साहित्य विशेष: “मैं विशेष हूँ”
खास खबर की इस विशेष श्रंखला में पढ़े शुचिता चौहान का आलेख
दुनिया की सबसे छोटी जाति कौन सी है? जैसे ही यह प्रश्न आपने पढ़ा तो आपके मन में क्या विचार आया होगा, पर आगे जो कुछ भी विचार मैं लिखूंगी वह मेरे और मेरे आस पास के परिवेश से व कुछ विचारकों को सुनने के पश्चात ही मेरे अंदर प्रकट हुए हैं, बचपन से लेकर आज तक, चाहे गांव हों या शहर, अमीर खानदान हों या गरीब परिवार, ब्राह्मण हों या शूद्र , शिक्षित हों या अशिक्षित जिस जिसको मैंने नज़दीक से देखा वहाँ देखा कि दुनिया कि सबसे छोटी जाति हर घर में पाई जाती है और वह हैं हम स्त्रियां, जी हाँ, स्त्री ही मात्र एक एसी जति है जिस पर हर घर में किसी न किसी तरह से अत्याचार हुआ है, उसकी आवाज दबाई गई, या उसे बताया गया कि तुम कुछ नहीं हो तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है, जो कुछ हैं वह हम हैं पुरुष, चाहे बलशाली हों, बुद्धि मान हों, निर्णायक हों जो हैं वो पुरुष हैं।
और देखिए न यह बात हमें उस पुरुष से अधिक हमारी ही जाति की किसी महिला ने समझाया है, माता -पिता के घर में, पिता ही सर्वोपरि हैं, और उनके बाद चाहे छोटे ही हों पर भाई ही सर्वोपरि हैं, वैसे ही ब्याह के पश्चात ससुर जी, पति, देवर वह सब सर्वोपरि हैं। वह अत्यंत बुद्धिमान होते हैं, बलशाली होते हैं, अच्छे और कुशल, विचारक तथा निर्णायक होते हैं।
यह सारी बातें एक स्त्री ने दूसरी स्त्री को कई -कई वर्षों पूर्व ऐसे सिखाईं कि हर स्त्री चाहे वह कुछ वर्ष पूर्व ही पैदा क्यों न हुई हो उसके अवचेतन मन में सुरक्षित हो गई हैं।
अब आश्चर्य यह होता है कि आज के वर्तमान परिवेश में भी यही प्रणाली कायम है, वर्तमान परिवेश में जबकि स्त्रियां अत्यधिक शिक्षित हैं, बड़ी बड़ी-बड़ी संस्थानों में कार्यरत हैं तब भी स्त्री की जाति को कोई विशेष दर्जा मिला नहीं। अच्छे से अच्छे समृद्ध परिवारों में भी गौर से देखा जाए तब भी वहाँ आप देखेंगे कि स्त्री को किसी न किसी रूप में निम्न ही आंका जाता है।
अचंभा तो तब ओर ज्यादा होता है जब बड़े बड़े पर्दों पर बड़े ही खूबसूरत चलचित्र बनाने वाले भी स्त्री को ऐसे ही दर्शाते हैं, अगर देखा जाए तो बीस प्रतिशत सिनेमा या धारवाहिक ऐसे बने होंगे जिसमें स्त्री का सही मायने में सर्वोच्च दर्जा दिखाया गया हो । परंतु ,इन चलचित्र निर्माणको ने एक एसी स्त्री को अच्छा बताया जो नित्य किलों से गहनों में लदी हुई हो , एक हाथ का घूंघट लिया हो या सिर पर न सरकने वाला पल्ला रखा हो , पूरे परिवार की दौड़ दौड़ के सेवा करने के बाद चार गालियां या ताने खाते हुए अश्रु बहाए ऐसी स्त्री सबसे अच्छी होती है, और जहाँ इस व्यवहार के विपरीत कोई किरदार करती स्त्री है तो वह खलनायिका ही समझ आती है।
बिल्कुल आज के शिक्षित समाज की पटल पर भी लोग कुछ ऐसी ही बेचारी, दबी हुई सिर झुका कर सब दुर्व्यवहार सहन करने वाली और परिवार के मुद्दों के मध्य हस्तक्षेप न करने वाली स्त्री को सबसे सुघड़ समझते हैं, और इसके विपरीत आचरण करने वाली स्त्री खलनायिका समझी जाती हैं।
कोई भी ऐसी महिला सबको अखरेगी ही जो अपने विचार सबके सामने व्यक्त करती है, या अपने विचारों से कार्य भी करती है, अपने व परिवार के निर्णय स्वयं लेती है, और घर में हो रहे उसके प्रति दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाती है । क्योंकि वर्षों, वर्षों पूर्व से चली आ रही व्यवस्था डगमगा रही होती है, अब एक स्त्री ही तो थी जिस पर पुरुषों का या समाज का या परिवार का जोर चल रहा था । स्त्री कि निम्न जाति को, विशेष हो जाने से सबसे बड़ा खामियाजा पुरुष प्रधान समाज को ही भुगतना पड़ता।
शायद तभी तमाम पुरुष कवि लेखकों ने स्त्री को रिझाने के लिए अपने सौंदर्य रस से भरी कलम से स्त्री के सौंदर्य को वर्णित करना शुरू किया, स्त्री की ममता, उसके प्रेम का चित्रण शुरू किया पर अपनी लेखनी से कम ही लेख वीरों ने स्त्री की शक्ति या बुद्धिमता का वर्णन किया हो। विचारणीय है? या नहीं?
मेरी संसार की सभी माताओं से अपील है कि वह अपनी पुत्री को यह बताएं कि तुम में सिर्फ सौंदर्य, ममता, वात्सलय, प्रेम, सहनशीलता जैसे गुण ही नहीं हैं बल्कि तुम शक्तिशाली,बुद्धिमान, अच्छी विचारक और अच्छी निर्णायक भी हो।
तुम निम्न नहीं खास हो, बहुत विशेष हो, तुम्हारे बिना संसार कि कल्पना कर पाना भी संभव नहीं। वैसे ही अपने पुत्रों को बताया जाए कि एक स्त्री सिर्फ सुंदर, कोमल, आकर्षक, प्रेम पूर्ण प्रेयसी ही नहीं बल्कि एक अच्छी साथी, रक्षक, विचारक, व तुम्हारे सबसे कठिन समय में अच्छी निर्णायक भी हो सकती है।
नोट : आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के हैं। खास खबर का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।