गुना में खाद संकट बना मौत का कारण, लंबी लाइन में ठिठुरती महिला ने तोड़ा दम

गुना
मध्य प्रदेश के गुना जिले में खाद संकट से किसान बेहद परेशान हैं. हालात ये है कि खाद वितरण केंद्रों के बाहर किसानों की लंबी कतारें रोजाना देखने को मिल रही हैं. कई किसान तो खाद लेने के लिए खुले आसमान के नीचे रात बिताने को मजबूर हैं. इसी अव्यवस्था ने एक आदिवासी महिला की जान ले ली. परिजन के अनुसार, बागरी डबल लॉक गोदाम पर लगातार 36 घंटे से ज्यादा लाइन में लगी सहारिया आदिवासी महिला भूरिया बाई की बुधवार देर रात तबीयत बिगड़ गई और मौत हो गई.
परिजनों के अनुसार भूरिया बाई मंगलवार सुबह से ही खाद लेने लाइन में लगी हुई थी. केंद्र पर भारी भीड़ और लंबे इंतजार के कारण किसान रातभर खुले आसमान के नीचे ही लाइन में पड़े रहते हैं. भूरिया बाई भी ठंड में जमीन पर रात गुजारने को मजबूर हुई. इसी दौरान देर रात उसकी तबीयत बिगड़ी और उसे उल्टियां होने लगीं. परिजन उसे तुरंत जिला अस्पताल लेकर पहुंचे, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. परिवार इस अचानक हुई मौत से सदमे में है और गांव में शोक का माहौल है. परिजनों ने शव को गांव ले जाकर अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू कर दी है.
खाद के लिए लग रही लंबी कतारें
बागरी खाद वितरण केंद्र की स्थिति पिछले कई दिनों से बदतर बनी हुई है. महिलाएं, बुजुर्ग, मजदूर सभी खुले आसमान के नीचे कई-कई घंटे खड़े रहते हैं. जब थक जाते हैं, तो वहीं बैठ जाते हैं. घटना की जानकारी मिलते ही कलेक्टर किशोर कुमार कन्याल और पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया मौके पर पहुंचे. कलेक्टर ने बताया कि महिला लाइन में ही थी और तबीयत बिगड़ने पर उसे निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई. प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए SDM को तत्काल जांच के निर्देश दिए हैं. शासन स्तर पर भी घटना को लेकर रिपोर्ट मांगी जा रही है.
विधायक ऋषि अग्रवाल ने साधा निशाना
बमौरी विधायक ऋषि अग्रवाल ने प्रशासन पर तीखे सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि किसान दो-दो दिन तक ठंड में खुले आसमान के नीचे लाइन में खड़े रहने को मजबूर हैं, जबकि सरकार दावा करती है कि खाद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. अगर खाद है तो किसानों को क्यों नहीं मिल रही? एक महिला की मौत हुई. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? उन्होंने पूछते हुए कहा कि वे खुद रात में वितरण केंद्र पहुंचे थे, जहां काफी किसान लाइन में खड़े मिले.
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह घटना सरकार के दावों और जमीनी हकीकत के बीच के अंतर को उजागर करती है. सरकार खाद की पर्याप्त उपलब्धता और सुचारू वितरण के दावे करती है, लेकिन हकीकत यह है कि किसान भूख, ठंड और इंतजार में रातें गुजारने को मजबूर हैं.



