द इनसाइडर्स: आईएएस की प्रतिज्ञा- पेन नहीं रखूंगा, धुंधकारी का गर्लफ्रेंड धमाका ऑफर के साथ जानें मंत्री जी की रियल सोशल हार्मनी

द इनसाइडर्स की इस हफ्ते की सियासी चौपाल में हम हाजिर हैं, चुनिंदा खबरों का मिक्स मसाला लेकर, जिसमें ईमानदारी, तिकड़म, व्यंग्य, और थोड़ा-बहुत बॉलीवुडिया रंग भी घुला हुआ है।

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865

भोपाल | मध्यप्रदेश सरकार के एक दफ्तर में एक पैंसठिया (चमचा) टाइप कर्मचारी की चटखदार कहानी से आज के द इनसाइडर्स कॉलम की शुरूआत करते हैं। पैंसठिया जिसका कामकाज से वैसा ही रिश्ता था जैसे सांप और नेवले का। लेकिन अफसरों को मक्खन लगाने में उसने पीएचडी कर रखी थी। ऑफिस की फाइलें छोड़कर वह बॉस के सब प्राइवेट काम करता था –

अफसर के बच्चे की होमवर्क कॉपी लिखना
अफसर की सास को मंदिर छोड़ आना
अफसर की कार का टायर बदलना
अफसर के कुत्ते का बर्थडे ऑर्गनाइज करना। आदि-आदि…
तो जाहिर है, अफसर की नजरों में वही सुपरस्टार था। बाकी बेचारे कर्मचारी दिन-रात ऑफिस का असली काम करके भी सिर्फ डाँट खाते रहते। एक दिन खबर आई कि बॉस के पिताजी का स्वर्गवास हो गया। पूरा स्टाफ दुखी चेहरा बनाकर उनके घर पहुँच गया। सबने मिलकर संस्कार की तैयारी शुरू की, लेकिन मजेदार बात ये थी कि वो पैंसठिया कर्मचारी कहीं दिखा ही नहीं। सब लोग आपस में फुसफुसाने लगे – “अरे, आज तो असली मौका था पैंसठवीं कला (चमचागिरी) के प्रदर्शन का … ये बंदा कहाँ गया?” खैर, लाश को श्मशान ले जाया गया। लेकिन वहाँ सीन देखकर सबके होश उड़ गए। पहले से ही 20 शव लाइन में पड़े थे! हर दाह-संस्कार में एक-एक घंटा लग रहा था। मतलब अफसर के पिताजी का नंबर आते-आते सूर्यास्त हो जाता। अफसर का चेहरा लाल टमाटर जैसा हो गया। तभी अचानक… कतार में पड़े शवों में से तीसरा शव उछलकर बैठ गया! लोगों के जैसे प्राण पखेरू उड़ गए। अफरातफरी मची। कई तो डर के मारे श्मशान की दीवार फाँदकर भागे। लेकिन जब गौर से देखा, तो वह कोई “भूत” नहीं बल्कि वही चमचागिरी वाली पैसठवीं वाली कला का मास्टर था।

उसने हाथ जोड़कर बोला – “सर, सुबह से आपके घर नहीं आ पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ क्योंकि जैसे ही सुना कि पिताजी गुजर गए तो मैंने सोचा असली काम यही है कि श्मशान का नंबर एडवांस में बुक कर दूँ। सुबह 6 बजे से ही यहाँ लाश बनकर लेटा हुआ हूँ, ताकि आपके पिताजी को बिना वेटिंग के वीआईपी सेवा मिल जाए।” सबके मुँह खुले के खुले रह गए। अफसर कभी उसकी “निष्ठा” देखकर गदगद होते, तो कभी बाकी कर्मचारियों को घूरते जैसे कह रहे हों – सीखो कुछ, यही है असली डेडिकेशन! (सोशल मीडिया से साभार) और अब शुरू करते हैं रसूखदारों की इस हफ्ते की चटखदार खबरों के साथ आज का द इनसाइडर्स…

 

मंत्रालय में फिर बदलाव की आहट

कलेक्टरों की लिस्ट का इंतजार करते-करते कई आईएएस नवरात्रि में उपवास कर रहे हैं, देवी की आराधना में डूबे हुए है। मानो “मां शेरोंवाली तू है बड़ी भली” वाला गाना गाकर पोस्टिंग की आरती उतार रहे हों। उनकी पुकार कितनी सुनी जाएगी, वक्त बताएगा। लेकिन इसी बीच मंत्रालय में प्रमुख सचिवों के बदलने की सुगबुगाहट है। बड़े साहब अपनी टीम का पुनर्गठन करेंगे, जैसे क्रिकेट टीम में प्लेइंग इलेवन बदलते हैं। राहत की बात: चौथी और पांचवीं मंजिल के बीच रूसा-रूसी, रूठना या तकरार अब इतिहास हो गया। मतलब, प्रमुख सचिवों की तैनाती में फ्री हैंड। वहीं, देर रात जिला पंचायत सीईओ स्तर पर आधी रात को ताश के पत्तों की तरह तबादले हो चुके हैं।

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विधायक की जांच में पीएस पर भी सवाल

सत्ता पक्ष के रईस विधायक की खदानों की गड़बड़ियों की जांच जारी। नतीजे में लंबा इंतजार लग सकता है। क्योंकि जमीन आवंटन की जांच पर हो रहा दिखावा सामने आ रहा है। दरअसल, जांच करने वाले अधिकारियों ने ही कंपनियों को अनुमति दी, खासकर एक प्रमुख सचिव का नाम उछल रहा। क्या वे जांच कर खुद को गलत बताएंगे? यानी अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारेंगे। ऐसा होना मुश्किल है। और जब बड़े साहब उन्हें पसंद नहीं करते हैं तब क्या विदाई होगी? यह सवाल मंत्रालय की फिजाओं में घूम रहा है।

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सबक नहीं लिया

कलेक्टर मैडम आजकल “खंडन एक्सप्रेस” बनी हुई हैं। जो भी आरोप लगे, तुरंत खंडन। अति वृष्टि नकार दी, तो किसानों ने पटवारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पकड़ा। पोस्ट वायरल हुई तो राजनीतिक माहौल गरम हो गया और मैडम बैकफुट पर। आनन-फानन में पोस्ट डिलीट की गई। लेकिन तब तक विरोधियों को मौका मिल चुका था। बता दें कि कुछ दिन पहले हॉट एयर बैलून हादसे को भ्रामक बताया था। याद रहे, यह जिला जहां किसानों पर गोलीकांड हुआ था—”सबक न लिया, तो इतिहास दोहराएगा”।

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आखिर विपक्ष के नेताजी ने बताया मिस्टर इंडिया का पता

द इनसाइडर्स ने पहले ही खुलासा किया था कि इंदौर-उज्जैन रोड के अलाइनमेंट के आसपास कोई शख्स तेजी से जमीन खरीद-बिक्री कर रहा है। नाम छिपा था तो “मिस्टर इंडिया” का टैग लग गया, जैसे अनिल कपूर की फिल्म में अदृश्य हो जाते हैं। अब विपक्ष के एक बड़े नेता पुत्र ने विलेन अमरीश पुरी की तरह यह कोड क्रैक कर दिया। उन्होंने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि प्रदेश में जीएसटी से राहत मिली हो, लेकिन “मिस्टर इंडिया टैक्स” से लोग हलकान हैं, खासकर धार्मिक राजधानी की जनता। ये नेता पुत्र विधायक और पूर्व मंत्री हैं, जिन्हें हाल ही में जिलाध्यक्ष बनाकर “डिमोशन” करने की कोशिश हुई। लेकिन नेता पुत्र ने नाम डिकोड कर बता दिया कि वे अभी प्रदेश स्तर के नेता हैं और अपने पिता की तरह सिंह की तरह गरजना जानते हैं।

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कसम खाओ… पेन नहीं रखोगे

पानी से जुड़े निगम के मुखिया ईमानदारी व सादगी में चौधराहट  के लिए जाने जाते हैं। बड़े साहब के भी अतिप्रिय हैं। फिर भी, इंदौर कलेक्टर बनते-बनते रह गए। इससे इतर, उन्होंने पूरे निगम को ई आफिस कर दिया है। प्रदेश की पहली पेपर लेस संस्था करने के साथ अब उन्होंने खुद जेब में पेन रखना बंद कर दिया है। और समस्त मातहतों पेन लेस (PEN-LESS) रहने की सलाह दी है। PEN LESS के साथ साहब संस्थान को PAIN LESS भी कर रहे हैं। दरअसल, युवा मातहतों के वर्किंग जीवन साथी जो भले ही किसी विभाग के हों लेकिन उसे अपने प्रिय की पदस्थापना वाले स्थान पर पदस्थ कराने में मदद करते हैं। कभी-कभी तो अन्य विभाग या राज्य से भी प्रतिनियुक्ति पर ले आते हैं। पर साहब की भलमनसाहत का फायदा कभी कभी भ्रष्ट ठेकेदार लेने की कोशिश करते हैं तो उनके पीछे साहब “हथौड़े वाले इंजीनियरों” को पीछे लगा देते हैं। उनके पास कुछ कर्मठ इंजीनियरों की टीम है ..जो जब फील्ड में जाती है तो हथौड़ा मार के कंक्रीट के मैटेलिक साउंड की आवाज से क्वालिटी चेक करती है। मैटेलिक साउंड नहीं आया तो स्ट्रक्चर तोड़ो और फिर बनाओ। खैर अब चूंकि साहब कलम जेब में ही नही रखते तो “कलम फंसने” का सवाल नहीं। हाँ! अब कलम नहीं ओटीपी के लिए अंगूठा जरूर फंस सकता है। हम तो यही कहेंगे कि बचकर रहिएगा साहब।

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धुंधकारी ने गर्लफ्रेंड का वेतन बढ़वाने की लिखवाई नोटशीट

हमने पिछले हफ्ते ही बताया था कि गरुण पुराण की एक कथा के किरदार धुंधकारी अभी भी पानी वाले विभाग में बड़का इंजीनियर के रूप भी जीवित है। अब इसी धुंधकारी की नई कथा का वाचन कीजिए। उनकी गर्लफ्रेंड साथ में स्टेनो का काम करती है, संविदा पर। सैलरी बढ़वाने के लिए एक बड़े मंत्री से नोटशीट लिखवाई—”मैडम का काम बहुत अच्छा है, वेतन 50 हजार करो।” साहब, अब ये तो सीधे-सीधे ‘ऑफिशियल लव लेटर’ हुआ। हालांकि, निगम के एमडी ने अभी फैसला नहीं लिया, लेकिन खुसर-पुसर जोरों पर। हाल ही में धुंधकारी एमपी नगर की होटल में रात को गर्लफ्रेंड के साथ पार्टी करने गए। ड्राइवर ने इंतजार किया, फिर पूछा—”रुकूं या जाऊं?” मदहोशी में धुंधकारी बोला—“जा बेटा, आज की रात होटल ही मेरा घर है।”

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जंग लंबी चलेगी

अजाक्स के दमदार अध्यक्ष जेएन कंसोटिया के रिटायरमेंट के बाद सवाल था कि क्या अब आरआर वाले यह जिम्मेदारी उठाएंगे? जवाब – 2008 बैच के विशेष गढ़पाले कार्यकारी अध्यक्ष बने। कंसोटिया की तरह मुखर होंगे या नहीं, वक्त बताएगा। लेकिन सपाक्स के नेता ने कहा कि अगर इतनी शिद्दत से उनके वर्ग के आईएएस आगे आएं तो पदोन्नति में आरक्षण का मसला सुलझ जाता। हालांकि, उन्होंने जोड़ा—”कर्मचारियों की संस्था में अफसरों का क्या काम? बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!” खैर, अजाक्स के तेवर बता रहे हैं कि जंग लंबी चलेगी।

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मंत्री जी सुधारने लगे छवि

पास के जिले के मंत्रीजी अपनी छवि चमकाने के लिए लगातार “फेयर एंड लवली कैंपेन” चला रहे हैं। कई बार बयानों से और गड़बड़ हो जाती है, लेकिन इस बार छवि सुधार की सार्थक पहल सामने आई हैं। हुआ यूं कि एक दलित घर में युवक ने भोजन किया तो समाज ने तिरस्कार किया, गंगा स्नान की शर्त रखी। मामला मंत्री तक पहुंचा तो उन्होंने कानूनी रास्ते की बजाय सामाजिक समरसता का संदेश दिया— खुद दलित घर पहुंचे और भोजन किया। यही है रियल सोशल हार्मनी का मैसेज।

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सफेद शेर की याद और गर्मा गई राजनीति

विंध्य के “सफेद शेर” अब दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जयंती पर राजनीति भड़क गई। सरकार सफेद शेर के पोते से मिलने पहुंची, लेकिन कद्दावर मंत्री ने दूरी बना ली—मुख्यालय में रहकर जयंती स्थल नहीं गए। चर्चा है कि सरकार ने ही दूरी बनाई। खैर, अफवाह फैक्ट्री यही कह रही है कि सरकार विपक्षी नेताओं या विपक्ष से आए नेताओं के कंधों पर ही बंदूक रखकर अपनों को क्यों शहीद करवाना चाहती है?

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सूर्यवंशम द एंड

निर्माण विभाग में प्रमुख अभियंता बनने का सपना देख रहे एक साहब का “सूर्यवंशम” पूरा होने से पहले ही द एंड फिल्मी अंदाज में कर दिया गया। पहले ठेकेदारों से शिकायतें करवाई गईं, फिर नेताओं से दबाव और आखिर में पाँचवीं मंज़िल से नोटशीट रिटर्न—सब कुछ स्क्रिप्टेड प्लॉट की तरह! और साहब को धकेलकर कागजों में उलझे रहने वाले विभाग यानी लूपलाइन में भेज दिया गया। कहानी का मास्टरमाइंड? वही बड़के इंजीनियर, जिन्होंने हाल ही में खुद के कार्यकाल रिचार्ज करवाया और शर्त रखी कि ग्वालियर वाले इंजीनियर का करियर क्लाइमैक्स में ध्वस्त कर दो। और विभागीय मंत्री जी? उन्होंने “खामोशी: द म्यूजिकल” फिल्म की तरह खामोश रहना ही उचित समझा।

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