महाशिवरात्रि पर जानिए राजस्थान के उन मंदिरों के बारे में जिनके है विशेष महत्व

जयपुर

महाशिवरात्रि के अवसर देश और प्रदेश के सभी शिवालयों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। महाशिवरात्रि को ना तो शिव जी का जन्म हुआ और ना ही विवाह। इसके बावजूद भी इस दिन को भगवान शिव के लिए अहम क्यों माना जाता है। पौराणिक तथ्यों के मुताबिक भगवान शिव का जन्म किसी प्राणी ने नहीं हुआ बल्कि वे स्वयंभू हैं। वे भगवान विष्णु के तेज से प्रकट हुए थे और अनादीकाल से हैं। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। ऐसे में इन दिन को यानी महाशिवरात्रि को भगवान शिव के प्रकटोत्सव के रूप में मनाया जाता है। जयपुर को देवों की नगरी कहा जाता है क्योंकि यहां मंदिरों की संख्या बहुत ज्यादा है। सवाई जयसिंह ने जब जयपुर की स्थापना की थी। तब उन्होंने शहर के हर चौराहे, तिराहे, गलियों के मुहाने और प्रमुख मार्गों में मंदिरों की स्थापना की थी। शिवरात्रि पर जानते हैं जयपुर के उन पांच शिव मंदिरों के बारे में जहां श्रद्धालुओं का जुड़ाव ज्यादा है।

झारखंड महादेव मंदिर
जयपुर के पास वैशाली नगर इलाके में प्रेमपुरा गांव हुआ करता था जो अब शहरी सीमा में है। सदियों पहले यहां झाड़ बहुत ज्यादा हुआ करता था। झाड़ियों के अलग अलग झुंड होने की वजह से यहां के मंदिर का नाम झारखंड महादेव मंदिर रखा गया। यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है और दक्षिण भारत की शैली में बना हुआ है। यह जयपुर के सबसे प्रमुख मंदिरों में गिना जाता है। मंदिर में प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा होती है लेकिन महाशिवरात्रि के मौके पर लाखों भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। हर बार की तरह इस बार भी सुबह चार बजे से ही मंदिर के बाहर श्रद्धालुों की लंबी कतार लगी है। करीब दो किलोमीटर लंबी भक्तों की कतार लगी है। महिला और पुरुषों के लिए अलग अलग कतार में दर्शन की व्यवस्था की गई है।

ताड़केश्वर महादेव मंदिर
जयपुर शहर के चौड़ा रास्ता में स्थित ताड़केश्वर महादेव मंदिर हैं जहां का महत्व अपने आप में अलग है। यह मंदिर जयपुर की स्थापना से पहले का है। ऐसा माना जाता है कि यहां के मंदिर में शिव लिंग की स्थापना नहीं की गई बल्कि शिवलिंग स्वयं प्रकट हुए थे। पहले इस मंदिर को ताड़कनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता था और बाद में ताड़केश्वर मंदिर के रूप में जाना जाने लगा। 1727 में जब जयपुर की स्थापना हुई तब वास्तुविद विद्याधर जी ने इस मंदिर की रूपरेखा तैयार की और इसे बड़े मंदिर के रूप में बनाया गया था। हर बार की तरह इस बार भी महाशिवरात्रि के दिन लाखों की संख्या में भक्त भोले बाबा के दर्शन के लिए आ रहे हैं।

केदारनाथ शिव मंदिर
जयपुर के पास खोह नागोरियान इलाके में स्थित पहाड़ी पर केदारनाथ शिव मंदिर है। यह मंदिर एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। 1102 ईस्वी में चांदा मीणा नाम के एक शासक ने इस मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर की प्रतिमा को उत्तराखंड के केदारनाथ से लाया गया था। इसी वजह से इस मंदिर का नाम केदारनाथ शिव मंदिर रखा गया। यहां शिव लिंग के साथ माता पार्वती और नंदी की प्रतिमा भी स्थापित हैं। चारों ओर पहाड़ियों के नजारे हैं और एक पहाड़ी की चोटी पर यह मंदिर है। ऐसे में इस शिव मंदिर की भव्यता अपने आप में अनूठी है। सावन के महीने में यहां भक्तों की लंबी कतार लगती है। चूंकि यह मंदिर काफी ऊंचाई पर है। ऐसे में यहां आने वाले भक्तों की संख्या सीमित है। दर्शन आराम से हो रहे हैं।

चमत्कारेश्वर महादेव मंदिर
यह मंदिर जयपुर शहर के बनीपार्क में स्थित है। मंदिर की स्थापना करीब 60 साल पहले की गई थी। कहा जाता है कि 60 साल पहले यहां एक गाय के थन से दूध की धारा अचानक बहने लगी थी। लोगों ने इसे भगवान शिव का चमत्कार माना जिसके बाद से इस स्थान पर चमत्कारेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की गई। इस मंदिर में अर्द्धनारीश्वर मूर्ति की पूजा की जाती है। मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंग के स्वरूप को भी विराजमान किया गया है। हर बार की तरह इस महाशिवरात्रि को भी यहां भक्तों का बड़ा मेला लगा है।

रोजगारेश्वर महादेव मंदिर
जयपुर शहर के परकोटा क्षेत्र में एक शिव मंदिर है जिसका नाम रोजगारेश्वर महादेव मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में जाकर सच्चे मन से पूजा अर्चना करने और ध्यान लगाने से बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता है। इसी वजह से इस मंदिर का नाम रोजगारेश्वर मंदिर रखा गया। कुछ वर्षों पहले जब जयपुर शहर के परकोटा इलाके में मेट्रो का स्टेशन बनाया जाना था। तब यह मंदिर बीच में आ रहा था। तत्कालीन सरकार ने इस मंदिर को ध्वस्त किया और मेट्रो स्टेशन के निर्माण के बाद उसी जगह पर उसी रूप में मंदिर को फिर से स्थापित किया गया। इस मंदिर में युवाओं की भीड़ सबसे ज्यादा होती है।

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