द इनसाइडर्स: सीनियर आईएएस के बैग का राज, शादी में मामा वर्सेस डॉक्टर साहब, आईएफएस का शीशमहल
इस बार "द इनसाइडर्स" में पढ़िए "सत्यमेव जयते" सीरीज़ के समापन पर तमोगुणी आईपीएस अफसरों के कारनामे।

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
“सत्यमेव जयते” श्रृंखला की आज समापन कड़ी… रहीम कहते हैं— “कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन॥”
अर्थात, जो जिस संगति में रहता है, वैसा ही बन जाता है। पिछले अंकों में हमने कहा था कि अपराधियों से निपटते-निपटते कई थानेदार खुद बड़े अपराधी बन जाते हैं। इसी तरह, इन्हीं अपराधियों से निपटते-निपटते कुछ तमोगुणी IPS अधिकारी “सबसे बड़े थानेदार” या “वर्दी वाले डॉन” बन जाते हैं। बॉलीवुड की फिल्मों में इन्हें अक्सर खलनायक के रूप में चित्रित किया जाता है, जबकि असल ज़िंदगी में ये मुंबई पुलिस के सचिन वाझे जैसे पुलिस अधिकारियों के रूप में देखने को मिलते हैं— जिसने अंबानी से 100 करोड़ की वसूली के लिए एंटीलिया के सामने चक्रव्यूह रचा। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं तमोगुणी सत्यमेव जयते की। इस प्रजाति के अधिकारी अपने चेलों के रूप में न केवल अपराधी मानसिकता वाले थानेदार रखते हैं, बल्कि अपराधियों, सट्टेबाजों, ड्रग्स माफिया, ज़मीनों पर कब्ज़ा करने वालों, स्पा सेंटर चलाने वालों, बिल्डरों, छोटे नेताओं और छोटे पत्रकारों तक को अपनी गैंग में शामिल कर लेते हैं। महानगरों में जमीन के खेल (कब्जा करवाना और छुड़वाना), गुजरात बॉर्डर पर शराब का खेल, मंदसौर-नीमच में अफीम तस्करी, सिंगरौली-कटनी में खदानों का खेल, चंबल में डकैत बनाने और मारने का खेल, और चुनावों के दौरान बूथ मैनेजमेंट जैसे कई षड्यंत्र ये अधिकारी डॉन की तरह व्यूह रचना (सब तरह की सुपारी) कर अंजाम देते हैं और मोटा माल कमाते हैं। जरूरत पड़ने पर ये वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर “योगः कर्मसु कौशलम्” का पाठ पढ़ाने वाले IAS अधिकारियों और खादीधारी नेताओं की कमजोरियाँ तक निकालकर उन्हें ब्लैकमेल कर लेते हैं।
हालात ऐसे हैं कि इस श्रेणी के अधिकारियों को “फ्री” सुविधाओं की इतनी आदत हो जाती है कि सेवा-निवृत्ति के बाद भी आयकर छूट से लेकर ट्रेन टिकट तक मुफ्त में चाहिए। इसके लिए ये पुलिस पदक पाने का प्रपंच रचते हैं— और अक्सर सफल भी हो जाते हैं। कम से कम पदक सुविधा के मामले में IPS अधिकारी, IAS अधिकारियों पर भारी पड़ते हैं। रिटायरमेंट के बाद तोहफ़े में SAF के नौकर भी आजीवन मिलते हैं। कुल मिलाकर, इनकी संख्या भले ही संपूर्ण रूप में कम हो, लेकिन सापेक्ष रूप में कई लोगों में यह प्रवृत्ति पाई जाती है। आख़िर गोस्वामी तुलसीदास जी भी कहते हैं— “सुमति कुमति सबके उर रहहिं, दास पुराण निगम अस कहहिं।” अर्थात, सुमति (सत) और कुमति (तम) सबके हृदय में विद्यमान रहती हैं। जिसके अंतर्मन में सुमति अधिक होती है, वह श्रेष्ठ बनता है, और जिसके हृदय में कुमति हावी हो जाती है, वह दुष्ट बन जाता है। हमारी तो यही आशा है कि सभी IPS अधिकारी सुमति का प्रतिशत बढ़ाते हुए यह सिद्ध करेंगे कि— “चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।” अगले अंक में… “अरण्यः ते पृथ्वी स्योनमस्तु”। तब तक पढ़िए सत्ता के गलियारों की चटपटी कहानियाँ— “द इनसाइडर्स” में…
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एक नई पहेली… एक नया तिलिस्म…
बहुत साल पहले के. बालचंदर की एक फ़िल्म आई थी— “एक नई पहेली”। इसमें राजकुमार एक विधुर व्यक्ति की भूमिका निभाते हैं, जिसका बेटा कमल हासन होता है। वहीं, हेमा मालिनी एक विधवा के किरदार में होती हैं, जिनकी बेटी पद्मिनी कोल्हापुरे का किरदार निभाती है। कहानी में कमल हासन, हेमा मालिनी से विवाह कर लेते हैं, और राजकुमार, पद्मिनी से शादी कर लेता है। इसके बाद रिश्तों की एक अजीबोगरीब पहेली बन जाती है— बेटा अपने पिता का ससुर बन जाता है, और बेटी अपनी माँ की सास! कुछ इसी तरह की पहेलियाँ इन दिनों प्रदेश की राजनीति में भी देखने को मिल रही हैं। यह सारा घटनाक्रम बाबू देवकीनंदन खत्री के उपन्यास “चंद्रकांता संतति” के ऐयारों की तरह लगता है— कौन किसकी ऐयारी कर रहा है, कौन किसकी जासूसी कर रहा है— यह एक नया तिलिस्म है। विधानसभा सत्र के दौरान यह स्थिति और स्पष्ट रूप से उभरकर आई। सागर के दो कद्दावर नेताओं की लड़ाई से आप पहले से परिचित हैं, लेकिन इस बार यह संघर्ष विधानसभा परिसर से बाहर भी जारी रहा। मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के खिलाफ नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार शिकायत कर रहे थे, जबकि गोविंद सिंह राजपूत से अदावत रखने वाले पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह पर उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे निशाना साध रहे थे। सवाल यह उठा कि आखिर किसने किसकी ‘सुपारी’ ली या दी? दोनों ने दोनों कांग्रेसियों को एक-दूसरे की सुपारी दी है। लेकिन इसके पीछे की कहानी और भी दिलचस्प है। महाराज के ज्यादा करीब आने की लालसा में तुलसी भी गोविंद सिंह राजपूत को कमजोर करने में लगे हुए थे। इसके तहत उमंग के करीबी को धार में करीब 400 करोड़ का ठेका दिलवा दिया गया। इसी बीच, विंध्य में एक नई कहानी शुरू हो गई। डॉक्टर साहब की शिकायत रीवा वाले पंडित जी ने दिल्ली में कर दी। जवाब में डॉक्टर साहब ने विधानसभा में कांग्रेसी अभय को आगे कर पंडित जी के समदड़िया कनेक्शन को लेकर चुटकियां दिलवा दी। कहानी यहां से आगे बढ़कर फिर से इंदौर-उज्जैन की ओर मुड़ जाती है। यहाँ भिया और भैया के बीच बिल्डर पूरी तरह से कन्फ्यूज हैं! खासकर इंदौरी बिल्डरों की परेशानी ज्यादा है— वे भिया को छोड़ भी नहीं सकते और डॉक्टर साहब का साथ लिए बिना भी काम नहीं चलेगा। इस बीच, नरसिंहपुर में भी खांटी कांग्रेसी रहे एक मंत्री को डॉक्टर साहब ने खांटी बीजेपी वाले एक बड़े मंत्री के पीछे लगा दिया है। इससे भक्त प्रह्लाद बौखलाए हुए हैं। राहत की बात यह है कि इस राजनीतिक घमासान के बीच मंदसौर-नीमच के जगदीश ने “ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर” का फार्मूला अपनाकर सत्ता की मलाई खाने में ही खुद को व्यस्त रखा है। जबलपुर वाले सिंह अभी “देखो और इंतजार करो” की नीति अपना रहे हैं, लेकिन मौका मिलते ही वे शिकार को अपने पंजों से फाड़ने में देर नहीं करेंगे। नर के इंद्र विधानसभा में कभी भी किसी की भी हवा निकाल देते हैं। तो मामा दिल्ली से उड़कर विधानसभा पहुंचकर सबको बता देते हैं कि टाइगर अभी जिंदा है। इनके अलावा भी कई किरदार संगठन में पर्दे के पीछे सक्रिय हैं। विष्णु अपनी अगली पारी की प्रतीक्षा में है तो हित अपने आनंद को साधने के लिए डॉक्टर साहब को पोट रहे हैं। नरो में उत्तम जैसे कुछ नेता राजनीति के हाशिये पर हैं, लेकिन अपनी ‘फड़फड़ाहट’ से कभी भी चौंका सकते हैं। कुल मिलाकर इस राजनीति पर दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को कहानी का नया प्लॉट मिल सकता है।
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सीनियर आईएएस का बैग
इन दिनों एक सीनियर आईएएस अधिकारी का बैग सुर्खियों में है। यह बैग साहब के लिए इतना प्रिय है कि इसे केवल वह खुद या उनका खास चपरासी ही उठा सकता है। जब चपरासी अनुपस्थित होता है, तो साहब इसे स्वयं उठाकर ले जाते हैं। पीए और अन्य कर्मचारियों को इसे छूने तक की सख्त मनाही है। हमारे एक इनसाइडर ने बताया कि सुबह यह बैग हल्का होता है, लेकिन शाम तक इसका वजन और आकार अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाता है। बैग के प्रति साहब का यह लगाव अब आप समझ ही गए होंगे! गौरतलब है कि साहब हाल ही में अपर मुख्य सचिव बने हैं।
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अंबानी की शादी भी पीछे छूट गई!
शादी के इस सीज़न में मध्यप्रदेश के नेताओं और उद्योगपतियों ने शायद अंबानी से कंसल्टेंसी ले ली है, तभी इतनी भव्य और विशाल शादियाँ देखने को मिल रही हैं। हालांकि, जब डॉक्टर साहब मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने बेहद साधारण तरीके से, सौ से भी कम मेहमानों के बीच अपने बच्चों का विवाह संपन्न कराया। जबकि 17 वर्षों तक सत्ता में रहे किसान पुत्र ने दिल्ली, जोधपुर, सीहोर और भोपाल के जंबूरी मैदान में जबरदस्त तामझाम के साथ अपने दोनों सुपुत्रों का विवाह किया। अब, कौन धरती पुत्र और सादगी प्रिय है, यह निर्णय आप सुधी पाठकगण करें। हम तो सभी को विवाह की शुभकामनाएँ देते हैं।
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“मुझे… भार्गव बोलते हैं, और यह उज्जैन है!”
उज्जैन के एक इंजीनियर की करतूत ने पूरे मध्यप्रदेश को शर्मसार कर दिया। यह इंजीनियर साहब कॉलेज के दिनों में कभी डॉक्टर साहब के सीनियर हुआ करते थे, और यूएडी के अध्यक्ष बनने से पहले, डॉक्टर साहब के परिवार को नगर निगम में ज़ोन के ठेके दिलवाया करते थे। अब जब डॉक्टर साहब सत्ता में आए, तो इंजीनियर का दिमाग भी सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने सीधे-सीधे एक महिला सहकर्मी से शारीरिक संबंध बनाने की मांग कर डाली! महिला के इनकार करने पर उसने उसे तरह-तरह से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। जब मामला खुला, तो इंजीनियर से पूछताछ की गई। उसने दंभ भरे स्वर में कहा— “मुझे भार्गव बोलते हैं, और यह उज्जैन शहर है! ज्यादा सवाल पूछोगे, तो बाहर फिकवा दूँगा!” बेचारे निगम कमिश्नर साहब ने भी माथा पकड़ लिया!
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आईएफएस का शीशमहल
अंग्रेज़ी संस्कार वाली एक आईएफएस महिला अधिकारी, जो नर्मदा किनारे के एक टाइगर रिज़र्व में पदस्थ हैं, उनके अत्यधिक घमंड और कर्मचारियों को गुलाम समझने वाले व्यवहार का पहले भी “द इनसाइडर्स” में खुलासा हो चुका है। अब ताज़ा खबर यह है कि मैडम का सरकारी बंगला शीशमहल में तब्दील हो रहा है। केवल बाउंड्री वॉल की सजावट और आकर्षक लाइटिंग पर ही 13 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। खास बात यह है कि यह बजट टाइगर रिज़र्व के बफ़र ज़ोन की फेंसिंग के लिए आना है। लेकिन मैडम ने पहले ही बाघों की सुरक्षा के बजाय अपने बंगले की सुरक्षा को प्राथमिकता दे दी।
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मऊगंज की कप्तान के साथ जिला हुकुम भी निपट गए!
मऊगंज की दिल दहलाने वाली घटना ने सिंहासन तक को झकझोर दिया, और इसका अंजाम सभी को पता है। कप्तान साहिबा का तत्काल तबादला कर दिया गया। वैसे भी, अगर यह पहले हो जाता, तो शायद घटना पर कुछ हद तक अंकुश लग सकता था। हमारे इनसाइडरों के मुताबिक, साहिबा बहुत सुस्त और आरामप्रिय थीं। कानून-व्यवस्था भगवान भरोसे थी, इसलिए उनका तबादला समझ में आता है। लेकिन जिला हुकुम (कलेक्टर) इस चक्कर में जबरन निपटा दिए गए। वैसे भी, बड़ी मुश्किल से उन्हें कलेक्टरी मिली थी, थोड़ा तो रहम किया जाना चाहिए था!
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कलेक्टर का समाजवाद
हमारी चिर-परिचित कलेक्टर साहिबा फिर से अपने रंग में लौट आई हैं! इन दिनों मैडम पर समाजवाद का भूत सवार है, लेकिन यह समाजवाद सिर्फ राजस्थानी स्वजातीयों तक सीमित है। मैडम के क्षेत्र में निवासरत राजस्थानी स्वजातीयों के बीच झगड़ा हो गया। मैडम ने फौरन सबको इकट्ठा किया और समाजवाद की सीख दी। असर भी हुआ और जो मामला पुलिस के दायरे में था, वह मैडम की दहलीज पर ही खत्म हो गया। हालांकि, सवाल यह है कि अपराधी को सज़ा दिलाने से ज्यादा समझौता कराना कितना उचित है?
शोले का हरीराम कुशासन में मचा रहा धूम!
कुशासन संस्थान के प्रभारी मुखिया ने कंसल्टेंसी का नया खेल शुरू कर दिया है। रिसर्च के बजट में कटौती कर 80,000 रुपये प्रतिमाह की सैलरी पर कुछ कंसल्टेंट नियुक्त किए गए हैं। इनकी आधी सैलरी साहब खुद रख लेते हैं! इतना ही नहीं, इनकी नियुक्ति में भारी गड़बड़ी की गई है। न तो इन्हें न्यूनतम 5 वर्षों का अनुभव था और न ही व्यावहारिक ज्ञान। लेकिन माया के आगे कानून को ताक पर रखना ही पड़ता है! अब चूँकि इन कंसल्टेंट्स को काम करना नहीं आता, तो वे शोले के हरीराम की तरह इधर-उधर की चुगली और झूठी रिपोर्टिंग में ही व्यस्त रहते हैं।
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