एमसीडी स्कूलों में बच्चों को मिलने वाली किताबें और लिखने-पढ़ने की चीजें में देरी बर्दाश्त नहीं: कोर्ट

नई दिल्ली

दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को एमसीडी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को किताबें और लिखने-पढ़ने के लिए जरूरी अन्य चीजें मिलने में देरी पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि यह अच्छी बात नहीं है। एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बेंच ने एमसीडी कमिश्नर को स्कूलों का दौरा करने और उनके कामकाज की निगरानी करने को कहा। बेंच ने उनसे कहा कि हम इसे आप पर छोड़ते हैं। यदि आपको लगता है कि आप जो काम कर रहे हैं उससे आप संतुष्ट हैं, अगर आप अपने कर्मचारियों के काम से खुश हैं, तो हम आपको केवल शुभकामनाएं ही दे सकते हैं। हमें नहीं लगता कि यह एमसीडी के लिए किसी गर्व की बात है। यह कोई सुखद स्थिति नहीं है।

एमसीडी कमिश्नर ज्ञानेश भारती सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद थे। उन्होंने कोर्ट को बताया कि कोर्स की किताबों के अलावा, स्टूडेंट को बैंक खाते में ट्रांसफर के माध्यम से वर्दी और स्टेशनरी जैसे अन्य वैधानिक लाभों के लिए नकद दिया जाता है। उन्होंने कहा कि लगभग दो लाख स्टूडेंट के पास बैंक खाता नहीं है और इसे खोलने की कोशिश तेजी से चल रही हैं। एमसीडी कमिश्नर ने स्कूलों का दौरे का दावा किया और किताबों की आपूर्ति में देरी के लिए स्टैंडिंग कमिटी के गठन में देरी को जिम्मेदार ठहराया जो 5 करोड़ रुपये से अधिक के कॉन्ट्रैक्ट देने के लिए अधिकृत है।
 
याचिकाकर्ता एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से पेश वकील अशोक अग्रवाल ने तर्क दिया कि एमसीडी स्कूलों में पढ़ने वाले सात लाख स्टूडेंट्स को कोई किताबें या स्टेशनरी उपलब्ध नहीं कराई गई हैं, जिनमें से एक टिन शेड में चल रहा था, जिसकी वजह से बच्चे बेकार बैठे थे। एमसीडी कमिश्नर ने दावा किया कि कोर्स की किताबों की आपूर्ति की प्रक्रिया चल रही है और जल्द ही पूरी हो जाएगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button