द इनसाइडर्स ब्रेकिंग:- 1000 करोड़ की घूस के मामले में मंत्री को क्लीन चिट, पर 150 छोटे इंजीनियरों को नोटिस की तैयारी, नाराज इंजीनियर बोले- काम बंद कर देंगे

डिप्लोमा एसोसिएशन ने जेजेएम में केवल जूनियर इजीनियर्स पर कार्रवाई कर वरिष्ठों को बचाने के आरोप लगाए।

कुलदीप सिंगोरिया | 9926510865
भोपाल | लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री संपतिया उइके पर एक शिकायत में मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन (JJM) में एक हजार करोड़ रुपये की कमीशन वसूली का आरोप लगा। मुख्य सचिव की चिट्ठी पर ईएनसी ने जांच के आदेश दे दिए। किरकिरी हुई तो मंत्री को क्लीन चिट दे दी गई, लेकिन गड़बड़ी का ठीकरा पीएचई विभाग के छोटे पदों पर कार्यरत इंजीनियरों पर फोड़ दिया गया।

पीएचई विभाग ने जल जीवन मिशन के तहत प्रदेश के करीब 27,000 गांवों में एकल ग्राम नल-जल योजनाएं बनाई थीं, ताकि हर घर तक नल के माध्यम से पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इन योजनाओं पर अब तक करीब 18,000 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।
लेकिन जब से योजनाएं अस्तित्व में आई हैं, तब से ही इन पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। फिर भी पीएचई ने गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय, ₹6,339.93 करोड़ की 8,425 योजनाओं को रिवाइज्ड करने का फैसला लिया। इसके चलते इनकी लागत ₹2,825.81 करोड़ बढ़कर ₹9,165.74 करोड़ हो गई। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने इन योजनाओं की रिवाइज्ड डीपीआर को तो मंजूरी दी, लेकिन यह भी पूछा कि गड़बड़ी किसने की। अफसरों के गोलमोल जवाबों के बाद उन्होंने कार्रवाई के निर्देश जारी किए। इसके चलते विभाग ने करीब 150 उपयंत्री और सहायक यंत्री को चिह्नित कर कारण बताओ नोटिस किए जा रहे हैं। हालांकि, इससे भी नया विवाद उत्पन्न हो गया।

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वरिष्ठों को बचाने का आरोप
मध्यप्रदेश डिप्लोमा इंजीनियर्स एसोसिएशन (एमपीडीईए) ने पीएचई के वरिष्ठ अधिकारियों पर गंभीर अनियमितताओं के आरोप लगाते हुए, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री, और प्रमुख सचिव को ज्ञापन सौंपा है। एसोसिएशन का कहना है कि विभाग केवल उपयंत्रियों और सहायक यंत्रियों को कारण बताओ नोटिस भेज रहा है, जबकि तकनीकी स्वीकृति की जिम्मेदारी मुख्य अभियंता, अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यंत्री की होती है। यह कदम वर्क्स मैनुअल के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है और वरिष्ठ अधिकारियों को बचाने की मंशा साफ झलक रही है।

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तकनीकी स्वीकृति में लापरवाही: नियमों की अनदेखी
एसोसिएशन ने म.प्र. वर्क्स डिपार्टमेंट मैनुअल के अध्याय-2, अनुच्छेद 2.006 और 2.028 का हवाला दिया है। अनुच्छेद 2.006 के अनुसार, हर निर्माण कार्य से पहले उसका विस्तृत अनुमान तैयार कर सक्षम प्राधिकारी से तकनीकी स्वीकृति लेना अनिवार्य है। बिना स्वीकृति के कार्य शुरू करना मना है। अनुच्छेद 2.028 के अनुसार, स्वीकृति देने वाला अधिकारी डिज़ाइन की साउंडनेस और व्यय की प्रमाणिकता के लिए जिम्मेदार होता है। फिर भी इतनी बड़ी संख्या में योजनाओं का पुनरीक्षण और लागत में बढ़ोतरी इस बात का संकेत है कि तकनीकी स्वीकृति प्रक्रिया में अपर्याप्त सर्वेक्षण, डिज़ाइन त्रुटियाँ या जल्दबाजी की गई। एसोसिएशन का कहना है कि यह कार्य मुख्य अभियंता, अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यंत्री की ज़िम्मेदारी थी, इसलिए उन्हीं पर जवाबदेही तय होनी चाहिए।

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आंदोलन की चेतावनी
एमपीडीईए के संरक्षक राजेंद्र सिंह भदौरिया ने कहा कि तकनीकी स्वीकृति देने वाले वरिष्ठ अधिकारियों पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए — केवल जूनियर इंजीनियरों को ही निशाना बनाना अनुचित है। प्रभावित योजनाओं की स्वतंत्र तकनीकी और वित्तीय जांच करवाई जानी चाहिए। साथ ही, जल जीवन मिशन में नियमों के अनुरूप और पारदर्शी प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि यदि इन मांगों पर तुरंत कार्रवाई नहीं की गई, तो वे प्रदेश स्तर पर जल जीवन मिशन और पेयजल से संबंधित कार्यों को छोड़ने का आंदोलन शुरू करेंगे। इससे मिशन की प्रगति बाधित होगी, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी विभाग पर होगी।

पर्दे के पीछे की कहानी

द इनसाइडर्स के सूत्र बताते हैं कि सभी तरह की डिजाइन ईएनसी ऑफिस के एक सीनियर अधिकारी ने तैयार करवाई। इनके ऑफिस में गूगल अर्थ को उपयोग कर डीपीआर कट, कॉपी पेस्ट से बनाकर नीचे भेज दी गई। यही नहीं, निचले अधिकारियों पर दबाव बनाकर उनसे हस्ताक्षर करवाए गए थे। यदि इनके ईमेल की जांच हो जाए तो सारे राज खुल सकते हैं। जबकि होना यह था कि सर्वे के बाद ग्राम सभा से डीपीआर को पारित करवाना था और डीडब्ल्यूएसएम का अनुमोदन लेना था।

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