द इनसाइडर्स : गरम-नरम-बेशरम थ्योरी से पूर्व बड़े साहब ने बटोरा माल, एमपी में दिखेगा शेषन का नया अवतार, सोने के बिस्किट की अनकही दास्तान

द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए बड़े साहबों, मैडमों और बड़े कप्तानों के अनसुने और रोचक किस्से

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल | गतांक से आगे… दिग्गी राजा के दौर में योग: कर्मसु कौशलम जो अब इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव मैनेजमेंट सर्विस में तब्दील हो चुका था। और तब कुछ लोगों ने IAS(आई एम सुप्रीम) के भाव के साथ “गरम -नरम- बेशरम” की थ्योरी अपना ली। अमूमन तब अफसरों को 3 से 4 जिलों की जिला हुक़ूमगिरी मिलती थी। पहले जिले में जिला हुकुम रहते थे.. “गरम” (ईमानदार, तुरन्त एक्शन, जिले में आते ही सस्पेंशन की बहार… अतिक्रमण तोड़-फोड़ अर्थात इमेज बिल्डिंग)। दूसरे में जिला हुकुम रहते थे थोड़े “नरम” (व्यवहारिक ईमानदार यानी आबकारी/जिलापंचायत/खनिज को छोड़ सबके लिए ईमानदार) तीसरे और चौथे में सम्भागीय जिले में हुकुम ओढ़ लेते थे “बेशरम”…(सब आने दो..पहले जिले में क्रिएटेड इमेज का नकदीकरण..कर लेते थे) फिर ये लोग बची जिंदगी वल्लभ भवन में बैठकर Tyler Durden के इस कथन पर गुजार देते हैं “We work jobs we hate, to buy things we don’t need, to impress people we don’t like..” (इस गरम-नरम-बेशरम थ्योरी के श्रेष्ठ और सामयिक उदाहरण हैं पुराने बड़े साहब जो आजकल चर्चाओं में हैं..इमेज के मामले में ..कहां से शुरू हुए थे ..और आज कहां पहुंच गए। और अपने युवा अधिकारी पुत्र को ये कैसी विरासत दे गए?) लेकिन इसी दौर में काफी लोग नैसर्गिक रूप से ईमानदारी पर भरोसा रखते थे और बहुतायत “आटे में नमक भर” के सिद्धांत पर कायम थे..। इसके बाद की बातें अगले अंक में। और शुरू करते हैं बड़े साहबों और मैडमों की अंतर्कथाओं के गरम से नरम और बेशरम होने तक के किस्से। पढ़िए और लीजिए चटखारे रोचक अंदाज में सिर्फ ‘द इनसाइडर्स’ पर…

एक और टीएन शेषन की तैयारी
वांटेड फिल्म का मशहूर डॉयलाग है – “एक बार मैंने जो कमिटमेंट कर दी, फिर मैं अपने आप की भी नहीं सुनता।” – कुछ ऐसे ही हैं मध्य प्रदेश के बड़े कप्तान साहब। वे खुद भी चाह लें तो बेईमान नहीं बन सकते। ऐसे लोग उच्च कोटि की बौद्धिकता के साथ उच्च कोटि के संस्कार लेकर पैदा होते हैं। खैर मुद्दा तो ये है कि उनका एक X (ट्वीट) चर्चाओं में है जिसमें उन्होंने लिखा है “मैं खुद को इम्प्रेस सिर्फ अच्छा व्यक्ति बनकर कर सकता हूँ..आप की शख्सियत, कपड़े और हैसियत जो भी हो, मुझे सिर्फ सच्चे और सरल लोग पसंद हैं।”.. उनकी इस बात पर हमें तो एक नए टीएन शेषन की आहट सुनाई दे रही है। वैसे भी, कृष्ण-मोहन को 16 कलाओं वाली लीला रास आती है तो शिव कैलाश को ध्यान और धूनी… जाने कैसे निभ रही होगी? फिर भी हम एक व्यवहारिक सलाह दे ही देते हैं “बड़े कप्तान साहब ये क्या गज़ब कर रहे हो ..गंजों के शहर में कंघियां बेच रहे हो।

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अपनी मर्यादा का भान…
स्वच्छ, विनम्र और ईमानदार छवि के बड़े साहब जब अचानक ही शाहनामा से पदस्थ हुए तो वल्लभ भवन के वातावरण में ताजी और न्यायपूर्ण हवा की उम्मीद जागी। हुआ भी उम्मीदों के अनुरूप ही। साहब बहादुर ने विनम्र मगर कठोर शब्दों में तेज बैटिंग करने वाले व्यवहारिक अफसरों की क्लास लेना शुरू कर दी। साहब ने शुरू में अपने दायरे को पूरे प्रदेश भर में फैला लिया था। पर अब लगता है उन्होंने अपनी मर्यादा बांध ली है ..अब वे डॉक्टर साहब की A+,A नोटशीटों पर न कोई टीप लिखते हैं और न ही संविदा प्रमुख अभियंता जैसे पचड़ों में पड़ते हैं। शायद वे इसे किसी अन्य का स्वेच्छाधिकार मानते हैं पर अपने अधीनस्थों की जम कर क्लास लेते हैं। व्यापमं के नए नाम वाले संस्थान और सभी विभागों में नई नौकरियों के लिए ली गई बैठक में वो अन्य अधिकारियों के अलावा शिक्षा वाले प्रमुख सचिव पर जम के बरस पड़े कि आप लोग कुछ नहीं कर रहे क्या आपके कार्यालय में मुझे बैठकर आंकड़े निकलवाने होंगे। जो आंकड़े दिए जा रहे हैं वे बेमेल हैं। इनकी जांच क्यों नहीं की? बड़े साहब को देखकर समझ आता है कि मर्यादित आचरण से ही कीचड़ में कमल खिलता है।

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छोटे से कार्यकाल के बड़े बड़े कारनामें…
सेवा निवृत्त बड़ी मैडम का कार्यकाल यूं तो एक्सटेंशन मिला कर भी वक्त के लिहाज़ से ज्यादा बड़ा नहीं था पर जितने खेल उन्होंने किए हैं, उससे लगता है कि “सौ सुनार की एक लोहार की..” वाला मुहावरा उन पर फिट बैठता है। डॉक्टर साहब नए-नए राजा बने थे और इसी चक्कर में बरसों से लूपलाइन में बैठी भूखी बाघिन को मौका मिल गया। लिहाजा, कलियासोत डैम के पास के वाल्मी संस्थान पर असली बाघों के विचरण वाले स्थान पर मनुष्य रूपी भूखी बाघिन ने नजरें गड़ा दी। कोलार रोड की बहुत सारी कॉलोनी बनाने वाले बिल्डर और रसूखदार चाहते थे कि वाल्मी में से आने जाने का रास्ता मिल जाए, जिससे कलियासोत डैम का व्यू कुछ मिनटों दूर रह जाएगा। जबकि सरकार की इच्छा थी कि वाल्मी का वातावरण शुद्ध रखने के लिए व्हीकल की अनुमति न दी जाए। लेकिन जैसे ही वाल्मी की मजबूत IAS प्रशासक सेवानिवृत्त हुईं। भूखी बाघिन ने मुख्यमंत्री जी की इच्छा के विरुध्द वाल्मी से आने जाने की अनुमति दे दी। अब इसके एवज में भूखी बाघिन को प्लॉट मिले या सोने के बिस्किट यह खोज का विषय है।

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बड़े साहबों का पानी के पास वाली प्रॉपर्टी का मोह
भोपाल तालाबों के शहर के रूप में मशहूर है..तो इस शहर के रसूखदार पानी(झील/तालाब) के पास की प्रॉपर्टी के लिए जान छिड़कते रहे हैं। अब बड़ा तालाब, केरवा, शाहपुरा झील का किनारा पुराने नेताओं और अधिकारियों ने बांट लिया तो नए रसूखदारों अर्थात बड़े साहबों ने बड़े तालाब का दूसरा किनारा(सेवनिया गौड़) और कोलार डेम संभाल लिया। पुरानी बड़ी मैडम कोलार पर तो पुराने बड़े साहब सेवनिया पर जम गए। कहते हैं कि पीठ के बच्चों की आपस में नहीं पटती तो यही बात इन दोनों में भी रही। पुरानी बड़ी मेडम ने अपने पट्ठे को नक्शे पास करने वाले विभाग में बिठा कर पुराने बड़े साहब के सेवनिया वाले प्रोजेक्ट की अनुज्ञा स्थगित करवा दी। बड़ी मैडम के इस बदले से साहब और उनका त्रिशूल धारी पैंसठिया (चमचा) उबर ही नहीं पाए थे कि जाने किसने दिल्ली की जांच एजेंसियों को छू कर दिया।

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परिवहन के बड़े किरदार के फ्लैट में रहती थीं मंत्राणी
पिछले दिनों जांचों में शर्मा एंड शर्मा कंपनी की धूम रही। एक सोने के सिल्लयों के कारण तो दूसरा जमीनों के फैलाव के कारण। पर वल्लभ भवन के गलियारों में तीसरे शर्मा की चर्चा भी जोरों पर है। (इनकी चर्चा नीचे के किस्से में) पर सबसे कमाल हैं दिग्गी राजा …उन्होंने परिवहन घोटाले में ठाकुर, ओबीसी, कायस्थ और ट्राइबल सभी को समभाव से जोड़ दिया और शेष खिलाड़ियों के नाम ले लिए। इनमें से एक खिलाड़ी नर्मदा किनारे का रहने वाला है। उसने बांद्राभान में करोड़ों खर्च करके यज्ञ करवाया था, राजधानी की प्राइम लोकेशन बोर्ड आफिस पर उसके आधा दर्जन फ्लैट हैं। एक मंत्राणी जो इन्हें अपना भाई मानतीं हैं सरकारी बंगला मिलने से पहले इसी में रहती थीं। पहचान के लिए बता दें कि पहले राज्यसभा सदस्य थीं।

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….न खाया …न खाने दिया …और रायता अलग फैला दिया…
शर्मा एन्ड शर्मा की धूम में एक और शर्मा जी नेपथ्य में थे। दरअसल पूर्व परिवहन का प्रसाद का हिसाब सरकार तक नहीं पहुँचा था तो दबिश के लिए अरेरा हिल्स स्थित काशी घाट(जांच एजेंसी) पर शर्माजी पहुंचे। काशी घाट ने असमर्थता व्यक्त की…पर कलेक्ट्रेट के पास SBI चौराहा स्थित पण्डों की तरफ रास्ता बता दिया। ये तो ठीक किया पर काशी घाट ने कांस्टेबल को और दिल्ली वाली जांच एजेंसियों को भी खबर कर दी। मतलब जम के मचा दिया। नतीजा साफ है सारे पंडे भूखे रह गए और माल सरकारी खजाने में जमा हो गया।
सोने के बिस्किट वाले सिपाही की अनकही दास्तान
जहां हर जरूरतमन्द हैरत में है और सोच रहा है कि काश एक सोने का ही बिस्किट मिल जाता तो उसकी आधी समस्याओं का अंत हो जाता, वहीं काली कमाई के खिलाड़ी भी सात वर्ष की सिपाही की नौकरी में सात जन्मों का माल जमा कर लेने से चकित हैं। पर आश्चर्य की बात तो ये है कि अनुकम्पा की नियुक्ति परिवहन विभाग में सत्ताधारी दल नहीं बल्कि विपक्षी दल के नेता ने करवाई थी। ग्वालियर क्षेत्र के ये ठाकुर साहब दिग्विजय मंत्रिमंडल में रहे। लगातार विधायक, खदान, पहलवानी, खेल और तमाम रंगीन खेलों के शौकीन के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। इनका सिपाही के परिवार में घरोबा था। लिहाजा, परिवार का ख्याल ठाकुर साहब ही रखते थे। सिपाही उनके लिए पुत्रवत था। सो उन्होंने सागर के मंत्री जी से विशेष निवेदन करके नियुक्त दिलवा दी। मजेदार बात ये है कि पुत्रवत सिपाही भी बैटिंग करने में पितातुल्य से भी तेज निकला पर अफसोस… सफलता हज़म नहीं कर पाया।

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कर्मा रिटर्न्स…
कहते हैं कि कर्म लौटते जरूर हैं…कभी-कभी इसी जिंदगी में और खासकर बुढ़ापे की ओर बढ़ते कदम के वक्त। और कभी कभी अगले जन्म में पर इसे खुशकिस्मती कहें या बदकिस्मती…लेआउट की परमिशन देने वाले विभाग में वरिष्ठ पद की मोहतरमा के कर्म नौकरी के शेष रहते ही लौट आये। भोपाल की आबोहवा का आनंद ले रही मोहतरमा के दो भाई बिल्डर हैं ..होटल्स भी हैं। मोहतरमा के पद का दोनों भाईयों और खुद मोहतरमा ने खूब फायदा लिया। उल्टे सीधे काम किए और करवाए भी।…पर नियति को कुछ और ही मंजूर था दोनों भाइयों में जंग छिड़ गई ..छिड़ क्या गई …मच ही गई। दोनों ने पुरानी गलत अनुज्ञा की शिकायतें शुरू कर दी। रक्षाबंधन को भूल दुश्मनी की अग्नि में अपनी ही बहन की शिकायत करने लगे। होना क्या था, अब सुरीली आवाज़ की सिंहनी जांच झेल रही है। जी हां कर्मा रिटर्न्स…

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मंदिर से फिर हुई रवानगी
धार्मिक नगरी में इन दिनों काफी उठक-पटक चल रही है। पहली तो 2028 में होने वाले महा धार्मिक आयोजन की। दूसरी प्रदेश के मुखिया के गृहक्षेत्र होने की वजह से। और अब तीसरी है मंदिर क्षेत्र में टिकटों की खरीद-फरोख्त के गोरखधंधे की। जैसे ही इस साल आय कम हुई तो प्रशासन की कलई खुल गई। जांच हुई तो कुछ गिरफ्तार हुए तो कुछ हिरासत में। इस सबके बीच मुख्य प्रशासक की रवानगी कर दी गई। वैसे यह साहब संघ की सिफारिश से आए थे। और पहले भी यहां पदस्थ थे, तब भी बड़े कारनामों की वजह से हटाए गए थे। हालांकि प्रशासन एक और बड़ी चूक करने वाला था लेकिन किसी बाहरी व्यक्ति की सजगता काम आ गई। प्रशासन यहां की कमान महिला अफसर के हाथ में दे रहा था। तभी जिला हुकुम को बताया गया कि यह परंपरा के खिलाफ होगा।

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रंगीला राहू दिन में ही शुरू कर देता है राग रंग
पिछले अंक में जल जीवन मिशन की बैलगाड़ी के श्वान चालक अर्थात हमारे बिटकॉइन वाले रंगीले राहू के अर्जन के किस्से पढ़े। अब उनके विसर्जन के किस्से पढ़ें। दिन भर की कमाई के बाद राहु भैया शाम को आलोकित करने निकल आते हैं किसी मॉल के ऐसे बार में जहां “STAGS ARE NOT ALLOWED” लिखा होता है। साथ में होता है एक पंजाबी ठेकेदार जो इनका पार्टनर बताया जाता है। तो जाहिर है इस BAR में “साथी” की व्यवस्था साथी ठेकेदार ही करता है। राहू भैया जब भी सम्भागीय टूर पर जाते हैं तो बैठक के बाद जहां सचिव और प्रमुख अभियंता फील्ड टूर पर जाते हैं। राहू भैया होटल के कमरे में दिन में ही राग-रंग शुरू कर देते हैं (हम पहले ही बता चुके हैं ये फील्ड में कभी सफल नहीं रहे)। IAS अधिकारियों की तरह इन्हें भी इंदौर की होटल में रात्रि विश्राम करना प्रिय है। इंदौर वाला आनंद ये कभी कभी फर्जी हाइड्रो फ़्रैक्चर करने में महारथी ठेकेदार के रायसेन रोड वाले फार्म हाउस में भी ले लेते हैं। और महफ़िल में अक्सर कहते हैं भले ही कुछ नम्बर से UPSC चूक गया तो क्या हुआ, मजे तो पूरे उनके लेवल के ही करूंगा…निरंतर….

अब हम नए साल में मिलेंगे। नए किस्सों और नए धमाकों के साथ अगले शनिवार दोपहर 12 बजे हमारे अड्‌डे यानी www.khashkhabar.com पर। वैसे, बता दें कि नए धमाके की धमक मंत्रालय की पांचवें माले पर सुनाई दे रही है। यहां से एक पॉवरफुल हस्ती की विदाई के साथ दूसरे पॉवरफुल के आने की आहट है। साथ ही, एक बड़ी सूची की तैयारी भी। फिलहाल, पुराने साल से विदा लेते हुए आप सबको नए साल की अग्रिम शुभकामनाएं। सियावर रामचंद्र की जय…

 

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