द इनसाइडर्स : जूनियर IAS दोषी, सीनियर ने मलाई काटी; कलेक्टर ने कहा- मैं काबिल नहीं हूं
द इनसाइडर्स में इस बार प्रदेश में दूसरे राज्यों से आकर बसे अफसरों के किस्सों पर प्रवासी पक्षी सीरिज का दूसरा भाग पढ़ें।

कुलदीप सिंगोरिया@9926510865
भोपाल | आप सभी सुधि पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। ईश्वर से प्रार्थना है कि इस बार की रोशनी न सिर्फ़ घरों में, बल्कि सोच में भी उजाला करे। दीपों का यह पर्व अंधकार पर उजाले की विजय का प्रतीक है — और शायद यही अवसर है यह समझने का कि कौन-कौन से “दीपक” हमारे प्रदेश में जलते हैं, और कौन-कौन सी “लौ” बाहर से उड़कर यहाँ चमकने चली आती है। तो आइए, दीपावली के इस उजास में लौटते हैं अपनी सीरिज की ओर — “प्रवासी पक्षी और खानाबदोशी…भाग 2”
प्राचीन काल में मान्यता थी कि नर्मदा नदी के उत्तर में ही शास्त्र अध्ययन करना श्रेष्ठ है। ऐसा इसलिए क्योंकि नर्मदा के दक्षिण में घने जंगल थे और उसमें आदिम जातियां निवास करतीं थीं और तत्समय सनातनी परम्पराएं इन क्षेत्रों में ज्यादा प्रचलन में नहीं थीं। किंतु कालांतर में सब बदल गया।
आज यही प्रदेश — बघेलखण्ड, चंबल, मालवा, निमाड़, महाकौशल और आधा बुंदेलखंड मिलकर — भारत के दिल मध्यप्रदेश का रूप ले चुका है। नर्मदा इसकी आत्मा बनकर ठीक बीचोंबीच बहती है, और यही इसका स्वभाव है — संतुलन का, सहिष्णुता का, और हर आने वाले को अपनाने का।
परंतु विकास की आधुनिक परिभाषा तो प्रकृति के दोहन से बनती है। मानव का स्वभाव भी कुछ ऐसा ही — पहले अपने हिस्से का खाओ, फिर दूसरों के हिस्से पर भी नज़र डालो। भारत के साथ जो हुआ, वही हुआ मध्य प्रदेश के साथ। सदियों से यात्री, ठग, पिंडारी और व्यापारी — सब “प्रवासी पक्षी” बनकर आते रहे, कोई पर फैला गया, कोई डेरा। अब आइए, पश्चिम के उन्नत राज्य गुजरात की उड़ान लेते हैं। काठियावाड़,सौराष्ट्र,मध्य -उत्तर गुजरात में विभक्त ये राज्य व्यापार-डांडिया और नेतृत्व (अडानी, अंबानी, पारसी से लेकर गांधी, पटेल, जिन्ना, मोरारजी आदि-आदि) के लिए विख्यात है। UPSC या MPPSC के प्रवासी पक्षी यहाँ के अभ्यारण में ज़्यादा न दिखे हों, पर इंदौर-उज्जैन से लेकर बीड़ी-दाल के व्यापार तक, गुजराती व्यापारी पक्षियों की चहचहाहट खूब सुनाई दी। ये आए और यहीं ठिकाना बना लिया। लेकिन आजकल तो स्थिति और भी रोचक है — इस प्रदेश में “महामहिम प्रजाति” के कुछ खास पक्षी उतरते हैं। वहीं, अधिकांश पक्षी सरकारी ठेकों और मंत्रालय के तालाबों में तैरते हुए अहमदाबादी प्रभाव के जाल में चर्चित बने रहते हैं।
दरअसल गुजरात में नौकरियों को दोयम दर्जे का माना जाता है भले ही UPSC की क्यों न हो? वहां कहावत है कि IAS-IPS की नौकरी भले ही एक नम्बर है पर पैसा तो दो नम्बरी है। और व्यापार भले ही 2 नम्बर पर होता है पर पैसा तो एक नम्बरी है। इसलिए प्रदेश की नौकरशाही में गुजरात के प्रवासी विरले ही मिलते हैं। दूसरे राज्यों से आए बाकी प्रवासियों के चरित्र का वर्णन अगले अंक में। और इसी के साथ शुरू करते हैं हफ्ते भर के अनुसने किस्सों को चुटीले अंदाज में आज के ‘द इनसाइडर्स’ के अंक में…
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प्रमुख सचिव बोले – गुड गर्वनेंस हमारा काम नहीं
गुड गर्वनेंस यानी सुशासन, किसी भी सरकार का अहम कार्य। और यह कार्य किसके जिम्मे होता है – अफसरों पर। लेकिन एक प्रमुख सचिव यह बात मानने के लिए तैयार नहीं हैं। हाल ही में एक मीटिंग में इस विषय पर चर्चा हुई तो उन्होंने दो टूक कह दिया – गुड गर्वनेंस हमारा काम नहीं है। अधीनस्थ कन्फ्यूज हो गए तो उन्होंने पूछा – फिर किसका कार्य है? प्रमुख सचिव खींसे निपोरते हुए बोले – नेताओं का। उनकी बात सुनकर अधीनस्थों ने माथा पीट लिया और बैठक खत्म हो गई। अब आपको प्रमुख सचिव का परिचय जानने की इच्छा हो रही होगी तो बता दें कि बड़े साहब की कुदृष्टि इन पर पड़ी हुई है। वे बड़े साहब की डांट सुनने वाले स्थायी समिति के सदस्य हैं और जमीनों की नाप-जोख से जुड़े हैं।
मुझसे पूछकर रखा था?
अपने बेबाक बयानों के लिए प्रसिद्ध सीनियर मंत्री जी के मुंहफट अंदाज से सरकार भी सहम गई। सरकार ने एक चर्चा में मंत्री जी से संबंधित विभाग में पदस्थ एक निकाय के कमिश्नर को बहुत भ्रष्ट और नाकाबिल बताया। इतना कहते ही मंत्री जी ने तपाक से कहा – पोस्टिंग से पहले पूछा था क्या? जवाब सुनकर सरकार झेंप गई। गौरतलब है कि मंत्री जी सरकार से इसलिए भी नाराज रहते हैं कि विभाग की पोस्टिंग में उनसे पूछा नहीं जाता। अब जब मौका मिला तो सरकार को जवाब भी चिपका दिया। अफसर के बारे में बता दें कि यह अफसर महाराज के इलाके में पदस्थ हैं।
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डॉक्टर साहब की दुविधा
एक डॉक्टर साहब रिटायर हो चुके हैं। उन्होंने छिंदवाड़ा कफ सिरप कांड पर डॉक्टरों पर की गई कार्रवाई को लेकर जमकर सोशल मीडिया में विरोध-प्रदर्शन किया। व्हाट्सएप ग्रुपों पर उन्होंने व्हाट्सएप-नुमा क्रांति की। अपने लिखे से सोई हुई डॉक्टर कौम में जान फूंकने की कोशिश की। किसी नेता की तरह ओजस्वी तर्क प्रस्तुत कर बच्चों को दवाएं लिखने वाले डॉक्टर की पैरवी की। उन्होंने सीधे कहा कि हर बार की तरह बलि के बकरे सिर्फ डॉक्टर बनेंगे, जबकि आईएएस और अन्य का कुछ नहीं बिगड़ेगा। लेकिन… लेकिन… लेकिन। डॉक्टर साहब भूल गए कि उनका बेटा भी आईएएस है। यदि किसी अन्य कांड में डॉक्टरों और उनके आईएएस बेटे के बीच का मामला हुआ तो क्या वे उतनी ही शिद्दत से डॉक्टरों के साथ खड़े होंगे? इसलिए उनसे जूनियर डॉक्टर कह रहे हैं – पर उपदेशे कुशल बहुतेरे। वैसे बता दें कि उनके आईएएस पुत्र को हाल ही में जिले से हटाकर सरकार ने एक निगम में पदस्थ किया है। चर्चे यह हैं कि बड़े साहब ने ऐसा कर यहां पदस्थ सीनियर प्रमोटी आईएएस के पर कतरने के इंतजाम किए हैं।
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राज्य हम्माल सेवा के साथ फिर भेदभाव
ऊपर वाले किस्से में हमने बताया ही कि कैसे डॉक्टरों पर कार्रवाई से रिटायर डॉक्टर नाराज हैं। इसी तरह, जब छिंदवाड़ा केस में दबाव बढ़ा तो सरकार ने एक आईएएस को हटा दिया। यह आईएएस राज्य हम्माल सेवा यानी राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आए थे। इसलिए हमारी हम्माल सेवा के कुछ लोगों का तर्क है कि यदि इस पद पर आरआर यानी सीधी भर्ती वाले आईएएस होते, तो कार्रवाई नहीं होती। यही नहीं, जब प्रमोटी को हटाया गया है तो दूसरे आरआर वाले आईएएस पर कार्रवाई होनी चाहिए थी। खैर, हम तो इतना ही कहेंगे कि बड़े साहब को आरआर वाले पसंद हैं, तो हम क्या करें? कुल मिलाकर तुलसीदास जी की चौपाई “समरथ को नहीं दोष गुसाईं” को स्मरण कर सभी सुधि पाठकगण पूरे किस्से का सार समझ सकते हैं। वहीं, हटाए गए बेचारे प्रमोटी आईएएस अब तक एक बार भी कलेक्टर नहीं बन पाए हैं और अब बन भी नहीं पाएंगे, क्योंकि जनवरी 2026 में सचिव के लिए प्रमोट हो जाएंगे।
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जूनियर आईएएस बदनाम, सीनियर मलाई काट रहे
हे मधुसूदन – 40 करोड़ को 4 हजार रुपए में तब्दील करने की विधि क्या है?
हे पार्थ! – आधुनिक युग में आईएएस अफसर ही यह कारनामा कर सकते हैं।
चूंकि यह वाक्य आपने पहले ही देख, पढ़ और सुन लिया था, इसलिए हमने इस अंदाज में आपको याद दिला दिया। अब इस किस्से के पीछे का एक राज भी हम उजागर कर देते हैं। अभी तक आपको कहानी में सिर्फ एक यंग आईएएस ही दोषी नजर आ रहा है, लेकिन हकीकत में इस कांड की गाथा मंत्रालय में लिखी गई थी। तत्कालीन प्रमुख सचिव साहब ने ही यंग आईएएस को फोन कर 40 करोड़ को 4 हजार रुपए में तब्दील करने की बाजीगरी बताई थी। इसके एवज में कंपनी से उन्हें भी मोटा नजराना मिला था। यही नहीं, जब वे प्रदेश की आर्थिक राजधानी के जिल्लेइलाही थे, तब से कंपनी से उनके ताल्लुकात भी थे।
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गुलाबी गाल को गुलाब के लिए मिली तारीफ
आरआर वाले जिल्ले इलाहियों में आपको कई गुलाबी गाल वाले मिल जाएंगे। लेकिन प्रमोटी जब तक कलेक्टर बनते हैं, आईएएस की हम्माली करते-करते उनके गुलाबी गालों में खाई रूपी झुर्रियां बन जाती हैं, इसलिए गाल गुलाबी रंगत खो देते हैं। लेकिन एक जिले के प्रमोटी कलेक्टर साहब ने अभी तक गालों का गुलाबीपन बचाकर रखा है। सौम्यता और अनूठी कम्युनिकेशन स्किल्स की वजह से आम आदमी भी गदगद हुए बिना नहीं रह पाता। खैर, हम आज इनका जिक्र इसलिए कर रहे हैं कि इन्होंने अपने गुलाबी गालों की तरह जिले को भी गुलाब से महकाने का संकल्प लिया है। इसकी परिणति में उन्हें गुलाब की खेती बढ़वाने के लिए अवार्ड भी मिला है। सो उन्हें बहुत-बहुत बधाई। साथ ही, दीपावली पर हर घर में यह खुशबू बिखेरेंगे तो आपकी दीवाली भी सार्थक हो जाएगी।
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मैं काबिल नहीं हूं
“मैं काबिल नहीं हूं…” भला आज की मारकाट वाली ब्यूरोक्रेसी में ऐसे शब्द कौन बोलता है? आलम यह है कि काम न करो लेकिन बोलो इतना कि सामने वाले को यकीन हो जाए कि काम तो सिर्फ यही अफसर करता है। ऐसे दौर में भी काबिल न होने की बात की स्वीकारोक्ति अफसर में साधुपन की सौंधी खुशबू का अहसास कराती है। ऐसे ही एक अफसर राजधानी से सटे जिले के कलेक्टर हैं। वे अपने जिले में बार-बार सीएम और पूर्व सीएम के दौरों से आजिज आ चुके हैं। इसी झुंझलाहट में जिल्ले इलाही ने एक दिन कह दिया – पता नहीं क्यों सरकार ने मुझे बड़े जिले में भेज दिया? मैं इस काबिल न था। मुझे तो छोटा जिला दे देते तो अच्छा रहता। हमारी भी सरकार से गुजारिश है कि आईएएस महोदय को तत्काल दूसरा पद दिया जाए।
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धुंधकारी ने रेवड़ी चीन्ह-चीन्ह के बांटी
“अंधा बांटे रेवड़ी, चीन्ह-चीन्ह के” — कहावत को पानी से जुड़े एक विभाग में धुंधकारी के नाम से मशहूर एक प्रमुख इंजीनियर ने जीवन का फलसफा मान लिया है। धुंधकारी को हाल ही में विभाग में बजट आवंटन करना था। तो जिस-जिस संभाग से दो प्रतिशत का नजराना मिला, उन्हें आवंटन कर दिया। यदि किसी ने धुंधकारी हुजूर को नजराने के साथ ही पेय पदार्थ व शारीरिक उपभोग की वस्तुएं प्रदान कर दीं तो उसे स्पेशल ट्रीटमेंट मिला। ऐसे ही छिंदवाड़ा के एक ऑफिस को धुंधकारी की 20 करोड़ की कृपा राशि प्राप्त हुई है, जबकि 20 से ज्यादा ऑफिसों ने नजराना देने से इंकार किया, तो उन्हें अंडा यानी शून्य मिला।
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सादगी का प्रदर्शन
भारतीय लोकतंत्र में नौकरशाही जनप्रतिनिधियों के साथ पर्दे के पीछे रहकर काम करती रही है। यानी कि विभाग या जिले में जो भी काम हो रहे हैं, उनका श्रेय खुद न लेकर सरकार को दिया जाता रहा है। लेकिन कुछ आईएएस व आईपीएस अफसर मसूरी में पढ़ा यह संदेश सिर्फ दीवारों पर लिखने वाली चीज़ मानते हैं। यही वजह है कि कोई रील बनाकर अपनी प्रशंसा के कसीदे गढ़वाता है तो कोई मीडिया में सुर्खियां बटोरकर। कुछ ने पीआर के लिए अलग तकनीक अपना रखी है। इस पर विस्तृत चर्चा फिर कभी। आज हम इसी पहलू से जुड़े दो हफ्ते पहले के दो अलग-अलग किस्से बता रहे हैं।
एक युवा आईएएस अफसर का तबादला हुआ तो जनता ने तुलादान कर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। मैडम ने उनकी भावनाओं का सम्मान रखते हुए तुला को प्रणाम किया और इसमें बैठने के लिए प्रेमपूर्वक मना कर सादगी का अहसास कराया। वहीं, उन्हीं के सरनेम वाली सीनियर मैडम का जिले से राजधानी में तबादला भी हुआ। जनता ने उनके कामों को देखते हुए जय-जयकारे लगाए और पुरानी प्रथा अनुसार दुल्हन की तरह पालकी में बैठाकर विदाई दी। जनता के प्रेम पर कोई सवाल नहीं, लेकिन पद की मर्यादा और सादगी पर सवाल तो बनता ही है।
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