द इनसाइडर्स: डूब की जमीन को सोने में बदलने का यादव तरीका सीखिए, एसपी साहब ‘ख्याति’ से दिखा रहे दिखावटी दूरी

द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए पद की लालसा और लोलुपता में लिपटे ब्यूरोक्रेट्स के किस्से

कुलदीप सिंगोरिया | हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार, निंबधकार और पत्रकार श्री कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ के व्यंग्य ‘पद की चाह’ की कुछ पंक्तियां विशेषतौर पर सुधि पाठकों के लिए पेश है।
1. “जिसने पद पाया, वही सच्चा, बाकी सब फिजूल हैं।”
2. “पद की चाह में आदमी अपना मुँह भी भूल जाता है।”
3. “कभी-कभी तो लगता है, पद के लिए लोग अपने बाप तक को भुला देते हैं।”
अब इन पंक्तियों को यहां लिखने का खास निहितार्थ है। प्रदेश को एक-दो दिन में नया प्रशासनिक मुखिया मिलने वाला है। इसके बाद, ट्रांसफर पोस्टिंग का सीजन भी शुरू होगा और सरकार भी निगम-मंडलों आदि में नियुक्तियां करेगी। लिहाजा, पद की लालसा या लोलुपता रखने वालों को यह लाइनें बस आइने को दिखाने के लिए है। खैर, भूमिका ज्यादा लंबी न बांधते हुए शुरू करते हैं आज के द इनसाइडर्स के अंक की। पढ़िए किस्सों को चटखारे वाले अंदाज में…
यह चोट्‌टों की लिस्ट है…
खबर पुलसिया महकमे से है। यहां के बड़े साहब ने एक तबादला सूची बनाई। जिसमें कि बड़े-बड़े और अपने खासमखासों के नाम शामिल किए। जैसे ही यह सूची सरकार के पास पहुंची तो वहां एक सीनियर अधिकारी ने टिप्पणी की। यह तो चोट्‌टों की लिस्ट है। उनका इतना कहते ही लिस्ट रद्दी की टोकरी में समा गई। साथ ही साहब को नसीहत दी गई कि सीनियर अफसरों की पोस्टिंग में दिमाग न लगाएं, यह काम सरकार का है। वैसे, लिस्ट के पीछे साहब की मंशा थी कि उनके रिटायरमेंट से पहले अपने लोग अहम पदों पर बैठ जाए।

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अपनों से ही गच्चा खा गए विधायक जी
कबीर के एक दोहे की लाइन है…माया महा ठगनी…। तो इस माया के लिए विंध्य क्षेत्र के एक विधायक जी ने क्या कुछ नहीं किया। पार्टी तक बदल दी। लेकिन माया के मोह में उनके अपनो ने ही धोखा दे दिया। जिनके नाम से खदानें और प्रापर्टी लीं, उन्होंने बगावत कर दी है। हालांकि विधायक जी पॉवरफुल हैं इसलिए अपनी संपत्ति पाने के लिए वैध और अवैध दोनों तरीके से लड़ रहे हैं। कहने वाले कह रहे हैं कि विधायक जी कुछ संपत्ति वापस भी पा लेंगे तो भी असली माल जा चुका होगा। आपको बता दें कि विधायक जी प्रदेश के सबसे अमीर विधायकों में शुमार हैं और खनिज कारोबारी भी हैं।

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डूब क्षेत्र की जमीन पर मोटी कमाई की फिराक में यादव जी
जमीन के जादूगरों का स्वर्णिम काल चल रहा है। क्योंकि, कोरोना काल के बाद से ही जमीन की कीमतों में आग लगी हुई है। वैसे इसकी एक और वजह भी है। प्रदेश की तीन बड़े शहरों के इंदौर, भोपाल और जबलपुर के मास्टर प्लान आने हैं। इसलिए रसूखदारों से लेकर दलाल तक के वारे-न्यारे हो रहे हैं। सस्ती जमीन खरीदकर मास्टर प्लान के ड्राफ्ट में इसका लैंडयूज चेंज करने के लिए पर्दे के पीछे से काम चल रहा है। तो फिर हमारे यादव जी क्यों पीछे रहें। यादव जी सरकार के रिश्तेदार जो ठहरे। वे अपने इसी संबंध का उपयोग कर कटारा हिल्स क्षेत्र में जमीन खरीद रहे हैं। यहां लहारपुर डेम की डूब क्षेत्र की सस्ती जमीनों के सौदे हो रहे हैं। और दूसरी तरफ, मास्टर प्लान में इस जमीन को आवासीय करने की कोशिश की जा रही है।

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ईओडब्ल्यू की चाहत पर फिरेगा पानी, बन सकते हैं एडीजी इंट
एक कद्दावर सीनियर आईपीएस ईओडब्ल्यू चीफ बनने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। लेकिन सरकार की मंशा कुछ और ही है। उन्हें एडीजी इंट भी बनाया जा सकता है। हालांकि इस पद के लिए दो और नामों पर भी विचार चल रहा है। जिनमें से एक अभी प्रदेश की आर्थिक राजधानी में पदस्थ हैं। वहीं कद्दावर सीनियर ऑफिसर के भाई प्रदेश के नामचीन कान्टेक्टर के पार्टनर हैं। जबकि, एक और भाई भी हाल ही में आईपीएस से रिटायर हुए हैं।

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बैल का भी दूध दुहने की कोशिश में यादव जी
खाने-पीने के सामानों से संबंधित विभाग के एक निगम के मुखिया की बैटिंग पूरे फार्म के साथ जारी है। हर जिले के अफसरों को टारगेट दे दिए गए हैं। टारगेट काम का नहीं, बल्कि वसूली का है। इसके साथ ही निगम के हर उस काम पर साहब की नजर है जहां से बैल का भी दूध दुहा जा सके। अब साहब की और पहचान के लिए बता दें कि उनका सरनेम यादव है।

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दिग्भ्रमित साहब की वजह से सरकार को लगेगा चूना
स्मार्ट सिटी वाले एक साहब मीटिंग में नहीं पहुंचे तो राजधानी के विधायक खफा हो गए थे। इनके बारे में एक इनसाइडर ने बताया है कि साहब काम में बेहद सुस्त हैं और निर्णय लेने की बजाय टालते रहते हैं। खासकर ठेकेदारों के बिल और एसडी। बिल क्यों अटकाए जाते हैं, यह तो आप जानते ही हैं? लेकिन, इसका खामियाजा विभिन्न शहरों में सीवरेज व पानी सप्लाई के कामों को करने के लिए बनाई गई कंपनी को हो रहा है। साहब के निर्णय नहीं लेने से प्रोजेक्ट्स में देरी हो रही है। ठेकेदार तो सरकार की गलती बताकर एस्केलेशन मांग लेंगे लेकिन इस नुकसान की भरपाई तो सरकारी खजाने यानी कि आपके-हमारे टैक्स से ही होगी न। वैसे, साहब के पास संचालनालय का भी काम है।

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जिद कर ईएनसी बनें, अब खानी पड़ रही डांट
सरकार से सीनियरटी का हवाला देकर एक इंजीनियर साहब ईएनसी बन गए। वह भी तब जबकि, वरिष्ठ अधिकारी उनके नाम पर सहमत नहीं थे। अब इंजीनियर साहब को उनके कोप का भाजन होना पड़ रहा है। साहब को याद दिलाया गया कि ईएनसी के ऑर्डर के लिए उन्हें चार महीने का इंतजार करवाया गया था। काम में सुधार नहीं लाए तो हटाने में देर नहीं लगेगी। वैसे, ईएनसी साहब इससे पहले जबलपुर में पदस्थ थे और सत्ता पक्ष के सीनियर व अमीर विधायक के रिश्तेदार हैं। इनके पहले के किस्से के लिए क्लिक करें – बहनोई की वजह से बन गए ईएनसी

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सीनियर आईपीएस का घर भी मणिपुर हिंसा की चपेट में
नजीर अकबराबादी की इस पंक्ति पर गौर फरमाएं…
“खुश रहने का क्या अंजाम हो जाए,
जब दंगों की लहर से सब कुछ बर्बाद हो जाए।”
कुछ ऐसा ही हुआ है मध्यप्रदेश कैडर के सीनियर आईपीएस अफसर के साथ। मध्यप्रदेश कैडर के यह अफसर हाल ही में रिटायर हुए थे। चूंकि वे मणिपुर से थे, इसलिए वहीं पर उन्होंने रिटायरमेंट के बाद सेटल होने की प्लानिंग की थी। एक शानदार घर भी बनवाया था। लेकिन, मणिपुर हिंसा में उनका घर आग की भेंट चढ़ गया।

दूर तक ‘ख्याति’ फैलने के बाद दिखा रहे दिखावटी दूरियां
द इनसाइडर्स के पिछले अंक में एक एसपी और सीएसपी मैडम की नजदीकियों का खुलासा हुआ था। इसके बाद से एसपी साहब के कान खड़े हो गए। उन्होंने दूर-दूर तक फैली ‘ख्याति’ को समेटने के लिए दिखावटी दूरियां बनानी शुरू कर दी हैं। अब उन्होंने सीएसपी मैडम के ऊपर एक एएसपी साहब की तैनाती कर दी है। अब एसपी साहब फील्ड में भी सीएसपी मैडम की बजाय एएसपी के साथ जाते हैं। हालांकि मैडम की जेब भरी रहे, इसके लिए उन्हें चालानी कार्रवाई का हेड बना दिया है। हमारे इनसाइडर ने बताया कि इस नए काम के लिए नियम विरूद्ध आदेश निकाला गया है।

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भाड़े की सेना और अमानत में खयानत…
आधुनिक काल के इतिहास में भारतीय राजाओं के कमज़ोर होने का फूट के अलावा भी एक कारण था कि वे खर्च कम करने के लिए किराए की सेना रखने लगे थे। कभी कभी तो पिंडारियों की मदद भी लेते थे। इससे खर्च तो कम होता था पर ये लोग राज्य की प्रजा की लूटमार बहुत करते थे। कुछ-कुछ विदेशों की वेगनर आर्मी की तरह। ठीक यही कहानी पानी से संबंधित विभाग में दोहराई जा रही है। यहां मूल कर्मचारियों की बजाय सस्ते और तेज तर्रार संविदा के अधिकारी रखे जा रहे हैं। जिनकी लॉयल्टी संगठन की बजाय व्यक्ति विशेष और धनार्जन की है। और यह सब जिनके नेतृत्व में हो रहा है, वह हैं हमारे प्रिय बड़के इंजीनियर बाबू उर्फ संविदा कृष्ण। उनके भाड़े के सैनिक हैं संविदा वाले पार्थ, संविदाधारी कटारे आदि-आदि। इन सबकी कोई लॉयल्टी यदि है तो सिर्फ स्वयं की जेब के प्रति। पिछले दिनों इस भाड़े(संविदा) की सेना ने “अमानत में खयानत” कर बड़ी अनियमितता कर दी। ठेकेदारों की 800 करोड़ की राशि जो सिक्योरिटी डिपाजिट के रूप में रखी थी, जो उन्हें कार्य पूर्णता के बाद मिल जानी चाहिए थी, उस राशि को अन्य प्रिय ठेकेदारों के लिए बांट कर मोटा माल प्राप्त कर लिया। और जब असली ठेकेदारों ने राशि की मांग की तो उन्हें कोई तकनीकी खराबी का बहाना बता दिया। अब ये ठेकेदार दर दर भटक रहे हैं। और संविदा कृष्ण दक्षिण भारत में “व्यक्तिगत व्यावसायिक पर्यटन” पर भ्रमण कर रहे हैं। लेकिन उनके गण(राहु केतु) फैला रहे हैं कि साहब क्षेत्र में बैठक ले रहे हैं।

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