द इनसाइडर्स: आईएएस पूजा खेडकर की तरह प्राइवेट कार में हूटर बजाती हैं मैडम, कलेक्टर साहिबा को घूरने वाले ड्राइवर की छुट्टी
रुतबे के फेर में 2023 बैच की आईएएस पूजा खेडकर की हकीकत सामने आ चुकी हैं। द इनसाइडर्स में इस बार पढ़िए ब्यूरोक्रेसी के इसी तरह के रसूख और रुतबे के किस्से…
कुलदीप सिंगोरिया | द इनसाइडर्स में सत्ता के साथ सुंदरी का मेल, चापलूसी के किस्से और कमीशनखोरी की कहानियां आप सुन चुके हैं। इस बार हम आपको बताएंगे रसूख और रुतबे के किस्से। इस बारे में इसलिए भी जानिए, क्योंकि देश में आईएएस पूजा खेडकर का मामला चर्चा में है। लोग बताते हैं कि पूजा खेडकर की हकीकत सामने न आती, यदि वे रुतबे यानी लाल बत्ती की शौकीन न होती। पढ़िए इन किस्सों को और लीजिए चटखारे…
आईएएस मैडम की प्राइवेट कार में हूटर, रहवासी परेशान
प्रदेश के दूसरे नंबर के नगरीय निकाय में पदस्थ एक आईएएस मैडम को रसूख दिखाने का ज्यादा ही शौक है। उन्होंने भी आईएएस पूजा खेडकर की तरह ही प्राइवेट कार में हूटर लगा रखा है। इनसाइडर ने बताया कि मैडम और उनके परिवार को पावर का नशा है। वे निकाय की ओर से मिली कार में घूमती हैं और प्राइवेट कार का इस्तेमाल घर-परिवार वाले करते हैं। इस प्राइवेट कार के हूटर की आवाज से आसपास के रहवासी भी परेशान हो चुके हैं।
कलेक्टर साहिबा को ड्राइवर घूरता था, इसलिए हो गई छुट्टी
प्रदेश के मालवा क्षेत्र के एक जिले की कलेक्टर साहिबा अपनी ‘मित्रता’ के लिए मशहूर हैं। इस मित्रता का मतलब निकालना उनके एक ड्राइवर पर भारी पड़ गया। कलेक्टर साहिबा का आरोप है कि ड्राइवर उन्हें घूरता था। लिहाजा, उन्होंने उसकी छुट्टी कर दी। मैडम का यह कोई पहला मामला नहीं है। पहले भी एक ड्राइवर ने मैडम से कथित तौर पर अपमानित होकर अपनी खुदकुशी कर ली थी। यही नहीं, जब मैडम प्रशिक्षु थीं, तब भी एक व्यक्ति के खिलाफ यौन उत्पीड़न की एफआईआर दर्ज करवा दी थी। वैसे, हर बार मैडम के निशाने पर पुरुष ही क्यों होते हैं, इस बारे में भोपाल की भाई संस्था (पुरुषों के हक में आवाज उठाने वाली संस्था) को गौर फरमाना चाहिए। इनसाइडर मैडम के बारे में यह भी बताते हैं कि वे कथित तौर पर फ्लेवर्ड ई-सिगरेट पीने की शौकीन हैं।
पांडे जी हैं न!
प्रदेश के मध्य हिस्से से आने वाले एक जिले के कलेक्टर से यदि आपकी दोस्ती है तो पांडे जी आपके लिए बड़े काम के आदमी हैं। कलेक्टर साहब का पांडे जी पर इतना यकीन है कि वे ही लाइजनिंग के सारे काम देखते हैं। सभी विभागों में संपर्क कर फाइल क्लीयर कराते हैं। इसलिए कलेक्ट्रेट ऑफिस ही नहीं, पूरे जिले में पांडे जी कर नाम हर अफसर की जुबान पर चढ़ा रहता है। पांडे जी कोई प्राइवेट व्यक्ति नहीं है, बल्कि डिप्टी कलेक्टर रैंक के अफसर हैं। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि असली कलेक्टरी तो पांडे जी ही करते हैं।
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विधायक की नए कलेक्टर भवन के निर्माण में रुचि का राज!
नव गठित जिले के कलेक्टर और विधायक कलेक्ट्रेट भवन के लिए आपस में ही भिड़ गए। कलेक्टर जनता की सुविधा के हिसाब से भवन निर्माण के लिए जमीन का चयन करना चाहती हैं। लेकिन, विधायक ने साफ कह दिया कि अभी जहां अस्थाई तौर पर कलेक्ट्रट ऑफिस चल रहा है, वहीं नया भवन बनाया जाए। इसकी पीछे की कहानी यह है कि विधायक महोदय ने अस्थाई कलेक्टर भवन के आसपास अपनी कॉलोनियां विकसित करवा दी है। वे कलेक्ट्रेट भवन का सपना दिखा महंगे दामों में प्लॉट भी बेच रहे हैं। कलेक्टर यह बात जानती हैं, इसलिए वह भी नई जगह पर भवन निर्माण की बात अड़ी हैं। आखिर में किसकी जीत होती है, इस पर सबकी नजर टिकी हैं।
पूर्व मंत्री का बंगला मोह, अब बेटी के नाम चाहिए आवास
राजनीति में जीत-हार चलती रहती है, ऐसा सभी राजनीतिज्ञ कहते हैं। लेकिन खुद पर क्या बीतती है, वह तो हारने वाला ही जानता है। विधानसभा चुनाव में एक मंत्री करीबी मुकाबले में हार गए। तब उन्होंने किसी तरह खुद को संभाला, लेकिन बंगला खाली करने के नोटिस ने उनके मासूम से दिल को बड़ी ठेस पहुंचा दी। कई दरवाजों पर दस्तक के बाद उन्हें उम्मीद की एक किरण मिल गई। उन्हें याद दिलाया गया कि उनकी बेटी सरकारी सेवा में है, उसी के नाम से बंगला अलॉट करवा लो। इस बात को सुनकर पूर्व मंत्री के चेहरे का नूर देखते ही बनता था। उन्होंने सरकार के पास बेटी के नाम से बंगला अलॉटमेंट का फौरन आवेदन कर दिया लेकिन अभी तक उन्हें यह मिला नहीं है। ऐसा क्यों हो रहा है, यह जानने के लिए सिर्फ यह समीकरण जान लीजिए कि पूर्व मंत्री पूर्व मुख्यमंत्री के बेहद करीबी थे।
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मंत्री मुझे हटा नहीं सकते हैं, इसलिए वसूलेंगे ज्यादा कमीशन
जन सुविधाओं का निर्माण करने वाले विभाग में एक चीफ इंजीनियर सब पर भारी है। राजधानी में ही पदस्थ इस चीफ इंजीनियर ने अपनी वजनदारी बताने के लिए सबको कहना शुरू कर दिया है कि उनकी पोस्टिंग ऊपर से हुई है, इसलिए मंत्री जी उसका बाल भी बांका नहीं कर सकते हैं। जब मंत्री हटा नहीं सकते हैं तो फिर उनकी सुने भी क्यों? इनसाइडर को पता चला है कि अपनी इसी ठसक के बलबूते पर इंजीनियर ने ठेकेदारों से ज्यादा वसूली शुरू कर दी है। वैसे, इंजीनियर को विभाग के प्रशासनिक मुखिया का भी वरदहस्त प्राप्त है। सीधे-साधे, सरल और सहज मंत्री जी हमेशा की तरह शांत है। लेकिन उनको करीब से जानने वाले बताते हैं कि मंत्री जी बहुत आराम से अकड़ वालों का इलाज करते हैं।
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