ग्वालियर में सड़क चौड़ीकरण के लिए तोड़े गए मकान का अब लाखों रुपये का मुआवजा पीड़ित को देना पड़ेगा: HC
ग्वालियर
मध्य प्रदेश के ग्वालियर नगर निगम में सड़क चौड़ीकरण के नाम पर घर का हिस्सा तोड़ने के खिलाफ कानूनी जंग लड़ रहे एक व्यक्ति को 18 साल बाद बड़ी जीत मिली है. हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ ने नगर निगम को निर्देश दिया है कि वह पीड़ित को 33 लाख 27 हजार रुपये की धनराशि मुआवजे के रूप में दें. यह राशि नगर निगम को चार सप्ताह के अंदर ब्याज के साथ देनी होगी.
ये है मामला
यह मामला साल 2006 का है. जीवाजी नगर में सड़क चौड़ीकरण का काम शुरू हुआ तो वहां रहने वाले अरोरा परिवार को नोटिस जारी किया. इसमें कहा गया कि सड़क चौड़ीकरण कार्य के लिए उनके मकान को तोड़ना है. उन्हें 15 दिन के अंदर जगह खाली करने का निर्देश भी दिया गया. इसमें यह भी कहा गया है कि घर का वह हिस्सा बिना अनुमति के निर्माण किया गया है. मामला जनहित से जुड़ा है फिर भी उन्हें कुछ मुआवजा दे दिया जाएगा.
तमाम दबावों के बावजूद अरोरा परिवार ने नगर निगम की नहीं मानी और उसके द्वारा जारी किए गए नोटिस के खिलाफ वे कोर्ट में चले गए. उन्होंने हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में याचिका दायर की. कोर्ट से निवेदन किया कि उन्हें बलदेव कुमार के प्रकरण को आधार बनाकर भुगतान किया जाए.
इस याचिका पर हाईकोर्ट ने ग्वालियर के जिला न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वे रिकॉर्ड के अवलोकन के बाद इस मामले में मुआवजा की राशि का निर्धारण करें. जिला कॉर्ड ने रिकॉर्ड परीक्षण के बाद पीड़ित को 33 लाख 27 हजार की राशि मुआवजे के रूप में देने की रिपोर्ट पेश की.
लेकिन नगर निगम ग्वालियर ने इस पर आपत्ति जताई.नगर निगम ने कोर्ट में कहा कि जमीन अधिग्रहण अधिनियम के अंतर्गत मुआवजा देने का प्रावधान ही नहीं है. नगर निगम अधिनियम में ऐसे प्रकरणों में मुआवजा देने का पृथक से प्रावधान है.
इसके बाद अरोरा परिवार ने अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखी. हालांकि फैसला होने में 18 साल का लंबा वक्त लगा.
सुनाया ऐतिहासिक फैसला
अब हाईकोर्ट ने इस याचिका पर फैसला सुना दिया. इसमें कोर्ट ने सड़क चौड़ीकरण के नाम पर अरोरा परिवार के घर का 1345 वर्गफीट हिस्सा तोड़ने के एवज में 33 लाख 27 हजार की रकम पीड़ित परिवार को चार सप्ताह के भीतर मय ब्याज के देने के आदेश दिए. कोर्ट ने नगर निगम के जनहित के लिए जमीन लेने और नगर निगम एक्ट के तहत मुआवजा तय होने के तर्क को भी खारिज करते हुए यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया.