मायावती की रणनीति में 2007 की झलक, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं पर चुप क्यों हैं बीएसपी प्रमुख?

लखनऊ
बसपा प्रमुख मायावती ने क़रीब 9 साल बाद गुरुवार को लखनऊ में शक्ति प्रदर्शन कर 2027 के लिए चुनावी हुंकार भर दी. बसपा के संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर मायावती ने अखिलेश यादव के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नारे पर निशाना साधकर उत्तर प्रदेश की दो ध्रुवीय हो चुकी राजनीति को त्रिकोणीय बनाने की कवायद करती नज़र आईं.
कांशीराम स्मारक स्थल से मायावती ने अपने खिसके सियासी जनाधार को वापस लाने की रणनीति का ख़ुद ख़ुलासा किया. 2027 की चुनावी जंग फ़तह करने के लिए 2007 जैसे सियासी समीकरण बनाने का ताना-बाना बुनती नज़र आईं. बसपा के दलित वोट बैंक को पहले से ज़्यादा मज़बूत करने के साथ ओबीसी, अति-पिछड़ों के साथ ब्राह्मण-ठाकुर वोटों की केमिस्ट्री बनाने का दाँव चला.
मायावती ने साफ़-साफ़ शब्दों में कहा कि पिछड़े और अति-पिछड़ा तबक़े के साथ ही ब्राह्मण और क्षत्रिय समाज को बसपा से जोड़ने पर उनकी पार्टी काम करेगी. महारैली में मायावती ने ऐलान किया कि राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र को ब्राह्मण, विधायक उमाशंकर सिंह को क्षत्रिय और प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल को अति-पिछड़ा और पिछड़ा समाज को जोड़ने का ज़िम्मा सौंपा. हालाँकि, मुस्लिम समाज को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले.
2007 के फ़ॉर्मूले से 2027 जीतने का प्लान
बसपा की बहुजन पॉलिटिक्स के साथ मायावती ने 2007 में सर्वजन की सियासत पर क़दम बढ़ाया था, जिसके दम पर पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई. मायावती ने दलित वोटों के साथ अति-पिछड़े, मुस्लिम और ब्राह्मण की सियासी केमिस्ट्री बनाई थी.
उत्तर प्रदेश के 2027 चुनाव को देखते हुए बसपा ने इस साल फ़रवरी से ही सोशल इंजीनियरिंग पर काम शुरू कर दिया था. इसके तहत मार्च में हर ज़िले में भाईचारा कमेटी का गठन किया था, जिसके ज़रिए पिछड़ों को जोड़ने की योजना थी. इसके लिए उन्होंने विश्वनाथ पाल के नाम का ज़िक्र किया, जो बसपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं.
बसपा बना रही नई सोशल इंजीनियरिंग
बसपा से पिछड़ा और अति-पिछड़ों को जोड़ने के लिए इन कमेटियों की हर दो महीने में बैठकें भी मायावती कर रही हैं. इस बीच अब ब्राह्मण और क्षत्रिय समाज को साथ लाने के लिए पार्टी मिशन मोड पर काम करेगी. मायावती ने ब्राह्मण समाज को जोड़ने का बीड़ा सतीश चंद्र मिश्र को दे रखा है तो ठाकुर वोट के लिए उमाशंकर सिंह को ज़िम्मा दिया है. मायावती ने इन दोनों नेताओं का नाम भी लिया.
मायावती ने गुरुवार को भाषण में भी ग़रीब सवर्णों का कई बार ज़िक्र करते हुए कहा कि भाजपा, सपा और कांग्रेस की सरकारों में इस तबक़े की हालत लगातार ख़राब हुई और बसपा की सरकार बनने के बाद सर्व समाज को रोज़ी-रोटी और रोज़गार का संकट नहीं होने दिया जाएगा. सतीश चंद्र मिश्र के बेटे कपिल मिश्र के काम को भी सराहा. उन्होंने कहा कि जिस तरह से कपिल ने कार्यक्रम में फ़्री मेडिकल समेत दूसरी व्यवस्थाओं में मदद की है, वह पार्टी के प्रति उनके सेवा भाव को दिखाता है.
मुस्लिमों पर क्यों मायावती रहीं ख़ामोश?
मायावती ने मुस्लिम वोटों पर अपने पत्ते नहीं खोले, लेकिन रैली के मंच पर पूर्व सांसद मुनकाद अली, शमसुद्दीन राईन और पूर्व एमएलसी नौशाद अली को जगह देकर मुस्लिम समाज को साथ आने व सम्मान देने का संदेश दिया है. बसपा के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो मुस्लिम समाज के बीच अभी बसपा को लेकर उहापोह की स्थिति है, लेकिन उसे जोड़ने के लिए अलग से योजना पर काम चल रहा है, जिसका ख़ुलासा बाद में किया जाएगा.
हालाँकि, मायावती ने ज़िला से लेकर मंडल और प्रदेश स्तर पर संगठन में मुस्लिम पदाधिकारी बनाकर बसपा यह संदेश देने का प्रयास किया है कि मुस्लिम समाज के लिए पार्टी के दरवाज़े खुले हैं, लेकिन सपा के साथ जिस तरह एकमुश्त जुड़े हैं, उसके चलते फ़िलहाल मुख्य फ़ोकस नहीं है.
मायावती समझ रही हैं कि मुस्लिम वोट तभी बसपा के साथ जुड़ेगा, जब उसका बहुजन वोट साथ आ जाएगा, इसीलिए पूरा फ़ोकस दलित और पिछड़े वोटबैंक पर है. रैली में मायावती ने अल्पसंख्यकों, ख़ासकर मुस्लिमों का विकास न होने व जान-माल का ख़तरा होने की बात कहकर उन्हें पार्टी से जोड़ने का प्रयास किया.
2027 जीतने की मायावती ने भरी हुंकार
मायावती ने साफ़ कर दिया है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ेंगी. उन्होंने कहा कि 2027 के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगी. बसपा प्रमुख ने पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद को अपने से पहले बोलने का मौक़ा देकर पार्टी के भविष्य की तस्वीर भी साफ़ कर दी. उन्होंने कहा कि आकाश अब पार्टी के मूवमेंट से पूरी तरह जुड़ चुके हैं. पूरी लगन और मेहनत से काम कर रहे हैं, जिस तरह आपने कांशीराम के बाद मेरा साथ दिया, उसी तरह आकाश का भी देना है. इस तरह आकाश को भविष्य का नेता बता दिया.
मायावती ने 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बहुमत की सरकार बनाकर अपना 15 साल का वनवास ख़त्म करने के लिए रैली के ज़रिए तगड़ा शक्ति प्रदर्शन किया. क़रीब तीन लाख लोगों की क्षमता वाला कांशीराम स्मारक स्थल ख़चाख़च भरा रहा तो बाहर भी भीड़ दिखाई दी, जो बसपा के लिए 2027 से पहले सियासी संजीवनी से कम नहीं है.