चीन पर नकेल कसने के लिए अमेरिका ने भारत के साथ हाथ मिला लिया
वॉशिंगटन/नई दिल्ली
हिंद महासागर से लेकर प्रशांत महासागर तक आंखें दिखा रहे चीन पर नकेल कसने के लिए भारत और अमेरिका ने हाथ मिला लिया है। भारत ने अमेरिकी युद्धपोतों की मरम्मत के लिए अपने दूसरे शिपयार्ड द कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड को खोल दिया है। इससे अब अमेरिकी युद्धपोतों का रिपेयर और मरम्मत आसानी से हो सकेगा। द कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड ने ही भारत के दूसरे स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर को तैयार किया है। इस सुविधा के मिल जाने के बाद अब अमेरिकी युद्धपोत हिंद प्रशांत क्षेत्र में आसानी से गश्त लगा सकेंगे जहां चीनी नौसेना लगातार ताइवान, जापान और फिलीपीन्स को धमकाने में जुटी हुई है।
साल 2023 में अमेरिकी नौसेना ने लार्सन एंड टूब्रो के साथ चेन्नै में युद्धपोतों के मरम्मत के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इसके बाद से ही भारतीय शिपयार्ड ने अमेरिकी नौसेना के युद्धपोतों की मरम्मत की है। इस ताजा समझौते के बाद अमेरिकी युद्धपोतों का भारत के दोनों ही तटों पूर्वी और पश्चिमी में अब आसानी से रिपेयर किया जा सकेगा। 6 अप्रैल को कोचिन शिपयार्ड ने अमेरिका के साथ समझौते का ऐलान किया। अमेरिका ने कोचिन शिपयार्ड की जांच की और सर्वे के बाद ही इस समझौते को मंजूरी दी है। यही पर ही भारत के एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रमादित्य का रिपेयर किया गया था।
अमेरिका की कैसे मदद कर सकता है भारत ?
भारत के कई और शिपयार्ड भी हैं जो अभी आने वाले समय में अमेरिकी युद्धपोतों को रिपेयर करने की क्षमता रखते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को भी एविएशन के हब के रूप में विकसित किया जा सकता है जो मलक्का स्ट्रेट के बिल्कुल पास में है। मलक्का स्ट्रेट के जरिए ही दक्षिण चीन सागर में घुसा जा सकता है जो इस समय चीन की बढ़ती दादागिरी से तनावपूर्ण हो गया है। भारत यहां भी अमेरिका को कुछ सुविधाएं दे सकता है ताकि आने वाले दिनों में चीन की चुनौती से निपटा जा सके।
साल 2020 में जब चीन और भारत के बीच तनाव अपने चरम पर था, उस समय अमेरिकी नौसेना के सर्विलांस विमान पी 8 पोसाइडन विमान ने अंडमान निकोबार द्वीप पर तेल लिया था। अंडमान निकोबार द्वीप समूह को भारत का कभी न डूबने वाला एयरक्राफ्ट कैरियर कहा जाता है। यहीं पर भारत की तीनों ही सेनाओं के संयुक्त कमान का ठिकाना भी है। इसके रणनीतिक लोकेशन की वजह से अमेरिका को बड़ा फायदा हो सकता है। इससे पहले भारत ने ब्रिटेन के भी युद्धपोतों की मरम्मत की थी जो हिंद प्रशांत क्षेत्र में गश्त लगा रहे थे।