जोड़ा

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि राजा भभूत सिंह छापामार युद्ध नीति में पारंगत होने के कारण नर्मदांचल के शिवाजी कहलाते थे। उन्होंने आदिवासी समाज के साथ-साथ क्षेत्र के सभी वर्ग के लोगों को आंदोलन से जोड़ा था। वे सतपुड़ा के पहाड़ी मार्ग के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थे, जबकि अंग्रेज इस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों से परिचित नहीं थे। भभूत सिंह को पकड़ने के लिए ही ब्रिटिश सरकार को मद्रास इन्फेंटरी को बुलाना पड़ा था। दो साल के कड़े संघर्ष के बाद ब्रिटिश सेना राजा भभूत सिंह को गिरफ्तार कर पाई। राजा भभूत सिंह की वीरता के किस्से आज भी लोक मानस की चेतना में जीवंत हैं। पचमढ़ी में आज का बोरी क्षेत्र भभूत सिंह जी की जागीर में ही आता था। चौरागढ़ महादेव की पहाड़ियों में राजा भभूत सिंह के दादा ठाकुर मोहन सिंह ने 1819-20 में अंग्रेजों के खिलाफ नागपुर के पराक्रमी पेशवा अप्पा साहेब भोंसले का हर तरह से सहयोग किया था।

जल, जंगल और जमीन के लिए जनजातीय योद्धाओं ने दी कुर्बानी

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य के गठन के बाद वर्ष 1959 तक पचमढ़ी ग्रीष्मकालीन राजधानी रही और यहीं पर विधानसभा का सत्र हुआ करता था। अब हमारी सरकार ने इसी स्थान पर कैबिनेट बैठक करने का निर्णय लिया है। पचमढ़ी, प्राकृतिक सौंदर्य के साथ -साथ स्वतंत्रता के लिए जनजातीय समाज द्वारा दिए गए बलिदान की दृष्टि से भी एक प्रमुख स्थान है। अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष में जनजातीय समुदाय ने अपनी जान की बाजी लगाकर न केवल 1857, बल्कि इसके पूर्ववर्ती काल में भी जल, जंगल और जमीन के लिए कुर्बानी दी। इस गौरवशाली इतिहास को सबके सामने लाने के लिए राज्य सरकार जनजातीय भाई-बहनों के साथ समाज के सभी वर्गों का ध्यान रख रही है।

कैबिनेट बैठक के बाद पचमढ़ी में होगा सांसद-विधायकों का प्रशिक्षण वर्ग

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सरकार प्रदेश के सभी क्षेत्रों में गरीब, किसान (अन्नदाता), युवा और नारी सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रही है। प्रदेश की वन संपदा और घने जंगलों में टाइगर (बाघ) सहित वन्य जीवों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वन्य क्षेत्र के संरक्षण में जनजातीय समाज का सराहनीय योगदान रहा है।पचमढ़ी रोजगार और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है। मंत्रिपरिषद की बैठक में पचमढ़ी क्षेत्र के विकास के लिए मंथन किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि विकास के मामले में पहले यहां कई तरह की पाबंदियां थीं, जिन्हें पिछली कैबिनेट में हटाने का कार्य किया गया है। पचमढ़ी एक बार पुन: अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ गौरव प्राप्त करेगी। पचमढ़ी में कैबिनेट बैठक के बाद दूसरे चरण में विधायकों और सांसदों का प्रशिक्षण वर्ग आयोजित होगा।

 

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