मोदी और बीजेपी दोनों के लिए बदल गए 400 पार के मायने

नईदिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर 400 पार का नारा दिया है, इस बार तो अपनी सरकार के प्रदर्शन के आधार पर वे जनता से ही 400 पार मांग रहे हैं। बड़ी बात ये है कि पहले चरण की वोटिंग से पहले तक तो ये नारा हर रैली, हर प्रचार में सुनाई दे रहा था। लेकिन पहले चरण की वोटिंग के बाद ये सबकुछ बदल गया, एक तरफ 400 पार का नारा नदारद दिखाई दिया, वहीं अगर कहीं इसका इस्तेमाल हुआ भी तो वो अलग मकसद और उदेश्य के साथ होता दिखा।

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पहले चरण की वोटिंग से पहले तक तो जब-जब 400 पार का जिक्र किया गया, उसका मतलब ये था कि जनता जरूरत से ज्यादा संतुष्ट है, वो हर कीमत पर फिर केंद्र में मोदी सरकार चाहती है। लेकिन अब जब मोदी कभी कबार भी 400 पार का नारा दे रहे हैं तो उसका मतलब आरक्षण बचाना हो गया है, उसका मतलब दलितों के अधिकार बचाना है।

पीएम मोदी ने 24 अप्रैल को एमपी के सागर में कहा कि विपक्ष वाले पूछते हैं कि 400 पार क्यों चाहिए। मैं बता दूं कि जो आप लोग दलितों, आदिवासियों, ओबीसी के अधिकारों को चोरी करने का खेल कर रहे हो, उसे लूटने का खेल कर रहे हो, आपके ये खेल बंद करने के लिए, हमेशा के लिए बंद करने के लिए मुझे 400 पार चाहिए। इसके ऊपर जब से पीएम मोदी ने कांग्रेस के घोषणा पत्र को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया है, वहां भी 400 पार का जिक्र सिर्फ उस मेनिफेस्टो से बचाने के लिए किया जा रहा है।

तारीखों में बात करें तो चुनाव के घोषणा के तीन दिन बाद एक रैली में पीएम मोदी ने 17 बार 400 पार का जिक्र किया था, ये बताने के लिए काफी है कि उस समय बीजेपी किस रणनीति पर आगे बढ़ रही थी, वो अपनी जीत को लेकर किस स्तर तक आश्वस्त थी। इसी तरह पहले चरण के चुनाव से कुछ दिन पहले भी पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में 400 पार का जिक्र किया और विकसित भारत का सपना दिखाया। तब वे जनता की तरफ से कह रहे थे कि वो चाहते हैं कि हमे 400 से ज्यादा सीटें मिलें।

लेकिन अब स्थिति थोड़ी इसलिए बदल गई है क्योंकि विपक्ष भी ये नेरेटिव सेट करने में कुछ हद तक कामयाब हुआ है कि 400 पार बीजेपी को संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के लिए चाहिए, ऐसे में उस धारणा को बदलने के लिए भी नारे को बीजेपी ने थोड़ा सा अलग रंग देने का काम किया है।

 

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