मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने प्रदेशवासियों को दी नववर्ष और गुड़ी पड़वा की शुभकामनाएं

भोपाल
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश वासियों को नववर्ष विक्रम संवत् 2028 और गुड़ी पड़वा की शुभकामनाएं दी हैं। इस वर्ष 30 मार्च 2025 (दिन रविवार) से हिन्दू नववर्ष यानि नव संवत्सर 2082 शुरू हो रहा है। गुड़ी पड़वा के दिन हिन्दू नव संवत्सरारम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा भी कहा जाता है। इस दिन हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत् का आरम्भ होता है। विक्रम संवत् का आरम्भ 57 ई.पू. में हुआ था।
इसी दिन से प्रारंभ हुई काल गणना
इसी प्रतिपदा के दिन आज से 2081 वर्ष पूर्व उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा। महाराज विक्रमादित्य ने राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती है।
'गुड़ी' का अर्थ 'विजय पताका'
कहते हैं कि मराठी राजा शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं (शक) का पराभव किया। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ' गुढी पाडवा ' अर्थात् मराठी नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अत: इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारम्भ माना जाता है। ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग‘ की रचना की। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में गुड़ी पाड़वा कहा जाता है।
यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (ग़ुड़ियां) फहराए। आज भी घर के आंगन में ग़ुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुढीपाडवा नाम दिया गया। इसलिये इसे मराठी नया साल भी कहते हैं।
इस अवसर पर आंध्र प्रदेश में घरों में ‘पच्चड़ी/प्रसादम‘ तीर्थ के रूप में बांटा जाता है। कहा जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है। महाराष्ट्र में पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं वे हैं–गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती हैं। नौ दिन तक मनाया जाने वाला यह त्यौहार दुर्गापूजा के साथ-साथ, रामनवमी को राम और सीता के विवाह के साथ सम्पन्न होता है।
सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में माना गया। यही दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ। आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धार्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।
विक्रम संवत् हमारा राष्ट्रीय संवत् कहलाता है। यह सर्वथा शुद्ध और वैज्ञानिक है। यह हमारी अस्मिता और स्वाधीनता के अनुरक्षण तथा शत्रुओं पर विजय का प्रतीक भी है। इसी संवत् के अनुसार ही हमारे सभी धार्मिक अनुष्ठान, तीज त्यौहार जैसे – होली, दीवाली, दशहरा आदि मनाए जाते है। विक्रम संवत् सभी काल गणना से प्राचीन तो है ही वैज्ञानिक भी है। नेपाल के सरकारी संवत् के रुप मे विक्रम संवत् ही चला आ रहा है। इसमें चान्द्र मास एवं सौर नाक्षत्र वर्ष (solar sidereal years) का उपयोग किया जाता है।
इस संवत् का आरम्भ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तरी भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। पूर्णिमा के दिन, चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है। जिस दिन नव संवत् का आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण होता है।