मध्य प्रदेश के 9 जिलों में गधों का सफाया, चीन के प्रभाव पर सवाल

भोपाल 

क्या मध्य प्रदेश में अब गधे दुर्लभ हो जाएंगे? ये सवाल इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि तीन दशक से भी कम समय में इनकी संख्या में 94% की कमी आई है। एमपी में गधों की जमसंख्या में तेजी से गिरावट देखी गई है। नई रिपोर्ट बताती है कि हिंदुस्तान का दिल कहे जाने वाले इस प्रदेश में अब सिर्फ 3,052 गधे बचे हैं, जो कि 1997 में 49,289 की संख्या से एक बड़ी गिरावट है। राज्य के 55 में से नौ जिलों में एक भी गधा नहीं पाया गया है,जो इस बात का संकेत है कि यह जानवर,जो कभी ग्रामीण भारत में परिवहन और व्यापार का मुख्य आधार था,लगभग पूरी तरह से गायब हो चुका है।

गधों के गायब होने का कारण

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार,गधों के गायब होने के पीछे अभी तक कोई खास अध्ययन नहीं हुआ है,लेकिन गुड़गांव के एक पशु अधिकार कार्यकर्ता नरेश कादियान ने केंद्र सरकार से गधों को लुप्तप्राय प्रजाति घोषित करने का आग्रह किया है। वह चेतावनी देते हैं कि चीन की गधों की खाल की मांग ही इस गिरावट का कारण बन रही है। वह चीन के एजियाओ उद्योग को इसके लिए दोषी मानते हैं। इस उद्योग में गधों की खाल को उबालकर एक जिलेटिन निकाला जाता है जिसका इस्तेमाल पारंपरिक टॉनिक,कामोत्तेजक और एंटी एजिंग क्रीम बनाने में किया जाता है। इसी वजह से यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रही है।

आधिकारिक आंकड़े

आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार नर्मदापुरम में सबसे ज्यादा (332) गधे हैं। इसके बाद छतरपुर (232),रीवा (226) और मुरैना (228) का नंबर आता है। दूसरी ओर विदिशा में जहां कभी 6,400 से ज्यादा गधे थे,अब वहां सिर्फ 171 बचे हैं और भोपाल में केवल 56 । डिंडोरी, निवाड़ी, सिवनी, हरदा और उमरिया जैसे जिलों में एक भी गधा दर्ज नहीं हुआ है,जो स्थानीय रूप से उनके विलुप्त होने की पुष्टि करता है।
अन्य पशुओं की स्थिति

जनगणना से पशुधन की अन्य श्रेणियों में भी बड़े रुझान सामने आते हैं। मध्य प्रदेश में कुल 3.75 करोड़ जानवर हैं, जिनमें शामिल हैं:

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